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डायरी ::कल्पना से परे जादू का सच - 1

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यास्मिन ने देखा कि उसके चारों ओर बहुत डरावने चेहरे हैं । सभी लाल-काल-पीले मुँह वाले लोग उसकी तरफ बढ़ रहें हैं और उसके आसपास घेरा-सा बनता जा रहा हैं। वह ज़ोर से चिल्लाई बचाओं!!!! तभी स्पीड ब्रेकर आया और उसकी आँख खुल गयी, उसने पानी पिया और फिर नज़र घुमाकर देखा तो कोई बस की खिड़की से बाहर देख रहा है, किसी के कानों में हेडफ़ोन लगे थें तो कोई बतियाने में, कोई सोने में मस्त था और बस की सबसे पीछे वाली सीट पर एक ग्रुप बैठकर खूब हँसी-मज़ाक कर रहा था । उसे थोड़ी राहत महसूस हुई कि वह सिर्फ एक सपना देख रही थीं, आज से पहले ऐसा डरावना सपना उसने कभी नही देखा था। खिड़की से बाहर देखा तो बस अब भीड़-भार वाली सड़क से निकल सुनसान रास्ते की और बढ़ती जा रही थीं। दाएँ-बाएँ घना जंगल और बीचों-बीच रास्ते पर चलती हुई बस । "पता नहीं कब आएँगी मेरी मंज़िल? देश का एक कोना और उस कोने में एक छोटा सा गॉंव। गॉंव ख़त्म होते ही दूसरे देश का बॉर्डर शुरू हो जाएगा । मुझे सिर्फ उस गॉंव में पहुँचना है। अब नींद नही आएँगी। एक बार सोकर देख लिया, ऐसा लग रहा है कि अब भी डरावने चेहरे उसे घूर रहे हों। उसने ध्यान हटाने के लिए खिड़की के बाहर की तस्वीरें अपने फ़ोन से खींचनी शुरू कर दी।

'शाम ढलने वाली है और ऐसे घने जंगल का दृश्य लोगों को देखने में काफी रोमांचक लगेगा।' यास्मिन ने फ़ोटो क्लिक करते हुए मन में सोचा। तभी जंगल सटा एक ढाबा दिखा और बस वही रुक गयी। "आप सब लोग कुछ खा लीजिये या किसी को फ्रेश होना है तो हों लीजिये। थोड़ी देर में बस चल पड़ेगी" । ड्राइवर ने सभी सवारियों को सूचना दीं । सभी धीरे-धीरे बस से उतरने लगे, पीछे वाली सीट पर बैठे ग्रुप के एक लड़के ने उसे देखा और कहा, "पहले आप उतर जाइयें मिस।" जैसे ही यास्मिन ने यह सुना वह बिना देरी किये उसके आगे आ गयी । जैसे उसे डर था कि अगर सबसे आखिरी में उतरेगी कहीं कोई पीछे से पकड़ ही न ले। यास्मिन ने उतरकर थैंक्स कहा, और वो लड़का मुस्कुराता हुआ ढाबे की तरफ बढ़ गया ।

यास्मिन ने ढाबे को गौर से देखा । दो-तीन लोग जो ढाबे में काम कर रहें थें और एक तरफ कोने में बना हुआ छोटा सा टॉयलेट, जहाँ लोगों की लाइन लग चुकी थीं । यास्मिन वहीं किसी कोने में कुर्सी पर बैठ गई और अपनी बोतल निकाल पानी पीने लगी उसे भूख़ नहीं थीं पर चाय पीने की इच्छा थीं । इसलिए ढाबे वाले के पूछने पर उसने चाय का आर्डर दे दिया। सूरज ढल चुका था, ढाबे में लगे चमचमाते बल्ब की रोशनी में ढाबे का नाम पढ़ा तो उसे हल्की सी हँसी आ गई "न मिले दूजा लो करो पेट-पूजा" । "हैल्लो मेरा नाम तारुश है "। लगता है, आप अकेले सफर कर रही है तो हमारे ग्रुप को ज्वाइन कर ले, सफ़र अच्छा कट जाएगा ।" तारुश ने मुस्कुराते हुए पूछा । यास्मिन ने उसे गौर से देखा, 'लम्बा कद, गोरा चेहरा चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी, भूरी आँखें, जिम में जाकर मेहनत भी की है , इसकी आकर्षक फिज़ीक तो यही बताती है। जब बस से पहले उतरने के लिए इसने कहा था, तब मैंने इसे गौर से नहीं देखा था । यास्मिन ने सोचा। " मैं आप सभी को बोर नहीं करना चाहती । इसलिए ऐसे ही ठीक हूँ" यास्मिन ने चाय का घूँट भरकर कहा । "मुझे पूरा यक़ीन है आप बोर नहीं करेंगी ।" तारुश का यह ज़वाब सुनकर यास्मिन मना नहीं कर सकी । और उन सबके साथ जा बैठी । ये पुनीत, ