उम्र जब नौजवानी की हद पार कर जाए,लेकिन दिल फिर भी किसी को देख कर मचल जाए,खुद की ब्याहता बीवी होने के बावजूद पर स्त्री पर बहक जाए तो उस मर्द के क्या हालात हो जाते हैं,यह बड़ी हो बारीकी से इस कहानी में उकेरा गया है।
-सत्यम मिश्रा
कहते हैं मोहब्बत एक ऐसी चीज होती है जो जिंदगी के किसी न किसी लम्हे में हर किसी को होती है,और अक्सर पहली मोहब्बत इंसान के नसीब में नहीं होती। मुझे भी हुई लेकिन जरा देर से-तब जबकि मेरी शादी भी हो गई और मैं उम्र के पैंतालिस बसन्त भी देख चुका। मोहब्बत तो हुई लेकिन अपनी बीवी से नहीं,उससे जो मेरी जिंदगी में आयी भी तो कुछ वक्फे के लिए और एक मीठा सा दर्द और चुभन मेरे दिल में दे कर हमेशा हमेशा के लिए उन्ही वादियों में गुम हो गई जहाँ से वो परी आयी थी। हालांकि उम्र के लिहाज से मैं किसी भी तरह से प्यार करने वाली अवस्था में न था,लेकिन 'प्यार किया नहीं जाता हो जाता है' ये मुझे उस वक्त पता चला जब खुद मुझे प्यार हुआ।
मेरा नाम सागर है और मैं अपनी बीवी शीतल के साथ एक बहुत ही भीड़भाड़ और मध्यम दर्जे वाली सोसायटी में खुद की कमाई से खड़े किये गए छोटे से मकान में रहता हूँ। नौकरीपेशा आदमी हूँ-मध्यमवर्गीय फ़ैमिली से जुड़ा हुआ-और अब तक बिना बच्चों के घर में बीवी के साथ खुशी से रहता हूँ। ऐसा नहीं था की निःसन्तानता की इस बात को ले कर मुझे अपनी बीवी से किसी तरह का कोई शिकवा था, वो भी समझदार और जहीन औरत थी और मुझे हर तरह से खुश रखने के प्रयत्नों में जुटी रहती थी।
शेरों शायरी करना हमेशा से ही मेरा शौक और शगल रहा है। मैं कई दफा अपनी बीवी से भी ये बात कह चुका था की अगर फैमिली दबाव के कारण मेरी उससे कम उम्र में शादी न हो गई होती और मैं पराई नौकरी के फंदे में न फंस गया होता तो आज के दौर में जरूर एक बड़े शायर का मुकाम हासिल करता। बीवी भी अक्सर हंस कर मेरी इस बात को टाल जाती शायद उसे मेरी इस खुशफहमी पर हंसी आती थी जो मैंने इतनी घटिया शायरी करने के बावजूद भी अपने दिलोदिमाग में पाल रखी थी। मैं भी अक्सर उसके इस व्यवहार के लिए उससे कभी प्रेम से तो कभी हल्के से गुस्से में रोष जाहिर करता। इसी तरह से हंसते खेलते हमारी जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ रही थी जब एक दिन मेरी जिंदगी में वो खूबसूरत ब्रेक आया।
मैं उस दिन हल्के से-नाकाफी-बुखार के चलते नौकरी से कदरन जल्दी घर आ गया था जब पहली बार मेरी नजर उस कयामत और दिलफ़रेब हसीना पर पड़ी। वो मेरे घर पर ही शीतल के साथ कुर्सी पर बैठी किसी बहन या किसी खसुलखास सहेली की तरह हंस हंस कर बातें कर रही थी। उसे देखकर एक पल के लिए तो मेरे पैर जमीन पर जड़ हो गए,दिल जोरशोर से धड़कने लगा, मुंह खुला का खुला ही रह गया-मुझे ऐसा लग रहा था की उस वक्त चांद मेरे छोटे से घर के आंगन में आ गया हो और उसकी रोशनी से सारा घर चमक दमक उठा हो।
