प्यार भी इंकार भी - (भाग3) Kishanlal Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार भी इंकार भी - (भाग3)

"फिर?"चारुलता को चुप देखकर देवेन बोला था।
"पहले राघवन तन्खाह मिलने पर मुझेे घर खर्चे के लिए पैसा देता था ।लेकिन ज्यो ज्यो शराब की मात्रा बढ़ती गई।पेेेसे देेंने में वह कटौती करता गया। जब मैैंन पैसे कम पड़ने की बात की तो वह बोला," तुम्हारी जवानी पर पैसा लुटाने वाले बहुत मिल जाये गे ।तुम्हे मेरे से पैसे लेंने की कया ज़रूरत है।?
यह सुनकर मेरी आँखों मे आंसू छलक आये थे।"आज भी उस बात को याद करके उसकी आंखें नम हो गई थी।
देवेन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे सांत्वना दी थी।
"उस दिन मैं उसकी बातें सहन कर गई।"चारुलता आगे बताने लगी,"धीरे धीरे उसकी शराब पीने की मात्रा और बढ़ती गई।वह अब मेरे साथ गाली गलौज करने के साथ उल्टा सीधा भी बोलने लगा था।पत्नी होने के नाते उसे रोकने मेरा धर्म था।उसका रोज शराब के नशे मे झूमते गिरते हुए घर आना मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता था।एक दिन वह ज्यादा पी आया टी मैने उसे बुरी तरह डाँटा था।मेरी डांट सुनकर वह उखड़ गया।और मुझे जबरदस्ती खींचकर घर से बाहर ले गया।कालोनी वालो के सामने मुझे गालियां देकर मारने लगा।राघवन ने मुझे मारा इस बात का मुझे दुख नही था।दुख इस बात का था कि उसने सरेआम मुझे बेइज्जत किया था।अगर उसने मुझे घर के अंदर मारा होता तो शायद मैं सहन कर जाती।लेकिन सार्वजनिक रूप से हुई बेइज्जती को मैं बर्दास्त नही कर सकी।उसी दिन मैने पति का घर छोड़ दिया और फिर तलाक ले लिया था।"
अपनी आपबीती सुनाकर चारुलता चुप हो गई थी।देवेन ने चारुलता को ज्यादा कुरेदना उचित नही समझा और वे अपने अपने घर लौट गए थे।
उस दिन के बाद देवेन और चारुलता के सम्बंध प्रगाढ़ होने लगे।आफिस के बाद वे काफी समय साथ गुज़ारने लगे।छुट्टियी में वे मुम्बई से बाहर भी जाने लगे थे।बाहर जाते तब एक ही कमरे में ठहरते।वे पति पत्नी नही थे लेकिन बाहर जाते तब पति पत्नी की तरह ही रहते।चारुलता तन से समर्पितL"क्या सोच रहे हो?"देवेन को चुप देखकर चारुलता ने पूछा था।
"चलो पहले कहीं बैठते है।"देवेन हाथ का इशारा करते हुए बोला।
"चलो।"चारुलता, देवेन की तरफ देखते हुए बोली।


देवेन और चारुलता एक चट्टान पर जिसका आधा हिस्सा पानी के अंदर डूबा हुआ था।उस पर आकर बैठ गए थे।कुछ देर तक देवेन सोच विचार की मुद्रा में चुप बैठा रहा।फिर वह बोला,"काफी दिनों से तुमसे अपने दिल की बात कहने की सोच रहा हूँ।"
"सोच रहे हो उसे दिल मे मत रखो।कह डालो जो भी तुम कहना चाहते हो।"चारुलता अपने सामने बैठे देवेन की तरफ देखते हुए बोली।
आसमान में छिटके बादल न जाने कहां चले गए थे।खुले साफ आसमान में पूर्णिमा का चांद निकल आया था।स।समुद्र का पानी जो कुछ देर पहले भयंकर गर्जना कर रहा था। इस समय शांत था।चांद की रोशनी में चारुलता संगमरमर की प्रतिमा सी लग रही थी।
"चारु मुझे तुम से प्यार हो गया है।"
"यह बात कहने के लिए कई दिन से सोच रहे थे।" चारुलता, देवेन की बात सुनकर बेझिझक बोली,"मैं भी तुम्हे चाहती हूँ।तुमसे प्यार करती हूं।"
"मैं तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ।तुमसे शादी करना चाहता हूं।"
(कहानी का शेष भाग पढ़े अंतिम क़िस्त मे)