समय मन कर्म - 1 - Never stop it Mohit Rajak द्वारा कल्पित-विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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समय मन कर्म - 1 - Never stop it

मनुष्य जब इस धरती पर जन्म लेता है तो यह तीनों समय,मन, और कर्म उसके साथ ही उस मानव के जीवन में आते है,समय मन और कर्म यह तीनों एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं, इस दुनिया में की भी ऐसी काम नहीं है जो इन तीनों के बिना संभव हो ।

हमारे जीवन में जो भी अच्छा बुरा होता है उन सभी का कारण इन तीनों पर ही निर्ब्भर करता है। दोस्तों इन तीनों को इस प्रकार से समझते हैं,
माना मन एक सूर्य है जिससे विचार रूपी किरण निकल रही है और हमारे कर्म ग्रह है जो मन रूपी सूर्य के प्रकाश ऊर्जा से संचालित होते हैं। और समय अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का प्रतीक है जो लगतार विस्तारित हो रहा है और सभी कुछ उसमे ही घटित हो रहा है।
मन, समय और कर्म यह एक दुसरे से जुड़े हुए हैं और ये कभी भी रुकते नहीं है और सदा ही गतिमान रहते हैं और यह एक साथ काम करते हैं। मन से लगातार सकरात्मक और नकारात्मक विचार निकलते रहते हैं, जो हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं नकारात्मक विचार हमे डर, कठिनाई और काम आदि को उत्पन्न करते है, और सकरात्मक विचार आपको सदा ही motivation देते हैं, और आपको कर्म करने के लिए उत्साहित करता है, इंन्ही सकरात्मक और नकारात्मक विचार के आधार पर आप कर्म करते हो, आप जिस तरह के विचार को महत्व देते हो आप वैसे ही कर्म करने लगते हैं।
मन एक चुंबक की तरह होता है चुंबक की चुम्बकीय शक्ति दिखाई नहीं देती हैं, परंतु जब कोई लौह अयस्क इसक
पास आता है तो चुंबक उसे खीच लेती है ठीक उसी प्रकार हमारे मन में भी चुंबक की तरह आकर्षित करने की शक्ति होती हैं आप जिस तरह के विचार आपने मन में लायेगे उसी से संबंधी आवश्यकताओं और साधनों को आपके पास आ जायेंगे, इसे ही the law of attraction कहते हैं ।
आप मन के जिस तरह के विचार को महत्व देते हो आप उसी के पर कर्म करने लगते हैं और उन्ही कर्म के आधार पर आपका भाग्य बनता है
श्री मद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने बताया है की हमारा मन ही हमारा सबसे बड़ा मित्र और शत्रु होता है,
यदि मन हमारे वश मे है तो यह हमारा मित्र है, और यदि मन हमारे वश मे नहीं है तो ये हमारे लिए किसी शत्रु से कम नहीं है।
यह मन ही जो किसी को राजा तो कििसी को भिखारी बना
देता है अर्थात हम अमीर और गरीब अपने मन के कारण ही होते है।
हमारा मन विचार उत्पन्न करता है और उन विचार पर ही हम कर्म करते है और उन्ही कर्मो के आधार पर हमे सुख- दुःख, लाभ- हानि, और हार - जीत मिलती है, तो कहने का अर्थ यह है की सब कुछ हमारे मन पर ही निर्भर करता है, जिस प्रकार के हमारे मन के विचार होंगे उसी प्रकार से हमारे कर्म होंगे।
इसी लिए कहा जाता हैं की हमेशा हमे सकरात्मक विचार को ही महत्व देना चाहिए।
तो सबसे जरूरी यह है की हम अपने मन को नियंत्रित करना मन को वश मे करने के लिए हमे ऐसे उपाय की जरूरत है जो मन को नियंत्रित कर सके, जिससे हम सुख,दुःख, जय पराजय, मान सम्मान, लाभ हानि को एक समान रूप से मानकर परम् अनंद को जानकर मन को पूरी तरह से नियंत्रित कर सकते हैं।
इसके लिए आपको इस उपन्यास का दूसरा भाग देखना होगा,
आप सभी से आशा है की आपको इसका यह भाग अच्छा लगा होगा इसे अपना प्यार दे


आप सभी पाठको का दिल 🌹 से thank you🙏🙏❤