Luck by chance again !! - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

Luck by chance again !! - 1

कहते हैं किस्मत ऐसी चीज़ हैं जिसे हर रोज़ खुद ही लिखना पड़ता हैं, खुद की मेहनत से उसे अपने जीवन में लाना पड़ता हैं, यूँ कहे हमारा आज का किया हुआ कार्य कल किस्मत के रूप में हमारे सामने आता हैं, लेकिन कुछ लोगो के लिए किस्मत की परिभाषा कुछ इस तरह भी हैं, "जो कुछ भी होता है हमारे साथ अच्छा या बुरा हर वाक़या पहले से ही ठना हुआ है, वो ज़रूर होगा क्योंकि उसके बारे में एक बड़ी ताकत ने पहले से ही सोच कर रखा है जिस पर इंसानों का कोई ज़ोर नहीं चलता, खैर यह मानना किसी अन्धविश्वाश से कम नहीं लगता हैं लेकिन इस विषय पर लोगो का सोचने का तरीका अलग-अलग हो सकता हैं, हो सकता हैं कुछ लोग इन बातों से इत्तेफ़ाक़ रखते हो या यह भी हो सकता हैं कुछ लोग इसे कुछ भी.....कह कर आगे बढ़ गए हो लेकिन यकीन मानिये अगर आप इस कहानी को पढ़ने आये हैं तो आप भी कही न कही थोड़ी बहुत इस बात को मानते हैं, खैर मेरी यह पूरी कहानी किस्मत पर ही आधारित हैं जोकि समाज के लोगो के विचारो से प्रेरित होकर लिखी गयी एक काल्पनिक कथा हैं, उम्मीद करती हूँ आपको यह पसंद आएगी |

यह कहानी एक ऐसे इंसान की हैं जिसके पास पुरखो द्वारा अर्जित धन की कमी नहीं हैं लेकिन उस पर उसका हक़ एक रुपया का भी नहीं हैं नाम हैं राजवीर सिंघानिया, राजवीर के पापा यानी रघुवीर सिंघानिया जिन्होंने जीते जी अपने बिगड़े हुए बेटे को सुधारने की तमाम कोशिशे कर ली थी लेकिन उसकी हर कोशिश नाक़ामयाब रही, अंत में उन्होंने ऐसा वसीयत बनवाया जिसका पहला शर्त था "जब तक राजवीर अपने पापा के कारोबार को संभालना न सीख़ ले तब तक वो उनके जायदात से एक रुपया भी खर्च नहीं कर सकता और अगर वो तीन महीने के अंदर उसके कारोबार को नहीं संभाल पाया तो उसकी सारी जायदात महिला शशक्ति करण ट्रस्ट को चली जाएगी", बेचारे राजवीर के पापा चाहते तो थे जीते जी अपने बेटे को सुधार कर स्वर्ग सिधारूं लेकिन उनको कहा पता था वसीयत बनने के बाद ही वो खुद इस दुनिया से चल बसेंगे, यूँ तो राजवीर हज़ार करोड़ का मालिक था लेकिन खर्च करने के लिए उसके जेब में दस रूपए भी नहीं थे, राजवीर ने अपनी ज़िंदगी सिर्फ दोस्तों के साथ घूमने, पार्टी करने में ही बितायी थी उसका अपने पापा के व्यवसाय से दूर-दूर तक कोई लगाव नहीं था, पापा के गुज़र जाने के बाद उसने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की बैंक में पड़े पैसो को निकालने की लेकिन हर बार वो नाकामयाब हो जाता और उसके पापा के लॉयर भी उसे अंत में वॉर्निंग देकर छोड़ देते |

राजवीर एक महीने पहले ही ऑस्ट्रेलिया से वापस आया था, ऑस्ट्रेलिया में उसकी एक गर्लफ्रेंड थी बेला जो राजवीर के पापा के डेथ के बाद इंडिया आ गयी थी और राजवीर के साथ रहती थी, राजवीर बांद्रा के अपने एक बंगलो में रहता था, यूँ तो इस कहानी की मुख्य पात्रिका हैं गौरी, बहुत ही सहनशील और विनम्र लेकिन गौरी बचपन से ही अपाहिज थी, वो एक पैर से विकलांग थी, उसकी इस कमजोरी को दुनिया हीन के भाव से देखती थी, पड़ोस के बच्चे उसके साथ खेलना पसंद नहीं करते थे, गौरी यह महसूस तो करती थी लेकिन अपनी ही कमी समझ कर खुद को समझा लिया करती थी, गौरी के दादा जी के मरने के बाद उसके पापा के हिस्से की दौलत उसके बड़े पापा हड़प चुके थे, उसके पापा खुद को अपने बड़े भाई से कमजोर समझ कर दूसरे गांव में रहने चले गए |

