Nagmani (Memoirs) - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

नागमणी (संस्मरण ) - 6



अब गुरूजी ने वह आटे से बनाया हुआ दीया प्रज्वलित कर दिया और उसके ठीक नीचे की सीढ़ी पर जहाँ तक पानी चढ़ा हुआ था वह बर्तन रख दिया । मेरे मित्र द्वारा लाया गया दूध उस बर्तन में डालने के बाद गुरूजी ने वह मणि जो अब तक मेरे मित्र के ही पास थी कुछ बुदबुदाते हुए उस दूध से भरे बर्तन में डाल दिया । यह बर्तन एक छिछला और बड़े पेंदे का भगोना था जिसे कहीं कहीं टोप भी कहते हैं । अब गुरूजी ने अपने थैले में से एक लाल रंग के कपडे के टुकडे को नीकाल कर उस कपडे से बर्तन को ढँक कर उसी कपडे से उस बर्तन का मुंह अच्छी तरह बाँध दिया ।
इतनी क्रिया करने के बाद वह हमारी तरफ देखने लगे । अब आगे क्या होगा हम समझ नहीं पा रहे थे । हमारी जिज्ञासा बढ़ गयी थी । सो गुरूजी को अपनी तरफ देखते पाकर मैंने पूछ ही लिया ” अब क्या होगा गुरूजी ? ”
गुरूजी हँसे फिर बोले ” अब और क्या होगा ? बस थोड़े ही समय में नाग यहाँ पहुँचने ही वाला है । बस वह आकर इसमें फूंक देगा और हमारा आज का काम ख़त्म । ”
मेरी जिज्ञासा ख़त्म नहीं हुयी थी । सो फिर पूछ बैठा ” आप बता रहे हैं वह यहाँ आएगा और इस बर्तन में फूंक कर चला जायेगा । इसका मतलब हम सब लोग उसे देख पाएंगे ? ”
” नहीं ! उसे मेरे अलावा और कोई नहीं देख पायेगा । मैं अभी तुमसे बातें करते हुए भी उसे देख रहा हूँ । लेकिन हाँ ! तुम सब लोगों को उसके आने का अहसास जरुर होगा । वह इसी लिए अदृश्य होकर आ रहा है क्यूंकि अगर सामान्य आदमी ने उसे इस रूप में देख लिया तो उसके ह्रदय की धड़कनें बंद हो सकती हैं । ”