मैं उसके संगमरमरी बदन से अपनी नजरें ही न हटा पा रहा था। मालूम दे रहा था की वो जन्नत से उतरी हुई कोई हूर हो जो सिर्फ मेरे लिए इस धरती पर आयी थी। उसकी हिरनी जैसी बड़ी बड़ी कजरारी आंखे,सुतवां नाक,गुलाब की अर्धविकसित पंखुरियों से रसभरे सुर्ख होंठ,दूध जैसा गोरा रंग,हवा के झोंको से लहराती लम्बी काली जुल्फें,बलखाती हुई कमर, नौजवान शोखियों से भरे उसके हावभाव सब कुछ ही तो उसमे कयामत था। वो सब कुछ था उसमे जो मैं हमेशा से अपनी कल्पना और ख्वाबों की मल्लिका में देखता रहता था। उसकी उम्र चौबीस पच्चीस की ही रही होगी और किसी भी लिहाज से वो शादीशुदा नहीं नजर आ रही थी।
जब शीतल का मेरी ओर ध्यान गया तो उसने मुझे पुकारा और उस वक्त मुझे अपनी बेध्यानी का अहसास हुआ और तत्काल ही झेंप भी महसूस हुई। शीतल ने मुझे उसका परिचय दिया और बताया की ये हमारी नई पड़ोसन रुखसाना थी और आज ही हमारे सामने वाले घर में रहने आयी थी। उसने मुझे तत्काल ही आदाब किया मैंने भी होंठो पर मुस्कराहट सजा कर बड़े ही प्यार से उसका अभिवादन स्वीकार किया।
इसके बाद मैं सीधा अपने कमरे में गया। कपड़े बदल कर बाहर आया और अपनी कलम डायरी ले कर छत पर चला गया। छत पर मैं उस जगह बैठा जहां से बैठने पर नीचे वो हसीना मुझे साफ साफ नजर आ रही थी। वह उस घड़ी भी शीतल के साथ बातें कर रही थी और बीच बीच में खिलखिला रही थी। ऐसा लग रहा था की उसका शीतल के साथ काफी दोस्ताना व्यवहार हो चला था।
उस दिन उसके चेहरे का दीदार करते हुए मैंने एक बहुत सुंदर शायरी की रचना की। उस दिन वक्त कितनी जल्दी गुजर गया मैं सोच भी नहीं सकता। वो अपने घर चली गई जो ऐन मेरे घर के सामने ही बना था और किसी भी लिहाज से मेरे से दूर नहीं था,फिर भी ऐसा लग रहा था की वो मुझे छोड़ कर कोसो दूर चली गई है।
उस रात मैं जब अपने बिस्तर पर बीवी के साथ लेटा था तो उसी ने उत्सुकता के हवाले हो कर अपनी नई पड़ोसन का जिक्र करना आरम्भ कर दिया। वो एक ही दिन में रुखसाना से बेहद दिली रिश्ता कायम कर चुकी थी और उसके आने से बेहद खुश थी। मैंने उसे ऐसा जाहिर किया की मैं रुखसाना के बारे में खासा ध्यान नहीं दे रहा हूँ,फिर भी बातों बातों में मैं उसके बारे में काफी कुछ जान गया।
यह जान कर मुझे धक्का सा लगा की वो शादीशुदा थी और अपने शौहर कासिम से लड़ाई करके उससे दूर रहने चली आयी थी। शीतल ने मुझे एक खुशी की बात यह भी बताई की रुखसाना ने अपने शौहर से तलाक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी भी दे दी थी क्योंकि वह किसी भी सूरतेहाल में उस बेरहम के साथ जिंदगी नहीं गुजार सकती थी जो उसे निकाह के साल भीतर ही पशुओं की भांति मारता पीटता था।
अगले दिन सुबह उठते ही मैंने शीतल से ये घोषणा कर दी की मेरी तबियत नासाज है और बुखार के चलते मैं काम पर नहीं जाऊंगा। ये जान कर शीतल चकित रह गई की मैं आज काम पर नहीं जा रहा हूँ क्योंकि अभी तक मैं हमेशा ही अपने छोटे मोटे बुखार जुकाम के चलते कभी नौकरी का नागा नहीं किया करता था। आज मुझे घर पर ठहरा जान कर उसे वाकई में मेरी फिक्र हुई उसकी इसी फ़िक्रमन्दी के चलते मुझे उसके सामने ही बिना बुखार के दो दफा दवाई का कड़वा स्वाद चखना पड़ा।
