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उपन्यास वाली लड़की (भाग 1)

"सर् यह जमा कर लीजिए।,आवाज सुनकर मैने किताब से नज़रे उठाकर देखा था।मेरे सामने आकर्षक व्यक्तित्व का युवक सूटकेस लेकर खड़ा था।
"लॉक है?"मैं किताब मेज पर रखते हुए बोला
"लॉक है।"वह बोला,"वेसे इसमें सिर्फ कपड़े है।"
"इसके अंदर क्या है।यह हम नही देखते।रेलवे के नियम के अनुसार क्लॉकरूम में ताला लगा सामान ही जमा होता है।"मैं रसीद की किताब खोलते हुए बोला,"आपका नाम?"
निशांत उसने अपना नाम,पता और फोन नंबर बताया था।
मैने रसीद बुक से दो प्रतिया फाड़ी।एक प्रति निशान्त को और दूसरी जयराम को पकड़ाई थी।जयराम ने प्रति को सूटकेस पर चिपकाकर उसे अंदर रख दिया था।रसीद जेब मे रखते हुए निशान्त बोला,"कुमायूँ एक्सप्रेस कितने बजे जाती है"?
"दस बजे".
"अभी पूरे छः घण्टे बाकी है।"घड़ी में टाइम देखता हुआ वह क्लोक रूम से बाहर निकल गया।
निशान्त के जाने के बाद मैने मेज पर रखी किताब फिर उठा ली।यह एक उपन्यास था।इसे कोई यात्री पढ़ने के बाद छोड़ गया था।इस उपन्यास के आगे के दो पेज फ़टे हुए थे।जिसकी वजह से यह पता नही चलता था कि इसका लेखक कौन है?लेखक चाहे जो हो।उपन्यास रोमांस रोमांच से परिपूर्ण और दिलकश था।इस उपन्यास को मैं पहले भी पढ़ चुका था।इस उपन्यास में एक लड़की की कहानी थी।
उस लड़की की माँ सौतेली थी।वह लड़की को बहुत परेशान करती थी।माँ के कहने पर पिता भी उसे मारता पीटता था।घर से उपेक्षित और सौतली माँ के अत्याचार से पीड़ित लडक़ी जवान होने पर एक लड़के से प्यार करने लगी।और एक दिन घर से गहने और नगदी चोरी करके उस लड़के के साथ भाग गई।लड़का उसे लेकर मुम्बई पहुंचा।मन्दिर में शादी रचकर उसके साथ खूब मौज मस्ती करता रहा।लड़की जो पैसे और गहने चुराकर लायी थी।वो सब मौज मस्ती में खत्म हो गए तब लड़की को अकेली होटल में छोड़कर भाग गया।
लडमी पहली बार घर से बाहर निकली थी।लड़का उसे छोड़कर भाग गया,तो वह घबरा गई।होटल में ठहरे एक आदमी के सम्पर्क में आई।उसे अपनी व्यथा सुनाई।वह आदमी उस लड़की को अपने साथ ले गया।
वह आदमी उसे अपने साथ रखकर उसके जवान जिस्म से खेलता रहा।जब उस लड़की से उस आदमी का मन भर गया।तब उसने उसे दूसरे आदमी को बेच दिया.एक दिन वह लड़की उस आदमी को चकमा देकर वापस मुम्बई आ गई।वह नौकरी की तलाश करने लगी।हर कोई उसे काम पर रखने से पहले उसके जिस्म को भोग लेना चाहता था।लड़की सोचने पर मजबूर हो गई।काफी सोचने के बाद वह कॉल गर्ल बन गई।
उपन्यास पढ़कर मैं आराम से बैठ गया।शाम को तेज हवाएं बादलो को उड़ाकर ले आयी।आसमान स्याह काले बादलों से भर गया।बिजली चमकने के साथ बादल गरजने लगेऔर कुछ देर बाद बरसात शुरू हो गई।बरसात से बचने के लिए लोग मुसाफिरखाने में चले आये।स्टूल पर बैठा जयराम बीड़ी फूंक रहा था।
"चाय ले आओ।"मेरे कहते ही जयराम चाय लेने के लिए चला गया।पिछले कुछ दिनों से चल रहे जाट आंदोलन का असर ट्रेनों पर पड़ा था।अनेक ट्रेने या तो रदद् थी या बदले मार्ग से जा रही थी।यात्रियों की संख्या में भारी गिरावट आई थी।उसी का असर था कि गिने चुने यात्री ही सामान जमा करने के लिए आ रहे थे।
बरसात कभी धीरे कभी तेज हो रही थी।अचानक एक युवती भीगती हुई क्लोक रूम में आयी

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