हारा हुआ आदमी(भाग 23) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी(भाग 23)

"यह लो।"
"थैंक्स।"
और दोनों चाय पीने लगे।। चाय पीने केे बाद निशा पलँग से उठते हुुुए बोली, अपना घर तो दिखाओ"
"मेरा नही।अब यह घर तुम्हारा है।"
"मेरा क्यो?"
"घर तो तभी बनता है,जब औरत आती है।बिना औरत जिंदगी खाना बदोस है।"
"मेरा नही हम दोनों का है,"निशा बोली,"घर देख लू।फिर साफ सफाई ,खाना आदि काम भी है।"
"अभी हाथो की मेहंदी छुटी भी नही और काम।अभी रहने दो,कुछ दिन।"
"मैं रहने दूंगी तो कौन करेगा काम।"
"एक ही रात मे औरत कितनी बदल जाती है।वह अपनी जिम्मेदारी समझने लगती है,"देवेन, निशा की प्रशंसा करते हुए बोला,"अभी कुछ दिन रहने दो।अभी तुम्हे दिल्ली घुमानी है।फिर रात की ट्रेन से माउंट आबू चलना है।"
"क्यो?"
"बड़ी भोली हो।इतना भी नही समझती।"
"नही जानती तभी तो पूछ रही हूँ"।भोली सी सूरत बनाकर निशा बोली।
"हमारी शादी हुई है।शादी के बाद हनीमून के लिए लोग जाते है।हम माउंट आबू चलेंगे।"देवेन, निशा को बाहों में भरते हुए बोला।
पति की बात सुनकर निशा ने नज़रे झुका ली।देवेन फिर बोला,"तुम्हे एतराज तो नही है?"
"तुमने प्रोग्राम बना ही रखा है तो मुझे क्यो एतराज होगा,"लेकिन इन दिनों में तो वहाँ बहुत ठंड रहती होगी"
"क्या फर्क पड़ता है,तुम साथ हो तो केसी ठंड?"निशा बाथरूम में चली गई थी।
और देवेन, निशा को लेकर दिल्ली घूमने के लिए निकल पड़ा।उसने घूमने के लिए गाड़ी कर ली थी।
देवेन, निशा को इंडिया गेट,बिरला मन्दिर,कुतुब मीनार,अक्षर धाम और ज़ू दिखाने ले गया था।
"तुम पहले कभी दिल्ली आयी हो?"निशा का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए देवेन ने पूछा था।
"छोटी थी तब।पहले और अब में तो बहुत कुछ बदल गया।
सड़को पर चहल पहल थी।आगरा में कोई ट्रैफिक के नियमो का पालन नही करता।लेकिन यहाँ सब कुछ व्यवस्थित था।
दोनो ने होटल में खाना खाया था।देवेन ने निशा को ख्रुददारी भी कराई थी।उन्होंने मोबाइल में फ़ोटो भी खिंचे थे।
सर्दियों का मौसम।आधी जनवरी बीत चुकी थी।सूरज दुब रहा था।आसमान में बादल छिटके पड़े थे।
"सर्दियों के मौसम में सर्द हवा के थपेड़े ऐसे लग रहे थे ,मानो शरीर को काट रहे हो।
चारो तरफ सन्नाटा पसरा पड़ा था।घाटी की सड़कें लगभग वीरान थी।यंहा के निवासी शाम होते ही अपने घरों में कैद हो गए थे।बाहर सिर्फ पर्यटक ही नज़र आ रहे थे।गर्मियों के मौसम में माउंट आबू पर काफी संख्या में पर्यटक आते है।लेकिन सर्दियों के मौसम में काफी कम।
देवेन ने दिल्ली से चलने से पहले ही होटल में रूम बुक करा लिया था।टेक्सी से वे माउंट पहुंचे तब अंधेरा धरती पर उतर आया था।वेसे भी सर्दियों के मौसम में सूरज जल्दी छिप जाता है।
ट्रेन और टैक्सी के सफर ने उन्हें थका दिया था।इसलिए वे उस दिन होटल के कमरे में पहुंच कर बाहर नही निकले थे।
सुबह उठे तो ठंड काफी थी।निशा का मन उठने का नही था लेकिन बेयरा चाय ले आया इसलिए उसे उठना पड़ा।देवेन सोया हुआ था।निशा को मज़ाक सुझा।उसने अपनी ठंडी हथेलियां देवेन के गाल पर रख दी।
"उ ई। देवेन ने हड़बड़ाकर आंखे खोल दी।
"डर गए"निशा खिल खिलाकर हंसी तो ऐसा लगा फूल झड़े हो।
"तुम"देवेन ने निशा का हाथ पकड़कर आपनी तरफ खींच लिया।
"क्या करते हों?"
"बहुत ठंड है मेरी जान सो जाओ वरना ठंड लग जायेगी"
"सोना तो चाहती थी लेकिन बेयरे ने चाय के लिए जगा दिया।"