मैं दिन भर उसके इंतजार में घर में ही बना रहा,यदा कदा छत पर जा कर भी उसके घर के दरवाजे पर नजरेंइनायत करता लेकिन वो मुझे नजर न आयी।
मैं उसकी एक झलक पाने के लिए बेकरार हो गया। अन्ततः वह आयी। आज उसने श्वेतपरिधान धारण कर रखे थे जिसमे वह वीनस की देवी और खूबसूरती की मल्लिका लग रही थी। वह आज भी उसी जगह पर बैठी थी जिस जगह कल थी और मैं भी कल की तरह छत पर उसी जगह पर बैठा उसे निहार रहा था।
वह कल की तरह ही आज भी बहुत खूबसूरत और हसीन लग रही थी। उसकी हंसी कमाल की थी। जब भी वह हंसती तो ऐसा लगता की किसी ने मधुर पायल की झंकार कानों के पास बजा दी हो। उसे देख कर खुद कभी कभी ये ख्याल आने लगते की इतनी खूबसूरत बीवी पर कोई खाविंद भला हाथ कैसे उठा सकता है,उसे तो इसके पास रहते पूरी दुनिया जहान भुला देना चाहिए था।
अगर रुखसाना के शौहर को उसमे कोई खोट भी नजर आई थी तो ये उसी की बदकिस्मती होगी। अगर उसकी जगह रुखसाना मेरे हिस्से में आयी होती तो मैं उसे अपनी रानी बना कर रखता,उसके कदमों में हर खुशी डाल देता और उसके हाथ चूम कर पूछता की रुखसाना और क्या चाहिए तुम्हें? अगर तुम मेरी जान भी मांगो तो मैं हंसते हुए तुम्हारे ऊपर कुर्बान कर दूं?
मैं इन्ही ख्यालों में डूबा था की अचानक तन्द्रा टूटी-वो जा रही थी। मैंने हैंडवॉच पर दृष्टिपात किया तो अहसास हुआ की वहां बैठे बैठे डेढ़ घंटे से ऊपर हो गए थे और मुझे इस बात का इल्म भी न हुआ। वो चली गई। मैं अपनी जगह से उठा और कुछ पल छत पर इधर उधर टहलने के पश्चात शीतल से बोल कर ठंढी हवा खाने के इरादतन बाहर निकल गया। घूम फिर कर जब मैं वापस लौटा तो देर रात हो रही थी।
आज रात फिर से शीतल ने मुझे उसके बारे में बातें बताई। उसने यह भी बताया की उसने रुखसाना को मेरी शायरियों की बाबत भी बताया जिसे सुनकर रुखसाना ने मेरी शायरी सुनने की ख्वाहिश जाहिर की है। सुनकर मेरा दिल तो खुशी से नाच उठा पर जाहिरी तौर पर मैंने शीतल को ये कह कर मना कर दिया की मुझे किसी पराई औरत को अपनी प्रेम भरी शेरों शायरी सुनाने में कोई रुचि नहीं है। इसके बाद शीतल तो सो गई,लेकिन मेरी उस रात की नींद उड़ गई। मैं सारी रात उसी के ख्वाबों में डूबा रहा,उसके लिए नई नई शायरियों का तसव्वुर करता रहा।
इसी तरह दो और दिन गुजरे। मैं अपने उसी पुराने बहाने की बदौलत घर पर ही पड़ा रहता,शाम होते ही उसके आने का इंतजार करता,उसे देखता रहता,उसके जाते ही फिर उदास हो जाता,और रात को उसी के सपनों में डूबा रहता।
अगला दिन इतवार का था और इस दिन बिना बुखार का बहाना किये ही छुट्टी मेरे नसीब में थी। शीतल अपने चचेरे भाई के शादी के सिलसिले में सुबह ही मायके गई हुई थी। हालांकि ससुरालियों ने मुझे भी आने के लिए पुरइसरार किया था लेकिन मैंने उन्हें अपनी बीमारी का हवाला दे कर मना कर दिया था।
