अबकी बार... लल्लन प्रधान - 2 Bhupendra Singh chauhan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अबकी बार... लल्लन प्रधान - 2


#पार्ट_2
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जज्बाती लल्लन
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लल्लन हार के सदमे से धीरे-धीरे उबर रहा है।वह समझ चुका है कि चुनावों में पीठ ठोकने वाले और वोट देने वाले अलग-अलग होते हैं।तकरीबन 2 लाख रुपया पानी मे चला गया, लल्लन को इसका दुख नही है। वह जानता है रुपया हाथों का मैल है, वह फिर कमा लेगा। उसको सबसे बड़ा सदमा शुकुल चाचा ने दिया।इतना विश्वास था चाचा पर कि वह एक बार भी उनके दिल से 2 फुट ऊपर स्थित उस दिमाग को पढ़ नही पाया जिसमे सारी साजिशें भरी हुई थीं।गौरी बदन को हराने की साजिश उसमे भरी थी तो पंकज शुक्ला से बदले की आग भी उसी में दहक रही थी और इन दोनों की भेंट चढ़ा हतभाग्य लल्लन।हाय!!उसका वस्तु की तरह इस्तेमाल किया गया।
चुनावों के बाद लल्लन डिप्रेशन में चला गया। एक बार में 12 से ज्यादा रोटी खाने वाला लल्लन अब बमुश्किल 3-4 रोटी हलक से नीचे उतार पाता था। पिता बबोले और पत्नी सोनम दोनो उसे समझाने का प्रयास करते लेकिन लल्लन अंदर से टूट गया था।
अगले 2 महीने तक लल्लन हार के सदमे से उबर नही पाया।न किसी से बात करता न हंसी मजाक।बस अपने काम से काम।जिस 56 इंची चौड़े सीने में हरदम आग लगी रहती थी शुकुल चाचा के विश्वासघात की वजह से बुझकर राख हो गयी थी।आदमी हार से नही टूटता, वह टूटता है अपनों द्वारा किये गए विश्वासघात से। जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा किया उसी ने दगा दे दिया!! न जाने कितने जज्बाती लल्लन इस मुई राजनीति की भेंट चढ़ गए ।

डिप्रेशन में मर्द को प्रायः दो ही चीजें करने का मन होता है।या तो वह इतनी शराब पियेगा कि खुद के दर्द को उसमे डुबो देगा या फिर पंखे से झूल जाएगा।लल्लन मर्द था,जितनी चौड़ी छाती थी उससे कई गुना चौड़ा उसका आत्मविश्वास था।वह अनपढ़ भले ही था लेकिन जानता था कि पंखे से लटकना किसी चीज का हल नही है।
नही!! वह मरेगा नही। वह लड़ेगा,मुश्किलों का सामना करेगा।शुकुल चाचा को उन्ही की भाषा मे जवाब देगा।वह एक बार फिर से उठ खड़ा होगा और दिखा देगा पूरे जगतपुरा को कि लल्लन क्या चीज है।
सारा मयखाना पिला दो यारों
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लल्लन शराब नही पीता लेकिन डिप्रेशन कम करना था सो उसने शराब की बोतल में शांति खोजनी शुरू की।एक शराब ही ऐसी चीज है जो कलेजे को जला कर कलेजे की आग को ठंडा करती है।वह आग जिसे शुकुल ने लगाई अब ये कड़वी शराब बुझा रही थी। लल्लन अपने साले बोदे यादव उर्फ मिचकुर के साथ ठेके पर बैठा था।
मिचकुर पैग बनाता गया लल्लन चुपचाप चढ़ाता गया।

