ये कैसी राह - 23 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये कैसी राह - 23

भाग 23

रंजन सारे काम छोड़ तुरंत ही अनमोल के ऑफिस में गया और उसके केबिन में गया तो वहां अनमोल की जगह कोई और बैठा था। जब अनमोल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि अनमोल जब से घर गया वापस ऑफिस आया ही नहीं । इसलिए कम्पनी ने उनकी जगह मुझे अप्वाइंट किया है।

वहां से वापस आकर रंजन ने अरविंद जी को कॉल लगाई। अरविंद जीघबराए ना इसलिए बहुत ही आराम से बताना शुरू किया,

"अंकल ..! मैअनमोल सर के ऑफिस गया था पर वो वहां है नहीं शायद आज वो आए नहीं है। मै आपको छुट्टी के बाद पता कर के बताता हूं। आप टेंशन मत

लीजिए वो ठीक होंगे।"

रंजन ने साफ झूट बोल दिया कि अनमोल की जगह कोई और उसकी

सीट पर बैठा था। उसे पता था कि उसके ये सच बताते ही अरविंद जी परेशान हो जाएंगे। रंजन ने निश्चय किया कि वो ऑफिस से सीधा अनमोल के

फ्लैट पर जाएगा और फिर को भी सच्चाई होगी, वो अरविंद जी को बताएगा।

शाम चार बजे ऑफिस बंद होते ही रंजन ने अपनी बाइक का रुख अनमोल के फ्लैट की ओर मोड़ दिया । वहां जाकर बेल बजाने पर भी कोई नहीं निकला काफी देर तक रंजन बेल बजाता रहा, दरवाजे

पर दस्तक देतारहा पर कोई जवाब नहीं मिला। हार कर रंजन ने पास वाले फ्लैट की बेलबजाई । कुछ देर बाद एक बुजुर्ग सज्जन बाहर निकले । यह उन्हे देख कररंजन ने नमस्ते किया और पूछा,

"अंकल ..! इस फ्लैट में कुछ लड़के रहते थे,

उनमें से एक नाम अनमोल था, क्या आप बता सकते है वो कहां गए है? मै काफी देर से बेल बजा रहा हूं पर कोई दरवाजा हीं नहीं खोल रहा।"

वो सज्जन रंजन को अंदर आकर बैठने को बोला, क्योंकि रंजन खड़े - खड़े थक कर पसीने से नहा गया था ।

उसे बिठा कर एक गिलास पानी देकर पीने को कहा उन बुजुर्ग ने। रंजन ने आराम से बैठ कर पानी पिया, और फिर अपना परिचय दिया पुनः प्रश्न दोहराया। अब उन सज्जन ने बताना शुरू किया,

"हां बेटा..! यहां कुछ लड़के रहते तो थे, पर वो किसी से ज्यादा बात - चीत नहीं करते थे। वो बच्चे हमेशा अपने में ही खोए रहते थे। हमेशा उनके फ्लैट से किसी मंत्र की आवाज आती थी। अभी कुछ दिन हुए उन्होंने ये फ्लैट खाली कर दिया । जब जाने लगे तो मै बाहर ही था । मैंने पूछा कि,"कहा अब रहोगे ?"

तो वो बोले, "यहां से आश्रम दूर पड़ता है । साधना में दिक्कत होती है। अब हम सब आश्रम में ही रहेंगे।"

रंजन ने ये सब जन कर आश्रम के बारे में पूछा कि कहां है? तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की । वो बोले,

" बेटा..! मुझे जो पता था मैंने बता दिया। अब कौन सा आश्रम है ? कहां पर है ? ये सब मै नहीं जानता। पर बेटा सब लड़के बड़े ही अच्छे घरों के लगते थे, वो काफी एजुकेटेड भी लगते थे।अब जब उन्हे घर परिवार की जिम्मेदारी उठानी चाहिए और मां बाप की सेवा करनी चाहिए थी वो सभी अपने कर्तव्य से विमुख हो कर जो राह चुन लिए है , मगर मै चाह कर भी कुछ नहीं कर सका। जब भी कोशिश की उन बच्चों से बात करने की उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया। जैसे उनकी कोई रुचि हीं नहीं है मेरी बातों में।"

रंजन ने उन बुजुर्ग की सारी बातें सुनी और अनमोल के बारे में बताया कि,

कैसे उसके पापा का फोन आया था और उन्होंने पता कर बताने के लिए उसे कहा था। धन्यवाद कहता हुआ रंजन उठ खड़ा हुआ और अपनी बाइक पर आकर बैठ गया और सोचने लगा कि अब आगे क्या करे?

जब कुछ ना सूझा तो उसने अरविंद जी को फोन मिलाया।

अरविंद जी तो इसी प्रतीक्षा मे ही थे कि कब फोन आए और कुछ पता चला अनमोल के बारे में ।

कॉल रिसीव होते ही रंजन ने बताना शुरू किया, "अंकल मै वहीं आया हूं जहां अनमोल सर रहते थे पर यहां कोई है नहीं फ्लैट में। पास वाले फ्लैट में पता करने करने पर मालूम हुआ कि वो सभी लोग किसी आश्रम

में रहने चले गए है। पर कौन सा आश्रम है? और कहां है ये नहीं पता चलbपाया। अंकल क्या आपको कुछ जानकारी है कि अनमोल सर किस आश्रम से जुड़े थे ? अगर आपको पता हो तो मै वहा जाकर देखता हूं कि शायद कुछ पता चल पाए। "

अरविंद जी इतना सुनते ही सहारा ले कर बैठ गए। पास खड़ी परी ने पापा को सहारा दिया, और फोन पापा के हाथों से ले लिया।

