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स्‍वतंत्र सक्‍सेना की कविताएं - 2

स्‍वतंत्र सक्‍सेना की कविताएं

काव्‍य संग्रह

सरल नहीं था यह काम

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

सवित्री सेवा आश्रम तहसील रोड़

डबरा (जिला-ग्‍वालियर) मध्‍यप्रदेश

9617392373

सम्‍पादकीय

स्वतंत्र कुमार की कविताओं को पढ़ते हुये

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’

कविता स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कवि के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कवि अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है |

स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है| वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कविताओं के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को सामने लाने में स्वतंत्र सन्नद्ध होते हैं|

अपने कवि की सीमाओं की खुद ही पहचान करते हुए स्वतंत्र कुमार लेखनकार्य में निरंतर लगे रहें, हमारी यही कामना है| सम्‍पादक

5 अपनो देश पियारों

एक सदी आगे ले जाने अपनो देश पियारों

काल रे‍डुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

पुनुआ खों कुर्ता बन जैड़े

मंटोला खों फरिया

मोय पैर बे साफा नईया

घरवारी खों घंघरिया

घरै तेल मट्टी कौ नइंया

ऊ पै जो अंधियारौ

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

नहर तबई सूखी रह जातई

जब पानी की बिरयां

बिजली दो घंटा भर आवै

सूखी रह जाएं किरियां

महंगाई की मार परी है

कैसे परै उबारौ

काल रेडुआ पै कै रओ नेता दिल्‍ली बारौ

ग्‍यारा पास करै मनसुख खॉं

बारा बरसें हो गई

गई हिरानी मिली न सरसुत

जाने कॉं पै बिक गयी

हम खॉं लग रओ संझा हो रई

वे कै रये भ्‍सारौ

काल रेडुआ पै कै रओं तो नेता दिल्‍ली बारौ

चोर पकरवे जो बैठे हैं बे ई बता रये रास्‍ता

हैंसा हमें देत जइओ तुम

खुलन न दें हें बस्‍ता

आँखन देखी झूठ बना दई

ऐसो चक्‍कर डारौ

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

धरती राम सिंह जू दाबैं

और दिखावें ऑंखें

दौरत दौरत कोट कचहरी

दादा छोड़ी सांसें

धन धरती को सबै बराबर

कब हू है बटवारो

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

सब ई हते गांधी के चेला

त्‍यागी और तपस्‍वी

पढ़ें लिखें औ ज्ञानी ध्‍यानी

सगरे गुनी मनस्‍वी

सोच समझ के काम करे सब

आगें देस बढ्ा बे

जाने का कैसो भओ भैया

हो गया बंटा ढारो

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

6 यूं तो हजार बार देखा

यूं तो हजार बार देखा

मुड़ मुड़ के बार बार देखा

जब भी मिली उनसे नजरें

लगता था पहली बार देखा

6 उनके मरने की खबर

उनके मरने की खबर छापी न थी अखबार में

और उनका जन्‍म दिन बदला न था त्‍यौहारों में

देवता ऐसे भी इस दुनिया में कई आए स्‍वतंत्र

जिनके जाने पर भी न जाना जिन्‍हें संसार ने

7 भुंसारौ हूं है जरूर

हाथन खों सूझे न हाथ

अंधरिया है रात

कछू कही नहीं जात

धना पक्‍की है बात

कै भुन्‍सारौ हू है जरूर

ऑंखन न सूझे तौ हाथन थथोलो

धरती पै पॉंव तुम धरौ पोलो पोलो

लठिया पकर लो हाथ

ज पक्‍की है बात

भुंसारौ हूं है जरूर

मन में तुम गाओ

चाए जोर ई चिल्‍लाओं

हिल मिल कै काटने है रात

जा पक्‍की है बात

कै भुंसारो हू है जरूर

चोरन की बातन पै कान न धरियो

ऑंखन से निदियॉं की बातें न करियो

धरलो-धरलो पqटरिया पै हाथ

ज पक्‍की है बात

भुंसारी हू है जरूर

बोलें लड़ैया तो नेक उ न डरियों

कुत्‍तन के डर सें न रस्‍ता से हटियों

गेंवड़े जे जादां चिल्‍लात

जा पक्‍की है बात

भुंसारो हू है जरूर

8 नया सूरज

आओ मिलकर हम नया सूरज उगाएं दोस्‍तों

छोड़ दे मिल राग नव नव गीत गांए दोस्‍तों

इन अंधेरों से घिरी हुई तंग दीवारों के पार

हम उजालों की नई खिड़की बनाएं दोस्‍तों

दैन्‍य अत्‍याचार दुख किस्‍मत के लिखे लेख हैं।

आओ मिल आगे बढ़े इनको मिटाएं दोस्‍तों

आज मिल कर तोड़ दें अज्ञान भय की मूर्तियॉं

आस्‍था की एक नई बस्‍ती बसायें दोस्‍तो

सिर्फ तेरे या मेरे से ही नहीं बदलेगा कुछ

आओ हम हर हाथ में दीपक थमाएं दोस्‍तो

कौन कहता है हिमालय पार हो सकते नहीं

आओ मिल साहस करें कुछ डग बढ़ायें दोस्‍तों

9 खेली दिवाली

न पत्‍ते न पॉंसे न कौड़ी न गोली

, महज नम्‍बरों से ही खेली दिवाली

बचा सारा वेतन लगा दॉव पर था

रहे लेते हम रात सपने ख्‍याली

वो गाड़ी वेा बंगला वो रंगीन टी.वी.

न मानी वे रूठी हुई मौके वाली

़ न गुजिया न पापड़ न मठरी न मीठा

बासी कढ़ी से ही रोटी चबाली

न व्हिस्‍की न रम न ठहाके न यारां

चिढ़ाती रहीं चाय की फीकी प्‍याली

न कपड़े नये न खिलौने पटाखे

रही घूरती कुछ निगाहें सवाली

जगमग हवेली व चमचम दुकानें

थे हम भीड़ में पर रहीं जेब खाली

़ न वेतन बंटा पर था बोनस का वादा

खुशी में खुमारी में खेली दिवाली।

10 मेरे बॉस का कोई सानी नहीं है

दफ्तर में मेरे बॉस का कोई सानी नहीं है

काटै जिसे भी मॉंगता वह पानी नहीं है।

फाइलों के अम्‍बार मुलाजिम की शिकायत

जनता है परेशां उन्‍हें हैरानी नहीं है

कब चुस्‍त हों कब सुस्‍त हों कब नम्र कब कड़क

हर बात है बेमतलब सी बेमानी नहीं है

कैसा भी कठिन काम हो हो जाता है आसान

रिश्‍वत हो अगर रेट में बेर्इमानी नहीं है

पचपन में भी मौंजूद है बचपन की अदाएं

खूबी है उनकी ये कोई नादानी नहीं है।

आना हो जब आएं जब मर्जी हो चले जाएं

जन तंत्र है पूरा कोई निगरानी नहीं है।

सबसे अहम है ड्यूटी बस साहब को खुश रखें

सहमत सभी हैं कोई खींचातानी नहीं है।

दफतर में उतर आया है इक राम राज सा

सब ही है मस्‍त कोई परेशानी नहीं है।

दफतर में उतर आया है इक रामराज सा

सब ही है मस्‍त कोई परेशानी नहीं है।

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