"जीतत-जीतत हार गेन हम,उ ..$#$#.. वाले शुकुल की वजह ते।वो नकचिपटा साला गेम खेलिगा"काफी देर जज्ब करने के बाद, अंदर गयी शराब ने आखिर लल्लन का दर्द उभार ही दिया।मिचकुर चुप रहा।
"सबका दूध 30 मा तो ओखा 32 मा लेत रहेन, बदले मा हमैं यो सिला मिलो!!बाभन मोहल्ला का एक वोट हमैं नही मिलो जबकि 60 हजार रुपया शुकुल के कहें मा उई मोहल्ले मा बटवा दीन।अरे छाती मा आके मार देत गोली हम सहि लेतेन,पीठ पीछे गद्दारी तो न करत।"लल्लन ने कहा और लड़खड़ाते हुए तख्त पर खड़ा हो गया।वह जोर-जोर से दायीं जांघ में हाथ मारने लगा मानो वह ठेके पर नही बीच अखाड़े में खड़ा हो।
"शुकुल!!हमरी पीठ मा धरि के बंदूक चलाओ हउ,अब अंजाम देखेव"लल्लन ने ताल ठोकते हुए कहा।
बोदे का दर्द
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लल्लन के साले बोदे यादव इंटर पास हैं।पुलिस में लगते-लगते रह गए।वह मेरिट तक पहुंचे ही थे कि सरकार बदल गयी।नई सरकार ने पुरानी भर्तियों पर रोक लगा जांच बैठा दी।बोदे की नौकरी तो फंसी ही शादी भी फंस गई।नौकरी मिलने की आस में बोदे 52 km दूर बैठी मंजू यादव को 1 तोला की अंगूठी पहना आये थे।भर्ती लम्बित होने की जानकारी होने वाले ससुर को मिली तो उन्होंने रिश्ता भी तब तक के लिए लम्बित कर दिया।अंततः बोदे की शादी तो टूटी ही दिल भी टूट गया।अब बेचारे बोदे,मंजू से रात-रात भर की गई बातों को याद कर पैग मारते हैं।
बोदे चुनावों के बाद से लल्लन के घर ही रुक गया था।लल्लन और बोदे दोनों गम के मारे थे सो याराना हो गया।एक को शुकुल ने धोखा दिया तो दूसरे को सरकार ने।उस शाम दोनो ने एक-दूसरे के दर्द को बांटने,सहलाने,कम करने में 5 बोतल खत्म कर दी।अगली सुबह लल्लन को सर भारी लेकिन दिल हल्का महसूस हुआ।बहुत कुछ जो चुनाव के बाद मन मे अटका हुआ था, शराब ने बाहर निकाल दिया था।लल्लन ने तय किया कि आज वह गांव में घूमेगा,सबसे मिलकर बातें करेगा।इसी उद्देश्य से वह घर से निकल पड़ा।कनखियों से सोनम ने लल्लन को बाहर जाते देखा तो मन मे ठंडक पड़ी।आखिर 2 महीने बाद लल्लन घर से बाहर निकला था।
समझदार लल्लन
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"काहे लल्लन!दुदाही काहे बन्द करे हौ"पड़ोस के लाखन यादव ने पूछा।
"कल ते शुरू करब दाउ...अउर सब राजी-खुशी?"लल्लन ने बात बदलते हुए पूछा।वह नही चाहता था कि सुबह-सुबह ही उसके दर्द पे कोई उंगली रख दे।लेकिन जिस दर्द से हम बचना चाहते हैं वह किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाता है।
"अब का बतावन लल्लन, तुम्हरे जीतै ते उम्मीद बंधी रहै कि ऊंच मोहल्ला मा विकास हुई,यइ उम्मीद मा पूरा मोहल्ला तुम्हे वोट दीन्हिस मगर ....!!!"लाखन दाऊ ने लल्लन के घाव पर आखिर उंगली रख ही दी।
"दाऊ, अब जो कपार मा लिखो रहाय वाहे भा...अब तो 5 साल छेदू जगतपुरा के राजा हैं।"लल्लन ने कहा।
"छेदू नही, शुकुल राजा हैं।शुकुल जइस कहिएँ छेदू वैसे करी।सुनै मा तो यहौ आ रहौ कि पूरी परधानी शुकुल चला रहे।छेदू का रिमोट शुकुल के हाथ मा है।"लाखन दाऊ ने हकीकत बयां की।
लाखन दाऊ गलत नही कह रहे थे।

