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कहानी भोला की - 2





काफी देर तक आजाद मैदान में घुमते हुए भोला विचार करता रहा । अब क्या करे ? कहाँ जाए ? इतने बड़े शहर में कोई परिचित भी नहीं था जहाँ चला जाये । सोचते हुए भी उसके कदम चलते रहे । इधर उधर घुमते हुए वह वापस महानगर पालिका भवन के पास आकर खड़ा हो गया ।

बगल में ही कई लोगों को स्टाल पर से वडा सांबर मसाला डोसा वगैरह खाते देखकर मन ही मन सोचा पता नहीं ये लोग क्या खा रहे हैं ? न रोटी ही है और न सब्जी !

तभी सामने से आती डबल डेक्कर बस देखकर वह उसमें सवार हो गया । अन्य लोगों के पीछे पीछे वह भी सीढ़ी चढ़ कर ऊपर पहुँच गया । ऊपर पहुँच कर जैसे ही उसकी नजर आगे पड़ी वह हडबडा कर नीचे उतर आया । अभी अभी गया और फिर तुरंत ही हडबडा कर उतरते देख कर नीचे के कंडक्टर ने उसे आगे बढ़ने के लिए कहा और नीचे आने की वजह पूछी ।

भोला रहस्य भरे स्वर में बोला ” अरे भाई ! सबके पीछे मैं भी ऊपर चला तो गया था ,लेकिन मैं बचपन से ही होशियार हूँ । जो दूसरे लोग नहीं देख पाए मैं देखते ही समझ गया । मैंने ऊपर चढ़ते ही देख लिया था कि ऊपर के बस में कोई ड्राईवर ही नहीं है । बस चल तो रही है लेकिन उसको ब्रेक कौन मारेगा ? देखना वह बस कहीं जाकर जरुर लड़ेगी । ”

कंडक्टर मुस्कराए बिना नहीं रह सका ।

संयोग से वह बस हुतात्मा चौक से चलकर सांताक्रुज जानेवाली थी । भोला को कहाँ जाना है कुछ पता तो था नहीं सो कंडक्टर ने उससे अंतिम स्टॉप तक के पैसे ले कर उसे टिकट दे दिए । रास्ते भर भोला आँखें फाड़ फाड़ कर चौड़ी सड़कें गाड़ियाँ और सडकों के किनारे बनी आलिशान ऊँची ऊँची इमारते ही निहारता रहा । अँधेरा होते ही पूरा शहर रोशन हो उठा । बिजली की जगमग और चमक देख कर भोला की आँखें चौंधिया गयी थीं ।सांताक्रुज पहुंचते पहुंचते शाम के लगभग सात बज गए थे ।

बस से उतर कर भोला आश्चर्य चकित रह गया । बस के ऊपर वाली बस अभी तक ज्यों की त्यों ही थी । ‘ बस इतनी तेजी से चल रही थी फिर गिरी क्यों नहीं ? जरुर किसी जादूगर का इसमें हाथ होगा ।’
अब भोला संतुष्ट था । अपनी बुद्धिमानी पर उसे और भरोसा हो गया था । अब उसे थोड़ी भूख भी लगने लगी थी । सांताक्रुज मार्किट के बाहर एक हलवाई की दुकान थी जहां नाश्ते में भजिया और वडा वगैरह भी उपलब्ध था ।

बाहर एक फलक पर वस्तुओं के नाम के सामने ही उनके दाम भी लिखे थे ।

भोला ने पढ़ा बटाटा वडा 2 रुपये प्लेट ।

एक प्लेट बटाटा वडा मंगाया । दो वडा एक प्लेट में उसके सामने रखकर एक लड़का चला गया । प्लेट में दो ही वडा देखकर भोला चिल्ला उठा ” अरे शेठजी ! हम एक प्लेट वडा मंगाए और आपका आदमी सिर्फ दो ही देकर चला गया । देखिये ये तो हमसे ही ठगी कर रहा है ।अभी प्लेट में तो बड़ी जगह है । कम से कम दो वडा और इसमें आना चाहिए । ”

बुजुर्ग शेठजी ने काउंटर से उठ कर उसे समझाया ” बेटा ! तुमको बराबर एक प्लेट वडा तो दिया है । एक प्लेट में दो ही वडा मिलता है । ”

” अरे ! शेठजी ! वडा का गिनती से क्या सम्बन्ध है ? वहां बोर्ड पर प्लेट का दाम लिखा है और आप गिनती गिन रहे हो । अब आप ईमानदारी से दो वडा और दे रहे हो कि बुलाएँ पुलिस को ? ” भोला ने होशियारी दिखाई । उसे पता था कि नियम से बाहर कोई काम हो रहा हो तो पुलिस मदद करती है ।