उस दिन मैं बड़ी ही बेसब्री से रुखसाना का इंतजार करता रहा। सुबह से शाम हो गई लेकिन उसके कदम मेरे गरीबखाने पर न पड़े। मैं परेशान हो चला फिर विचार आया की कहीं कल ही शीतल ने उसे अपनी गैरमौजूदगी के बारे में तो नहीं बता दिया था जिस कारण आज वह नहीं आयी,लेकिन मेरा ये ख्याल जल्द ही गलत साबित हुआ जब देर शाम उसके कदम मेरे घर पर पड़े। उस वक्त उसने गुलाबी रंग का सलवार कुर्ता पहन रखा था और हमेशा की तरह ही वो बेहद हसीन लग रही थी। आज उसने जाने कौन सा परफ्यूम लगा रखा था जिसकी महक से मैं मदहोश हुआ जा रहा था। उसने अभिवादन किया तो मैंने बड़े ही प्यार भरे अंदाज में उसे आदाब का जवाब दिया और उसे अंदर बुलाया।
शीतल की नामौजूदगी की खबर ने उसे कुछ निराश किया। वह जाने को उद्धत हुई की मैंने उसके लिए अपने हाथों से बनाई चाय पेश करने की गुजारिश की। उससे मेरा प्रस्ताव नकारा न गया। मैंने बड़े ही प्यार से उसके लिए चाय बनाई। इसी दौरान मुझे पहली बार उसके साथ बैठने का,चाय पीने का,कुछ बातें करने का नायाब मौका हासिल हुआ। बातों ही बातों में रुखसाना ने मुझसे मेरी शायरियां सुनने की इच्छा जाहिर की। इसी लम्हे का तो मुझे बेसब्री से इंतजार था,मैं उसकी इच्छा का गला कैसे घोंट देता?
मैंने उसे वो ही शायरियां सुनाई जो मैंने उसी के तसव्वुर में उसी के लिए बनाई थी। मेरी शायरियों को सुन कर वह मंत्रमुग्ध हो गई। उसने मेरी खूब तारीफ भी की जिसे सुन कर मैं हवा में उड़ने लगा। उस रात जब वो जाने लगी तो दिल की तमाम हसरतों के बावजूद मैं उसे नहीं रोक सका,कुछ और पल उसके साथ न गुजार सका। वो मुझे पीछे मचलता छोड़ कर चली गई। मुझे ऐसा लग रहा था शायद वो भी मुझसे मोहब्बत कर बैठी है,इस खुशफहमी ने मेरा नींद चैन उड़ा दिया। मैं उस सारी रात सो न सका।
अगले दिन शीतल फिर मेरे छाती पर आ बैठी। मैं तो चाह रहा था की वो कुछ रोज के लिए और अपने मायके पड़ी रहती लेकिन उसे भी शायद उसकी अनुपस्थिति में मेरे घर पर अकेले रहने से चिंता थी इसीलिए तो वह सुबह होते ही घर पर आ गई थी।
इसके बाद मैं बेमन से नौकरी पर जाने लगा,आखिर घरबार वाला इंसान था ऊपर से सबसे बड़ा कोढ़ ये की मध्यमवर्गीय था। कमाना तो पड़ता ही लेकिन कई बार मैं जल्दी छुट्टी ले कर घर आ जाता। शीतल जब इस बाबत दरयाफ्त करती तो उसे नए नए बहाने पेश कर देता। मुझे शीतल की ये टोक कतई पसन्द न आती थी। लेकिन उस घड़ी जब मैं घर आता था तो साथ में रुखसाना को बैठे देखता था इसलिए मैं शीतल को कुछ कह न पाता था। रात को बेड पर जब कभी शीतल नौकरी की बाबत जिक्र छेड़ देती तो मैं आग बबूला हो जाता और उसे सुना देता। धीरे धीरे हम दोनों के रिश्ते में नीरसता बढ़ने लगी।
बीते कुछ दिनों में हमारे बीच ताल्लुक अच्छे न रहे। रुखसाना की आमद या जाने किन कारणों की वजह से मैं शीतल से कटा कटा सा रहने लगा। हालांकि मैं खुद पैंतालिस साल का हो चुका था बावजूद इसके मुझे खुद से पांच साल छोटी शीतल अब बूढ़ी नजर आने लगी थी। जब भी मैं अपनी बीवी का रुखसाना से मिलान करता तो वो उससे किसी भी सूरत में बेहतरीन न नजर आती। अब तो वह भी मुझसे भाव न देने वाले अंदाज में हमेशा पेश आने लगी। अपने प्रति अक्सर उसके इस रूखे व्यवहार को महसूस करके मैं गुस्से में भर उठता।
