उर्वशी और पुरुरवा एक प्रेम कथा - 9 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उर्वशी और पुरुरवा एक प्रेम कथा - 9






उर्वशी और पुरुरवा
एक प्रेम-कथा

भाग 9


भरत मुनि अपने शिष्यों पल्लव और गल्व के साथ एक नाटक के विषय में चर्चा कर रहे थे। वह चाहते थे कि नाटक का मंचन देवराज इंद्र की सभा में किया जाए।
पल्लव ने उत्साहित होकर कहा,
"गुरुदेव इंद्र देव की सभा में नाटक का मंचन बहुत ही उत्तम विचार है।"
नाटक एक प्रेम कथा थी। राजकुमारी पद्मावती वन में भ्रमण करते हुए संकट में पड़ जाती है। एक वीर सुदर्शन युवक पुष्कर जान पर खेल कर उसके प्राणों की रक्षा करता है। राजकुमारी उसी क्षण उसके प्रेम में पड़ जाती है। दोनों कुछ समय एक साथ व्यतीत करते हैं। राजकुमारी राजमहल लौट कर अवंतीपुर के राजा अपने पिता अजित से पुष्कर के साथ विवाह करने की अनुमति मांगती है। किंतु राजा अजित यह कह कर मना कर देते हैं कि पुष्कर उनकी सेना का एक साधारण सैनिक है। वह उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह नहीं कर सकते हैं। राजकुमारी पद्मावती भी कहती है कि यदि उसका विवाह पुष्कर से नहीं हुआ तो वह अपने प्राण त्याग देगी। राजा अजित अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं। राजकुमारी पद्मावती महल में कैद दिन रात पुष्कर को याद करती है। पुष्कर भी राजकुमारी को बहुत प्रेम करता है। वह एक वीर योद्धा है। अपने प्रेम को पाने के लिए वह राजा से लोहा लेने को भी तैयार हो जाता है। तभी पड़ोसी राज्य का राजा अनुशाल अवंतीपुर पर आक्रमण कर देता है। पुष्कर अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को त्याग कर अपने राज्य की रक्षा हेतु राजा अजित के साथ मिलकर अनुशाल का सामना करता है। वीरता से लड़ते हुए वह अनुशाल को पराजित कर देता है। राजा अजित प्रसन्न होकर अपना राज्य उसे सौंप कर राजकुमारी पद्मावती से उसका विवाह करवा देते हैं।
गल्व यह सोचकर प्रसन्न था कि वह पुष्कर का पात्र निभाएगा। इस बहाने से उसे उर्वशी का साथ प्राप्त होगा। वह मन ही मन उसे पसंद करता था। उसने अपने गुरु भरत मुनि से कहा,
"गुरुदेव नाटक की पटकथा तो बहुत अच्छी है किंतु पात्रों का चुनाव किस प्रकार होगा ?"
भरत मुनि उसके उत्साह को देख कर प्रसन्न हुए।
"मैं सोंच रहा था कि पुष्कर के पात्र के लिए तुम एक अच्छा विकल्प हो। उसकी भांति आकर्षक व सुडौल हो।"
उन्होंने स्वीकृति के लिए पल्लव की तरफ देखा। वह भला गुरुदेव से भिन्न विचार कैसे दे सकता था। वैसे सचमुच गल्व सुडौल और आकर्षक था। लेकिन पल्लव जानता था कि राजकुमारी पद्मावती के पात्र के लिए उर्वशी के अतिरिक्त किसी और का चुनाव होना कठिन है। वह उर्वशी के रूप पर मोहित था। लेकिन अपनी मर्यादा जानता था। अतः वह पुष्कर के पात्र की जगह स्वयं की कल्पना कर रहा था। ताकि नाटक में ही सही उसे कुछ क्षणों के लिए उर्वशी का सानिध्य मिल सके। परंतु गुरुदेव ने तो गल्व का नाम सुझाया था।
पल्लव ने भरत मुनि की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा,
"आपका चुनाव अति उत्तम है गुरुदेव। गल्व से अच्छा नायक नहीं मिलेगा।"
भरत मुनि उसकी बात सुनकर संतुष्ट हुए। पल्लव ने बात आगे बढ़ाई,

"गुरुदेव मैं भी एक विचार प्रस्तुत करने की आज्ञा चाहता हूँ।"
"आज्ञा है... कहो क्या कहना है ?"
पल्लव ने बड़ी चतुराई से बात बढ़ाते हुए कहा,

"वैसे तो नायिका राजकुमारी पद्मावती के लिए उर्वशी से अच्छा चयन हो नहीं सकता है। किंतु आजकल उर्वशी की मनोदशा कुछ ठीक नहीं रहती है। हो सकता है कि नाटक के मंचन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़े। अतः उर्वशी के स्थान पर मेनका का चयन ही ठीक रहेगा। यह मेरा विचार है। किंतु निर्णय तो आपका ही होगा।"

पल्लव की बात सुनकर भरत मुनि विचार करने लगे। उन्होंने भी अनुभव किया था कि इन दिनों उर्वशी की मनोदशा अनुकूल नहीं है। उसके नृत्य में अब वह चपलता नहीं दिखती जो पहले थी। किंतु वह जानते थे कि देवराज इंद्र उर्वशी के चुनाव पर ही ज़ोर देंगे। वह बोले,

"बात तो तुम्हारी ठीक है पल्लव। किंतु देवराज इंद्र तो उर्वशी पर आसक्त हैं। तुम जाकर उन्हें नाटक के बारे में बता कर मेनका के चुनाव के लिए मनाओ। यदि वह मान जाएं तो यही ठीक होगा।"

पल्लव प्रसन्न था कि वह अपनी चाल में सफल रहा। वह तुरंत देवराज इंद्र से मिलने चला गया।


उर्वशी देवराज इंद्र के साथ थी। दोनों के बीच चौसर बिछा था। देवराज इंद्र उर्वशी को देख रहे थे। लेकिन उर्वशी अपनी चाल चलने के स्थान पर पुरुरवा के विचार में खोई हुई थी। उसके इस व्यवहार पर देवराज इंद्र को क्रोध आ रहा था। उन्होंने गुस्से से चौसर उठा कर भूमि पर पटक दिया। उर्वशी अपने खयालों से बाहर आ गई। देवराज इंद्र के क्रोध को देख कर डर गई। देवराज इंद्र ने क्रोध में कहा,

"यह क्या आचरण है तुम्हारा। मेरी उपस्थिति में तुम किसी और का स्मरण कर रही हो। मैं कई दिनों से देख रहा हूँ। तुम सदा किसी और के खयालों में रहती हो। एक अप्सरा होकर तुम एक साधारण मानवी की तरह व्यवहार कर रही हो। यह मुझे सह्य नहीं है। मुझे प्रसन्न रखना तुम्हारा कर्तव्य है।"

उर्वशी भय से कांप रही थी। उसने कभी नहीं सोंचा था कि देवराज इंद्र के सम्मुख उसकी चोरी इस तरह पकड़ी जाएगी। वह समझ नहीं पा रही थी कि किस प्रकार स्थिति को संभाले। विवशता में उसकी आँखों से अश्रु बहने लगे। उसकी यह दशा देख कर देवराज का दिल कुछ पसीज गया। उन्होंने एक सेविका को बुला कर भूमि पर पड़े चौसर को उठाने की आज्ञा दी। उसके जाने के बाद उर्वशी की तरफ देख कर कुछ कोमल स्वर में बोले,

"प्रिये तुम जानती हो कि अपनी सभी पत्नियों और अप्सराओं में मैं तुमसे ही सर्वाधिक प्रेम करता हूँ। अतः तुम्हारा किसी और के बारे में सोंचना मुझसे सहन नहीं होता है। आगे से तुम इस बात का विशेष खयाल रखना।"

तभी द्वारपाल ने आकर सूचना दी कि भरत मुनि के शिष्य पल्लव देवराज से भेंट करना चाहते हैं। देवराज ने उसे अंदर भेजने को कहा। उर्वशी ने अपने कक्ष में जाने की आज्ञा मांगी। देवराज ने स्वीकार कर लिया। भीतर आते हुए पल्लव की दृष्टि उर्वशी पर पड़ी। उसकी ओर देखे बिना उर्वशी अपने कक्ष में चली गई। किंतु अपनी आँखों की नमी वह पल्लव से नहीं छिपा पाई।
देवराज इंद्र को प्रणाम कर पल्लव बोला,

"लगता है इन दिनों देवी उर्वशी का चित्त अशांत है। चेहरे की कांति कम हो गई है।"

उसकी बात को अनसुना कर देवराज बोले,

"कहो पल्लव किस प्रयोजन से आना हुआ ? क्या भरत मुनि ने किसी नए नाटक के मंचन की योजना बनाई है ?"

"जी देवराज गुरुदेव ने एक बहुत ही सुंदर प्रेम कथा के मंचन की योजना बनाई है।"

"अति उत्तम ! मुझे प्रेम कथाएं पसंद हैं।"

पल्लव ने देवराज इंद्र को नाटक की कथा सुनाई। देवराज को कहानी बहुत पसंद आई। पल्लव की तरफ देख कर बोले,

"पुष्कर का पात्र क्या तुम निभा रहे हो ?"

प्रश्न सुनकर पल्लव के दिल की पीड़ा चेहरे पर झलक आई। उसे छिपाते हुए बोला,

"नहीं देवराज गुरुदेव ने इसके लिए मेरे गुरुभ्राता गल्व को चुना है।"

"ओह ! वैसे वह भी सही चुनाव है।"

"जी देवराज किंतु राजकुमारी पद्मावती के चयन में दुविधा है।"

"इस विषय में दुविधा कैसी है ? इसके लिए उर्वशी से अच्छा और कौन हो सकता है। वह इस भूमिका के लिए सर्वोत्म है।"

पल्लव जानता था कि देवराज इंद्र उर्वशी का नाम ही सुझाएंगे। इसीलिए उसने घुसते ही उर्वशी की मनोदशा की चर्चा की थी। उसी सूत्र को पकड़ पल्लव ने बात आरंभ की,

"किंतु देवी उर्वशी शायद इन दिनों कुछ व्यथित हैं। गुरुदेव को भी ऐसा ही लगता है। अतः मैंने उनके स्थान पर देवी मेनका के नाम का प्रस्ताव दिया है।"

पल्लव की बात देवराज को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। उन्होंने पल्लव को अग्नेय नेत्रों से देख कर कहा,

"उर्वशी राजकुमारी पद्मावती की भूमिका के लिए पूर्णतया उपयुक्त है। भरत मुनि को मेरा संदेश देना कि देवराज इंद्र इस भूमिका में उर्वशी को ही देखना चाहते हैं।"

देवराज के स्वर में एक आदेश था। पल्लव का कुछ भी कहने का साहस नहीं हुआ। वह चुपचाप वापस लौट गया।