पुलिस का नाम सुनते ही शेठजी का धैर्य जवाब दे गया । शराफत का चोला उतार फेंका और आ गए बम्बइया रंग में ” अबे साले ! तू हमको पुलिस का धमकी दे रहा है ? हमको जानता नहीं है ? ”

अभी शेठजी और पता नहीं क्या क्या कहते कि भोला अपने लिए ‘साले’ शब्द का संबोधन सुनकर हैरान रह गया । बोला ” अरे शेठजी ! आप मेरा नाम कैसे जान गए ? गाँव में मेरे दोस्त तो मुझे इसी नाम से बुलाते हैं । लगता है आप मुझे जानते हो । चलो अब जान पहचान हो ही गयी है तो अब किस बात का झगडा ? अब मैं कोई पुलिस उलिस नहीं बुलाऊंगा । चलो मैं चलता हूँ ।”

कहकर भोला वहाँ से आगे बढ़ गया ।

आगे चलते हुए एक अन्य नाश्ते की दुकान के सामने एक आदमी दो लोटों में गरम दूध लेकर उसे ऊपर नीचे कर फेंट रहा था ऐसा करते हुए वह काफी उंचाई से एक लोटे में से दूसरे लोटे में दूध कुशलता से पलट रहा था । उसके बगल में ही काउंटर पर बैठे आदमी से भोला ने पूछ लिया ” भाईसाहब ! यह दूध जो ये माप रहे हैं कैसे मीटर दिए ? ”

दुकानदार किसी तनाव में था । ऊपर से भोला की यह बेसिर पैर की बात सुनकर भड़क गया बोला ” साले ! एक तो वैसे ही दिमाग ख़राब है और ऊपर से यह चला आया है मजाक करने के लिये । चल भाग यहाँ से ! "

इतना सुनना ही था कि भोला एक दम से चहक उठा 'अरे ! क्या बात है ! ये भी मुझे जानता है । इसका
मतलब माँ ने जो कहा था कि बेटा ! नाम कमा कर आना । तो अब इससे ज्यादा नाम क्या होगा ?'

भोला और आगे बढ़ गया बिना किसी जानकारी और बिना किसी मकसद के !

वह सीधे आगे ही बढ़ा जा रहा था । अब वह जुहू में समुन्दर किनारे पहुँच चुका था । किनारे खड़ी एक कार के बगल में दो आदमी काले जैकेट पहने हुए खड़े होकर कुछ बातें कर रहे थे । उनके समीप ही दो बड़े बैग रखे हुए थे । तभी उन्हें सामने सड़क पर पुलिस की जीप आती दिखी । उनमें से एक आदमी दूसरी तरफ भागा जबकि एक ठीक उसी तरफ भागने लगा जिस तरफ भोला खड़ा था । भोला ने दोनों को अपने बैग छोड़कर भागते हुए देख लिया था । जैसे ही वह आदमी उसके करीब आया भोला ने कसकर उसे पकड़ लिया ” अरे ! भाईसाहब ! वो अपना बैग तो साथ में लेते जाओ । इतनी भी क्या जल्दी है ? ”

वह आदमी कसमसा कर उससे छूटने का प्रयत्न करते हुए बोला ” अबे छोड़ ! साले ! कमीने ! छोड़ ! ”
भोला ने उसे और जोर से पकड़ते हुए कहा ” अच्छा ! तो तू भी मुझे जानता है । तब तो मैं पक्का तेरा कोई नुकसान नहीं होने दूंगा । तुझे वो अपना सामान लेना ही पड़ेगा । ”

अभी दोनों की बहस हो ही रही थी कि तभी कुछ पुलिस वाले वहाँ आ गए । उस आदमी को गिरफ्तार कर उस बैग के पास गए । उस आदमी ने वह बैग अपना होने से साफ़ इनकार कर दिया । तभी भोला बीच में ही बोल पड़ा ” अरे नहीं साहब ! मैं देखा हूँ कि यह और एक और आदमी दोनों यह सामान लेकर आये थे । अब पता नहीं क्यों यह इंकार कर रहे हैं ? अरे तुमको नहीं चाहिए था तो यह ख़रीदा क्यों ? पैसा नुकसान करने के लिए ?” उस आदमी ने अपना सिर धुन लिया था कयोंकि झूठ बोलकर बचने की उसकी चाल नाकामयाब हो गयी थी ।

थाने के इंचार्ज ने भोला को शाबासी दिया और उसे बताया ‘ यह एक बहुत बड़ा तस्कर है जो उसकी मदद से पकड़ा गया है । अब उसकी गवाही से वह नहीं बच पायेगा । ‘

भोला का नाम पूछने पर उसने बताया माँ ने तो उसका नाम भोला रखा है लेकिन वह ‘ साले ‘ नाम से मशहूर है जिससे इन्चार्ज को भी अचरज हुआ । उसका पता पूछ कर उसे कुछ दिनों बाद फिर आने के लिए कहकर भेज दिया ।


क्रमशः

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