इसके बाद एक दिन एक कबिलेजिक्र घटना घटित हुई। मैं उस दिन भी नौकरी से जल्दी ही घर आ रहा था की रास्ते में मैंने अपनी जानेजिगर,नुरेनजर रुखसाना को देखा। मैं ये देख कर बुरी तरह से चौंक गया की उस वक्त उसे चार पांच गुंडे किस्म के लड़के छेड़ रहे थे। वो मार्किट का इलाका था जहां शायद वो खरीदारी के इरादे से आयी थी। अपनी रुखसाना के साथ हो रही ये ज्यादती देख कर मेरा खून खौल उठा। मैं उन गुंडों से पिल पड़ा।
मुझे देख कर रुखसाना की जान में जान आयी। मैं उनसे लड़ रहा था लेकिन तब मुझे अहसास हुआ की अब मुझमे वो शक्ति नहीं बची है जिसके रहते मैं अकेला एक साथ पांच लोगों का मुकाबला कर सकता। कुछ ही देर में वो मुझपर भारी पड़ने लगे। उन्हें मारने पीटने के बजाय उल्टा मैं ही मार खा गया। मुझे ऐसा लग रहा था की आज वो मुझे मार ही डालेंगे जब मुझे शक्ति मिली,मैंने देखा की हमारे मार पीट और झगड़े की खबर पा कर पास कहीं से पुलिस की पेट्रोलिंग जीप वहां आ पहुंची थी। पुलिस की जीप को आता देखकर गुंडे मुझे पीटता छोड़ कर भाग गए। रुखसाना मुझे सम्भालने लगी। मुझे खुद के लिए जोखिम में डालता देख कर उसने मेरा लाख लाख शुक्रिया अदा किया,साथ ही इस बात के लिए सख्त माफी भी मांगी की उसकी वजह से मेरी इतनी बद हालत हुई।
मैंने उससे कहा की उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए,बावजूद इसके वो रोती रही और इस हादसे के लिए खुद को दोषी करार देती रही। उस दिन मैंने उसकी आंखों में अपने लिए एक अंजान दर्द और तड़प महसूस की। इसके बाद पुलिस वालों ने मुझे मेरे घर पहुंचाया और शीतल को सारा किस्सा बयान किया।
उस दिन के बाद से ये सोच सोच कर मैं पागल हुआ जा रहा था की शायद रुखसाना भी दिल ही दिल में मुझसे उतनी ही मोहब्बत कर बैठी है जितनी मैं उससे करता हूँ। दिल से आवाज आती है की अगर ऐसी बात है तो वो मुझसे अपने प्रेम का इजहार क्यों नहीं करती है,क्यों खुद तड़प रही है,और मुझे तड़पा रही है। फिर मन ये कहता है की वो शर्मोहया के कम्बल में लिपटी हुई एक औरत है,वो खुले आम कैसे मुझसे अपने इश्क का इजहार कर सकती है। पहल हमेशा मर्द के बच्चे को करनी होती है-औरत का काम तो उसके प्रस्ताव को कुबूल करना या ठुकराना होता है।
इन्ही विचारों की गिरफ्त में कैद हो कर मैंने उसे अपना हालेदिल बता देने का मन बनाया। मैं मौके की ताक में रहने लगा। उससे एकांत में मिलने का बहाना ढूंढने लगा। वो रोज मेरे घर आती,मेरे सामने बैठी रहती लेकिन हर लम्हा उसके साथ मौजूद शीतल हम दोनों के प्रेम के बीच मजबूत दीवार की तरह खड़ी मुझे नजर आती। काफी तलाश और मशक्कत के बाद भी जब मुझे मौका न मिला तो मैंने उसे खत के जरिये अपने दिल के हालातों से वाकिफ कराने का फैसला कर लिया।
उस रात मैं अपने घर की छत पर अपनी डायरी कलम ले कर आया बल्ब के प्रकाश में कागज के एक पन्ने पर वो इबारत लिख रहा था जो सीधे मेरे दिल से निकली थी,और जिसके हरेक हर्फ़ में मेरी सच्ची मुहब्बत की तड़प समाई हुई थी। मैं उसमे रुखसाना के प्रति अपने सारे जज्बातों को उड़ेल देने पर आमादा था की अचानक मुझे चौंक जाना पड़ा...
