सूरज का सातवाँ घोड़ा
फ़िल्म रिव्यू :- परमार रोहिणी " राही "
"सूरज का सातवाँ घोड़ा" धर्मवीर भारती की लिखी हुई उपन्यास है। जो तीन कहानियों से जुड़ी है।
सूरज का सातवाँ घोड़ा यानि प्रेमकी कहानियाँ, जीवन की कहानियाँ। दूसरे नजरिये अगर देखे तो ये ऐसी कहानियाँ है, जिसमे माध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के लोगों की समस्याएं और उसी बीच जीने वाले लोगो की कहानियाँ। इस प्रक्रिया में धर्मवीर भारती आपनी मार्क्सवादी आस्था को दृढ़ करते है।
श्याम बेनेगल भारतीय फ़िल्म उद्योग में एक ऐसा नाम है जिसने बहोत ही बड़ी तरक़्क़ी प्राप्त की थी। जसकी कल्पना बहोत कम फिल्मनिर्माता कर शकते है।
श्याम बेनेगल की " सूरज का सातवाँ घोड़ा " फ़िल्म हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वान धर्मवीर भारती जी द्वारा लिखी हुई इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है।
उपन्यास और फ़िल्म के पात्र :-
माणिक मुल्ला
जमुना
लिली
सत्ती
तन्ना
महेसर दलाल ( तन्ना के पिता )
चमन ठाकुर ( सत्ती का काका )
तन्ना की तीन बहने
जमुना के मातापिता
जमुना का बुड्ढा पति
रामधन ( जमुना के पति का सेवक )
श्याम ( माणिक मुल्ला का दोस्त )
( दूसरे भी पात्र है जिनमें कुछ के नाम है और कुछ के नही है। )
उपन्यास और कहानी की बात :-
सिनेमा की सहज शैली की रीत से श्याम बेनेगल कथन की सादगी को प्रवाहिता देते है और धर्मवीर भारती के उपन्यास को वफ़ादार रहते है। लेकिन भारती की तरह सिनेमा की कोई पुरानी समांतर शैली में जान फूंकते हो ऐसा नही लगता। ये कठिन काम है इस बात से श्याम बेनेगल पूर्णतः अवगत है। बावजूद उन्होंने इस फ़िल्म को बहेतरीन तरीके से पर्दे पे ढाला है।
माणिक मुल्ला जो मुख्य नायक है जिसका किरदार निभाया है रजित कपूर ने। जो तीनों कहानियों का नायक है। पूरा जीवन वो अपने जीवन और दूसरों के जीवन मे प्रेम के अर्थ की ख़ोज करते रहे है। परंतु दुर्भाग्यवश ये ख़ोज एक ब्लेक हॉल में खत्म होती है।
जमुना का किरदार राजेश्वरी सचदेव ने, लीली का किरदार पल्लवी जोशी ने और सत्ती का किरदार नीना गुप्ता ने निभाया है। इस कहानी में मुख्त खलनायक का किरदार अमरीश पुरी ने महेसर दलाल का निभाया है। वुमनराइज़र की तरह अमरीश पुरी तिरस्कार को प्रेरित करते है। कहानी और उसके क़िरदार दर्शको को सामिल करने के लिए अपना तेजस्वी अभिनय प्रगट करते है। तस्वीरों में पुरुषों की संपूर्ण छाया करने वाली महिलाओं में पल्लवी जोशी और नीना गुप्ता है। राजेश्वरी सचदेव ने भी बहोत शानदार प्रदर्शन किया है।
" सूरज का सातवाँ घोड़ा " हमे जीवन के अव्यवस्थित समय के युग मे वापस ले जाती है। फ़िल्म का अंत दर्शको को निःशब्द कर दे ऐसा है। तेजस्वी और प्रतिभाशाली माणिक मुल्ला अपनी भावनाओं पर पूरा नियंत्रण रखते है। जिसने अब तक सिर्फ निरीक्षक या कथाकार का क़िरदार निभाया था, अचानक वो सत्ती के रूप में अपने अतीत से मिलता है। जिसके साथ उसने बेवफाई की थी। अंत में वो अपनी भावनाओं को काबू नही कर शके और पहेली बार आगे बढ़ना चाहा। वो अपना सफ़र छोड़कर अपने अतीत का अनुसरण करते है और आख़िर में वो गायब हो जाते है।
रघुवीर यादव द्वारा निभाया गया किरदार श्याम का है। जो माणिक मुल्ला के दोस्त है। माणिक मुल्ला के जाने के बाद श्यामने अपने दोस्त से प्रेरणा ले कर तेजस्वी ख्यातनाम लेखक बनते है।
कहानी इतनी तेजस्विता के साथ बनाई गई है कि पात्र एक साथ नही पर बहोत से कोने से जुड़े हुए है। ये एक खेल जैसा लगता है। जहा किसीकी भी असर के बगैर जीना शक्य नही। उपन्यास और फ़िल्म की सात कथाएं है और सभी कहानियों में समान पात्र है। जिनकी लाक्षणिकता में कोई भी बदलाव किए बगैर ही अपना क़िरदार निभाया है। ऐसी तेजस्वी फ़िल्म देखना हम क्यों चूक जाते है?
फ़िल्म के लिए श्याम बेनेगल क़ाबिल वार्ताकार है। पर साहित्य के लिए धर्मवीर भारती की कथा हिंदी सहित्य में नई राह बनाती है। जब कि फ़िल्म में ऐसा नही होता। बावजूद दिग्दर्शक श्याम बेनेगल की ये कोशिश काबिल-ए-तारीफ है।