गौरी अपने माँ-बाप की इकलौती औलाद थी जो काफी मन्नतो के बाद मिली थी, गौरी की पैदाईश के बाद उसकी माँ को उसके दादी से अक्सर खड़ी-खोटी सुनने को मिलता था, गौरी की दादी उसे देखना भी पसंद नहीं करती थी और अगर गलती से दिख भी जाती थी तो मुँह फेर लिया करती थी, गौरी तब तीन साल की थी जब उसके माँ-बाप उसे लेकर रत्नागिरी आ गए थे, गौरी के पापा कन्हैया रत्नागिरी से परिचित थे, रत्नागिरी में उसके पापा का दोस्त बजरंगी रहता था, बजरंगी दिल का भला आदमी था, उसकी पत्नी भी उसके तरह नेक दिल थी, कन्हैया की हालत देख कर वो उसे अपने घर में जगह दे देते हैं और उनसे कभी भी किराया नहीं लेते, कन्हैया इस मामले में बड़ा भाग्यशाली था, उसके सभी दोस्त बहुत अच्छे थे, बजरंगी का पांच साल का बेटा ध्रुव जो कि गौरी का पहला दोस्त बना था, दोनों का बचपन साथ ही बीता और दोनों एक साथ ही बड़े हुए, गौरी दिमाग की बहुत तेज़ थी, उसके बहुत सारे सपने थे जो बिलकुल आम लड़कियों के जैसे थे लेकिन उसकी ज़िन्दगी उतनी ही मुश्किलों से भरी हुई थी पर वो कभी भी अपनी परेशानियों को ज़ाहिर नहीं होने देती थी, अपनी लड़खपन से सब का दिल जीत लिया करती थी, ऐसी थी हमारी गौरी। उसका एक ही सपना था उसके सपनो का राजकुमार अपनी गाड़ी में बिठा कर उसे अपने साथ ले जाये |


