साजिश 3
विशाल सैल वाली घड़ी बाँधे था जिसमें टॉर्च भी फिट थी। उसने टॉर्च जलाकर टाइम देखा साढ़े बारह बज रहे थे उसने नितिन को कोहनी मारी और फुसफुसाया-क्यों बे झूठ बोलता है। अभी तक तेरा वो ससुर नहीं आया। नितिन चिढ़कर धीरे से बोला-देख भेजा मत खा, चुपचाप पड़ा रह। इतने में ही कहीं कार रुकने की आवाज आई। वे शान्त लेट गए जैसे गहन निद्रा में हों। पद-ध्वनियाँ धीरे-धीरे नजदीक आती जा रही थीं। उन लोगों ने अपने कान खड़े कर लिए और विशाल ने टेप चालू करके खिड़की में किवाड़ के पीछे रख दिया।
दोनों ने अपनी एक-एक आँख खोलकर देखा कि-दो व्यक्ति उधर से बातें करते हुए जा रहे थे। एक स्वर उभरा शायद वह जैक था-क्या करूँ बॉस वहाँ पहिया बर्स्ट हो गया था, इसलिए देर हो गई। फिर एक भारी आवाज सुनाई दी-देखो माल का ध्यान रखना । जब वे बोड़ी दूर निकल गए तब विशाल ने टेप का प्लग निकाल दिया। नितिन और विशाल दोनों ने बिना आहट किए उठकर देखा कि वे बगीचे की ओर जा रहे थे। दोनों ने अपने-अपने पलंग पर पुतले के समान स्वयं को सुला दिया और उन्हें चादर से ढाँप दिया ताकि देखने वाला समझे कि वे सो रहे हैं और दबे पाँव दरवाजा खोलकर बाहर निकल आए। नितिन ने पीठ पर जरूरी सामान का थैला लटका रखा था। फिर वे बगीचे में थोड़ी दूर पर झाड़ियों में छिप गए। वे लोग वहाँ से उन लोगों को देख तो नहीं सकते थे लेकिन उनके बीच हो रही बातों को सुन सकते थे। विशाल ने टेप का सैल वाला बटन दबा दिया-भारी स्वर उभरा अभी पचास हजार के सोने के बिस्कुट और आएँगे उनमें से पच्चीस हजार का माल चूड़ीवाला को देना है। जैक ने पूछा-बॉस कब आना है? आज के तीसरे दिन जल्द ही हमें यहाँ आना है। फिर वही स्वर-जैक काम तो सावधानी से चल रहा है ना? कार की नम्बर प्लेट तो चेंज कर
न? उत्तर में 'यस बॉस' सुनाई पड़ा और ऐसा लगा जैसे वे लोग जा रहे हों। विशाल ने टेप बन्द कर दिया और दोनों ही तेजी से चौकड़ी भरते हुए शॉर्ट कट से अपने कमरे में आ गए और चुपचाप सॉस रोककर खिड़की के दोनों ओर खड़े हो गए । पदचापें पास आती जा रही थीं भारी स्वर सुनाई पड़ा-अभी तो आज से दसवें दिन एयरपोर्ट पर हीरे आएँगे मिस कॉल आ रही है। उन्हीं को यह काम सौंपा है। विशाल ने देखा कि घनी दाढ़ी-मूछ से दोनों के चेहरे ढंके हुए थे। उनके दूर हो जाने पर उन्होंने देखा कि-एक तो कार में बैठकर चला गया और दूसरा कोठी के बाई ओर मुड़ रहा है। विशाल ने जल्दी से टेप बन्द करके उसकी ओर दौड़ लगाई। चलते-चलते वह थैले में से दूरबीन निकालता जा रहा था । जल्दी से छत के ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ गया जैसे उसे अब कोई भय न हो और दूरबीन से हल्के उजाले में उस दूसरे व्यक्ति को देखता रहा। अँधेरे में उसे साफ दिखाई तो नहीं पड़ा फिर भी उसे लगा कि जैसे वह व्यक्ति घोड़ी दूर चलकर रुक गया फिर उसने चारों ओर का निरीक्षण किया और
एक घर में प्रविष्ट हो गया।
विशाल नीचे उतर आया । उनकी आँखों से नींद कोसों दूर थी। उन लोगों ने एक दूसरे से कान में कहा-पहरेदारों के क्या हालचाल हैं देखना चाहिए। खिड़की से झाँककर देखा कि दोनों पहरेदार बुत बने से बैठे थे। उन लोगों ने पास जाकर देखना उचित नहीं समझा कि कहीं बना-बनाया खेल न बिगड़ जाए। दोनों ने बात नहीं की क्योंकि ऐसा करना उनके हित में नहीं था। एक दूसरे से इशारे में गुडनाइट कहा और मन मारकर बिस्तरों पर पड़े रहे।
सुबह होते ही दोनों ने चुपचाप बगीचे का निरीक्षण किया और वहाँ हुए पदचिह्नों को ध्यान से देखा और उनका नाप भी ले लिया। दोनों छपे व्यक्तियों के एक-एक पैर का नाप लिया और उन दोनों चिह्नों पर डलिया रख मिट्टी से ढंक दिया ताकि वे चिह्न बिगड़ें नहीं । उन्होंने पदचिह्नों का अनुकरण किया-वे बरगद के पेड़ के पास तक थे। नितिन ने कहा कि-क्यों न यहाँ अभी ही खुदाई करवा दी जाए। लेकिन विशाल ने समझाया-कि इससे हम पर ही उलटा स्मगलिंग का आरोप लग सकता है। अभी हमारे पास कोई पक्का प्रमाण नहीं है और फिर हमें तो स्मगलर को पकड़ना है न कि धन को लेना है। चाय-नाश्ते के बाद वे दोनों टहलने निकलगए। विशाल नितिन को अपने घर ले गया और वहाँ वे उन प्रश्नों का हल खोजने लगे जो उनके मस्तिष्क में उभर रहे थे वे यह नहीं सोच पा रहे थे कि वह इस कोठी में ही क्यों अपना धन छुपा रहा था। वे लोग कौन हैं? विशाल बोला- "प्रथम प्रश्न का उत्तर तो थोड़ा-थोड़ा समझ आ गया-कि हो सकता है वह व्यक्ति काला धन्धा तो करता है किन्तु इसका नाम अपने ऊपर न लगाकर कोठी वाले का नाम लगाना चाहता है।" फिर वे आज के प्रोग्राम के बारे में सोचने लगे।
अचानक विशाल को एक बात सूझी। बोला-किसी प्रकार का घर पर प्रोग्राम रखो जिसमें तुम सब मुहल्ले वालों को आमन्त्रित कर किया जा सके। पर कैसे! नितिन ने कहा। जब कुछ न सूझा तो विशाल ने कहा-ऐसा कर तू दो-चार दिन के लिए मेरा सफेद कुत्ता-डैनी ले जा और आज इसी को घर लाने के उपलक्ष्य में तू पार्टी दे देना। नितिन को बात जच गई।