अब होगी राजनीति
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जगतपुरा का माहौल चुनाव के बाद कुछ महीनों तक तनावपूर्ण रहने के बाद अब धीरे-धीरे सामान्य होने लगा था।लल्लन ने भी फिर से दुदाही शुरू कर दी थी।उसने बाभन मुहल्ला जाना छोड़ दिया था, शुकुल को भी चुनाव के बाद नही देखा। वह देखना भी नही चाहता था।जीत हमें उत्साहित करती है तो हार हमें हमारी कमियों को देखने का मौका देती है।लल्लन ने इस चुनाव से बहुत कुछ सीखा।वह समझ गया कि उत्साह में पर्चा भर आना,चुनाव जीतने की गारंटी नही होती खासकर तब, जब चारो ओर शुकुल जैसे गिद्ध बैठे हों।गांवों में राजनीति जाति की राजनीति पर टिकी होती है और जाति के ठेकेदारों की नजरें एक-एक वोट पर, यहां लहर जैसी कोई चीज नही होती। अंत मे जीतता वही है जिसने मेहनत के साथ ही बेहतर ढंग से "सोशल इंजीनियरिंग" भी की हो।
वक्त अपनी रफ्तार से चलता रहा।जैसे-जैसे वक्त आगे बढ़ा पुरानी बातें,यादें पीछे छूटती गयीं जो नही छूटा वह थी लल्लन की हार की कसक।कुछ घाव ऐसे होते हैं जो गुजरते वक्त के साथ भरते जाते हैं तो कुछ घावों को गुजरते वक्त की हवा सहला कर और ताजा कर देती है।शुकुल के साथ लल्लन की अदावत बढ़ती गयी।बाहर से तो राम -जोहार हो जाती थी लेकिन भीतर चिंगारी सुलगती रही।
अब लल्लन जोश से नही होश से काम लेने लगा था।उसने गांव की राजनीति को समझना शुरू किया।वह जानता था ब्राह्मण और ठाकुर बाहुल्य जगतपुरा के पंचायत चुनावों में वोट इन्ही दो जाति के प्रत्याशियों के बीच बंट जाते हैं सो ये वोट जीत-हार का अंतर पैदा नही करते।मुसलमानों और मलिनपुरा के वोट पंचायत चुनावों में निर्णायक होते हैं जिनपर किसी का ध्यान ही नही जाता।लल्लन ने इन्हें ही साधने की कोशिश करनी शुरू की।लल्लन का ऊंच मोहल्ला यादव बाहुल्य था जिस पर लल्लन की अच्छी पकड़ थी जबकि कछवाहन टोला अब बदलाव की उम्मीद में था।नाहर सिंह इस बदलाव के अगुवा थे जो गौरीबदन के विकल्प के रूप में खुद को ढाल रहे थे।चुनावों में गौरीबदन की हार ने नाहर की उम्मीदों को हवा दे दी अब वह सब की शादी,बीमारी,दुख-अजाब या अन्य मौकों पर जाते और यथासंभव मदद करते।जगतपुरा इस बदलाव को महसूस कर रहा था लेकिन क्या गौरीबदन अगले चुनावों में नाहर सिंह के लिए बैठेंगे?इसका जवाब सिवाय वक्त के किसी के पास नही था।वक्त जो अब पंख लगाकर उड़ रहा था उसने पिछले चुनावों को 3 साल पुराना कर दिया था।लल्लन ने अब खुद को दो ही चीजों में समेट लिया था-दुदाही और जन-सेवा।इस बीच लल्लन को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई।लल्लन ने इस खुशी को जगतपुरा के साथ बांटने का निश्चय कर सभी को न्योता भिजवाया,शुकुल को भी।
बोदे के साथ मिलकर लल्लन ने दुदाही को फिर से चमका दिया था सो पैसे की कमी नही थी।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन जगतपुरा के लोगों ने देखा कि लल्लन ने एक शानदार दावत का आयोजन किया है।यहां गौरीबदन थे तो नाहर सिंह भी,पंकज शुक्ला थे तो शुकुल चाचा भी।
लत्तम जुत्तम
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लल्लन ने सबकी आवभगत खुले मन से की।यद्यपि शुकुल चाचा से कोई बात नहीं हुई।वह दूर-दूर ही रहे।शुकुल, नाहर सिंह से बातें कर रहे थे तो गौरीबदन, पंकज शुक्ला से।उत्सवी माहौल था और अधिकतर चेहरे खुश दिख रहे थे तब भी वातावरण में पकवानों और राजनीति की गंध छाई हुई थी।एकाएक गौरीबदन किसी बात पर पंकज शुक्ला से उलझ पड़े।बातचीत धीरे-धीरे विवाद में बदल गयी और नौबत हाथापाई तक आ गयी।गौरीबदन पंकज का कॉलर पकड़ उस पर हाथ छोड़ने ही वाले थे कि नाहर ने बीचबचाव कर दोनो को अलग किया। शुकुल ने माहौल की नजाकत देख वहाँ से खिसक जाना ही बेहतर समझा।
"साला वोटकटुवा!!"गौरीबदन ने पंकज को सम्बोधित किया।
"घण्टा वोटकटवा, तुम्हरी जिद की वजह ते हमार सीट फँसि गे। 2-2बार जीत गेव,5 बीघा गांव समाज के जमीन अपने नाम करवा लीन्हेंव,दुवारे स्कार्पियो खड़ी है,जगतपुरा का लूटें मा कौनिव कसर नही छोड़ेव,अब का चाहत हो तुम्हरी वजह ते कोउ चुनाव न लड़ै?"पंकज ने सीधा कहा।

"पंडित!जबान संभारि के बात करौ, नही तो पूरी पंडिताई अउर वकालत यहीं निकार देबे,तुम्हरे बाप के पैसा ते खरीदो है स्कॉर्पियो??? लड़िका हमार crpf मा है, वो अपने पैसा ते ख़रीदेस,कोठी बनवाएस।सीध कहौ न कि फुंकी पड़ी है तुम्हार!!"एक कुशल राजनैतिक होने के नाते गौरीबदन अक्सर गुस्से को पी जाते थे लेकिन पंकज के इन आरोपों ने उनके तन-बदन में आग लगा दी थी।
दोनों हारे हुए प्रत्याशी थे सो गुस्सा दब नही रहा था।
वो तो भला हो लल्लन और नाहर का जो वक्त पर आकर दोनों को अलग कर दिया वरना चुनावों की भड़ास आज दोनो एक-दूसरे पर निकाल ही देते।यद्यपि नाहर का इस झगड़े से कोई ताल्लुक नही था लेकिन चूंकि वह आगामी चुनाव में संभावित उम्मीदवार हैं सो "विक्रमादित्य मोड"में थे।गांव के झगड़ों में सम्भावित उम्मीदवारों को बहुत उत्सुकता होती है ताकि वह बीच-बचाव कर अपनी छवि चमका सकें। 200-250लोग उस वक्त पंडाल में जमा थे।नाहर के लिए ये लोग नही थे आगामी चुनाव के वोट थे।
कूटनीति
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"साला जरेला पंडित, बाप न मारेस पढ़की लड़िका तीरंदाज"गौरीबदन भुनभुनाते रहे जबकि लल्लन उन्हें पकड़ एकांत में ले आया।
"का ठाकुर साहब,अइसे लोगन के मुंह लागत हौ।पूरा गांव जानत है कि वो तुमसे खुन्नस राखत है।" लल्लन ने आग में थोड़ा-सा घी छौंकते हुए कहा।
"अरे तो का उखाड़ लहैं हमार, एखा जला-जला के अगर कोइला न कर दीन तो हमार नाम बदल देहो।"गौरीबदन ने कहा।उनकी अब भी सांस फूल रही थी।
उन्होंने थोड़ा रुकते हुए आगे कहा-
"सुनौ लल्लन, अगले चुनाव मा अगर नाहर खड़े होत हैं तो तुम लडौ चुनाव, पूरा समर्थन देबे।यो पंडित और नाहर रेल देखियें"गौरीबदन ने कहा।
यद्यपि गौरी ने गुस्से में ये बात कही थी लेकिन तब भी लल्लन को गौरीबदन की बात शुकुल चाचा से ज्यादा ईमानदार लगी।कभी-कभी हम गुस्से में ही मन की बात कह देते हैं।लल्लन के सामने आगामी चुनाव के समीकरण स्पष्ट होते जा रहे थे।

सारे मेहमान जा चुके थे।गौरीबदन को भी लल्लन समझा-बुझाकर घर तक छोड़ आया था।
यद्यपि गौरीबदन और पंकज शुक्ला के झगड़े ने आयोजन में विघ्न डाला था लेकिन लल्लन के नजरिए से आयोजन सफल रहा।वह जिसकी उम्मीद में था,वही हुआ।
"अब देखेव लल्लन की राजनीति" लल्लन ने मन ही मन कहा और आगे की रणनीति तैयार करने लगा।

#जारी_है.....
~ BhupendraSingh