पश्चाताप के आंसू Gyaneshwar Anand Gyanesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पश्चाताप के आंसू

कहानी "पश्चाताप के आँसू"

आज हमारा समाज अनेक बुराइयों और कुरीतियों से ग्रस्त है। जिसमें सबसे बड़ी और भयंकर बुराई है "दहेज प्रथा" आज इसी बुराई के कारण हमारे समाज में अनेक लड़कियों की उपेक्षा की जाती है और लड़कों को लड़कियों से अधिक महत्व दिया जाता है ऐसा क्यों होता है। इसके भी अनेक सामाजिक कारण है जैसे पुत्र प्राप्ति से हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है वंश चलाने वाला व बुढ़ापे का सहारा भी माना जाता है और मुसलमानों में भी लड़के को ही अधिक महत्व दिया जाता है। परन्तु अब शिक्षित समाज लड़कियों को बहुत महत्व दे रहा है परन्तु अभी भी लड़कियों को सभी धर्म में पराया धन समझकर उनकी उपेक्षा की जाती है। क्योंकि शादी में लड़की के साथ-साथ बहुत सारा सामान दान-दहेज के रूप में देना पड़ता है। जो आज कमरतोड़ महंगाई के दौर में लोगों को कुछ नागँवार सा लगता है। इसी समस्या को दृष्टिगत रखते हुए मैंने यह कहानी लिखने का प्रयास किया है और समाज को एक संदेश देने का भी प्रयास किया है-
मेरी इस कहानी का शीर्षक है "पश्चाताप के आंसू"

आनंदपुर में लता और उसका परिवार रहता था उसका भाई विनोद उस समय करीब 18 या 20 वर्ष कर रहा होगा जब उसकी बहन लता का विवाह हुआ था। जी भरके खर्च किया था माता-पिता ने, अपनी इकलौती पुत्री की शादी में।
रमेश (लता का पति) किसी फर्म में अकाउंटेंट के पद पर कार्य करता था। वह आधुनिक सुख सुविधा और विलासिता का जीवन व्यतीत करना चाहता था और दोस्तों में बैठकर वह शराब का सेवन भी करने लगा। उसकी यह प्रवृत्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई तो उसकी फर्म के मालिक ने उसकी इस गलत प्रवृत्ति को बढ़ती देख कर तथा समय पर कार्य पूरा न करने पर उसे चेतावनी दी कि आज से अपना कार्य सही और समय पर किया करो वर्ना..... वर्ना...... अपने घर का रास्ता देखोगे।

इतने पर भी जब उसकी दुष्प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं हुआ तो एक दिन उसको नौकरी से निकाल दिया गया तो इससे उसकी आय का स्रोत समाप्त होने के कारण वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो गया। अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए उसे एक उपाय सूझा कि वह अपनी पत्नी को दबाव देकर तथा प्रताड़ित करके उसकी मायके से धन की मांग करें।
तो वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए तरह-तरह की फरमाइश करने लगा।
(जो व्यक्ति किसी ऐब को करने लगता है तो दिन प्रतिदिन उसकी तरफ उसका रुझान बढ़ता ही जाता है। दुनिया की कोई भी वस्तु अच्छी नहीं लगती है। बस उसे तो वही अपनी धुन लगी रहती है। जैसे कोई मुहोब्बत में दीवाना हो जाता है और उसे अपनी प्रेमिका के अलावा और कुछ अच्छा नहीं लगता उसी तरह वह नशे में इतना रम जाता है कि उसे कुछ और सूझता ही नहीं। इस प्रकार वह समाज और दुनियादारी की सभी मर्यादाओं को त्याग कर अपनी जिंदगी को शराबी जिंदगी में बदल लेता है।)
तो रमेश ने भी ऐसा ही किया शादी के दो चार वर्ष तो बहुत खुशी से बीते परन्तु फिर रमेश ने अपनी पत्नी को छोटी-छोटी बातों पर तंग करना शुरू कर दिया और मारने-पीटने भी लगा तथा अपनी पत्नी लता से तरह-तरह की फरमाइश भी करने लगा तो कुछ समय तक तो लता चुपचाप रही जब उसे ज्यादा परेशान किया जाने लगा तो उसने अपने भाई विनोद को सारी बात बताई तो विनोद परेशान हो गया और उस दिन उसे नींद नहीं आई।
