आजादी - 31 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आजादी - 31



दूसरे गुंडे ने फोन पर किसी से बात किया और कुछ हूँ हाँ करने के बाद फोन जेब के हवाले करते हुए उसने पहले वाले गुंडे से कहा ” यार मुनीर ! तू भी न फ़ोकट का घबरा जाता है । अरे भाई लोग सब इंतजाम रखते हैं । इतना बड़ा धंदा ऐसे ही चलाते हैं क्या ? देख ! इन चूजों को ही पूछ ” अभी जो लोग एक साथ दूसरी जगह से आये हैं उनको अलग खड़ा होने को बोल और जो लोग पहले से ही इधर थे उनको अलग खड़ा होने को बोल । हो गया ! सिंपल ! आपुन को वो जो दस लड़का लोग अलग खड़ा मिलेगा उनको ही राम नगर ले के जाने का है । दूसरा बच्चा लोग तो इधरिच रहने वाला है । समझा ? ”
” हाँ ! कमाल भाई ! तुमने तो बहुत होशियारी का काम किया नहीं तो मैं समझ रहा था कि अगर भाई लोग आपुन को बच्चा लोग का नाम दे दिया तो हम लोग उनको नाम से कैसे पहचानेंगे ? लेकिन अब तो कोई टेंसन ही नहीं है न ? बस ! सबको अलग अलग करो और अपना बच्चा लोग को चुन लो । सिंपल ! ” मुनीर ने कमाल की बात का समर्थन किया था ।
तभी कमाल ने कुछ जल्दबाजी दिखाते हुए मुनीर से कहा ” चल ! अब आपुन लोग के पास ज्यादा वक्त नहीं है । अँधेरा होने से पहले ही आपुन को राम नगर में भाई के दूसरे अड्डे पर इन चूजा लोग को पहुँचाना है । भाई को खबर है कि आज शाम सात बजे से राम नगर के नाके पर पुलिस बंदोबस्त लगने वाला है । अपने को शाम सात बजे से पहले किसी भी हालत में पुलिस बंदोबस्त शुरू होने से पहले ही रामनगर शहर के अन्दर घुसना है । चल शुरू हो जा फटाफट ! ”
” ठीक है यार ! टेंसन क्यों लेता है ? अभी तो चार भी नहीं बजे हैं । और रामनगर यहाँ से सिर्फ दो घंटे की ही दूरी पर है । “, कहते हुए मुनीर ने नल के पास ऊपर बने खाने में रखी वही दवाई की शीशी अपने हाथों में ले ली और उसके ढक्कन पर हाथ रखकर उसे ऊपर नीचे जोर जोर से हिलाने लगा । राहुल की नजर बड़ी बारीकी से उनकी हर हरकत पर गौर कर रही थी और उसके कान बड़ी मुस्तैदी से उनकी बातें ध्यान से सुनकर उसके अनुरूप सन्देश दिमाग को पहुंचा कर उसे कुछ सोचने पर विवश कर रहे थे जब कि उन गुंडों की नजर में वह लापरवाही से लेटा भूख से तड़पता हुआ दिख रहा था ।
बड़ी देर तक हाथ में पकड़ी शीशी को हिलाने के बाद उस शीशी में से दो चम्मच दवाई की मात्रा वहीँ नीचे जमीन पर पड़े टूटे हुए एक प्लास्टिक के मग में डाल दिया । अब उस मग को उसने नल से पानी नीकाल कर ऊपर तक पानी से भर दिया ।
अब कमाल ने अपनी कर्कश आवाज में बच्चों को धमकाया ” दूसरे शहर से आनेवाले दस बच्चे एक लाइन में खड़े हो जाओ । ध्यान रहे जो लोग यहाँ पहले से ही था वो लोग इसमें नहीं खड़ा होगा । वो लोग अलग जाकर खड़ा रहो । चलो ! फटाफट ! ”
” चलो ! कोई होशियारी नहीं करना । फटाफट ! ” मुनीर भी बच्चों को चेतावनी देना नहीं भूला था ।
उन दोनों के निर्देश का पालन किया गया । राहुल मनोज टीपू बंटी सहित दूसरे दस बच्चे जो असलम भाई के यहाँ से यहाँ पहुंचे थे एक तरफ उठकर खड़े हो गए जबकि रोहित और उसके साथी दूसरी तरफ खड़े हो गए ।
मुनीर के हाथों में वही दवाई मिली हुई पानी से भरा एक मग था । कमाल ने एक हाथ में गिलास थाम रखी थी । मुनीर उस मग में से एक घूंट पानी उस गिलास में उंडेलता और राहुल के साथ खड़े बच्चों को पिलाता । किसी के इंकार करने की कोई वजह भी नहीं थी । कुछ ही समय में कलाम और मुनीर ने बच्चों को बेहोशी की दवा देने का अपना पहला काम पूरा कर लिया था ।

