ये कैसी राह - 22 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये कैसी राह - 22

भाग 22

अनमोल के ड्रॉइंग रूम आते ही जवाहर जी उठ कर अनमोल को गले लगाते है; और पूछते है कैसे हो बेटा ? संक्षिप्त सा जवाब "ठीक हूं" देकर जवाहर जी और रत्ना जी के पांव छूकर अनमोल वहीं बैठ गया।

रत्ना ने भी दुलार से कहा,

"अरविंद भाई साहब ..! जब अनमोल पैदा हुआ तभी मैंने कहा था ना आपसे ये बच्चा आपके पूरे परिवार का नाम रौशन करेगा। देखिए मेरी कही हुई बात आज सच साबित हुई। जिस आईं आई टी में पढ़ने के लिए लोग तरसते हैं, अपना अनमोल पहली बार में ही सेलेक्ट हो गया ; और इतने अच्छे पैकेज पर नौकरी कर रहा है। जो कई लोगों के लिए सपना ही रह जाता है। अभी अपना अनमोल बहुत आगे जाएगा।"

जवाब में अरविंद जी और सावित्री मुस्कुरा दिए। अनमोल कुछ

देर सब के पास बैठा रहा और फिर उठ कर अंदर आ गया। उसने फिर बाहर निकलना जरूरी नहीं समझा। जब जवाहर जी और रत्ना जाने लगे तभी परी के बुलाने पर बाहर निकला। रत्ना जी ने घर आने का निमंत्रण दिया। बोली,

"बेटा…! बैंगलुरू जाने से पहले घर जरूर आना मैं प्रतीक्षा करूंगी।"

अनमोल ने हां में सिर हिलाया और "जी आन्टी बोला।"

इसके बाद जवाहर जी और रत्ना चले गए। हनी और मनी को रहने दिया कि कुछ दिन भाई के साथ रह ले ।

अनमोल सब के साथ रहते हुए भी नहीं था । अनमना सा रहता बार - बार पूछने पर किसी बात का जवाब देता। कुछ भी खाने -पीने की चीज सावित्री जी बड़े मन से बनाती की बेटा खायेगा पर वो रुखाई से बोलता मां इसमें लहसुन प्याज पड़ा है मै नहीं खाऊंगा। अब सावित्री जी जो कुछ भी बनाती उसमे ये सब चीजे नहीं डालती। पर फिर भी वो उसे रुचि से नहीं खाता।

इस तरह सात दिन बीत गए। अनमोल ने किसी भी तरह से पैसे देने का जिक्र नहीं किया । एक दिन सुबह सावित्री दूध का ग्लास ले कर अनमोल के कमरे में आई तो देखा अनमोल अपने कपड़े यह कर के बैग में रख रहा है। उसे कपड़े रखते देख बोली,

"बेटा..! ये क्या कर रहा है कपड़े बैग में क्यों रख रहा है?"

"मां ..! मुझे आए सात दिन हो गए जाऊंगा नहीं क्या ? मेरी कम्पनी में इतनी छुट्टियां नहीं मिलती। मैंने कल का रिजर्वेशन करवा लिया है। इसलिए अपने कपड़े रख रहा हूं। मां मेरे लिए कुछ सूखा नाश्ता और सफ़र के लिए खाना दे देना जो जल्दी खराब ना हो।"

अनमोल बोला।

"हां ! हां ! बेटा जो कहेगा सब बना कर साथ दे दूंगी। पर अभी कुछ दिन और रुक जा फिर पता नहीं कब आएगा। अभी तो तू जवाहर भाई - साहब के घर भी मिलने नहीं गया। प्लीज बेटा दो चार दिन ही और रुक जा।"

सावित्री जी ने अनमोल को समझाते हुए उदास स्वर में कहा।

"नहीं मां..! मै अब और नहीं रुक सकता। मुझे जाना ही होगा। मेरा कनफर्म टिकट हो गया है। आप परेशान ना हो मै फिर आ जाऊंगा।"

मां के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

सावित्री जी को पता नहीं क्यों ? पर ऐसा लग रहा था कि अब अनमोल उनसे दूर हो रहा है।

शाम को अरविंद जी ऑफिस से आए फ्रेश हो, गए चाय पी तो गौर किया सावित्री जी कुछ उदास लग रही है ।

अरविंद जी ने पूछा,

"क्या बात है सावित्री आज कुछ उदास लग रही हो कोई बात है क्या ?"

सावित्री जी बोली,

"मै अनमोल के कमरे में दूध लेकर गई तो देखा वो अपना सामान समेट कर बैग मै रख रहा है। मैंने पूछा तो अनमोल ने कहा वो कल जा रहा है। मै मना कर रही कि दो - चार दिन और रुक जाए पर मान नहीं रहा।क्या आपको बताया उसने की वो जा रहा है?"

"नहीं मुझसे कहा कुछ बताता है अब वो ? जाने की तैयारी भी कर ली मुझसे पूछना तो दूर बताया तक नहीं।"

अरविंद जी बोले ।

सावित्री बोली,

"आप रोकिए ना उसे। आपकी बात नहीं टालेगा।"

गहरी सांस लेकर अरविंद जी बोले,

"सावित्री..! मै अपनी परेशानी किससे कहूं ? जिनसे - जिनसे कर्ज लिया था उनसे यही कहा था की बेटे की नौकरी लगते ही लौटा दूंगा। अब बेटे की नौकरी भी

लग गई। वो बार - बार तगादा कर रहे है। कहते है अरविंद जी अब तो बेटा भी नौकरी कर रहा है अब आपको क्या परेशानी है पैसों की ? सावित्री क्या बताऊं दबी जुबान में आपस में बात करते सुना है कि अब इनको उधार वापस करने में लालच हो गई है। अब मेरी नियत ही खराब हो गई है ऐसा कहते सुना है। "

