सुरभि के घर में कोरोना का कहर :-
सुरभि के घर में कोरोना का कहर :--
अंजलि के साथ में उसकी सहेली रुचि भी बाहर आ गई।आम के पेड़ पर ढेरों चिड़िया आ-जा रही थीं , मौसम सुहाना था | वे दोनों लोन में घूमने लगी | मकान की दीवार से अनिकेत ने लोन की तरफ देखा जहां अंजलि और रुचि लोन में टहल रही थी । आमतौर पर देर से उठने वाला अनिकेत आज जल्दी उठ गया था। शायद अंजलि और रुचि की खैर खबर लेने के लिए। सुरभि भी बाहर लोन में आ गई। चारों लोन में ही बैठ गए आम के पेड़ के नीचे, सुमेधा ने चारों के लिए चाय भिजवा दी थी। सुरभि ने अनिकेत से पूछा, संचिता अभी उठी नहीं क्या? हां शायद उसकी तबीयत ठीक नहीं रात को सोने से पहले कह रही थी कि उसको हल्की हरारत हो रही है। अनिकेत ने चाय पीते हुए कहा। सुरभि दी , हमने वरुण की खोज-खबर भी नहीं ली 2 दिन बीत गए वह पूरे हॉस्टल में अकेला है । पता नहीं कैसे रह रहा है | थोड़ी चिंता के साथ अनिकेत ने कहा । हां अनिकेत में भी सोच रही थी कि बात करूं ,दीपक का भी कोई फोन नहीं आया ना, जाने के बाद हम लोग भी व्यस्त ही रहे और फिर अब मम्मी-पापा ने पाबंदी भी लगा लगा दी है | बाहर निकलने के लिए। मुझे तो संचिता की भी चिंता हो रही है, आखिर वह अब तक उठी क्यों नहीं | अनिकेत वह हमेशा तुमसे पहले उठ जाती है। सुरभि के स्वर में थोड़ी चिंता थी ।तभी सुनंदा लोन की दीवार के पास आई उसने सुरभि को आवाज देते हुए कहा संचिता और तुम्हारे चाचा को बुखार है। बुखार के नाम से ही चारों बच्चे चौंक पड़े ।
वे चिंतित से सुनंदा के यहां आ गए । अनाया और अमित को पता चला तो वह भी वहां आ गए। डॉ सुमित और सुमेधा भी पता चलते ही सुनंदा के यहां आ गए। डॉ सुमित का कहना था की हॉस्पिटल से कोरोना की टीम को कोविड-टेस्ट के लिए बुला लेना चाहिए, किंतु सुरभि कहने लगी कि पापा हमें प्राइवेट हॉस्पिटल में कॉविड टेस्ट करवाना चाहिए। खामखां हमारी कॉलोनी में बात फैल जाएगी कोरोना नहीं होगा तब भी लोग हमें शक की नजर से देखेंगे और अछूत जैसा बर्ताव करेंगे। नहीं सुरभि इस तरह डरना नहीं चाहिए हमें, सरकारी हॉस्पिटल से ही टीम को बुलाना चाहिए और वैसे भी सौरभ सरकारी नौकरी में है | उन्हें मेडिकल लीव लेने के लिए कोविड टेस्ट तो करवाना ही पड़ेगा ।
डॉ सुमित के फोन करते ही हॉस्पिटल से टेस्ट के लिए टीम आ गई। सौरभ और संचिता सहित घर के सभी सदस्यों का कोराना की जांच के लिए नमूना लिया गया और दोनों ही परिवारों को 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया गया । वे लोग खिड़की के पास जाकर चाचा सौरभ और संचिता से उनके हाल-चाल पूछ रहे थे | पूरे घर को सैनिटाइज किया गया था | सभी लोग पूरी तरह से एहतियात बरत रहे थे की पेशेंट के संपर्क में न आयें । ये कैसी मुसीबत है, एक तो बीमार व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से बिलकुल टूट जाता है | इस बीमारी से बड़ा इसका भय है | दूसरा उसे अपने परिवार और शुभचिंतकों का संबल और साथ भी नहीं मिल पाता |
संचिता ने सुरभि को आवाज दीदी गेट के पास आओ ना, आपसे जरूरी बात करनी है। सुरभि दरवाजे के पास आ गई | संचिता ने कहा दीदी टेस्ट की रिपोर्ट कब तक आ जाएगी। कल तक आ जानी चाहिए संचिता | सुरभि ने उसे दिलासा देते हुए कहा, मगर तुम चिंता ना करो , तुम्हें कुछ नहीं होगा तुम्हारा तुम्हारा टेस्ट नेगेटिव ही निकलेगा।
दीदी मैंने आपको कुछ कहने के लिए ही यहां बुलाया है | संचिता ने रुवांसे से स्वर में कहा। दीदी दीपक कल पहुंच गया अपने शहर। कल फोन आया था उसका |