विनोद (लता का भाई) अपनी बहन (लता) की खातिर उनकी छोटी मोटी फरमाइश पूरी कर दिया करता था।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा फिर लता ने चंद्रमा के समान सुन्दर एक पुत्री को जन्म दिया। इससे उसकी ससुराल को जैसे सांप ही सूंघ गया हो। कोई किसी से बात तक नहीं कर रहा था बच्ची के जन्म पर खुशियों के बदले दु:खों के बादल मंडराने लगे। इस अभागिन बच्ची ने क्या बिगाड़ा था इस परिवार का? जिसकी वह नई सदस्य बनकर आयी थी। उसे क्या पता था कि उसके जन्म पर खुशियों के बदले उसके परिवार पर दु:खों का पहाड़ ही टूट पड़ेगा। वाह रे किस्मत की किताब लिखने वाले तेरी दुनिया में पता नहीं आगे और न जाने क्या-क्या होगा।
लता तो अपनी बच्ची को बहुत चाहती थी परंतु उसके ससुराल वाले उससे रुष्ट रहने लगे और लता की सास मालती देवी ने तो उसका जीना ही दूभर कर दिया। वह छोटी-छोटी बातों पर भी उसे हजार बातें कहकर दम लेती जैसे तू कहां से हमारे सिर मढ़ गई थी निखट्टी कहीं की तूने अपनी पहली औलाद को ही लड़की को जन्म दिया अगर लड़का होता तो हमारे खानदान का नाम रोशन करता। इसी तरह की बातें उसे यदा-कदा अथवा रोजाना कहीं जाने लगी इससे लता कुमलाने लगी। तो पुष्प यानी नन्ही बच्ची अलका भी मुरझाने लगी। क्योंकि उसे अपनी मां का दूध भरपेट नहीं मिल रहा था। जबकि लता ठीक से खा पी भी नहीं रही थी तो उसे दूध कहां से उतरता।
कोई भी व्यक्ति जब उसे किसी प्रकार की चिंता हर समय सताए रहती हो तो उसे कैसे नींद आए कैसे भूख प्यास लगे। यह शाश्वत है कि हर समय की चिंता तो चिता से भी भयंकर होती है चिता तो केवल मरे हुए व्यक्ति को ही खा जाती है परन्तु चिन्ता तो जीते जी आदमी को जला डालती है।
रमेश लता का पति अपनी मां के दबाव में आकर एक पत्र लता के भाई विनोद के पास लिखकर आनंदपुर भेजा जिसमें लिखा था कि विनोद तुम जल्दी से एक मोटर साईकिल और कलर टीवी का इंतजाम कर लेना वरना अपनी बहन को यहां से आकर ले जाना समझे! मेरी बात को अच्छी तरह याद कर लो मोटरसाईकिल और कलर टीवी या अपनी बहन को यहां से आकर ले जाना दोनों बातों में से जो आपको उचित लगे उसी पर अपना फैसला करना और क्या लिखूं ? तुम तो खुद ही समझदार हो बाकी बातें बाद में होंगी।
पत्र पढ़कर विनोद के रोंगटे खड़े हो गए परंतु वह कर भी क्या सकता था? उसके पास आय का कोई अच्छा साधन नहीं था। बस 15-16 बीघा थोड़ी सी ज़मीन के खूड़ ही थे।
लता के भाई विनोद ने अपनी मजबूरी का सारा हाल एक पत्र में लिखकर अपने जीजा श्री रमेश के पास भेजा कि
जीजा जी, सादर प्रणाम! आपका पत्र मिला जिसमें आपने मोटरसाइकिल और कलर टीवी के लिए लिखा था, जीजा जी आज मेरी हालत बहुत ख़राब है। खेती में भी धान की फसल बाढ़ के पानी से बर्बाद हो गई थी। सारी लागत बेकार हो गई। अब तो मैं मजबूर हूँ आपकी माँग पूरी करने की क्षमता मुझमें नहीं रही। हाँ गन्ने की फसल पर आपकी माँग पूरी करने की कोशिश करूंगा। आप मेरी बहन को परेशान मत करना, मेरी मजबूरी को समझने की कोशिश करने का कष्ट करें। आप तो समझदार हो। आपका अपना प्रिय विनोद कुमार।
रमेश को विनोद का पत्र जब मिला तो उसका हाल मालूम हुआ पत्र पढ़ने के बाद तो बह आग बबूला हो गया।
पत्र आने के बाद से तो लता को बहुत ही परेशान किया जाने लगा यहां तक कि उसे एक दिन किसी बात पर घर से निकाल दिया गया।
