वो यादगार डेट - 4 Sweety Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वो यादगार डेट - 4

हम लगभग एक साल से एक दूसरे को जानते थे। कभी ज़्यादा बात भी नहीं होती थी, कभी एक - आद बार किसी काम के सिलसिले में बात हो गई जो हो गई वरना नाम और काम के अलावा एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं जानते थे।

तभी मुझे पता चला था उसके घर में कोई बीमार है तो मुझे लगा कि मुझे मिल कर आना चाहिए। मैंने दिव्या से बात की और साथ चलने को कहा।
दिव्या उसे और उसके परिवार को मुझसे थोड़ा ज्यादा जानती थी। दिव्या ने उससे बात की और हॉस्पिटल का पूरा पता मालूम कर लिया था।
अगले दिन रविवार था, मैं और दिव्या दोनों ही फ्री थे तो हम हॉस्पिटल के लिए निकल गए। वहां पहुंचे तो जिनकी तबीयत खराब थी उनसे मिले पर वो उस समय पर वहां था नहीं। मैं उसके अलावा उसके घर में किसी को जानती भी नहीं थी। ये बिल्कुल ऐसा था कि इतनी भीड में भी अकेले हैं। किससे बात करूं , क्या बात करूं कुछ नहीं पता था। दिव्या साईड में खड़ी उसके भाई से बात कर रही थी, मैं भी वहीं उसके पास जाकर खड़ी हो गई।
लगभग आधे घंटे हम वहां रुके होंगे और फिर हम वहां से निकल गए।
सबसे मिलकर अच्छा लगा काफी।
वहां से निकलकर मैंने अपने बाकी काम भी निपटाए और फिर घर गई। संडे का दिन भी कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता। सब काम खत्म करते करते रात हो गई थी और अगले दिन फिर वही ऑफ़िस। सोने से पहले अलार्म लगाना जरूरी था।
शनिवार को सुबह उठते ही में सबसे पहले अलार्म हटा देती हूं ताकि संडे वाले दिन सोने में किसी तरह की अड़चन ना हो। पर अब संडे का दिन निकल चुका था तो अलार्म फिर से लगाना ज़रूरी था। अलार्म लगाने के लिए फोन उठाया तो देखा उसका मैसेज मेरे पास आया हुआ था।
मैंने तुरंत मैसेज खोला और पढ़ा तो लिखा था - "थैंक यू" ।

हमारी इस तरह कभी बात होती नहीं थी तो उसका ऐसे मैसेज आना मुझे थोड़ा अजीब भी लगा।
मैंने पूछा - थैंक यू किस लिए
उसका तभी रिप्लाई आता - आज हॉस्पिटल आने के लिए। भाई ने बताया मुझे आप गए थे आज हॉस्पिटल मिलने के लिए।
मैंने कहा इसमें थैंक यू की क्या बात है।
उम्मीद है कि वो जल्दी ही ठीक हो जाएंगे।

बस उस दिन की बात वहीं पर ख़तम कर मैं सोने चली गई।

यहां से हमारी बातचीत होनी थोड़ी शुरू हुई थी। क्योंकि हमारा काम अलग था तो बात करने के लिए कुछ कौमन था नहीं।
फिर भी बीच बीच में एक दूसरे के वॉट्स ऐप स्टेटस देखकर रिप्लाई कर दिया करते थे। सब इसी तरह चल रहा था वो भी अपने काम में बिज़ी था और मैं भी। कभी ऐसा मिलना जुलना भी नहीं होता था।

फिर एक रात उसका मैसेज आया। क्योंकि मुझे सुबह जल्दी उठना होता था तो मैं जल्दी सो जाती थी। पर क्योंकि अगले दिन संडे था तो ना ही सोने की जल्दी थी ना ही अगले दिन सुबह उठने की जल्दी।
तब मैं भी उसके मैसेज का रिप्लाई करने लगी और वो रात इसी तरह आगे बढ़ती चली गई।