'अरे! हां ...संचिता यह तो, मैं भी पूछना चाह रही थी कि वह ठीक से घर पहुंच गया ना।' नहीं दीदी अपने शहर पहुंचा है , घर नहीं '|बस से उतरते ही उन लोगों का कोविड टेस्ट हुआ | इसमें दीपक कोरोना पॉजिटिव निकला है।' क्या ... ? सुरभि के के माथे पर बल पड़ गए, हां दीदी और उस दिन मैं बहुत देर दीपक के साथ ही थी |उसका सारा सामान पैक करने में मैंने उसकी मदद की थी | तब मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि दीपक को कोरोना होगा | उस बस के पूरे बच्चों को क्वारटाइन किया गया है | वे सब हॉस्पिटल में हैं, कोई बच्चा घर नहीं गया है।
सुरभि ने जब घर के बाकी सदस्यों को यह बात बताई तो सभी चिंतित हो गए सभी ने निश्चित किया कि वे सब एक दूसरे से डिस्टेंस रखते हुए टेस्ट की रिपोर्ट का इंतजार करेंगे।
रात के 2:00 बज रहे थे सुरभि की आंखों से नींद कोसों दूर थी, सुरभि और सुमेधा एक ही कमरे में सो रहे थे यद्यपि उन्होंने डबल बेड के दो हिस्से कर लिए थे और दोनों कमरे के अलग अलग कोने में थे।
तभी सुरभि के मोबाइल की घंटी बजी । 'इतनी रात गए किसका फोन है?' सुरभि ने मोबाइल देखा अननोन नंबर से था | 'जरूर किसी बच्चे का होगा ....|' सुमेधा ने करवट बदलते हुए कहा | 'आप अभी तक जाग रही हो माँ !' सुरभि ने माँ की और देखा और उठ कर बैठ गई | 'तुम्हें कौन सी नींद आ गई है.... |' सुमेधा ने कहा | 'हां नींद नहीं आ रही है | माँ ! ये जो परिस्थियाँ चल रहीं हैं न , सुकून से सो पाना भी तो मुश्किल है न ।चलो देखती हूं, किसका फोन है ? सुरभि ने फोन उठाया--- तो उधर से घबराए हुए स्वर में वरुण बोल रहा था | ' दीदी...! दीदी ...! हॉस्टल में न जाने कैसी आवाजें आ रही हैं । 'कैसी आवाजें हैं...वरुण ! सुरभि ने परेशान से लहजे में पूछा ।' कुछ लोगों की बातें करने की आवाज आ रही है, दीदी !' वरुण ने डरे हुए स्वर में कहा | ' तुम ऐसा करो वरुन ! तुम्हारे कमरे में बाहर की तरफ खुलने वाली खिड़की से तुम्हारे हॉस्टल के चौकीदार को आवाज दो ।' ' हां ! दीदी मैं यह कर चुका हूं | मैंने चौकीदार को बहुत आवाजें दी। मगर उधर से कोई आवाज ही नहीं है | मुझे डर लग रहा है |दीदी ! ' 'अच्छा , डरो नहीं वरुण ! डरने से कुछ नहीं होगा | क्या कोई ऐसी लाइट है जिसका स्विच तुम अंदर से जला सकते हो और बाहर देख सकते हो ? देखो ! दरवाजा मत खोलना |'सुरभि ने वरुण को हिम्मत बंधाते हुए कहा | जी ! दीदी है न, आंगन की लाइट का एक स्विच मेरे कमरे में भी है और खिड़की भी है। ठीक है उसे जलाओ और हां सुनो ! सुरभि ने उसे समझाते हुए कहा - फोन चालू रहने देना बंद मत करना। ठीक है दीदी ! कहकर वरुण ने आंगन की लाइट जलाई और भयभीत स्वर में सुरभि से बोला , 'दीदी!वहां पर चार-पांच लोग बैठे हैं | जिन्होंने बड़ी सी सिगरेट सुलगाई हुई है और वह कुछ उसमें डाल कर पी रहे हैं | दीदी हमारे चौकीदार अंकल भी उनके साथ बैठे हुए हैं।' तभी बाहर का शोर बढ़ गया | बैठे हुए लोग चिल्लाने लगे कौन है ? कौन है ? यहां, किसने जलाई लाईट और जोर-जोर से गाली-गलौज करने लगे | वरुण घबरा गया , सुरभि को फोन पर आवाज सुनाई दे रही थी | वह समझ चुकी थी कि वरुण का लाईट जलाना भारी पड़ गया है | वहां कुछ नशेड़ी लोग हैं और होस्टल का चौकीदार इन नशेड़ियों से मिला हुआ है |