इतना सुनते ही लता के अंदर का धधकता ज्वालामुखी सा आक्रोश दिल में फूट पड़ा। लता फूट-फूट कर रोने लगी और बहुत चुप करने पर भी उसकी मां भी उसके आंसू रोक सकने में समर्थ न हुई।
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं देखो इस बेदर्द जमाने में।
जिनके आंसू भी कम होते हैं दिल की आग बुझाने में।
ससुराल के बाद यदि लड़की का कोई ठिकाना है तो वह उसकी मायके में ही होता है। अपनी पुत्री को साथ लेकर वह अपने भाई विनोद के पास चली आई।
परंतु लता ने अपने स्वाभिमान को डिगने नहीं दिया। लता ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे जवाहरलाल नेहरू रोजगार गारंटी योजना से ऋण लेकर सिलाई मशीनें खरीदीं और ग्रामीण व अपने शहर आनंदपुर की औरतों के कपड़े सिलने तथा लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण देने का कार्य प्रारंभ कर दिया। उसने आनंदपुर में ही अपना रहने का ठिकाना बना लिया और उसकी जिंदगी के पल भी अब आसानी से गुजरने लगे उसकी लड़की अलका भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी कुछ समय पश्चात वह पढ़ने भी जाने लगी वह पढ़ने में शुरू से ही बहुत तेज थी फिर भी थोड़ा- बहुत मदद उसकी मां लता भी कर दिया करती थी।
अलका ने विज्ञान वर्ग से हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की उसके पश्चात बायोलॉजी केमिस्ट्री फिजिक्स के साथ इण्टरमीडिएट की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में बहुत अच्छे अंकों में पास करके उसने सीपीएमटी की परीक्षा में अच्छी रैंक से पास की। जिसके फलस्वरूप उसे एक सरकारी मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में प्रवेश मिल गया।
तो विनोद ने कृषि कार्ड पर कर्ज ले लिया और अपने मामा विनोद की बदौलत अलका को एजुकेशन लोन भी आसानी से मिल गया।
जब अलका एमबीबीएस कर रही थी तो उसकी मुलाकात अनुराग नामक सहपाठी के साथ हो जाती है और उसे जब अलका की दर्द भरी जिंदगी की कहानी का पता चलता है तो वह बहुत प्रभावित होता है अलका से सच्ची दोस्ती करने का वचन देता है घर का खुशहाल होने के कारण वह कदम कदम पर अलका के सामने आने वाली हर परेशानियों में उसकी आर्थिक सहायता भी करना चाहता है लेकिन अलका उससे यह कह देती है कि मुझमें अभी आत्मविश्वास है इसलिए मुझे किसी की आर्थिक सहायता की आवश्यकता नहीं है।
अनुराग कहता है कि- मैडम! आप तो यूं ही छोटी सी बात पर बुरा मान गई मेरा आशय आपके जज्बात (भावना) को ठेस पहुंचाने का बिल्कुल नहीं था मैं इस गलती के लिए आपसे क्षमा चाहता हूं और यह वचन देता हूं कि कभी भविष्य में आपके जज़्बात (भावना) को ठेस नहीं पहुंचाऊगा।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा और अलका ने जब अनुराग को अपने मन रूपी कसौटी पर खरा उतरते देखा तो है उससे मित्रता करने पर सहमत हो गई और अनुराग भी। तो धीरे-धीरे उनमें यह मित्रता प्यार का परवान बनकर सामने आएगी। लेकिन सच्चा प्यार करने वालों की ईश्वर भी सहायता करते हैं और दोनों ने ही एमबीबीएस की डिग्री अच्छे अंको से उत्तीर्ण की। फिर कुछ दिनों तक चंडीगढ़ के पीजीआई हॉस्पिटल में अनुभव प्राप्त करने के उपरांत अलका ने निजी प्रैक्टिस करनी प्रारंभ कर दी और देखते ही देखते आनंदपुर और आसपास की एक प्रसिद्ध डॉक्टर बन गई। लोगों की जुबान पर जब भी कभी डॉक्टर का नाम आता था तो डॉक्टर अलका का ही नाम आता था।
महात्मा कबीर दास जी ने ठीक ही कहा है कि
दुर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय।
