क्या मैं सही थी - 3 - अंतिम भाग S Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्या मैं सही थी - 3 - अंतिम भाग

भाग - 3 ( अंतिम )


पिछले भाग में आपने पढ़ा कि छाया अपनी छोटी बहन के पास अमेरिका आयी जहाँ उसकी मुलाकात एक पुराने दोस्त से होती है , अब आगे ….

कहानी - क्या मैं सही थी

फिर उसने बच्चों को लिविंग रूम में टीवी देखने के लिए भेज दिया . आभास मेरे सामने बैठा था . उसने पूछा “ कैसी हो छाया ? मैंने तुम्हारे तलाक के बारे में सुना था . जान कर मुझे बहुत दुःख हुआ था . “


“ अब मैं वो सब पूरी तरह भूल चुकी हूँ . याद दिला कर पुराने जख्मों को न छेड़ना ही बेहतर है .कुछ और बातें करो , अपने बारे में बताओ . “


“ सॉरी छाया , मेरा मतलब तुम्हें दुखी करना नहीं नहीं था . “


“ अब मैं अपने वर्तमान से खुश हूँ . तुम बताओ कैसे हो , आज इतने दिनों बाद अचानक मिले हो ? तुम्हारा परिवार , मेरा मतलब तुम्हारी बीबी बच्चे यहीं हैं अमेरिका में . “


“ अभी तक तो बैचलर हूँ . यहाँ एक रिसर्च में लगा था , अपनी निजी जिंदगी के बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली . हाल ही में रिसर्च पूरा हुआ है . “


“ तो अब फ्री हो , अब तो शादी कर सकते हो न ? “

“ एक बात बताऊँ , विश्वास करोगी ? “


“ क्यों नहीं करुँगी , तुम पर विश्वास नहीं करने का कोई कारण नहीं हो सकता है ? “


“ तुम्हारे तलाक के बाद कुछ दिनों तक अक्सर मैं तुम्हारे शहर में जाता रहा था . पर तुम्हें खबर करने या तुमसे मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सका . मैं उस समय भी तुम्हें अपनाने को तैयार था . “


मेरी आँखों में आंसू भर आये . आभास उठ कर मेरी बगल में बैठ गया और रूमाल से मेरे आंसू पोंछने लगा . उसी समय माया ने कमरे में प्रवेश किया . मैं और आभास दोनों थोड़ा सहज होने की कोशिश कर रहे थे . आभास ने माया से कहा “ सॉरी माया , मैंने तुम्हारी दीदी के पुराने ज़ख्मों को कुरेद कर उसे रुला दिया . अब तुम इसे समझाओ . “


मैंने आंसू पोंछते हुए कहा “ इट्स ओके नाऊ . “////////


कुछ देर तक हम सभी बातें करने लगे . फिर डिनर के बाद माया और आभास बाहर निकल गए . चलते समय माया ने कहा “ मैं एक घंटे में लौट कर आती हूँ . “


जब वह लौट कर आयी तब कुछ सीरियस दिख रही थी . उसने मुझे अकेले में कहा “ आभास ने तुम्हारे बारे में मुझे काफी बातें बतायीं हैं . वह तुम्हें चाहता था और उसने तुम्हें शादी करने से रोकना चाहा था . वह अभी भी तुम्हें बच्चों के साथ अपनाने को तैयार है . दी , सोच लो . “


“ पागल हो क्या ? और तुम मेरी दादी नानी बनने की कोशिश न करो . मुझसे छोटी हो और छोटी की तरह बात किया करो और आगे कभी पुरानी बातों से मेरा दिल दुखाने की कोशिश न करना . “


“ मैं दिल कहाँ दुखा रही हूँ , मैं तो तुम्हें खुश देखने की सोच रही हूँ . “


“ मैं बहुत खुश हूँ . अब इस विषय पर मुझे आगे कोई बात नहीं करनी है . “


अगले दिन फिर आभास आया . माया जानबूझ कर हमदोनों को छोड़ कर बच्चों के साथ निकल गयी . मैं चुप थी , आभास ने ही बातचीत का सिलसिला शुरू किया “ मैंने माया को सारी बातें बता दी है . “


“ और माया ने भी मुझे सब कुछ बता दिया है . “


“ तब तुमने क्या सोचा है ? “


“ मैंने तो बहुत पहले ही सोच लिया था कि अब मुझे सिर्फ बच्चों के लिए जीना है ? “


“ और आगे चल कर जब बच्चे सैटल हो जाएंगे तब क्या करोगी ? तुम्हारा अपना निजी जीवन भी तो कुछ मायने रखता है कि नहीं . “


“ शादी के समय मैंने नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी आएगा . अब जब आया तो इससे निपट रही हूँ . इतनी दूर की मैं नहीं सोच रही हूँ . जब जैसा होगा देखा जाएगा . मैं अब भी खुश हूँ और आगे भी जो भी दिन देखना पड़े , खुश रहने की कोशिश करूंगी . “

“ एक बार फिर से सोच लो ,मैं अभी भी ख़ुशी ख़ुशी तुम्हारा साथ देने को तैयार हूँ . “


“ आभास , मुझे फोर्स न करो . वैसे भी मैं जानती हूँ माया तुम्हें चाहती है और शायद तुम भी उसे . “


“ हाँ , पर अगर प्यार से ज्यादा जरूरी कोई बात हो तो प्यार को भूलना ही फ़र्ज़ बनता है . है कि नहीं तुम्ही कहो ? . “


“ यही बात मेरे साथ भी लागू है . माया को तुम्हारी ज्यादा जरूरत है . “ मैंने कहा


“ और तुम्हारी भी तो कुछ जरूरतें हैं . “


“ मैंने कहा न कि मैं बहुत खुश हूँ , मैंने कभी बच्चों के आगे कुछ सोचा ही नहीं है न ही इसकी जरूरत कभी महसूस हुई है . “


“ मैं दो नावों में पैर रख कर खड़ा हूँ . समझ नहीं पा रहा हूँ कि किधर जाऊं . “


“ दो दिन पहले तक तुम्हारे पाँव सिर्फ एक ही नाव में थे . तुम जिस नाव पर थे बस उसी पर रहो . माफ़ करना , मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो . “


सच तो यह था कि आभास से बात कर के मुझे ऐसा लगा कि मैं खुद दोराहे पर खड़ी हूँ . आभास का हाथ थाम लूँ तो बेशक़ मेरा आगे का सफर आसान हो जाता . माया पर क्या बीतती मैं समझ सकती हूँ , उसका दिल टूट जायेगा .एक माया ही ने हर हाल में मेरा साथ दिया है .तब तक माया भी आ गयी . वह बोली “ तब हो गयी तुम दोनों की बातें ? अब कुछ देर हम सभी मिल कर बात करते हैं . “


“ क्या बात करनी है ? “ मैंने पूछा


“ अनजान न बनो दी . तुम्हारा फैसला जानना चाहती हूँ मैं . “ माया ने कहा


“ मैंने तुम्हें अपना फैसला बता दिया था और दोबारा इस बारे में बात करने को मना किया था न . फिर क्यों यह सवाल मेरे सामने बार बार उठाया जा रहा है ? अगर तुमलोग मेरी बात नहीं मानते तो मैं कल ही इंडिया लौट जाऊंगी . “ मैं दोनों पर चिल्ला पड़ी थी .


माया रोते हुए मेरे गले से लिपट गयी और बोली “ दी , मैं तो तुम्हारे और बच्चों की ख़ुशी के लिए यह सब सोच रही थी . ठीक है तुम्हें नहीं मंजूर तो कोई बात नहीं है . इंडिया लौटने की बात न करो , पूरी छुट्टियां बिता कर यहाँ से जाना . पर कहीं तुम मेरे लिए अपनी ख़ुशी क़ुर्बान तो नहीं कर रही हो . “


मैंने उसकी पीठ थपथपा कर कहा “ पगली , यह कोई क़ुर्बानी नहीं है , ये तो मेरा फ़र्ज़ और तेरा हक़ है . “

माया के कंवोकेशन के कुछ दिन बाद मैं बच्चों के साथ इंडिया लौट आयी .मेरे दोनों बच्चे पढ़ने में काफी तेज थे . मुझे उन्हें बढ़ते देख और तरक्की करते देख बहुत ख़ुशी होती .समय पंख लगा कर तेजी से उड़ता गया . आज वर्षों बाद मुझे सूनापन सताता है .दोनों बच्चे अमेरिका में सैटल हो गए हैं .दोनों ने अपनी पसंद से वहीँ शादी भी कर ली है .मुझे भी अमेरिका में रहने के लिए बुला रहें हैं .मैंने अमेरिका में रह कर वहां की लाइफ देखी है , बहुत बीजी और फ़ास्ट लाइफ है . सभी अपनी जगह अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं , एक मैं ही अकेली यहाँ सन्नाटे से जूझ रही हूँ .कभी मन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि क्या आभास का हाथ न थामना मेरा सही फैसला था .


समाप्त