हॉस्टल के किस्से अनुराधा अनुश्री द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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हॉस्टल के किस्से

होस्टल में शुरुआत के कुछ चट पटे से दिन और बिताई गई सबसे भयावह रात..



एक भयावह रात हमारे कहानी का केंद्र है लेकिन उसके पहले मै हॉस्टल से जुड़ी कुछ खास यादें , कुछ खास बातें और वहां होने वाले कांड शेयर करना चाहूंगी ताकि उस रात में होने वाली घटनाओं और हमारे डर को आप सब समझ पाओ । आप समझ पाओ की क्यों डर का शिकार हुए थे हम सब उस रात्री को ।



नर्सिंग कोर्स के इंट्रेस एग्जाम में सलेक्शन होने के बाद हमें काउंसलिंग में पता चला कि हमारा कॉलेज औरंगाबाद जिले के एक शहर में है । औरंगाबाद जिला वैसे भी नक्सल प्रभावित जिलों में आता था इसलिए हमारा घबराना लाजमी था उपर से जब हमने गूगल पे सर्च किया तो पता चला वो शहर भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आता है । हमरे घरवालों ने तो तो ससुरा हमको मजाक मजाक में इतना डरा दिया कि हमरे हिम्मत की ऐसी की तैसी हो रखी थी । पर हमें होस्टल में रहना था वहां की ख़ूबसूरत और कंटाप लड़कियों के बीच और बाहरी दुनिया से बहुत कम मतलब था इसलिए हमने ज्यादा ना सोचा , और बस तैयारियों में लग गए । और वैसे भी हमको, हमरे दोस्तों और घर वालो को लगता है हम तो खुदे आतंक हैं तो हमरे जिंदगी में कोई और काहे और कैसे आतंक मचाएगा । उससे पहले हम ही ऊ की जिंदगी में आग लगाइ देंगे किरासान डाल कर ।

लेकिन हमें जब शहर का नाम पता चला था तब हम तो नाम सुन कर ही घबरा गए थे ।
इब्राहिमपुर नाम है इस जगह का जहां हमारा कॉलेज है ।
हम सोचे की कहीं दाऊद इब्राहिम जैसा कौनो आदमी तो नाही रहता है ना ई शहर में । कही हमको टपका दिया तो ।

हमरे घर से 220 किलोमीटर दूर था यह जगह। हम या हमरे घरवालों ने कभी भी इससे पहले इस जगह का नाम नहीं सुना था । और यही वजह था की हमने तय किया था वहां जाने का । पूरे बिहार में उही एक जगह है जहां हमारा कोई रिश्तेदार नहीं था , नहीं तो शाले रिश्तेदार लोग जिंदगी में तबाही मचा देते हैं । इसलिए हमें इब्राहिमपुर ही जाना था ।
हमारा कोर्स स्टार्ट होने के 1 महीना पहले ही हमें वहां एडमिशन के लिए जाना था । उस जगह के बारे में पता करके हम अपने भैया के साथ गये वहां । बस स्टैंड पहुंच कर हमने गूगल मैप में चेक किया तो लगा कि दूरी बहुत कम है इसलिए हम पैदल गाड़ी से चल पड़े । शहर छोटा ही सही पर अच्छा लगा पहली नजर में एकदम ललन टॉप । हम पैदल जा रहे थे मेन रोड पर और कुछ दूर चल कर हमें एक जगह मुड़ना था, जहां हम मुड़े वहां से मेरे होस्टल की दूरी लगभग एक - आध किलो मीटर थी।
ई गूगल मैप के अनुसार जितना नजदीक लगा उतना भी नजदीक नहीं था हमरा होस्टल । लेकिन पैदल गाड़ी हमारी फेवरेट है तो हमें कोई दिक्कत ना थी चलने में , हम चल पड़े वो एक पक्का लेकिन थोड़ा टूटा फूटा सा रास्ता था । उस रास्ते के दोनों तरफ बहुत सारे पेड़ पौधे थे ,और एक तरफ एक नहर भी था जिसमें लबालब पानी भरा हुआ था । कुछ दूरी चलने पर हमें एक सरकारी भवन, ढेर सारे बड़े बड़े पेड़ और नहर के अलावा हमें वहां कुछ नहीं दिखा , इक इंसान भी नहीं हमें लगा जैसे हम जंगल के अंदर किसी रास्ते पर चल रहें हों । मै पहली बार वहां गई थी इसलिए थोड़ी सी नर्वस थी या कहें डरी हुई । वैसे तो मैं अपनी मां दीदी या किसी सहेली के साथ रहूं तो बहुत ही हिम्मत और जिम्मेदारी के साथ शेरनी बन कर कुछ भी करती हूं लेकिन भैया लोग के साथ में एक छोटी सी बच्ची बन जाया करती भीगी बिल्ली सी जिसे कोई भी डरा सकता है , भाइयों के साथ मुझे लगता है ये लोग हैं सब सम्भाल लेंगे इसलिए इनके साथ मेरे अंदर की बच्ची वाला व्यक्तित्व ही दिखता एक नासमझ सी बच्ची जैसी। हम उस जंगल यानी कि रास्ते से चल कर होस्टल पहुंचे । होस्टल के एक तरफ लगभग 200 मीटर दूर हमारा हॉस्पिटल था और उस 200 मीटर में कई सारे पौधे लगे हुए थे, होस्टल के एक तरफ वो रास्ता जिससे हम आए थे और नहर था होस्टल के पीछे दूर तक बस पेड़ पौधे और आगे दूर तक खेत था और खेत के आगे पेड़ पौधे भी पड़े थे। मतलब पूरा सुनसान इलाका , जिधर लोगों का आना जाना बहुत कम था, हॉस्पिटल में लोग दूसरे रास्तों से आते जो इतना वीरान ना था पर हमें उस रास्ते के बारे में कुछ पता ना था । हमारे होस्टल के आस पास लोगो का आना जाना ना के बराबर था और जो लोग आते भी थे वो यही सोच कर कि क्या पता इस हरियाली में जो होस्टल है उसके अंदर झांकने पर कोई हरियाली दिख जाए । लेकिन उनकी कोशिशें अक्सर नाकाम ही हो जाती होंगी ।

