वचन--भाग (३) Saroj Verma द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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वचन--भाग (३)

वचन--भाग(३)

प्रभाकर का मन बहुत ब्यथित था,वो गाड़ी में बैठा और लेट गया,जब मन अशांत हो और हृदय को चोट लगी हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता,बस मन चाहता है कि शांत होकर एक कोने में बैठ जाएं, किसी से बात करने का मन नहीं करता और फिर प्रभाकर अगर लड़की होता तो किसी सखी से अपने मन का हाल बताकर,मन हल्का कर लेता ,उसके कंधे पर सिर रखकर रो लेता,लेकिन लड़के तो ये भी नहीं कर सकते, पुरूषों ने स्वयं एक सीमा रेखा खींच रखी है,जिसे वे स्वयं पार नहीं करना चाहते ,वे डरते हैं क्योंकि लोग कहीं ये ना कह दें कि तुम तो पुरुष हो,ये तुम्हें शोभा नहीं देता और अगर किसी ने ये कह दिया तो उनका पुरुषत्व आहत हो जाएगा।।
रात के लगभग आठ बज रहे होंगे, प्रभाकर लेटे लेटे खिड़की से बाहर निहार रहा था,नींद भी नहीं आ रही थीं कि वो सो जाता क्योंकि कुछ खाया ही नहीं था, गुस्से में खाने की खबर ना रही,तभी किसी स्टेशन पर गाड़ी रूकी,उसने सोचा कुछ खरीद लेता हूं,वो स्टेशन पर उतरा फटाफट एक दुकान से कचौरियां और समोसे खरीद कर गाड़ी में चढ़ने लगा,तभी किसी ने धक्का दिया और सारे कचौरियां और समोसे स्टेशन के प्लेटफार्म पर बिखर गए, उसने नज़र उठाकर देखा तो कोई लड़की थी,जिसने साड़ी पहन रखी थी और बालों की दो लम्बी सी चोटियां बनाए हुई थी।।
माफ कीजिए, मेरी वजह से आपका नाश्ता गिर गया,वो लड़की बोली।।
कोई बात नहीं, मैं और खरीद लाता हूं, प्रभाकर बोला।।
लेकिन प्रभाकर जैसे ही दूसरी कचौरियां और समोसे खरीदने मुड़ा, वैसे ही गाड़ी ने सीटी दे दी।
अब कोई फायदा नहीं,गाड़ी में चलिए,गाड़ी दूसरी सीटी पर चल पड़ेगी,वो लड़की बोली।‌
प्रभाकर उदास सा अपनी सीट पर आया और सीट के नीचे रखी सुराही से एक गिलास पानी निकाला और पी गया,ये उस समय की बात है जब बोतल और थरमस नहीं चला करते थे,लोग सफर में सुराही लेकर चला करते थे।।
वो लड़की अपना सामान लेकर कुली के साथ गाड़ी में चढ़ी,कुली ने जल्दी से सारा सामान रखा__
लड़की कुली से बोली__
लो अपने पैसे और फौरन उतरो,दूसरी सीटी पर गाड़ी चल देंगी।।
कुली के जाते ही लड़की ने सारा सामान जमाया और अपनी सीट पर बैठ गई, फिर एक किताब निकाली और पढ़ने लगी,करीब नौ बजे वो उठी और उसने वाॅशबेसिन के पास जाकर अपने हाथ धुले और सीट पर आकर खाना खोलने लगी।।
उसने दो पत्तलों पर खाना लगाया,आलू की सब्जी, पूरियां और आम का आचार फिर प्रभाकर को आवाज दी__
अजी.. सुनिए, श्रीमान! खाना खा लीजिए।।
प्रभाकर ने नहीं सुना,वो ऐसे ही अपनी आंखें मूंदे लेटा रहा।।
अजी.. सुनिए जनाब! मैं आपसे ही कह रही हूं,वो लड़की फिर बोली।।
इस बार प्रभाकर ने आंखें खोलीं और पूछा___
जी..देवी जी! क्या आप मुझसे कुछ कह रहीं हैं?
