सवाल Himanshu द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सवाल


5 सालो के इंतज़ार के बाद आखिर आयुष ने फैसला कर ही लिया था, अब या तो वो अंजलि को अपने दिल की बात कह देगा या उसे भूल जाएगा, हालाँकि ये बात उसे भी पता थी की वो अंजलि को कभी भूल नहीं पाएगा, उसकी पूरी रात इसी प्लानिंग में गुजरी, उसको अंजलि की हर एक बात मालूम थी, अंजलि के स्कूल की टाइमिंग, उसके कोचिंग की टाइमिंग, उसके घर से बाहर निकलने की टाइमिंग, वो घर से बाहर कब अकेले निकलती है और कब उसके साथ कोई होता है, अंजलि केंद्रीय विद्यालय की दोपहर वाली शिफ्ट में पढ़ती थी, वो मेट्रो से स्कूल जाती थी अपने घर से स्कूल के लिए 11:30 बजे निकलती थी, उस टाइम वो अकेले होती है तो बात करना ज्यादा आसान होगा, आयुष के बोर्ड के पेपर्स के बाद छुट्टियाँ पड़ गयी थी तो वो भी खाली ही रहता था, उसने मन ही मन सोचा “कल 11:25 पर घर से हर्ष के यहाँ जाने का बहाना बना के निकलूंगा, नहीं नहीं 11:20 पर ही निकल जाऊंगा, कही वो थोडा पहले निकल गयी तो”
पूरी प्लानिंग के बाद वो सोने की कोशिश करने लगा किसी तरह सुबह के 5 बजे उसे नींद आई, जिस कारण वो उठा भी देरी से, जब उठा तो देखा 10:30 बज चुके थे, वो हरबड़ी में उठा जल्दी से तैयार होके खाना खाने बैठ गया, जब खाके उठा तब तक 11:15 हो चुके थे,
“मम्मी मै हर्ष के यहाँ जा रहा हूँ”
“अरे रुक, जरा धनिया ले आ खरीद के फिर जाना, तेरा भरोसा नहीं तु पता नहीं कब तक आए”
इतना कह के उसकी मम्मी ने उसे धनिया लाने भेज दिया, वो भागता हुआ गया और धनिया लेके आ गया, तब तक 11:22 हो चुके थे, उसने मम्मी को धनिया दिया और चलने लगा
“अच्छा अब मै चलता हूँ” इतना कहकर हर्ष चलने को हुआ
“अरे तू इतना हांफ क्यों रहा है”
“वो गली में कुत्ते पीछे पड़ गए तो भागता हुआ आया”
“मूछे निकल आई साहब की मगर कुत्ते का डर अभी तक नहीं गया”इतना कहकर उसकी मम्मी काम में लग गयी और आयुष अपने काम पर निकल गया
थोड़ी दूर पहुँचने पर उसे दूर अंजलि दिखाई, वो इतनी दूर थी की उसे देखना तो मुमकिन था, मगर आवाज मार कर रोकना नामुमकिन था
उसने अपनी स्पीड बधाई, थोड़ी देर में मेट्रो स्टेशन भी दिखना शुरू हो गया उसे अंजलि स्टेशन के अन्दर जाती हुई दिखी, आयुष अपनी पूरी जान लगा के भागने लगा, जब वो स्टेशन पहुंचा उसने पूरा काउंटर छान मारा मगर अंजलि कही नहीं दिखी, “शायद प्लेटफार्म पर होगी” उसने अपने मन में कहा, तभी उसकी नज़र नोटिस बोर्ड पर गयी, अगली मेट्रो आने में अभी तीन मिनट बाकी था, उसने जल्दी से अगले स्टेशन तक का टोकन लिया और प्लेटफार्म के लिए एंट्री कर ली, अभी वो सीढ़ियों पर ही था की तब तक मेट्रो आ गई उसे लगा की गया आज का मौका, खैर वो प्लेटफार्म पर गया मेट्रो अभी तक खड़ी थी दरवाजे अभी तक बंद नहीं हुए थे, उसके मन में आया की वो भी चढ़ जाए, उसने इधर उधर नज़र घुमा कर देखा, पूरा प्लेटफार्म खाली था, मगर प्लेटफार्म के दुसरे कोने में उसे अंजली दिखी, वो रेलिंग के सहारे खड़े होकर नीचे नजाने क्या देख रही थी, तभी मेट्रो के दरवाजे बंद हो गये, दोनों में से कोई भी मेट्रो में नहीं चढ़ा, आयुष अंजलि के पास जाता है और
“हाय”
“ओह हाय, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
“बस तुमसे मिलने आ गया”
“मुझसे मिल कर क्या करोगे?”
“बस कुछ बात कहनी थी”
“मत कहो, अब कोई फायदा नहीं”
“तुम्हे मालूम है मै क्या कहने आया हूँ”
“हाँ तो, तुम्हे क्या लगता है दिल की बात बस होठों से कही जा सकती है”
“तो तुम्हारा जवाब क्या है?”
“अब कोई फायदा नहीं”
“मतलब”
“देखो तुम मेरे अच्छे दोस्त हो इसीलिए तुम्हे कह रही है, मै अब जीना नहीं चाहती”
“अरे ये कैसी बातें कर रही हो”
“सच्ची बातें”
“तुमने कोई नशा किया है क्या?”
“प्यार करते हो मुझसे?”
“कहाँ से बात कहाँ घुमा दी तुमने”
“करते हो या नहीं?”
“बिलकुल करता हूँ”
“हाँ तो मेरा एक काम कर, ये ले मेरी मम्मी का दे दीयो, कह दियो की अंजलि चली गई अब कभी वापस नहीं आयेगी” बैग में से एक लैटर निकालते हुए अंजलि ने कहा
“ये क्या है, और कहा जा रही है तू?”
“ये सुसाइड नोट है, और मै मरने जा रही हूँ, तुझे जितना बोला है उतना कर दे, ज्यादा सवाल मत किया कर”
“अच्छा, रुक अभी देके आता हूँ” इतना कह के आयुष चल दिया, उसे लगा ये कोई घटिया मजाक है, वो थोडा आगे बढ़ा ही था की उसके कानो में अंजली के चीख की आवाज आई, वो वापस पीछे मुड़ा मगर तब तक काफी देर हो चुकी थी, अंजली ने छलांग लगा दी थी, आयुष के पाँव वही जम गए, वो जहाँ खड़ा था वही बैठ गया, उसमे अब खड़े होने की ताकत नहीं बची थी, रह रह कर उसके कानो में गूँज रही थी अंजली की आखिरी चीख, हाथ में था उसके सुसाइड नोट, और मन में घूम रहे थे कई सवाल