अठारह साल बाद


धीरे-धीरे वक़्त के साथ गौरी की ज़िन्दगी भी पहले की तरह नहीं रही, ध्रुव सनातक की पढाई के लिए शहर चला गया था, गौरी अपनी मैट्रिक की परीक्षा पूरी करने के बाद गांव के एक अनाथालय में विकलांग बच्चो को पढ़ाने लगी थी |
एक साधारण से परिवार की गौरी समाज के लिए उच्च विचार रखती थी वो अक़्सर गरीब और बेबस तबकों की आवाज़ बन कर उभरती थी, खुद की ज़िन्दगी से बहुत प्रभावित थी वो लोगो की सोच को बदलना चाहती थी वो चाहती थी जिस तरह से उसके आस पड़ोस के लोग उसके इस कमजोरी का मज़ाक उड़ाते हैं वही लोग उस जैसे लोगो को हिम्मत दे बजाये की उन्हें तोड़े न, इनके हौसलों को सराहे और उनके साथ भी आम इंसानो की तरह बर्ताव करे, कम उम्र में अनुभव बहुत थे उसे, वो जानती थी ऐसी मानसिकता जल्द खत्म होने वाली नहीं थीं लेकिन खुद की तरफ से पूरी कोशिश करती दुसरो की मदद करने की इसी मानसिकता के साथ ही वो अनाथालय से जुडी थी और वहां के बच्चो को शिक्षित कर रही थी, आज लगभग कई सालो बाद ध्रुव वापस आ रहा था, गौरी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था मानो उसके पाव ज़मीँ पे नहीं हैं, उसने एक दिन पहले ही अपने स्कूल के बच्चो को कह दिया था की कल आधे दिन ही पढाई होगी, गौरी और ध्रुव की दोस्ती बहुत ख़ास थी, बचपन में पड़ोसियों के ताने और दोस्तों के तंज हमेशा गौरी के कान में गूंजते रहते थे लेकिन फिर भी ध्रुव उसका साथ कभी नहीं छोड़ता था, गौरी यह अच्छे से मानती थी के उसके अंदर कमी हैं और यह भी नहीं चाहती थी के उसके हिस्से के ताने ध्रुव को सुनने को मिले, ध्रुव गौरी को चाहता था और हर कमी के साथ भी उसे अपनाना चाहता था लेकिन गौरी, वो तो अपने ही घमंड में थी, वो तो ध्रुव और अपने रिश्ते को प्यार का नाम सुनना ही नहीं चाहती थी, यूँ तो ध्रुव उसे कई बार बचपन में अपनी बीवी बनाने का ज़िक्र कर चूका था लेकिन गौरी वो उसे एक ही बात कह कर टाल देती "मेरा सपनो का राज कुमार तो गाड़ी में बैठ कर आएगा और मैं उसी को अपना दूल्हा बनाउंगी"
ध्रुव भी बहुत ज़िद्दी था वो उसे कहता "मैं बड़ा होकर एक गाड़ी खरीदूंगा और तुझे उसमे बिठा कर अपने साथ ले जाऊंगा "
-"चल चल, तेरे पास इतने पैसे कहा से आएंगे, तुम शहर के गोरी मैडम से शादी करना"
-"शादी तो मैं तुझ से करूँगा चाहे कुछ भी हो जाये मैं अभी जाकर माँ-बाबू जी को बता देता हूँ"
-"बुद्ध तेरा दिमाग ख़राब हैं फिर वो लोग तुझे मेरे साथ खेलने भी नहीं देंगे…….."
-तूने सही बोला, लेकिन तू मेरी कसम खा और कह की तू मुझसे ही शादी करेगी"
-नहीं मैं तुझसे शादी बिलकुल नहीं करुँगी, तू मुझे हमेशा तंग करता रहता हैं"
-मैं तुझे कहा तंग करता हूँ......."
(गौरी और ध्रुव के बचपन की यह तू तू मैं मैं आम थी, दोनों बाहर तो बिलकुल अच्छे से रहते लेकिन जब भी ध्रुव उससे शादी की बात करता तो वो यही बातें दोहराने लगती, गौरी के पापा ने ध्रुव के घर के सटे ही अपने सपनो का महल बनाया था, कुछ कदमो के ही फासले थे, ध्रुव ने शुरूआती दिनों में कई सारे पत्र गौरी को भेजे थे लेकिन यह धीरे-धीरे वक्त के साथ कम होते गए और फिर एक दिन एक पत्र आया जिसमे ध्रुव ने अपनी क्लासमेट मीता के बारे में ज़िक्र किया, मीता वो लड़की थी जो ध्रुव की दोस्त बनना चाहती थी, उसके बाद ध्रुव के हर लेटर में मीता का ज़िक्र होता था, भला कौन इंसान होगा जो यह नहीं समझ पाएगा की ध्रुव मीता को पसंद करने लगा था, कभी-कभी गौरी को मीता की तारीफे सुन कर जलन होती थी लेकिन बेचारी करे भी क्या, खुद भी तो यही चाहती थी ध्रुव किसी अच्छी लड़की से शादी कर ले, आज लगभग पांच महीने बाद ध्रुव ने फिर से गौरी के नाम एक पत्र लिखा, जिसमे उसने ज़िक्र किया की वो अपनी परीक्षा ख़त्म करके वापस अपने गांव आ रहा हैं लेकिन इस बार उसके पत्र में कुछ ख़ास बातें थी उसने फिर से मीता का ज़िक्र किया जो की उसके साथ उसके गांव घूमने आ रही थी, ध्रुव ने गौरी से मदद मांगी अपनी माँ को समझाने के लिए की मीता उसकी दोस्त हैं और कुछ दिन वो उनके साथ घर में ही रहेगी, गौरी ध्रुव की ख़ुशी के लिए हर संभव मदद करना चाहती थी उसने ध्रुव की माँ को समझाना शुरू कर दिया, दोनों शाम की ट्रैन से पहुंचने वाले थे, गौरी ध्रुव की माँ को समझाने में कामयाब हो गयी, गौरी के लिए ध्रुव की ख़ुशी से बढ़ कर कुछ नहीं था वो उसकी हर खुशी में खुश थी |


Continue .......


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