कुछ देर रुक कर फिर बोले,

"मेरी दुविधा सावित्री कोई नहीं समझ सकता? मै कितना विवश महसूस के रहा हूं खुद को। अनमोल मेरी परेशानी को समझ कर भी नजर अंदाज कर दे रहा है। जो बात उसे खुद ही कहनी चाहिए वो मेरे कहने का

प्रयत्न करने पर ही रोक कर किसी बहाने से हट जाता है। मै कैसे बात करू? अपनी परेशानी कैसे उसे समझाऊं ? मै नहीं समझ पा रहा । अब तुम ही कोई राह निकालो।*

सावित्री जी बोली,

"अभी हम उसके पास चलते है और समझाने का प्रयत्न करते है। वो जरूर ही हमारी बात समझेगा।"

कुछ देर बाद आवाज लगा कर अरविंद जी ने अनमोल को पुकारा।

"अनमोल ...अनमोल…"

आवाज सुनकर अनमोल आया और बोला,

"जी पापा"।

अरविंद जी बोले, " बेटा तुम्हारी मां कह रही है तुम वापस बैंगलुरू जा रहे हो ?

"जी पापा..! वापस तो जाना ही है इतनी छुट्टियां मेरे यहां नहीं मिलती जाना तो पड़ेगा ही।" अनमोल बोला।

"आओ बेटा मेरे पास बैठो।"

कह कर अरविंद जी ने अनमोल को अपने पास बिठा लिया।

फिर सावित्री जी बोली,

"बेटा ..! घर की परिस्थिति तुमसे छुपी नहीं है तुम्हारे पापा ने को कुछ भी कमाया तुम्हारी और तुम्हारी बहनों

की परवरिश में खर्च कर दिया। तुम्हारी पढ़ाई में और हनी मनी की शादी में इतना ज्यादा कर्ज हो गया कि हम अभी तक चुका नहीं पाए। रोज ही उनका तगादा होता है कि तेरे पापा कब उनकी रकम वापस करेंगे। तेरी नौकरी लगने पर ही वापस करने को बोला था। अब वो और सब्र करने को तैयार नहीं उल्टी सीधी बात समाज मै घूम - घूम कर तेरे पापा के बारे में कह रहे है। अब तू ही बता हम क्या करे?"

अनमोल जो सारी बातें गौर से सुन रहा था। अन - मना सा हो गया कोई जवाब न दे थोड़ी देर बैठ रहा फिर उठ कर वहां से अपने कमरे मै चला गया।

सावित्री और अरविंद जी मायूसी से एक दूसरे का चेहरा देखते रह गए।

बिना कुछ कहे खामोशी से अनमोल घर में रहते हुए भी सबसे दूर ही रहा। दूसरे दिन मां - पापा और परी को उदास और चिंतित छोड़ अनमोल बैंगलुरू के लिए रवाना हो गया।

इस बार अनमोल गया तो जैसे सारे रिश्ते ही तोड़ कर गया। बैंगलुरू पहुंच कर लगभग एक महीने तो को परिवार के सम्पर्क में रहा। परंतु धीरे - धीरे कॉल आनी बंद हो गई। जब इंतजार करते - करते एक और माह बीत गया तो सब्र का बांध टूट गया। मां बाप का ह्रदय पुत्र की चिंता में घुलने लगा । परी बार - बार समझाती, " मां पापा आप फ़िक्र मत करिए । अनमोल भाई वहा बिल्कुल ठीक होगा। पर उसका दिलासा छणिक होता । परी ने पूरे घर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी।

स्कूल में अपनी नौकरी के साथ - साथ घर और मां पापा का भी पूरा साथ दे रही थी । ये परी का दिया संबल ही था जो अरविंद जी दुनिया का सामना कर पा रहे थे। बार - बार अनमोल का फोन स्विच ऑफ आ रहा था। तभी अरविंद जी

को ध्यान आया कि रंजन ने अपना मोबाइल नंबर दिया उन्हे। वो बिना देर किए परी से कहा कि रंजन का नंबर खोज कर फोन मिलाएं।

परी ने उसका नंबर खोज कर फोन लगाया और पापा को थमा दिया।

दो तीन रिंग बजते ही रंजन ने फोन रिसीव किया तो अरविंद जी ने अपना परिचय दिया। सुनते ही रंजन से अभिवादन किया और बोला,

"हां ..अंकल..! बताइए कैसे याद किया ? मुझे खुशी होगी अगर मै आपके किसी काम आ सकूं।"

आशीर्वाद देने के बाद अरविंद जी बोले,

" बेटा रंजन ..! मै तुमसे अनमोल के बारे में जानना चाहता हूं। जब से वो था से गया कुछ दिन तो हल खबर देता रहा पर एक महीने हो गया ना तो उसका फोन ही लग रहा है और ना ही उसने अपनी कोई खबर दी हम सब बहुत चिंतित है ; वो ठीक तो है ना ! तुम्हे ऑफिस में दिखा था क्या ? जरा बेटा पता कर के बताओ कि हो ठीक है या नहीं। उसे कहना घर पर बात कर ले।'

इतना कहते कहते अरविंद जी की सांसे भारी हो गई ।

"नहीं अंकल ..! मुझे अनमोल सर दिखे तो नहीं है काफी दिनों से। आप परेशान ना हो। मै अभी जाकर पता करता हूं फिर आपको बताता हूं।"

रंजन ने कहा।

 

क्या रंजन ने पता करके बताया अरविंद जी को अनमोल के बारे में। जानने के लिए पढ़े अगला भाग।