कहते हुए उन्होंने अचानक सामने तालाब के दूसरे कोने पर देखने को कहा । उनके बताये हुए जगह पर जैसे ही हमारी नजर गयी हम हतप्रभ रह गए ।
पूरे शांत तालाब और शांत वातावरण में भी तालाब के दूसरे छोर पर पानी में हलचल स्पष्ट नजर आ रही थी । जैसे दूर से समंदर की लहरें अठखेलियाँ करती किनारे की तरफ बढ़ती आती हैं उसी तरह से तालाब के शांत पानी में लहरों का एक रेला हमारी दिशा में बढ़ रहा था । ईतना ही नहीं अभी तो सबसे बड़ा आश्चर्य देखना बाकी था । वह लहर जैसे ही तालाब के उस किनारे से शुरू होकर हमारी तरफ बढ़ने लगी ठीक उसी लहर के क्षेत्र पर हलकी बूंदाबांदी देखकर हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा । मैंने पल भर के लिए उधर से नजर हटाकर तालाब के दूसरे हिस्से व अपने आस पास के वातावरण पर नजर डाली । और कहीं पानी की एक बूंद भी गिरती नजर नहीं आ रही थी । चारों तरफ का वातावरण बिलकुल साफ़ और शांत नजर आ रहा था जबकि हैरान कर देने वाला मंजर हमारे सामने था । वह बरसात भी लहर के साथ ही आगे बढ़ती हुयी हमारी तरफ ही आ रही थी । ऐसा लग रहा था जैसे कोई महाराजा चला आ रहा हो और उसके सर पर बरसात की बूंदों का छत्र हो । हम लोग पानी वाली सीढ़ी से दो सीढ़ी ऊपर की तरफ थे । लहरें धीरे धीरे नजदीक आती जा रही थीं और उसी के साथ बरसात भी अब हमारे सामने थी । एक विशेष क्षेत्र में ही बरसात का होना हमें किसी बहुत बड़े चमत्कार जैसा ही लग रहा था । न बरसात का समय था और न बरसात जैसा वातावरण और बरसात सिर्फ उसी लहर के ऊपर होना ही उसे विशेष और चमत्कारी बना रहा था । यूँ तो कई दफा मैंने सौ फुट के अंतराल में ही एक तरफ बरसात और एक तरफ धूप देखा है लेकिन यह अनुभव बड़ा ही चमत्कृत कर देनेवाला था । पहले कहीं बरसात होने और न होने का कारण तो समझ में आता है लेकिन यह जो दृश्य हम सामने देख रहे थे उसका कोई कारण हमें समझ नहीं आ रहा था और जब कोई कारण समझ में न आये तो उसे चमत्कार मानकर नमस्कार कर लेने में कोई हर्ज नहीं । और यही मानते हुए हमारे मन में गुरुजी का कद एक झटके में बहुत ऊँचा हो गया । उनकी चेतावनी याद कर हम लोग सावधानी से ऊपर ही खड़े रहे और मन ही मन भगवान का स्मरण करते रहे । इस बीच बढ़ती हुयी वह लहर किनारे तक आकर उस बर्तन से टकराई और फिर धीरे धीरे सब कुछ शांत हो गया । मजे की बात यह थी कि इसी के साथ वह रहस्यमय बारिश भी रुक गयी थी । हमने गौर से गुरूजी के चेहरे की तरफ देखा । वो ध्यान से उस तरफ देख रहे थे जिस तरफ से वह लहर उठनी शुरू हुयी थी । शायद उस इच्छाधारी नाग की बिदाई कर रहे हों और दो तीन मिनट बाद जब उनका ध्यान हमारी तरफ गया उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान फ़ैल गयी । वहीँ सीढ़ी पर खड़े खड़े ही मंदिर की तरफ मुड़कर दोनों हाथ उठाकर शंकर भगवान को प्रणाम किया और फिर उनका धन्यवाद अदा किया ।

इसके बाद वह उस पानी वाली सीढ़ी से बाहर आये और अपने चेले को कुछ संकेत किया ।
उनका संकेत समझ कर वह अपने काम में लग गया । पूजा की सामग्री को जल में ही विसर्जित कर उसने गुरूजी का थैला उठा लिया और पानी से बाहर आ गया ।
अब गुरूजी हमसे मुखातिब हुए ” मेरा काम पूरा हुआ । अब आगे का काम तुम्हारा है । तुम्हारी सावधानी और विश्वास ही तुम्हें फल प्रदान करेगा । ध्यान रहे इस बर्तन को ऐसी जगह रखना है कि इस पर कोई अपवित्र परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए । कम से कम पति पत्नी के रिश्ते वाले घरों और रजस्वला स्त्रियों की परछाईं से इसे अवश्य बचाना है । यह जैसा है इसे इसी हालत में रखने के बाद आज से ठीक चालीस दिन बाद ही इसे खोलना है । एक बार रखने के बाद चालीस दिन से पहले इसे छूना नुकसानदायक हो सकता है ।
चालीसवें दिन इसे सावधानी से खोलना है । खोलने के बाद भोले नाथ का स्मरण कर आपको इसमें से मणि निकालनी है । अगर सब कुछ ठीकठाक रहा और कोई गलती नहीं हुई तो भोले बाबा की कृपा से ईस मणि में जीवन के लक्षण अवश्य आ जायेंगे । हाँ ! एक सावधानी और रखनी है । मणि निकलने के बाद उसमें रखे दूध सहित यह कपड़ा और बर्तन कम से कम तीन फुट गहरे खड्डे में गाड़ देना है । चालीस दिनों में यह दूध नाग के सामान्य जहर से भी सौ गुना जहरीला हो जायेगा । इसीलिए इसे गाड़ना ही एकमात्र उपाय होगा । उसी तरह इस बर्तन को छूने मात्र से ही कई बार हाथ धोकर ही सुरक्षित हुआ जा सकता है । बस इतनी ही बातें हैं जिनका आपको सख्ती से ध्यान रखना है और फिर भी कोई जरुरत महसूस हो तो मुझसे संपर्क करियेगा । मेरे पड़ोस में ही टेलीफोन है मैं नंबर आपको दे जाऊंगा । ठीक है ? अब चलें ? “

क्रमशः

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