मैंने देखा सामने रुखसाना के घर के दरवाजे से एक साया निकल कर तेजी के साथ बाहर को भागा था। मैंने बल्ब की उस नाकाफी रोशनी में इस अजनबी की सिर्फ एक बार झलक सी देखी थी जिसकी बदौलत मुझे ये पता चला की वो किसी मर्द का साया था। इसके बाद मैंने रुखसाना को उसके पीछे ही अंदर से दरवाजे पर कुंडी चढ़ाते हुए देखा। उस वक्त वो सिल्क की मैक्सी में थी लेकिन लाख खूबसूरत और कयामत लगने के बावजूद भी उस घड़ी उसकी अस्त व्यस्त हालत ही मेरी नजरों का मरकज बनी रही।
कौन था ये रहस्यमय आदमी जो इस कदर रुखसाना के घर से चोरों की तरह से निकल के भागा था,और क्या रुखसाना ने खुद उसे रात के इस वक्त अपने घर में पनाह दी,वो भी ऐसी हालत में जिसमे कोई शरीफ औरत किसी गैर मर्द के सामने भी नहीं आ सकती। कहीं मेरी सारी ख्वाहिशों और जज्बातों का गला तो नहीं घुटनें वाला था? कहीं रुखसाना का मेरे प्रति जो प्रेम था वो सिर्फ एक अच्छे पड़ोसी के दृष्टिकोण से ही तो नहीं था?
सोच सोच कर मेरा दिमाग फटा जा रहा था।
देर रात तक आखिर चल क्या रहा था उसके घर पर,और कौन था वो साया जिसे खुद मेरी जान रुखसाना ने विदा किया? मेरा जी चाह रहा था की अभी रुखसाना के पास जाऊँ और उससे पूछूं की कौन है वो और क्या रिश्ता है उसके साथ उसका लेकिन मैं चाह कर भी इतनी रात गए उसके पास नहीं जा सकता था अगर जाता तो शीतल वो तमाम सवालात पेश कर देती जिनका मेरे पास मौजूदा हालातों में कोई माकूल जवाब न होता।
मैंने रुखसाना से अगले दिन शाम के वक्त मिलने का फैसला कर लिया। और उस फैसले के लिए वक्त चुना शाम का जब वो मार्किट में होगी। मैंने लिखे हुए खत को तह किया और अपनी जेब के हवाले करके भारी मन से नीचे आ गया। उस रात मेरी नींद पूरी न हो सकी। आधी रात तो मैंने करवटों में गुजारी बाकी सुबह के किस वक्त मुझे नींद ने अपने आगोश में घेरा मुझे पता ही न चला।
सुबह जब नींद खुली तो दीवार घड़ी पर नजर डालते ही मैं चौंक पड़ा। दस बज रहे थे। तब मुझे अहसाह हुआ की देर से सोने के कारण ही सुबह जल्दी मेरी नींद न खुली। मैंने बिस्तर से नाता तोड़ा और पैरों में चप्पलें डाल कर बाहर निकला। शीतल अभी घर के काम काज में ही जुटी थी जब मैं नित्य प्रति की तरह दरवाजे से बाहर निकल कर खड़ा हुआ और रोजाना की शगल के तहत रुखसाना के घर के दरवाजे की ओर ताकने लगा।
उस वक्त मैं बुरी तरह से चौंक पड़ा जब मुझे उसके घर पर ताला लटका हुआ दिखलाई दिया। इतनी सुबह सुबह कहाँ जा सकती है वो-मेरे दिमाग में ख्याल आया लेकिन लाख दिमाग खपाने के बावजूद जवाब नदारद था। मेरा मन अज्ञात आशंका से पीपल के सूखे पत्ते की माफिक कांप गया।