मुई खाल की स्वांस सो सार भस्म हो जाए।।

एक बार लता की सास मालती का एक्सीडेंट हो जाता है। उसकी हालत बहुत ज्यादा गंभीर हो गई तो लोगों ने डॉक्टर अलका की शोहरत सुनकर उसे भी डॉक्टर अलका के नर्सिंग होम में लाई गई डॉ अलका ने उसकी गंभीर हालत देखते हुए तुरंत उसका उपचार करना प्रारंभ कर दिया उसने अपने कर्तव्य, निष्ठा और सहानुभूति पूर्वक मालती को मौत के दरवाजे से वापस करके एक नई जिंदगी प्रदान की।

किसी के द्वारा जब लता को उसकी सास के एक्सीडेंट का पता चला कि उसकी सास डॉ अलका के नर्सिंग होम में है। तो वह अपने सारे गिले शिकवे भुला कर उसे देखने वहाँ पहुंच जाती है लता की सास मालती को उपचार के दौरान जब खून की आवश्यकता पड़ती है तो इसी बीच लता अपना खून देने को तत्पर हो जाती है। लता ने अपनी पुत्री डा० अलका से कहा कि आप मेरा खून ले लो। मैं अपना खून देने को तैयार हूँ।
अलका ने जब अपनी मां लता से पूछा कि मम्मी जी आप खून क्यों देना चाहती हैं?
तो लता ने जवाब दिया कि यदि मेरे खून से किसी को जिंदगी मिल सकती है तो मैं अपने आप को बहुत धन्य समझूंगी किसी के प्राण बचाना तो धर्म का काम है यही सोच कर मैंने अपना खून देने का निश्चय किया है।
जब दोनों के खून का पैथोलॉजी लैब में ग्रुप का परीक्षण करने व अन्य परीक्षण करने के लिए पहुंचाया गया तो इत्तेफाक से लता के खून का ग्रुप भी वहीं निकला जो उसकी सास (मालती) के खून का था बी पोजेटिव ग्रुप।
लता ने एक बोतल खून दिया फिर वह खून उसकी सास मालती की रगों में दौड़ने लगा कुछ समय पश्चात लता की सास को होश आने लगा और जब पूरी तरह होश में आ गई तो सामने बैठी तिरस्कार की हुई अपनी बहू लता को और अपनी पुत्री सविता लता की ननद के द्वारा यह बताए जाने पर कि इसी लता भाभी ने ही आपको अपना खून दिया था ।
तो यह सुनकर उसकी आंखों के सामने अपने पहले किए हुए दुराचार उसकी स्मृति पटल पर चलचित्र की भांति नज़र आने लगे और उसका हृदय शोक और आँख गिलानी से भर उठा उसकी आंखें "पश्चाताप के आंसुओं" से छलक उठीं। और जब उसे डॉक्टर के बारे में पता चला कि वह कोई और नहीं, उसकी अपनी वही पौत्री अलका ही थी जिसके पैदा होने से उसके हृदय को आघात पहुंचा था यह सुनकर तो उसका मस्तक लज्जा से और अधिक झुक गया और तिलांजलि दी हुई बहू (लता) से अपनी की हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगने लगी।
लता- माँ जी क्षमा मुझसे नहीं बल्कि उस परम पिता परमेश्वर से मांगनी चाहिए जिसने आपके घर में इस बच्ची (अलका) को जन्म दिया था और आपका कोई कुल-दीपक पैदा नहीं किया था।
माँ जी सिर्फ बेटा ही अपने खानदान का नाम रोशन नहीं करता बल्कि बेटी भी अपने खानदान का नाम ऊंचा कर सकती है बशर्ते कि उसे भी वही आदर भाव मिले जो एक बेटे को दिया जाता है। भारत की बेटियां किसी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। शासन करने से लेकर हवाई जहाज उड़ाने तक कोई काम अछूता नहीं है।
लता की बातें सुनकर उसकी सास ननद और मां के इशारों पर नाचने वाले पति की अपनी बेटी से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं हुई। डॉ0 अलका ने अपने पिता से पूछा कि वैसे तो आपने पिता होने के बारे रास्ते बंद कर दिये हैं परन्तु ईश्वर का बनाया हुआ रिश्ता बिसराया नहीं जा सकता तो "पापा जी, आपको एक बार भी हमारी याद नहीं आई? मेरी मां ने कितने दुःख उठाकर मुझे पाला पोसा है तमाम रातों को जागकर अपनी नींदें मेरी परवरिश पर कुर्बान की हैं क्या आप मेरी मां की वो नींदें वापस लौटा सकते हो? क्या आप मुझे वो बाप का प्यार लौटा सकते हो जिससे मुझे वंचित रहना पड़ा है। मेरी क्लास की लड़कियां अक्सर मुझसे पूछा करती थी कि पैरेंट्स मीटिंग में हमने कभी आपके पापा जी को आते नहीं देखा, तो मैं उनसे यह कहकर पीछा छुड़ाने का प्रयास करती थी कि मेरे पापा आफिस के काम में बिजी रहे होंगे। जिसके कारण वे नहीं आ सके।