अब इस फर्स्ट क्लास के डिब्बे में मेरे और आपके सिवाय,सर्कस के जानवर तो है नहीं जो मैं उन्हें बुलाऊंगी,वो लड़की बोली।।
जी कहिए,क्या बात है? प्रभाकर ने पूछा।।
जी, मैंने कहा कि खाना खा लीजिए,वो लड़की बोली।।
जी,आप खाइए, मुझे भूख नहीं, प्रभाकर बोला।।
हां... हां.. मुझे सब पता है, आपको भूख नहीं है इसलिए तो कुछ देर पहले कचौरियां और समोसे खरीदे जा रहे थे,वो लड़की बोली।।
देखिए मैंने कहा ना! जिद मत कीजिए, मुझे भूख नहीं,प्रभाकर बोला।।
ऐसे कैसे भूख नहीं है जी! चलिए थोड़ा सा का लीजिए, मुझे अकेले खाना खाने की आदत नहीं हैं,वो लड़की बोली।।
ये क्या बात हुई देवी जी! अगर मैं ना मिलता आपको तो फिर किसके साथ खातीं आप, प्रभाकर बोला।।
शायद इसलिए आप मुझे मिलें कि मैं आपके साथ खाना खा सकूं,वो लड़की बोली।।
देवी जी! आप नाहक ही परेशान हो रहीं हैं और मुझे भी परेशान कर रहीं हैं, प्रभाकर बोला।।
और ये क्या आपने देवी जी....देवी जी लगा रखा है,मेरा नाम सारंगी है,वो लड़की बोली।।
इसलिए आप इतनी देर से बिना सुर-ताल के बाजे जा रहीं हैं...बाजे जा रहीं हैं, प्रभाकर खींज कर बोला।।
हां..श्रीमान! मुझे थोड़ा ज्यादा बातें करने की आदत है, इसलिए शायद आपको परेशानी हो रही हैं, सारंगी बोली।।
लेकिन मैं कम ही बात करता हूं, इसलिए कृपा करके आप अपना खाना खाएं,मेरा दिमाग़ ना खाएं,प्रभाकर बोला।‌
अच्छा! ठीक है, आप खाना खा लीजिए मैं आपसे कोई भी बात नहीं करूंगी, सारंगी बोली।।
प्रभाकर उठा,उसने जाकर वाॅशबेसिन में हाथ धुले और सारंगी के पास रखा पत्तल उठाकर खाना खाने लगा।।
सारंगी ने पूछा,और कुछ लेंगे।।
प्रभाकर बोला नहीं , खाना खाकर हाथ धोएं, सुराही से पानी निकाल कर पिया और आंखें बंद करके लेट गया, जिससे सारंगी उससे बात ना कर पाएं।।
आप कहां तक जा से हैं, सारंगी फिर बोली।।
चंपानगर तक, प्रभाकर ने सीमित सा जवाब दिया।।
अरे, मैं भी तो वहीं जा रही हूं वहां के जमींदार रामस्वरूप के यहां,वो मेरे फूफा जी हैं, सारंगी बोली।।
सारंगी कुछ देर तक यूं ही बोलती रही,जब देखा कि प्रभाकर जवाब नहीं दे रहा है तो वो भी किताब लेकर पढ़ने लगी।।
कुछ देर में उसे भी नींद आ गई।।
सुबह हो चुकी थी और गाड़ी बस पहुंचने वाली थी, सारंगी जागी उसने मुंह धोया और सामान समेटने लगी।।
तब तक प्रभाकर भी जाग चुका था, उसने भी अपना मुंह धोया और सामान समेटने में लग गया,
स्टेशन आ चुका था, गाड़ी रूकी और दोनों ही अपना अपना सामान गाड़ी से नीचे उतारने लगे, सारंगी को लेने तो तांगे के साथ एक नौकर आ चुका था लेकिन प्रभाकर को लेने कोई नहीं आया था क्योंकि प्रभाकर घर में बोलकर नहीं आया था कि कब लौटेगा।।
सारंगी ने देखा तो पूछा__
आपको लेने कोई नहीं आया?
जी,आप फ़िक्र ना करें, मैं चला जाऊंगा, प्रभाकर बोला।।
जी! ऐसे कैसे, मेरे रहते हुए,आप ऐसे कैसे जाएंगे, सारंगी बोली।।
मैंने आपसे मदद मांगी, नहीं मांगी ना, फिर भी आप मेरे पीछे पड़ रहीं हैं देवी जी,भला क्यो? प्रभाकर ने पूछा ‌।।
मानवता के नाते, नहीं तो मुझे भी किसी राह चलते से बात करने का कोई शौक नहीं है और फिर जब गांव एक है,एक ही जगह जाना है तो साथ चलने में क्या बुराई है, सारंगी बोली।।
और नौकर से प्रभाकर का सामान भी तांगे में रखने को कहा__
और दोनों चल पड़े तांगे में बैठकर गांव की ओर।।
सारंगी फिर बोल पड़ी___
आपने अभी तक अपना नाम नहीं बताया।।
जी, आपको क्या लेना देना मेरे नाम से, प्रभाकर बोला।।
नहीं बताना चाहते हैं तो मत बताइए लेकिन इतना चिढ़ क्यों रहे हैं, सारंगी बोली।।
जबसे आप मिली है ना तो बातें कर ..कर के मेरा दिमाग़ खा गईं हैं इसलिए, प्रभाकर बोला।।
ठीक है जाइए कुछ नहीं पूछती, सारंगी बोली।।
और तब तक सारंगी के फूफा जी की हवेली आ गई,वो नौकर से बोली,मेरा सामान उतार दो और इन्हें इनके घर तक छोड़ आओ, नौकर ने यही किया।।
तभी सारंगी के फूफा जी ने बाहर आकर पूछा__
आ गई बिटिया! वो कौन था।।
था कोई फूफा जी,गाड़ी में मिल गया था, लगता है किसी बात से बहुत दुखी हैं, सारंगी बोली।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा__