यकिं - एक मां की दास्तां Zenifer Jenny द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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यकिं - एक मां की दास्तां

दरवाजे के पास जाकर मैंने बेल बजाया। तो अंदर से एक औरत की चहकती हुई आवाज सुनाई दी- "लगता है वो आ गई। जल्दी से आरती की थाल ले आओ। अरे तुम लोग अभी तक यही हो, जल्दी करो। 10 साल बाद वो वापस आई है, आरती तो बनती है।"
उसने दरवाजा खोला हाथों में आरती की थाल, आंखों में चमक और चेहरे पर खुशी पहले की ही तरह। पहले उसने मुझे देखा, फिर मुझे सामने से हटाकर अगल-बगल देखा, फिर उदास होकर मुझसे कहा- "वो कहां है? तुम उसे अपने साथ नहीं ले आए?"
मैंने बहुत मुश्किल से कहा- "नहीं.... वो...."
उसने बीच में ही गुस्से में कहा- "रहने दो 10 साल से यही बहाने सुनती आई हूं।"
मैंने कहा- "और मैं हर बार यही समझाता आया हूं। भूल जाओ, उसे अब वो कभी वापस नहीं आने वाली। वो जा चुकी है हम सब को छोड़कर।
उसने गुस्से में आरती का थाल फेंक दिया और चिल्लाकर कहा- "नहीं... वो मुझे छोड़कर नहीं जा सकती... कभी नहीं, उसे आना होगा.... उसे वापस आना होगा.... क्योंकि मैं उसका इंतजार कर रही हूं।" कहकर वो रोने लगी और रोते-रोते जमीन पर बैठ गई। मैंने उसे उठाया और लाकर सोफे पर बिठा दिया। फिर कहा- "देखो तुम्हें स्ट्रेस नहीं लेना चाहिए और....और चीखना-चिल्लाना तुम पर शोभा नहीं देता। इन सब से तुम्हारी बीपी बढ़ जाएगी, और फिर....।"
उसने मासूमियत से पूछा- "और फिर?"
मैंने कहा- "और फिर अगर तुम्हें कुछ हो गया और वो वापस आई, तो क्या जवाब दूंगा मैं उसे। मुझ पर सवाल उठेंगे ना, कि मैंने तुम्हारा ख्याल नहीं रखा। इसलिए तुम स्ट्रेस बिल्कुल मत लो। ओके?" उसने गर्दन हिला दिया।
फिर मैंने कहा- "चलो तुम्हारी इंजेक्शन का टाइम हो गया है।" कहकर मैंने बैग से इंजेक्शन निकालकर लगाया, फिर उसे गोली खाने को दी।
तभी सुमित सिढ़ियों से उतरकर नीचे आया और मुझे देख कर बोला- "अरे प्रशांत तुम!"
मैंने सोफे से उठकर उसके पास जाते हुए कहा- "हां मैं पहले की ही तरह। और बताओ कैसे हो?
सुमित ने कहा- "ठीक हूं और तुम?"
मैंने कहा- "मैं भी ठीक हूं।" फिर उसकी तरफ देखकर मैंने कहा- "मैंने चित्रा को दवाई दे दी है। तुम उसे उसके कमरे में लिटा आओ। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, मैं बगीचे में तुम्हारा वेट कर रहा हूं।"
मुझे बगीचे में 2 मिनट हुए होंगे कि सुमित आया, उसने कहा- "कुछ चाहिए।"
तो मैंने कहा- "ज्यादा फॉर्मल होने की जरूरत नहीं है। तुम्हें पता है, मैं तुम्हारा फैमिली डॉक्टर कम दोस्त ज्यादा हूं। सो बैठ जाओ, पहले बात कर लेते हैं।"
सुमित के बैठने के बाद मैंने गंभीरता से कहा- सुमित चित्रा की हालत तो सुधर ही नहीं रही। तुम उसे कहीं दूर क्यों नहीं ले जाते। शायद वो बेटर हो जाए।"
सुमित ने कहा- "मैं भी चाहता हूं कि वो ठीक हो जाए। इंफैक्ट मैंने उसे कई बार कहा कि चलो कहीं बाहर चलते हैं, लेकिन उसने आज तक मेरी बात नहीं मानी। कहती है उसके जाने के बाद वो वापस आ गई तो...।
मैंने कहा- "सुमित आज 10 साल हो गया है। जैसे उसके हालात हैं, वो डिप्रेशन में जा रही है। अगर 1 साल और ऐसा चला तो वह पूरी तरह पागल हो जाएगी। मानता हूं वो उससे बहुत प्यार करती है, पर उसके इंतजार में उसने 10 साल गुजार दिया। इन 10 सालों में दुनिया कितनी बदली है, कितनी आगे बढ़ी है। पर चित्रा.... चित्रा वही की वही है उसके इंतजार में, उसकी राह देखती।"
सुमित ने उदास होकर कहा- "सच कहूं तो उसकी याद मुझे भी आती है। पर मैं ना तो कुछ कह सकता हूं, ना ही रो सकता हूं, क्योंकि मुझे चित्रा को हिम्मत जो देना है।
मैंने कहा- "देखो सुमित एक डॉक्टर होने के नाते मैं उसका इलाज कर सकता हूं। एक दोस्त होने के नाते समझा सकता हूं, सलाह दे सकता हूं। पर चित्रा को हिम्मत तुम ही दे सकते हो, क्योंकि वो तुम्हारी बीवी है। उसे ये यकीन दिलाओ कि आशा के वापस आने की आशा वो छोड़ दे। वो वापस नहीं आएगी। उसकी सबसे बड़ी प्रॉब्लम यही है कि वो यकीन ही नहीं कर पाई है, कि आशा अब वापस नहीं आएगी।"
मैं जाने के लिए खड़ा हुआ, फिर मैंने कहा- "देखो आशा को तुम पहले ही खो चुके हो। पर चित्रा को ना तुम खोना चाहते हो, ना मैं उसे इस हालत में देखना चाहता हूं। और दवाइयां.... वो तब काम करेंगी, जब वो खुद ठीक होने की कोशिश करेगी। और उसे ये करना होगा।"
सुमित ने कहा- "ओके मैं पूरी कोशिश करूंगा, उसे यकीन दिलाने कि आशा अब वापस नहीं आएगी।
मैंने कहा- "ओके, फिर मैं चलता हूं"
हम दोनों साथ में बैठक तक आएं। मैंने अपना बैग लिया और कहा- "उसे दवाइयां समय पर देते रहना।" सी यू।"
सुमित ने सी यू अगेन कहकर गले लगाया।
फिर मैं घर आ गया। रात को सोते वक्त नींद नहीं आ रही थी। चित्रा को लेकर स्ट्रेस था। तो मैं उठ कर बैठ गया और लाइट ऑन कर दी। इससे मेरे बगल में सोयी मेरी वाइफ ने कहा- "क्या हुआ आपको नींद नहीं आ रही क्या? कुछ प्रॉब्लम है?"
मैंने कहा- "नहीं कोई प्रॉब्लम नहीं है, तुम सो जाओ। मुझे कुछ काम याद आ गया, तो मैं वो करके आता हूं।"
मैं बाहर आ गया। किचन में जाकर कॉफी बनाई और लेकर टेरेस पर आ गया। कॉफी पीते हुए पुरानी बातें याद आने लगी।
20 साल पहले की बात है जब मैं, सुमित और चित्रा बेस्ट फ्रेंड थे। हम ढेर सारी मस्ती करते थे। हमारा बचपन चला गया था पर बचपना बाकी था। पूरे कॉलेज में कोई नहीं था जो हमारी टक्कर का था। हम थे तो तिन, पर हमारी ताकत गांधीजी के तीन बंदरों से कम नहीं थी। फिर वो दिन आया जब हम तीनों अलग हो गए......


कौन है आशा? और 10 साल पहले उसके साथ क्या हुआ था? क्यों चित्रा को यकीन है आशा के वापस आने की?.... पूरी कहानी जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए।

यकीं- एक मां की दास्तां. जानिए पूरी कहानी-
https://youtu.be/RKYTuzezD_s