भाग - 1
यह कहानी है ऐसे दो बच्चों की जो बचपन के वर्षों बाद मिलने पर फिर दोस्त बने और फिर जीवनसाथी भी …
कहानी - तू है पतंग मैं डोर
मान्यता के घर उसकी बचपन की सहेली शीला आई हुई थी .वह अपने फ्लैट की बालकनी में उसके साथ बैठी चाय पी रही थी . शीला शादी के बाद पहली बार मान्यता से मिली थी .शीला का पति सेना में कैप्टेन था, कहीं दूर दराज़ बॉर्डर पर उसकी पोस्टिंग थी .वह बोली " तू तो अपनी शादी में मुझे भूल ही गयी थी . "
" नहीं भूली नहीं थी .तेरा पता नहीं मिल सका था .तुम्हारे पापा का ट्रांसफर हो गया था और तुमलोग पटना छोड़ चुके थे .जैसे ही पता मिला , तुम्हें कांटेक्ट किया .तभी तो अपनी दसवीं एनिवर्सरी पर तुम्हें बुलाया और कहा था दो चार दिन पहले ही आना .आराम से नयी पुरानी सभी बातें करेंगे .पर कप्तान साहब तो तुम्हें छोड़ कर चले गए , वे रुक जाते तो और मजा आता ."
तभी शीला ने नीचे दिखाते हुए कहा " आर्मी वालों की बात ही अलग है .खैर छोड़ , मान्या देख तो नीचे . जीजाजी कैसे आदि के साथ पतंग उड़ा रहे हैं ."
मान्यता को लोग मान्या कहा करते थे .नीचे अपार्टमेंट काम्प्लेक्स के प्ले ग्राउंड में विकास अपने बेटे के साथ पतंग उड़ाने में मस्त था .मान्या और विकास का बेटा आदित्य छः वर्ष का हो चुका था .आदित्य को प्यार से आदि बुलाते थे .आदि भी जब आकाश में पतंग देखता वह भी पतंग उड़ाने के लिए मचल पड़ता , बिलकुल अपने पापा विकास की तरह .विकास का भी बचपन में यही हाल था .
" हाँ , इनकी बचपन की आदत है ." मान्या बोली
" अच्छा तूने विकास को कैसे पटाया ,बता मुझे ."
" नहीं , पटाने वाली कोई बात नहीं है , बस संयोग से ऐसा होता गया कि हम आगे चल कर एक हो गए ."
फिर मान्या शीला को अपनी दास्तां सुनाने लगी .मान्या वर्तमान से बहुत दूर 25 साल पहले की यादों की झुरमुट में खो गयी .तब विकास छः साल का और मान्या लगभग चार साल की थी . वह मान्या के घर आया था और उसके पापा वर्माजी से कुछ बातें कर रहे थे .विकास उसी मोहल्ले में कहीं रहता था .उसके पापा और वर्माजी दोनों एक ही दफ्तर में काम करते थे . विकास अपने पापा की लीव एप्लीकेशन वर्माजी को देने आया था .दोनों के परिवार में कोई आना जाना या नजदीकी नहीं थी .मान्या के पापा बाहर बरामदे में ही बैठे थे .मान्या ने पहली बार विकास को देखा था .
तब तक एक कटी पतंग कहीं से कट कर गिरने लगी थी .अचानक विकास उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा .पतंग तो उसने बच्चों की भीड़ के बीच लूट लिया पर इस दौरान विकास गिर पड़ा और उसके घुटने में खरोंच आ गयी थी .फिर भी वह अपनी कामयाबी पर बहुत खुश था . वर्माजी ने मान्या को फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने को कहा .फिर डेटॉल से जख्म साफ़ कर बैंड एड लगा कर कहा " बहुत सुन्दर पतंग है , यह तो बिलकुल सही सलामत है .इसे तो उड़ाया जा सकता है ."
" अभी उड़ाओगे , मैं अपनी डोरी वाली चरखी ला कर देता हूँ . " पापा ने चरखी की मांझे वाली डोरी से पतंग को जोड़ कर मान्यता को आवाज दी " मान्या बेटे , जरा मैदान में जा कर विकास को पतंग उड़ाने में मदद कर
दो ."
मान्या ने विकास के कहने पर हवा का रुख देखते हुए पतंग को हवा में छोड़ दिया .इसके बाद वह वापस घर में आ गयी और विकास अपनी पतंग उड़ाने में व्यस्त हो गया था .कुछ दिनों के बाद उसके पिता का लखनऊ ट्रांसफर हो गया था और मान्या पटना में रह गयी .