तभी भीतर से शीतल बाहर आई और मुझे सामने घर पर लटके ताले को शून्य में निहारते हुए देखकर उसने मुझसे पूछने से पहले ही बताया की आज उसकी खास सहेली हमेशा हमेशा के लिए चली गई। कांपते, धड़कते दिल से जब मैंने उससे साफ साफ पूछा तो उसने जो बताया उसे सुनकर मेरा दिल रो पड़ा-मुझे अपनी मोहब्बत का अंजाम धूल धूसरित नजर आ गया। रुखसाना ने आज सुबह ही यहां से जाती दफा उसे सारी बातें बताई थी--।
दरअसल बीती दो रातों से उसका शौहर कासिम जिससे वह तलाक लेने के लिए ख्वाहिशमन्द थी उसके पास आ रहा था। वह बार बार रुखसाना से अपने किये दुर्व्यवहार का अफसोस जाहिर कर रहा था और उससे माफी मांग कर वापस चलने की जिद कर रहा था। पहले तो रुखसाना ने उसकी बात न मानी लेकिन जब उसके आंसुओ की सच्चाई और उसकी तड़प का अंदाजा लगाया तो उसे अपने शौहर पर ऐतबार आ गया। उसने उसे माफ कर दिया और अपने तलाक की अर्जी को भी खारिज करने की बात कुबूल ली,इतना ही नहीं अब वह अपने ससुराल में खुशी खुशी रहने को राजी भी हो गई थी इसलिए सुबह तड़के ही उसका शौहर कासिम उसे लिवा ले गया था।
मैं चेहरे पर बिना कोई प्रतिक्रिया लिए घर से बाहर निकला। विभिन्न गलियों में चलता हुआ पास के पार्क में पहुंचा। जेब में हाथ डाल कर वो कागज बरामद किया जिसपर बीती रात को मैंने अपना हालेदिल बयाँ किया था। मैंने एक बार फिर से उस इबारत को पढ़ा जिसपर चंद दिली तहरीरों के अलावा सिर्फ तीन ही शब्द बार बार लिखे नजर आ रहे थे--रुखसाना माय लव। रुखसाना माय लव। रुखसाना माय लव।
मेरे आंखों के कोरों से आंसुओं की दो मोटी मोटी बूंदे बह कर गालों पर लुढ़क गईं। मेरे प्यार का अंत हो चुका था। मुझे ये अहसाह हो रहा था की मैंने प्यार तो सच्चा किया था लेकिन जरा देर से किया था शायद नौजवानी में करता तो मुमकिन है की अब तक रुखसाना मेरी हो चुकी होती।
मैंने कागज को छोटे छोटे टुकड़ो में फाड़ा और उन्हें हवा में उड़ा कर बोझिल मन और थके हारे कदमों के साथ घर को जाने वाली गलियों की ओर बढ़ चला।
समाप्त
प्रिय पाठकों,
उम्मीद है कि मेरी पहली कहानी आपको खूब पसन्द आई होगी। "रुखसाना माय लव" मेरी अब तक की लिखी सभी कहानियों में सबसे जुदा किस्म की कहानी है जिसमें एक मध्यमवर्गीय परिवार से जुड़े हुए उम्रदराज आदमी के दिल में एक नौजवान औरत को देख कर पैदा होने वाले प्यार के जज्बातों को बड़ी ही बारीकी से दर्शाया गया है। उम्र जब नौजवानी की हद पार कर जाए,लेकिन दिल फिर भी किसी को देख कर मचल जाए,खुद की ब्याहता बीवी होने के बावजूद पर स्त्री पर बहक जाए तो उस मर्द के क्या हालात हो जाते हैं,यह बड़ी हो बारीकी से इस कहानी में उकेरा गया है। कहानी किस सीमा तक आपकी कसौटी पर खरी उतरी है यह निर्णय तो आपलोगों के हाथ में ही है। कहानी पसन्द आयी अथवा नहीं इस बाबत अपनी समीक्षाओं के जरिये मुझे अवश्य अवगत करें,आपके विचारों का इंतजार रहेगा।
खादिम
सत्यम मिश्रा