सुरभि को बहुत गुस्सा आ रहा था इन लोगों पर, विशेष रूप से चौकीदार पर, ऐसे ही लोगों की वजह से बच्चों तक पहुँचता हैं नशे का सामान और स्मैक जैसी वस्तुएं ,समाज के कलंक हैं, ये लोग | इन्हें तो सजा मिलनी ही चाहिए | वरुण घबराया सा बोला - 'दीदी वह जोर-जोर से चिल्ला रहे हैं | गालियां दे रहे हैं और सभी कमरों के दरवाजों को जोर-जोर से धकेल रहे हैं। ' उफ़ ! छुप कर नशा करते इन लोगों को शायद अब ये डर सता रहा है कि कहीं अब वे पकड़े न जायें| वरुण अब सुरक्षित नहीं है |सुरभि के दिमाग में खतरे की घंटी बज चुकी थीं |' दीदी वह मुझे ढूंढ रहे हैं |' वरुण ने घबराये स्वर में कहा | 'यह तो गड़बड़ हो गया है |वरुण पर तुम घबराओ मत , संकट के समय बुद्धि से काम लेना चाहिए, घबराना नहीं चाहिए | तुम जल्दी से लाईट बंद कर दो और देखो तुम्हारे कमरे की कुंडी ठीक से बंद कर लो और हां बहुत धीरे बात करो वह लोग नशे में है । क्या तुम्हारे रूम में कोई अटैच लेट बाथरूम है ?' 'जी है ,दीदी वो इधर ही आ रहे हैं |' कहते हुए वरुण ने लाईट बंद की और कमरे की कुण्डी चैक की | तभी वरुण के कमरे को जोर से ठक-ठकाने की आवाज हुई ,'कौन है ?अबे कौन है यहाँ ...! बाहर निकल बे ।' वे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे | 'देखो वरुण तुम डरना नहीं ।मुझे पहले से अंदेशा था कि वह तुम्हारे कमरे की तरफ आएंगे.... तुम अपने कमरे की लाईट बंद रखना और तुम अपने कमरे के बाथरूम में चले जाओ | अंदर से उसकी भी कुण्डी लगा लो और हिम्मत से काम लेना , मैं अभी सौरभ चाचू से बात करती हूँ | तुम्हें जल्दी ही पुलिस की मदद मिल जायेगी | थोड़ी देर के लिए मैं फोन बंद करूंगी | तुम बिल्कुल चिंता मत करना।' सुरभि ने वरुण को तो हिम्मत दिलाई थी | पर वो स्वं डर गई थी |वो चाचा को फोन तो कर देगी ,और पुलिस भी वहां पहुँच भी जाएगी | पर उससे पहले ही उन्होंने वरुण साथ कोई वारदात कर दी तो .... उसने घबराये स्वर में अपने चाचा सौरभ को फोन किया-- वरुण किस मुसीबत में फंस गया है अपने चाचा सी आई सौरभ को पूरी बात बताई | वे उनके साथ कोई वारदात ना कर दें प्लीज, आप पुलिस को भेजिए चाचू वहां पर।' 'घबराओ मत सुरभि! मैं अभी कॉल करता हूं थाने में | सौरभ ने सुरभि को दिलासा देते हुए कहा ।बुखार से उनका शरीर टूट रहा था | पर शीघ्र ही एक्शन लेते हुए उन्होंने थाने फ़ोन किया |
सुरभि ने वापस वरुण को फोन किया ... देखो इधर से मैं बोल रही हूं सुरभि , किंतु तुम चुप रहना, सिर्फ मेरी बात को सुनना , तुम्हारी आवाज उनको सुनाई नहीं देनी चाहिए और मुझे मैसेज करके रिप्लाई देना। अब कहां हैं, वे लोग और क्या कर रहे हैं ? मैंने चाचा को फोन कर दिया है | थोड़ी ही देर में हॉस्टल में पुलिस पहुंच जाएगी। रिप्लाई दो मुझे वरुण ss ! मैसेज करो प्लीज।' सुरभि ने धीमी आवाज में कहा |
वरुण का मैसेज पढ़ कर बिस्तर से उठ बैठी सुरभि"
" दीदी उन्होंने मेरे... मेरे ..कमरे का दरवाजा तोड़ दिया है और मेरे कमरे के सामानों को इधर-उधर उठा-उठा कर पटक रहे हैं । गाली-गलौज करते हुए मुझे ढूंढ रहे हैं | पर उन्हें जरा भी ख्याल नहीं आया है कि मैं इस वॉशरूम में हो सकता हूं.. यह अच्छी बात है दीदी ....दीदी पर कुछ करो... प्लीज कुछ करो ...मुझे डर लग रहा है। ''
तुम चिंता मत करो वरुण बस इसी तरह चुप रहना ...थोड़ी ही देर में तुम्हारे हॉस्टल में पुलिस पहुंचती ही होगी।