हॉस्टल पहुंचने पर हमने देखा कि हॉस्टल के चारो तरह दूर तक बाउंड्री वॉल बनाने कि तैयारी चल रही है जो की अभी तक बहुत धीरे धीरे शायद आगे बढ़ रही थी । हम अंदर पहुंचे, हमने लंबे वक्त तक इंतजार किया प्रधानाध्यापिका महोदया का , लेकिन वो आई नहीं । हॉस्टल के निचले फ्लोर में हमारा लेक्चर हॉल था जिसमे फिलहाल हमारी सीनियर्स पढ़ रही थी सफेद कपड़े और ब्लू स्वेटर में ब्लू पंखों वाली सफेद बतख जैसी लग रही थी सब कोई मोटी तो कोई छोटी बतख हमारा हाल भी वही होने वाला कुछ महीनों में । लंबे इंतजार के बाद भी प्रधानाध्यापिका महोदया तो आई नहीं और हमरा घर बहुत दूर होने के कारण हम वहां के एक कर्मचारी को अपने डॉक्युमेंट्स सबमिट किए और वापस चल दीये । वापस आते वक्त भि हम पैदल ही थे । पूरा सुनसान रास्ता लोगों का नामोनिशान नहीं । हम नहर को देखते देखते चल रहे थे , इस क्रम में हमको एक आदमी दिखा बैठा हुआ हम ने उत्सुकतावश उसे ध्यान से देखा तो पता चला जनाब इस बात से अनजान की उन्हें कोई देख रहा है मजे से खुले में शौच कर रहें हैं वो भी दोपहर के वक्त । अब दोष उनका तो था नहीं रास्ता सुनसान था ही कोई दिखा ना होगा आस पास पानी की व्यवस्था भी थी तो सोचे होंगे निपट लिया जाए, अब कुसूर तो हमारा था कि हम उन्हें देख रहे थे वो भी ध्यान से। हमने नहर के तरफ से नजरें घुमाई और रास्ते कि तरफ ताकते हुए चल दिए । हमको तो पूरा रास्ता भुतहा और जंगली लग रहा था ।मन में यही सोच रहे थे कि कितनी चुडैल और कितने जानवर रहते होंगे यहां। काली मैया बचाए हमका । हमारे भाई साहब समझ चुके थे कि ये डर चुकी है इसीलिए चुप चाप है । उन्होंने भी सोचा बहती गंगा में हाथ धो ले डरे हुए को और डराया जाए।
उन्होंने हमसे पूछा हॉस्टल कैसा लगा तुमको
हम क्या कहते सीधा सीधा बक दिए कि मस्त है एकदम
उसके बाद उन्होंने स्टार्ट किया हमारा बैंड बजाना कहने लगे सोच अनु कितना सुनसान रास्ता है , इंसान तो आते नहीं हैं तो भूत चुड़ैल तो बहुत होंगे यहां ।
हमने बीच मे उन्हें टोका "हम का चुड़ैल से कम हैं दादा(बड़े भैया)"

तो उन्होंने हंसते हुए आगे कहना जारी रखा "देख यहां कितने पेड़ पौधे हैं तो जानवर भी तो बहुत होगा गीदड़, सियार, भालू, बन्दर । नक्सल प्रभावित भी है ये जगह ।"

हम चुप चाप से सुने जा रहे थे

और वो आगे कहते जा रहे थे

बाकी बातें तो याद नहीं पर उन्होंने last में जो कहा उसे सुन कर हमें तो हमारी स्वर्ग वाली नानी अम्मा याद आगाई।

उन्होंने कहा था " तुम्हारी तो आदत है पंगे लेने कि झगड़ने की यहां आकर यहां के लोगों को जिंदगी में तुम्हें भसड़ तो मचानी ही है सोचो किसी ने दुश्मनी के चक्कर में तुम्हे बोटी बोटी काट कर नहर में फेंक दिया तो किसी को तो कभी खबर ही ना मिलेगी नकली वाली तो हो ही अब असली चुड़ैल बन कर घूमती रहना इन पेड़ों पर "


हमने सुना तो होश उड़ गए हमारे हम पहले ही डरे थे उन्होंने और डरा दिया । उस वक्त हमने पहली बार भगवान से कहा होगा की "काहे भगवान काहे हमाई ही जिंदगी में इन नमूनों को भेजना था कैसे भाई हैं समझाने की जगह डरा रहें है हमें ।"
हम पैदल चल कर बस स्टैंड पहुंचे वहां हमारी बस तुरत मिल गई जिसे 40 min बाद खुलना था । हम बस के अंदर गए और भैया बाहर ही खड़े रह गए कुछ देर के लिए । बस के अंदर हमें खिड़की कि तरफ सर किए एक लड़की मिली हमें पीछे से ही देख कर लगा लड़की होगी बहुते कमाल , उनके बगल की सीट खाली थी तो हमने इजाजत लेकर अड्डा जमा लिया वहां , वैसे हम हैं तो एक लड़की और लड़की के बगल में बैठने के लिए हमें इजाजत लेने कि जरुरत न थी लेकिन अपनी हरकतों के मद्देनजर हमने इजाजत ले ली ।हम भले ही लड़की हैं लेकिन लड़कियों को ताड़ने का मौका कभी छोड़ते नहीं हैं हम, ना ही बात करने का । उन्हे देख कर हम डर भूल गए थे हमारा । बस खुलने में वक्त था इसलिए हमारे भैया कुछ खाने पीने को लाने चले गए । और हमने मोहतरमा से बातें शुरू की । ओठों में सुर्ख लाल रंग की लाली माथे पर छोटी सी काली बिंदी लगाए बिखरे बालों बड़ी खूबसूरत लग रही थी। वो लगभग 22-23 साल की होंगी , उनका आवाज़ भी बडा प्यारा था । हमें तो लव एट फर्स्ट शाईट जैसा महसूस हो रहा था । जो कि सामान्यतः हर ख़ूबसूरत लडकी के साथ महसूस करते हैं हम। उनसे प्यार से बतियाए जा रहे थे किसी ना किसी बहाने से । बातों बातों में पता चला कि मैडम वहीं की रहने वाली हैं।

जब हमें कोई वज़ह ना मिला बात करने को तो हमने ये ही पूछ डाला कि मैडम आप इसी शहर से हो तो आप यहां के बारे में जानती बहुत होंगी , हमें भी बताइए हम यही रहने आने वाले हैं एक महीने बाद ।
उस शहर के बारे में उनके मुंह से निकले शुरू कुछ शब्द ही बड़े खतरनाक थे । उन्होंने कहा "अरे क्यूं आ रही है आप यहां मत आईए बहुत बकवास जगह है ये ।"
हमने भी कह दिया "लड़किया तो बड़ी अच्छी है यहां की"

तो वो शरमाते हुए कहने लगी "नहीं मै सच बता रही हूं अच्छी जगह नहीं है हमेशा लड़ाई झगडे दंगे फसाद होते रहते हैं यहां । और आपने जिस तरफ अपना हॉस्टल बताया उधर का इलाका बहुत सुन सान है आए दिन लड़ाई झगड़े और मर्डर होते हैं उधर ।"
हमें उस वक्त उस शहर की कम और उस लड़की कि ज्यादा पड़ी थी , हमने बड़े मज़े में कमिनेपन से कहा "अरे आप के लिए तो हम इस शहर में आकर जान भी दे दे" । लड़की को बड़ा अटपटा सा लगा । कोई लड़का कहे तो समझ सकते हैं और दो तीन कंटाप रख भी सकते हैं , लेकिन हम तो लडकी थे (वैसे हम अभी भी हैं) क्या समझती और क्या कहती बेचारी। चुप हो गई । इतने में हमारा कॉल आया हम लगे फोन में बतियाने । और बतियाते बतियाते ही भैया भी आते दिखे हमें । भैया के आजाने के बाद हम बगल में बैठी लड़की से कुछ बात ना कर पाए । लेकिन उनकी बातें घूमने लगी दिमाग में और हम गंभीर होकर विचार करने लगे तो हमें लगा कौनो गलती तो ना हुई है ना हमसे यहां आकर । लेकिन क्या करते अब तो एडमिशन भी हो चुका था हमारा।

घर पहुंचे और इंतजार में जुट गए 1 महीने ख़तम होने का । हमारे घर वाले भी खुश थे की आतंक जा रही है अब , घर में शांति रहेगी । भले ही इस शांति की कीमत हमारे हॉस्टल को अशांत रह कर चुकाना पड़े । हमरी माई सेंटिआ जाती थी कभी कभी । लेकिन का करे इही है जीवन का दस्तूर ।

इस हिस्से में यही तक

आगे के हिस्से में पढ़े कि आगे आगे होता है का
हम इब्राहिमपुर और हमारे हॉस्टल में आतंक मचाते हैं या वो शहर हमारी जिंदगी में भसड मचाता है ।

और लड़कियों से भरे उस हॉस्टल में का कांड हुआ था उस रात ।


❤️अनुRadha ❤️