हारा हुआ आदमी (भाग32) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग32)

"झूंठ।"निशा बोली,"तुम पर।"
" गलत।तुम पर। आँख, नाक सब तुम पर,"देवेंेेबोला,"इसका नाम क्या रखोगी?"
"अभी नही सोचा।"
"सोच लो।"
"अच्छा,"निशा पलके बन्द करके सोचने लगी।देवेन आंखे बंद करके लेटी अपनी पत्नी को निहारने लगा।इस समय वह कितनी सूंदर लग रही थी।साक्षात मोनोलिसा।कुछ देर के बाद आंखे खोलकर वह बोली,"सोच लिया।"
"सोच लिया?"
"हां।"
"तो बताओ"
"बता दूं।"
"हां।बताओ।""
"राहुल कैसा रहेगा?"निशा ने बताया था।
"अच्छा है,"देवेन बच्चे के गाल को छूते हुए बोला,"बेटा राहुल कैसे हो?"
वे लोग बाते कर रहे थे।तभी नर्स दवा की ट्रे लेकर आई थी।ट्रे मेज पर रखते हुए वह बोली,"इंजेक्शन लगाना है।अब आप कुछ देर के लिए बाहर चले जाइये।"
देवेन प्यार भरी नज़र पत्नी पर डालते हुए बाहर निकल गया।
निशा को तीन दिन बाद नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई।पत्नी के घर आने पर देवेन ने पन्द्रह दिन की छुट्टी ले ली थी।देवेन ने फोन करके अपनी सास को समाचार दे दिया।समाचार सुनकर माया बोली,"मैं दिल्ली आ रही हूँ।"
और निशा की माँ उसकी सास दिल्ली आ गई थी।सास के आने पर देवेन का बोझ कम हो गया था।बेटी और नाती की देखरेझ की जिम्मेदारी माया ने अपने ऊपर ले ली थी।
संतान होने पर हमारे यहां नामकरण व अन्य धार्मिक आयोजन की परंपरा है।रामायण पाठ,हवन आदि के बाद उसने भोज का कार्यक्रम रखा था।देवेन के घर को रंग बिरंगी लाइट से सजाया गया था।देवेन का अपना कोई नही था।उसने कॉलोनी के लोगो के साथ अपने मित्रों को बुलाया था।
डी जे के साथ दावत का आयोजन किया गया था।सभी लोग कुछ ने कुछ गिफ्ट लेकर आये थे।बेटे की खुशी में देवेन ने पैसा खर्च करने में कोई कंजूसी नही की थी।I
और धीरे धीरे न जाने कब पन्द्रह दिन बीत गए।छुट्टी खत्म होने के बाद देवेन बैंक जाने लगा था।
सास के रहने की वजह से देवेन को पत्नी से एकांत में बात करने का समय बहुत ही कम मिल पाता था।इसलिए वह पहले कि तरह बैंक से छूटते ही घर नही भागता था।उसे आने में समय लगता या लगाता।
यह बात जरूर थी माया के आ जाने से निशा को पूरा आराम मिल गया।राहुल की देखभाल भी अच्छी तरह हो गई।माया ने बेटी को सब समझा भी दिया।निशा पूरी तरह स्वस्थ होकर काम करने लगी।तब एक दिन माया बोली,"अब मैं भी आगरा जाऊं"
"चली जाना।वहां आपके बिना कौनसा काम बिगड़ रहा है?"देवेन ने कहा था।
"काम तो नही बिगड़ रहा लेकिन बेटी का घर बेटी का ही होता है"माया बोली,"और दिल्ली कौनसा दूर है।जब ज़रूरत होगी चली आउंगी।"
देवेन ने सास का रिजर्वेशन करा दिया था।जिस दिन निशा की माँ गई।उस दिन देवेन के साथ निशा भी राहुल को लेकर स्टेशन गई थी।माया ने जाने से पहले निशा को अनेक हिदायते दी थी।
और वे घर आ गए थे।
"रुमाल कहाँ है?"देवेन घर से निकलने से पहले बोला।
"अभी लायी,"निशा ने रुमाल निकाला।पति को रुमाल देते हुए बोली,"तुम अपना रुमाल भी नही ले सकते।"
"मैं ले लेता तो,"देवेन ने पत्नी का हाथ पकड़कर बाहों में भरकर उसके अधरों पर चुम्बन अंकित करते हुए बोला,"मैं ले लेता तो फिर यह ---
"तुम्हारी ये हरकते अब ज्यादा दिनों तक नही चलने वाली।"निशा अपने पति की पकड़ से छूटते हुए बोली।
"क्यों?"देवेन ने पत्नी को प्रश्नसूचक नज़रो से देखा था।