तभी एक नशेड़ी चिल्लाया इस बाथरूम में तो नहीं है, साला हां शायद इसी में होगा। वे लोग बाथरूम का दरवाजा पीटने लगे । अब वरुण ही नहीं सुरभि भी डर गई थी | सुरभि ने अपने मोबाईल पर उधर से आती आवाजों को सुरक्षित करने के लिए रिकार्डिंग का बटन आन कर दिया था | वह हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि जल्दी से पुलिस वहां पहुंचे। कहीं नशेड़ी बाथरूम का दरवाजा तोड़कर वरुण के साथ मारपीट ना कर दें । उसने वरुण को फिर से हौसला दिलाया | वरुण डरना नहीं। फोन चालू था | तभी वाश रूम को ख़ट-खटाने की आवाज हुई,वे ताबड़तोड़ दरवाजे को पीट रहे थे |साला ! कहीं हमारी शिकायत न करदे ,चौकीदार पकड़ा गया तो हमारा सारा धंधा चौपट हो जायेगा और जेल की हवा और खानी पड़ेगी | एक नशेडी बडबडाया ...साले को ठिकाने लगा देना चाहिए.....न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी, दूसरा चिल्लाया , पंखे से लटका दो साले को , वे लोग जोर-जोर से दरवाजा भड़-भड़ा रहे थे | वरुण की घिग्गी बंध गई थी | सुरभि सब कुछ फोन पर सुन रही थी | भय से उसकी भी जीभ तालू से चिपक गई थी | अगर वरुण को कुछ भी हुआ तो उसकी जिम्मेदार वो ही होगी | उसी ने उसको लाईट जलाने का सुझाव दिया था | हंगामें के बीच दरवाज़ा तेज चर्मराहट के साथ टूट कर धडाक से गिर गया था | वरुण भयभीत सा सामने वाली दीवार से चिपका ,खड़ा था | उन लोगों ने कॉलर पकड कर उसे बाथ रूम से बाहर खींच लिया | चटाख से एक थप्पड़ मारने की आवाज गूंजी .. वरुण चारों खाने चित जमीन पर गिर पड़ा | पर उसके हाथ से मोबाईल नहीं छूटा था |सुरभि को लग रहा था वो एक मर्डर की गवाह बनने जा रही है |
तभी पुलिस के सायरन की आवाज आई .. वरुण की और सुरभि की जान में जान आ गई।पुलिस की गाड़ी का हॉर्न सुनते ही नशेड़ीओं का नशा हवा हो गया,वो वरुण को छोड़ कर वो भागने लगे |
उन्हें पुलिस ने घेर कर गिरफ्तार कर लिया । वरुण ने हिम्मत करके उठा और बाहर आ गया। पुलिस को देख कर उसमें हिम्मत आ गई थी। सीआई अंकल को नमस्ते किया। थोड़ी देर पहले गाली-गलौज करते हुए नशेड़ी अब हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहे थे और पुलिस वाले उन्हें ठेलते-धकेलते पुलिस की गाड़ी की ओर ले जा रहे थे।
'तुम अकेले रहते हो बेटा!' यहां पर, सी.आई साहब ने कहा। जी अंकल, वरुण ने अपनी सारी प्रॉब्लम उन्हें बता दी कि किस तरह साइनस की प्रॉब्लम होने की वजह से वह जा नहीं सका था । जैसी भी हो तुम्हें चले जाना चाहिए था | उन्होंने उसे सुझाव दिया कि अब प्राइवेट गाड़ियां जा रही हैं,एसपी की परमिशन से तुम प्राइवेट गाड़ी में भी जा सकते हो और तुम्हारा चले जाना ही बेहतर होगा | अकेले सुरक्षित नहीं हो यहां पर। वरुण का फोन ऑन था, सुरभि सारी बात सुन चुकी थी। पुलिस के जाने के बाद उन सभी ने वरुण से कहा कि पुलिस वाले अंकल ठीक कह रहे थे | वरुण मैं चाचा को कह कर तुम्हें परमिशन दिलवा दूंगी, तुम चले जाओ मेरी एक जान पहचान के अंकल है | जिनकी ट्रैवलिंग एजेंसी है, मैं तुम्हें उनका नंबर देती हूं | व्हाट्सएप करती हूं, थोड़ी देर में तुम अपने मम्मी पापा से बात करो और आज की घटना उन्हें बताओ, साथ ही ट्रैवल एजेंसी से बात करके जल्दी ही यहां से निकल जाओ, क्योंकि हम सब परिवार वाले भी क्वॉरेंटाइन हो चुके हैं और अब तुम्हारी मदद के लिए मैं आ भी नहीं पाऊंगी। ठीक है दीदी कल मैं ट्रैवल एजेंसी से बात करता हूं | आप मुझे व्हाट्सएप कर दीजिए नंबर। सुरभि ने घड़ी देखी रात के 2:00 बज रहे थे आंखें बंद करके सो गई।
सुबह 9:00 बजे सुमेधा ने उसे झकझोर कर उठाया, कब तक सोती रहेगी सुरभी , तुम्हारे फोन पर कई सारे फोन आ चुके हैं निखिल के| सुरभि ने निखिल को फोन किया
'सुरभि कितनी देर से तुम्हें फोन कर रहा हूं, फोन उठा क्यों नहीं रही थी ।'निखिल ने चिंतित स्वर में कहा | निखिल रात को 2:00 बजे सो पाई, वरुण की वजह से तुम्हें पता है, वरुण के हॉस्टल में नशेड़ी घुस कर ,नशा कर रहे थे और उन्होंने वरुण को बहुत परेशान किया रात को पुलिस भेजी तब जाकर वरुण की जान बची है।'