परी रंजन से बोली,

" रंजन भैया..! मै परी हूं अनमोल की बहन ।" अनमोल जिस आश्रम से जुड़ा था उसका नाम परी ने बताया। (मै यहां किसी भी आश्रम या संस्था का नाम लेकर किसी की भी भावना को आहत नहीं करना चाहती । इस कारण नाम नहीं लिख रही हूं । )

रंजन काफी समय से बैंगलुरू में रह रहा था, इस कारण यहां के हर एरिया से भली भांति परिचित था। इस कारण परी के बताए आश्रम की ओर अपनी बाइक मोड़ दी। लगभग आधे घंटे के सफ़र के बाद

रंजन उस आश्रम के आगे खड़ा था। मेन गेट से एंट्री ले अंदर गया।

वहा उस समय आरती का समय हो चुका था। तैयारियां हो रही थीbआरती की। रंजन ने भी आरती में शामिल होने का निश्चय किया फिर उसके बाद सोचा की अनमोल के बारे में पता करेगा ।

बेहद आध्यात्मिक वातावरण था। हर और जैसे कण - कण में ईश्वर विराजमान हो। पूरा वातावरण सम्मोहित कर रहा था। आरती शुरू हो गई । सभी भक्त गण पूरे भक्ति रस में डूबे हुए आरती में तल्लीन हो गए । रंजन भी भाव - विभोर हो कर आरती में सम्मिलित

हो गया । जैसे ही आरती ख़तम हुई । रंजन ने आंखे खोली तो देखा

सबसे आगे की पंक्ति में अनमोल खड़ा है । उसे देख कर रंजन के चेहरे पे इतमीनान का भाव उभरा। अब मै अनमोल की बात उसके पापा से करवा दूंगा। यही सोच कर रंजन आगे बढ़ा।

"अनमोल सर ... अनमोल सर ..…" आवाज दी रंजन ने।

आवाज सुनकर अनमोल पलटा और रंजन को देख कर चौंक गया।

रंजन के पास आते हुए अनमोल हंस कर बोला,

"अरे,!!! रंजन जी आप यहां कैसे? आप कब से यहां आने लगे ! मुझे तो पता ही नहीं था कि आप भी यहां आते है।"

रंजन ने हांथ मिलाया और बोला,

"नहीं सर..! मै यहां आज पहली बार ही आया हूं। " अनमोल ने रंजन के इतना कहते ही उसे रोक दिया

और बोला,

"आइए रंजन जी आराम से बैठ कर बात करते है।"

इतना कह अनमोल बाहर लॉन में बने बेंच पर जाकर बैठ गया जहा एकांत था। उसे अपने ऑफिस में उसके अनुपस्थिति के बाद की बातें जानने की जिज्ञासा थी।

बेंच पर इत्मीनान से बैठ कर अनमोल ने प्रसाद देते हुए रंजन से पूछा,

"हां ! अब बताओ आज यहां कैसे?"

रंजन ने कहा,

"वो आज सर आपके पापा का फोन मेरे पास आया

था । शायद आपका फोन नहीं लग रहा था । आपकी चिंता हुई तो मुझसे पूछा। मै आपकी सीट पर गया तो आपकी जगह कोई और बैठा था। फिर मैंने अंकल को बताया तो काफी परेशान है उठे। तब मैंने सर आपके फ्लैट पर गया वहां से पता चला कि आप कहीं और

शिफ्ट हो गए है। फिर परी ने इस आश्रम का नाम बताया तो मै पता करते - करते यहां आ गया। सर आप ऑफिस क्यों नहीं आते..? मै फोन लगाता हूं आप अपने पापा से बात कर के अपनी खैरियत के बारे में बता दीजिए वो काफी परेशान है।"

ये सब सुनते हुए जो अनमोल अब तक खुश था उसके भाव बदलने लगे।

वो रुष्ट स्वर में बोला,

"अच्छा तो मेरी काफी जासूसी कर के मुझे ढूंढा है आपने। ये पापा भी मुझे सब के सामने शर्मिंदा करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते है। जरा सा कुछ दिन बात ना करो तो सारे जग में ढिंढोरा पीट देते है की बेटा नालायक है अपनी हाल - खबर भी नहीं देता है।"

"नहीं सर ..! ऐसी बात नहीं है , वो वाकई आपसे बात ना हो पाने से परेशान है। आप उन्हे गलत समझ रहे है।"

रंजन ने कहा।

"मै उन्हे खूब अच्छे से जानता हूं। आप फोन लगाओ।

रंजन ने फोन लगाया और अरविंद जी से बोला,

"अंकल..! अनमोल सर आश्रम में ही है मै उनके पास ही हूं। आप बात कर लीजिए।"

ये कह कर रंजन ने फोन अनमोल के हाथों में पकड़ा दिया। अनमोल के हैलो कहते ही उधर से अरविंद जी की भर्राई आवाज सुनाई दी,

"कहां है रे!! अन्नू तेरी आवाज़ सुनने को तरस गया। कैसा है तू बेटा? तेरा फोन क्यों ऑफ आ रहा है?" इतना कहते - कहते अरविंद जी की आंखो से झर - झर आंसू बहने लगे। पास खड़ी परी पापा के आंखो से

बहते आंसू को अपने हाथों से पोंछे जा रही थी । पापा को रोता देख उसे भी खुद पे काबू रखना मुश्किल हो रहा था।

 

क्या अनमोल पापा की बातो से द्रवित हुआ? पढ़िए आगे के भाग में

अनमोल के जीवन में क्या कुछ होता है ?

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