हारा हुआ आदमी (भाग22) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग22)

"नही मानोगे?"
"कभी नही"
देवेन ने फिर से निशा के अधरों को चूमना चाहा तो निशा ने अपना हाथ आगे रख लिया।
"नही ऐसे नही।"
"तो फिर कैसे?"
"देवेन ने पूछा था।
"पहले लाइट ऑफ करो।"निशा नज़रे नीची करके बोली थी।
"क्यो?"देवेन ने निशा से प्रश्न किया था।
"मुझे शर्म लग रही है।"निशा नज़रे झुकाकर बोली थी"
"शर्म लेकिंन किस से",देवेन चारो तरफ देखते हुए बोला,"कमरे में सिर्फ मैं ही हूँ"।फिर शर्म किस से?"
"तुमसे।"
"शर्म लग रही है और मुझसे?"निशा की बात सुनकर देवेन हंसा था।
"हंस क्यो रहे हो?"देवेन को हंसता देखकर निशा बोली थी।
"माई स्वीट हर्ट।बात हंसने की ही है।हमारी रानी हमसे ही शर्मा रही है। देवेन ने फिर निशा के होठो को चूमना चाहा तो निशा अपना हाथ मुँह पर रखते हुए बोली,"पहले लाइट बन्द करो।"
"अगर लाइट ऑफ नही कर तो?"
"फिर मैं तुमसे कभी नही बोलूंगी।"निशा रूठकर बोली।
"ऐसा कभी मत करना।"और देवेन ने लाइट ऑफ कर दी
सुहागकक्ष में अंधेरा छा गया।स्याह अंधेरा।देवेन ने अंधेरे मे ही निशा को अपनी तरफ खींच लिया।उसे अपनी बांहों मे लेकर उसके होंठो पर अपने अधर रख दिये।और फिर उसके तन से एक एक करके कपड़े सरकने लगे।
सुहागकक्ष खुशबू से महक रहा था।फूलो की खुश्बू।उस खुशबू से ज्यादा मादक थी,निशा के बदन की महक।पुरूष को आकर्षित करने वाली नारी गंध।जो देवेन को ललचा रही थी।अपनी तरफ खींच रही थी।
बन्द सुहागकक्ष में दो जवान दिलो कि धड़कन साफ सुनाई पड़ रही थी।दो जवान जिस्म पहली बार मिल कर एक हो रहे थे।
रंगीन,सुहानी,नशीली रात धीरे धीरे ढल रही थी।निशा का यौवन देवेन की नीरस जिंदगी में रस घोल रहा था।भोर की किरण खिड़की के शीशे को पार करके सुहागकक्ष में चली आयी थी।
फ्लेट के बाहर लगे गुलमोहर के पेड़ पर पक्षियों का कलरव था।देवेन की नींद टूटी।उजाला नए जीवन का संदेश लेकर आया था।
सुहागसेज पर बिखरे फूल मुरझा गए थे।लेकिन उनकी गन्ध अभी बाकी थी।सुहागसेज पर मुरझाये फूलो में निशा के बदन की गंध भी मिल गई थी।
देवेन का मन उठने को नही कर रहा था।वह अभी लेटा लेटा इस गन्ध को और अपनी छाती में भरना चाहता था।लेकिन दूध का ध्यान आते ही उसे उठना पड़ा।वह कपड़े पहनकर दूध लेने के लिए निकल पड़ा।
दूध लेने के लिए देवेन को चौराहे पर बने मिल्क बूथ पर जाना पड़ता था।
"शादी की मुबारकबाद"देवेन को देखते ही बहादुर बोला,"माफ करना मैं आपकी बरात में नही चल सका".
"तुम्हारा बहुत कमी खली।"
"अब तो रोज दूध जाएगा?"
"हा, लेकिन मैं बाहर जाता रहता हूँ"
"आप चिंता मत करे।मैं पहुंचा दिया करूँगा।"
देवेन दूध लेकर घर वापस आया।उसने चाय बनाई और दो कप चाय ले आया।
निशा अभी भी गहरी नींद में सो रही थी।उसे कैसे जगाया जाए।कुछ देर सोचने के बाद उसे एक शरारत सूझी।उसने एक गुलाब का फूल उठाया और उस फूल को निशा के गाल पर फिराने लगा।और निशा की आंख खुल गई,"अरे तुम उठ गए"।"
"प्यारी रानी के पास से उठना कोन चाहता था।"
"फिर क्यो उठ गये?"
"दूध जो लाना था।"
"आगरा मे तो दूधवाला घर ही आता है।"
"अब आप आगरा में नही दिल्ली मे है।"देवेन बोला,"अब चाय पी लीजिये।"
"चाय",निशा आश्चर्य से बोली,"तुम चाय भी बना लाये।"
"जी"
"सॉरी।घर पर मम्मी चाय बनाकर उठाती थी।मुझे देर से उठने की आदत है।इसलिए पता नही चला तुम कब उठ गए,"निशा अफसोस प्रकट करते हुए बोली,"मेरे होते हुए तुम
"डोन्ट वरी।आगे तुम्हे ही करना है