'सुरभि वह तो सब ठीक है| पर मुझे चिंता हो रही थी | मैंने सुना सौरभ चाचा की और संचिता की तबीयत खराब है और तुम सब को क्वारंटाइन किया गया है | घर के आगे बैरिकेट्स लगे हुए हैं।' ' हां निखिल सभी का कोविड-का टेस्ट हुआ है । रिपोर्ट अभी आनी बाकी है।' ठीक है
देखकर बहुत दुखी थी | आज पूरा परिवार सुनंदा के यहां इकट्ठा था।संचिता ने रोते-रोते कहा मैं अपने-आप को कभी माफ नहीं कर सकती सुरभि दीदी !पापा मेरी वजह से कोरोना की चपेट में जैसे ही रिपोर्ट आए मुझे जरूर बताना। और किसी भी तरह की मदद की जरूरत हो तो बता देना।' ' हां सौरभ जरूर बताऊंगी और हम सब की तबीयत ठीक है | केवल संचिता और सौरभ चाचा ही बीमार है। '
दिन में सबकी कोरोना की रिपोर्ट आ गई थी सौरभ और संचिता की रिपोर्ट पॉजिटिव थी जबकि पूरे परिवार की रिपोर्ट नेगेटिव थी।
किंतु बीमारों की तीमारदारी का जो उत्तरदयित्व था वो निभाना बड़ा कठिन हो रहा था | किस तरह से देखभाल की जाए सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि उनके कमरे में कोई अंदर जा नहीं सकता था | समय-समय पर डॉक्टरों की टीम वहां आकर देख रही थी घर के तीन-तीन डॉक्टर भी लगे थे।
तीन-चार दिन गुजर गए संचिता की तबीयत में सुधार होने लगा था। मगर सौरभ की तबीयत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी।
सौरभ को ऑक्सीजन लगाने की जरूरत पड़ गई थी।
घर में उदासी छाई थी । परिवार जन ही नहीं ईमानदार, कर्तव्य निष्ट और लोकप्रिय पुलिस ऑफिसर सौरभ के लिए पूरा शहर चिंतित था |लोकप्रिय ऑफिसर सौरभ ने कोरोना काल में लोगों में कोरोना से बचने के लिए चेतना जागृत की थी| सौरभ ने केवल डंडे के बल पर लोगों को बाहर निकलने से नहीं रोका था,बल्कि लोगों को प्रेरणास्पद कविताएं और गीत सुनाकर उदासी भरे माहौल से निजात भी दिलाई थी और कोरोनावायरस से बचने के लिए लोगों में चेतना भी जागृत की थी आज वही सौरभ जीवन और मौत की बीच झूल रहे थे। पूरा शहर सौरभ के लिए प्रार्थना कर रहा था आज अखबार में सौरभ के बारे में बड़ी सी खबर थी।
संचिता पूरी तरह से स्वस्थ हो चुकी थी। लेकिन पिता के हालत आए हैं, जब से लोक डाउन हुआ पापा ने 1 दिन की भी छुट्टी नहीं ली वह बराबर अपनी ड्यूटी कर रहे थे | लेकिन कितनी सावधानी के साथ अपने आपको बचा के रखे हुए थे | यही नहीं उन्होंने तो पूरे शहर में घूम-घूम कर लोगों मे चेतना जागृत की थी | कोरोनावायरस से बचने के लिए। आज मेरी वजह से पापा की जिंदगी खतरे में है। संचिता ने सुमित से पूछा 'बड़े पापा क्या मेरा प्लाज्मा पापा को नहीं चढ़ाया जा सकता।' ' क्यों नहीं संचिता तुमने ठीक याद दिलाया मैं भी इसी बारे में सोच रहा था | तुम 18 वर्ष की हो चुकी हो और प्लाज्मा डोनेट कर सकती हो।'
डॉक्टर्स की टीम आने पर सुमित ने उनसे इस बारे में बात की । इधर सुमेधा ने सुनंदा को सुझाया क्यों ना हम पूरा परिवार मिलकर सौरभ के लिए हवन और प्रार्थना करें आज। हां दीदी मैं भी यही सोच रही थी पूरा परिवार सौरभ के जीवन के लिए प्रार्थना कर रहा था और आज सुनंदा के घर पर हवन किया गया। खाना भी सब लोगों ने साथ ही खाया। शाम को सब लोग लोन में बैठे हुए थे। आज संचिता का प्लाज्मा सौरभ को चढ़ाया गया था | वह थोड़ी सी कमजोरी महसूस कर रही थी किंतु उसका मन अपने बिस्तर पर नहीं लग रहा था | वह भी सबके साथ लोन में आकर बैठ गई ।न जाने कहां-कहां की बातें होने लगी सुमेधा ने बताया कि 100 वर्ष पूर्व 1917 से 1920 के मध्य में एक बार ऐसी ही महामारी फैली थी | लाल बुखार के नाम से उसे प्लेग भी कहा गया | उसके नाना यह बताते थे कि उनका पूरा परिवार इस लाल बुखार की भेंट चढ़ गया था | उसमें सिर्फ वे स्वयं और उनके छोटे भाई बचे थे | वे दोनों भाई उस समय किशोरवय के थे | उनके सारे भाई बहन और माता-पिता लाल बुखार की भेंट चढ़ गए थे,कोई शमशान ले जाने वाला भी नहीं रहा था संक्रमण के भय से लोग लाशों को छूते तक नहीं थे बैलगाड़ी में लाशें ले जाई जाती थी । उस समय लाल बुखार से इतनी लोग मरे थे कि गिनती करना मुश्किल हो गया था | हर घर में लाशें बिछी थी, ऐसा हर 100 साल में होता ही है महामारी का प्रकोप उससे पहले भी एक नामक काला ज्वर नामक बुखार भी आया था ,और चेचक नामक ऐसी अनेक बीमारियां आ चुकी हैं और यह वक्त तो ऐसा वक्त है कि जब हम वैज्ञानिक रूप से बहुत आगे बढ़ चुके हैं और हम पूरी सावधानियां बरत रहे हैं| इसलिए मृत्यु दर धीमी है | उस समय यह महामारी यहां लगभग आधी से ज्यादा जनसंख्या को लील गई थी । हां ! मेरी दादी भी बताया करती थी सुनंदा ने कहा- परिवार के परिवार लाल बुखार के समय नहीं रहे थे कई परिवारों में अनाथ ही बच्चे ही बचे थे।
ठीक कह रही हो सुनंदा और और हमारे यहां बहुत सारी परंपराएं इन महामारी ओं के कारण ही बनी।सुनंदा हमारे यहां जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो 12 दिन तक परिवार वाले बाहर नहीं आते-जाते कितनी अच्छी परंपराएं हैं ना- क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह एक तरह से क्वॉरेंटाइन पीरियड है | हां दीदी मृत्यु के बाद जब व्यक्ति को श्मशान घाट ले जाते हैं तो सारे पुरुष वर्ग और स्त्रियां स्नान करने के बाद ही अपने घर लौटते हैं| यही नहीं व्यक्ति के करीबी व्यक्ति पुरुष लोग अपने बाल आदि वही श्मशान में दे कर आते हैं| शायद यह सब बीमारियों के कीटाणु और वायरस से बचने के लिए ही बनाए गए नियम है। जिस घर में मृत्यु होती है वहां बार-बार सामूहिक स्नान और घर की स्वच्छता के नियम बनाए गए हैं तीए का कार्यक्रम हो या नवीं का स्नान.... स्वच्छता और स्नान पर कितना बल दिया गया है ।
हर 100 साल में महामारी आती है यह तो ठीक है |मगर इस बार क्या यह इसी प्रकार की स्वाभाविक और प्राकृतिक तौर पर आई महामारी है या चीन की बुहान से लेब से निकला वायरस..... सुरभि ने अचानक ही सबके सामने यह प्रश्न दाग दिया।सचमुच विचारणीय प्रश्न है | जहां इस बात के दावे किए जा रहे हैं कि कृत्रिम वायरस है और बुहान लैब से निकला है तो यह भी सत्य है कि यह एक महामारी है और इस तरह की महामारी आ अ 100 साल बाद आया करती है। जब तक कुछ साबित नहीं हो जाता कहा नहीं जा सकता।अगर प्राकृतिक महामारी है तो अपना समय लेकर चली जाएगी और क्रत्रिम वायरस है तो ईश्वर ही जाने क्या होगा आगे, सुमेधा ने गहरी साँस ले कर कहा |
दूसरे दिन का सूरज रोशनी की नई किरण लेकर आई संचिता के प्लाज्मा का परिणाम था और प्रार्थना का चमत्कार कि आज सौरभ की तबीयत पहले से थी तबीयत में पहले से सुधार था।
सुरभि के फोन पर वरुण का फोन आया दीदी मैंने आपके लिए नंबर पर बात कर ली है और मैं टैक्सी से जा रहा हूं बिहार क्या अंजली और रुचि भी जायेगें आप मुझे बात करके बता दो |वैसे टैक्सी ड्राइवर 90000 मांग रहा है बिहार मेरे घर तक पहुंचाने के। हम तीनों आपस में डिवाइड कर लेंगे पैसे।90000 सुरभि का मुंह खुला का खुला रह गया किंतु इतने पैसे कैसे वरुण क्या तुम्हारे पापा ने हां कर दिया है । दीदी टैक्सी ड्राइवर का कहना है कि उसे जगह-जगह पर पुलिस वालों को पैसा देना पड़ेगा मगर तुम एसपी की परमिशन से जा रहे हो तो पैसा देने की क्या जरूरत है |सुरभि ने कहा नहीं दीदी जब एक स्टेट से दूसरी स्टेट जाते हैं तो यहां के एसपी की परमिशन को वह लोग नहीं मानते सिर्फ राजस्थान तक ही परमिशन वैलिड है। मगर ऐसा क्यों ? देश तो एक ही है ,क्या एक स्थान के एसपी की परमिशन दूसरे राज्य में मान्य नहीं होगी यह अजीब सा सवाल था जो सुरभि के दिमाग में मंथन करने लगा और जगह-जगह पुलिस वालों को पैसा देने की बात एक नया चेहरा पुलिस का सामने ला रही थी जहां पुलिस लोगों की मदद कर रही थी| इस कोरोना काल में लोगों को भोजन बांट रही थी वहीं
एक अलग गोरखधंधा भी चल रहा था।
सुरभि ने अंजलि और रुचि से बात की मगर वह लोग तैयार हो गईं क्योकीं जाने वाले छात्रो से उन्हें पता चला था की दूसरी स्टेट में जाने वाले बच्चों को 80 से 90 हजार रूपये खर्च कर के जाना पड़ रहा है | वे इतना पैसा खर्च करने में असमर्थ हैं डिवाइडिंग के हिसाब से 30 -30 हजार ही आते ही होते हैं । तभी वरुण का फोन फिर आया कि कोरोना गाईड लाईन के अनुसार तीन लोग एक टेक्सी में जा ही नहीं सकते |उफ़ ये भी एक परेशानी थी छात्रों के लिए | अंजलि और रुचि जैसे अनेक विद्यार्थी लॉकडाउन खुलने का इंतजार करने के लिए मजबूर थे | हजारों मजदूर पैदल ही अपनें घरों की और लोट रहे थे ,मगर छात्र तो ऐसा भी नहीं कर सकते थे, वे उस कठोर जीवन शैली के आदि नहीं हैं |
सी आई सौरभ ठीक हो चुके थे और पुनः अपने ड्यूटी पर लौट गए थे।
मई का महीना आ चुका था। 18 मई को लोक डाउन 5 समाप्त होने वाला था। बिना परमिशन के टैक्सी द्वारा जाया जा सकता था, लेकिन टैक्सी से भी बड़ा अमाउंट खर्च होने की संभावना के चलते बहुत से विद्यार्थी अभी भी जाने में असक्षम थे। 18 मई को लोक डाउन 5 समाप्त होने के साथ ही। अनलॉक प्रथम के लिए नीति बनना आरंभ हो गई थी। अनलॉक प्रथम देश में 8 जून से लागू किया गया और उसके साथ ही बचे हुए छात्र जो कोटा में फंसे रह गए थे, उनकी घर जाने के लिए एक उम्मीद बंधी | शीघ्र ही कोटा से स्टूडेंट्स के लिए रेल सेवा आरंभ हुई, बहुत ही सावधानी के साथ अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग ट्रेन यहां से रवाना हुई | उसी में अंजली और रुचि और उन जैसे हजारों छात्र अपने-अपने प्रांत को पहुंचे।
धीरे धीरे अनलॉक एक, अनलॉक दो, अनलॉक 3 के माध्यम से लॉकडाउन में ढील दी जाने लगी और प्रयास किया जाने लगा कि जनजीवन सामान्य हो | उसे फिर से सामान्य बनाया जाए किंतु मौत का साया कोरोना के रूप में मंडरा रहा था | लोग घर में रहने को विवश थे, अब कोई नहीं रोक रहा था | लेकिन फिर भी बाजारों की भीड़ सिमट कर कर घरों तक सीमित हो गई थी सब बंद थे। अखबारों में शोक संदेश के कॉलम बढ़ रहे थे स्थिति भयावह थी।
आज निखिल के दादा-दादी और पिता सुरभि के घर आए थे सब लोग एक साथ बैठे हुए थे,निखिल के दादाजी ने बात छेड़ी निखिल और सुरभि के विवाह के संबंध में।वस्तुतः निखिल की मां के असमय चल चले जाने से घर पूरी तरह से अव्यवस्थित हो चुका था और निखिल का विवाह तो करना ही था, सुरभि के घर में भी सब लोग राजी थे | घर में फिर से एक बार खुशी का माहौल था | सुमेधा अंदर से मिठाई का डब्बा ले आई थी और आनन-फानन में शादी तय हो गई थी | किंतु सबके मन में कोविड को लेकर एक प्रकार की दहशत थी | इसके अतिरिक्त सभी इस वर्ष को अभिशप्त मान रहे थे और यह तय हुआ कि विवाह 2021 में ही होगा भले ही वह जनवरी में ही हो जाए।