पूर्व निर्धारित योजना के मुताबिक राहुल के सभी साथियों ने बेहतरीन अदाकारी का परिचय देते हुए कुछ ही समय में बेहोश होने का नाटक करना शुरू कर दिया था । सभी बच्चे दवाई पीने के क्रम के अनुसार अपना सर थाम कर नीचे बैठते गए और फिर जमीन पर पसर कर निश्चेष्ट हो गए ।
एक एक कर सभी बच्चों को बेहोश होता देख दोनों गुंडे निश्चिन्त हो गए । कमाल बोल पड़ा ” असलम भाई ने तो यह बड़े कमाल की दवाई बताई है । ये चूजा लोग तो फटाफट लुढ़क गया । अब अपुन लोग का काम आसान हो गया । अब चलो ! ये माल गाड़ी में डालो और डिलीवरी कर दो ।”
मुनीर ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा ” हां ! हाँ ! चलो ! जल्दी करो ! ये दवा का असर भी दो घंटा ही रहता है । ऐसा भाई ने बोला है । इसका मतलब हम लोग को दो घंटा ही मिलेला है इन लोग को पहुंचाने के वास्ते । कहीं टाइम पास करने जैसा नहीं है । चलो ! ”
रोहित बड़ी ख़ामोशी से सब कुछ देख सुन और समझ रहा था । अन्दर से वह बड़ा डरा हुआ था लेकिन मन ही मन राहुल की कामयाबी के लिए इश्वर से प्रार्थना किये जा रहा था । अब वह काफी हद तक राहुल से प्रभावित नजर आ रहा था लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया था । राहुल से प्रभावित होने की ठोस वजह भी थी । राहुल ने जो योजना बनायीं थी ठीक उसके अनुमान के मुताबिक ही अभी तक सब घटित हुआ था । उसकी योजना के मुताबिक ही उसके साथियों ने भी बेहोश होने का कितना शानदार अभिनय किया था । ऐसा अभिनय कि उन दोनों गुंडों में से कोई भी उन बच्चों की नकली बेहोशी को नहीं परख पाए और उन्हें खींचते हुए या उठाकर टेम्पो में डाल दिया था । टेम्पो के पिछले हिस्से में बच्चों को डालने के बाद गुंडों ने कुछ खाली गत्ते के खोकों को पीछे की तरफ रख दिया और रस्सी से फंसा दिया ताकि बच्चे छिप भी जाएँ और खोके चलती हुयी गाड़ी से बाहर न गीर पायें ।
टेम्पो के पिछले हिस्से में अच्छी तरह से रस्सी बाँध कर दोनों गुंडों ने एक बार घूम कर चारों तरफ से टेम्पो का निरिक्षण किया और आगे टेम्पो में जाके बैठ गए । उस अलमारी नुमा दरवाजे से बाहर निकलने से पहले मुनीर ने दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लिया था । कमरे से बाहर आकर मुख्य दरवाजा बंद करके दोनों पुनः टेम्पो में बैठ गए । कमाल ने इंजन स्टार्ट कर टेम्पो आगे बढ़ा दिया । टेढ़े मेढ़े कच्चे रास्तों से गुजर कर टेम्पो थोड़ी ही देर में शहर की मुख्य सड़क पर फर्राटे भरते हुए राम नगर की तरफ बढ़ने लगी ।

क्रमशः