इस घटना के लगभग दस साल बाद मान्या को कुंभ मेले में माता पिता के साथ इलाहबाद जाना पड़ा था .वहां नदी में नहाना था .मान्या को तैरने का शौक था .पापा ने कहा कि सिर्फ डुबकी लगा कर नहा लेना .पर मान्या पानी के अंदर तैरते हुए कुछ दूर निकल गयी . पानी से निकलने के बाद बाहर निकली तो उसके माता पिता आस पास नहीं थे .चारों ओर हजारों की भीड़ थी .वह घबरा उठी और रोने लगी .किनारे पर विकास भी अपने माता पिता के साथ था .पर दोनों में कोई भी एक दूसरे को पहचान नहीं सके .
विकास ने उसे धीरज रखने को कहा फिर अपने माता पिता से कहा " मैं इस लड़की को व्यवस्थापकों के मंच तक छोड़ आता हूँ .वहां लाउडस्पीकर पर प्रसारित कर इसके माता पिता को सौंप दिया जायेगा .तब तक आप लोग यहीं रहेंगे . आपलोग कहीं नहीं जायेंगे मेरे लौट आने तक ."
विकास ने मान्या से कहा " तुम मेरा हाथ जोर से थाम लो , हम मंच तक चलते हैं .तुम्हारे माता पिता को वहीँ बुला लिया जायेगा घबराने की कोई बात नहीं है , तुम्हारे माता पिता तुम को वहां से अपने साथ ले जायेंगे ."
दोनों भीड़ से निपटते हुए मंच की ओर बढ़ रहे थे .उधर भीड़ बेकाबू हो कर अनियंत्रित होने लगी थी .तभी एक पुलिस वाले ने डंडा भांजा तो मान्या डर कर उससे लिपट गयी थी . पर डंडे से विकास के ललाट पर चोट आयी थी और खून निकल आया था .
विकास ने रूमाल से खून को पोंछा और वह मान्या को मंच पर व्यवस्थापक के पास छोड़ आया . फिर वह अपने माता पिता के पास लौट आया . उधर मंच से आयोजकों की आवाज लाउडस्पीकर पर गूँज रही थी " एक तेरह साल की बच्ची मान्यता अपने माता पिता से बिछड़ गयी है .उसके माता पिता जहाँ कहीं हों आकर अपनी बच्ची को ले जाएँ ."
तब तक विकास अपने माता पिता के पास लौट आया था .उसने उनको मान्यता के बारे कहा तो सभी के मन में संशय था कि कहीं यह पटना वाली मान्या तो नहीं .पर तब तक मान्या भी अपने माता पिता के साथ चली गयी थी . विकास के ललाट से अभी भी खून रिस रहा था .वह अपने उपचार के लिए कैंप अस्पताल में गया . वहां उसके ज़ख्म की ड्रेसिंग और बैंडेज किया गया . वह अपने माता पिता के साथ घर लौटा .
इस घटना को भी पांच साल हो गए .विकास अब बनारस के BHU में पढ़ रहा था .कैंपस में वार्षिक खेल कूद का पुरस्कार वितरण हो रहा था .लाउडस्पीकर पर आवाज आई " 100 मीटर की फ्री स्टाइल गर्ल्स तैराकी प्रतियोगिता इस वर्ष फर्स्ट ईयर की मान्यता कुमारी ने जीता है .इतना ही नहीं इन्होने राज्य स्तर पर एक नया रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया है ."
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा .मान्यता जब अपना पुरस्कार ले कर मंच से लौट रही थी अनेकों छात्र छात्राएं उसे बधाई दे रहे थे .
भीड़ के बीच जगह बनाते हुए विकास आगे आ कर बोला " मान्या , मुबारक हो ."
मान्या सुन कर उसका ध्यान विकास की ओर आकृष्ट हुआ , यहाँ सभी उसे मान्यता ही कहा करते थे .मान्या ने उसकी ललाट पर जख्म के निशान देख कर कहा " तुम इलाहबाद वाले लड़के हो न जिसने मुझे मंच तक पहुँचाया था .यह निशान भी उसी दिन का है न ? "
" और तुम वर्मा अंकल की लड़की हो ? "
जवाब में मान्या ने बस सर हिला कर अपनी स्वीकृति जताई और पूछा “ पर तुम मान्या नाम से मुझे कैसे जानते हो ? “
" हाँ मैं वही इलाहबाद बाद वाला हूँ और पटना में भी तुम्हारा पड़ोसी था. मैं विकास हूँ . याद है फिल्म देवदास में देवदास ने छड़ी से मार कर पारो की ललाट पर निशान छोड़ दिया था और यहाँ उल्टे मुझे तुम्हारी खातिर डंडे से मेरे माथे पर निशान बन गया ."
कुछ दोस्तों ने ताने मारे " अरे वाह देवदास अपनी पारो से मिल गया .”