उनके जाने के बात आज फिर रात को लोन में परिवार की बैठक हुई | हंसी-खुशी का वातावरण था | सच तो यह है कि परिवार और अपने लोगों के बीच विषम परिस्थितियां भी सहज ही लगती हैं। सुरभि की शादी को लेकर बातें चल रही थी | भाभी अनाया हंस कर बोली -किंतु तुम्हारी शादी में केवल 50 लोग ... सुरभि कैसा लगेगा ? तो भाई अमित सुरभि को छेड़ रहा था अरे मेरी शादी में तो तुम्हारी शादी से तीन गुना अधिक वेटर ही थे ।अभी चंद महीने ही तो गुजरे थे अमित और अनाया की शादी को ,सचमुच वक्त बदलते देर नहीं लगती |आज कैसा वक्त आ गया था कि शादी जैसा समारोह जो हमारे देश भारत में एक बहुत बड़ा आयोजन होता है | दूर-दूर के रिश्तेदार, मित्र आदि इसमें शामिल होते हैं | आज अब वैसा कुछ भी नहीं रह गया था | शादियां हो रही थी मगर बहुत मजबूरी में सिर्फ 50 लोगों की परमिशन सरकार की ओर से थी।सुमेधा ने कहा तो क्या हुआ अमित हमने जितना पैसा तुम्हारी शादी में खर्च किया उतना ही हम सुरभि की शादी में करेंगे- किंतु यह पैसा दिखावे और अन्य चीजों में खर्च नहीं होगा, हम सुरभि और निखिल को यह भविष्य निधि के रूप में देंगे। सच तो यह है कि इस विषम समय ने हमें बहुत अच्छे बदलाव भी दिए हैं |सुरभि के पिता डॉ सुमित ने गंभीरता से कहा।
दिन खिसक रहे थे तारीख के बदल रही थी | धीरे-धीरे 2020 का सितंबर माह आ चुका था ।मगर लग रहा था कि वक्त ठहर गया है यह विषम परिस्थितियां जाने का नाम ही नहीं ले रही थीं |धीरे-धीरे सरकार ढील दे रही थी अनलॉक हो रहे थे किंतु स्थिति और तस्वीर भयावह थी | फिर भी सरकार ने यह मान लिया था कि आर्थिक दृष्टि और जिंदगी की रफ्तार चलते रहने के लिए अनलॉक होना जरूरी है | क्योंकि भारतीयों का इम्यून सिस्टम इतना कमजोर नहीं है कि स्थिति अधिक गंभीर हो | मृत्यु दर का आंकड़ा अन्य देशों से कम होने के कारण अब लोक डाउन खत्म कर दिया गया था | फिर भी स्कूल कॉलेज व कोचिंग अभी तक नहीं खुल पा रहे थे। यद्यपि जेईई मेंस और नीट की परीक्षा भारी विरोध के बाद ली गई थी । पर कोई रास्ता जैसे दिखाई नहीं देता था | जो छात्र कोटा में अपना कुछ समय बिता कर गए थे कोई 1 साल कोई 2 साल व पुन: लौटने के सपने देख रहे थे | इस खूबसूरत शहर की फिजा उन्हें फिर से सदाएं दे रही थी | अपने भविष्य के हजारों हजारों सपने लिए यह पीढ़ी इंतजार कर रही थी, प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक से उनके पंख छीन लिए गए | क्या उन्हें फिर से मिलेंगे वो पंख,वो खुला आसमान क्या फिर से सपने भर पायेगें वो उड़ाने ने ? क्या समय बदलेगा ? अंजलि ,,,दीपक ...वरुण रूचि और उन जैसे हजारों- हजारों छात्रों की प्रतीक्षा क्या ख़तम हो पायेगी |
छात्रों की चहल-पहल, वह रोनक, वह पार्टियां ,होटल, क्लब सब सूने हो गए |सब कुछ बदल गया था, जिंदगी जैसे मजबूरी का नाम हो गई थी । क्या वक्त बदलेगा, हम लोगों ने जो खुशनुमा दिन देखे हैं, क्या वह सिर्फ एक सपना बनकर रह जाएगा ? क्या इस भयावह बीमारी से लोगों को निजात मिलेगी ?क्या फिर हम लोग पहले जैसे खुली हवा में सांस ले सकेंगे ?क्या फिर अपनों को दौड़ कर गले लगा सकेंगे या सोशल डिस्टेंसिंग का यह दानव हमें इसी तरह हमेशा के लिए दूर कर देगा ? कोटा की सड़कों पर , क्या फिर से भविष्य के ढेरों सपने लिए युवा छात्र-छात्राओं की चहल-पहल क्या फिर से लौटेगी ? क्या अनलॉक और कोचिंग सिटी कोटा पर फिर कुछ लिखा जायेगा ? सब कुछ भविष्य के गर्भ में छुपा है | ये भविष्य जब तक ठोस धरातल को तोड़ कर प्रस्फुटित हो तब तक के लिए आप सब से विदा |
रेखा पंचोली, कोटा, राजस्थान।