रमेश- " बस बेटी मेरी बहुत बड़ी गलती थी मैं गलत संगत में फँस गया था। जिसके कारण मेरा सब कुछ खो गया था यहां तक कि मेरी नौकरी तक चली गई थी। पैसे के अभाव में मैंने आपके मामा को भी परेशान किया। नशे की बुरी आदत के कारण मेरा सब कुछ बर्बाद हो गया। कहते कहते रूआंसा हो गया।
डॉ0 अलका ने कहा- "पापा जी
रमेश ने बेटी अलका को स्नेह से अपने गले से लगा लिया और उनकी आंखों में "पश्चाताप के आंसू" भर आए और तिरस्कार की हुई पत्नी लता,से आँख मिलाने का साहस नहीं हुआ। फिर किसी तरह हिम्मत जुटा कर लता से हाथ जोड़कर विनती करने लगा कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो मैंने आप जैसी सुलक्षिणी पत्नी को तिरस्कार और प्रताड़ित किया। जिसकी सज़ा मुझे ईश्वर ने पहले ही दे दी। परन्तु अब मुझे ठोकर खाकर अक्ल आई है। अब मैं सभी ग़लत संगतों से दूर हो गया हूँ। गुरु जी की शरण में जाने से अब मैंने नशा करना भी छोड़ दिया है। और सच्चाई का दामन थामने से मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है। अब मैं सभी ग़लत संगतों और दुर्व्यवहारों से विरक्त होकर साधारण जीवन व्यतीत कर रहा हूं, चाहे आप किसी से भी पूछताछ कर सकती हैं।
लता को उसकी बातों में सच्चाई नज़र आने लगी। तो लता ने रमेश को माफ़ करना न चाहते हुए भी दिल पर पत्थर रखकर सब कुछ भुलाकर अपने ऊपर किये गये अत्याचार को दर-किनार रखते हुए रमेश को दिल से माफ़ तो कर दिया। परंतु उन्होंने लता के साथ बहुत प्रताड़ना की थी जिसे भुलाना सम्भव नहीं है। बेटी अलका ने साफ मना कर दिया कि मम्मी अब हम इनके साथ नहीं रह सकते।
लता अच्छे पारिवारिक संस्कार में पली बढ़ी थी। लता के भाई विनोद ने परेशानी में बहुत जी जान से साथ दिया। अलका की पढ़ाई में बहुत बड़ी सहायता की जिसका परिणाम अलका की एमबीबीएस की डिग्री है। इसलिए लता जानती थी कि परिवार की कीमत और अहमियत क्या होती है?
एक परिवार टूटता है तो उसकी कई पीढ़ियों पर असर पड़ता है और जब कोई परिवार सुधरता है तो उसके साथ साथ उसका पूरा गांव/शहर भी सुधरने लगता है।

इसीलिए रमेश के गांव वाले भी अपनी बेटियों को पढ़ाने लगे। और अलका की मिसाल देखकर अपनी बेटियों के साथ-साथ औरों को भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का सन्देश देने लगी और सभी मिलकर खुशी से रहने लगे। जिससे पूरे गांव तथा समाज के सभी वर्गों में बेटी पैदा होने पर बेटों से भी ज्यादा खुशियां मनाने लगे।
मैंने अपनी इस कहानी में समाज में व्याप्त कुरीतियों और अन्य समस्याओं को उजागर करते हुए समाज और देश को बेटियों का अधिक मान-सम्मान दिये जाने का सार्थक प्रयास किया है ।।
आपका अपना कहानीकार/साहित्यकार
ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश"
बसी किरतपुर (बिजनौर)
राजस्व एवं कर निरीक्षक gyaneshwar533@gmail.com

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नोट- कहानी में सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं।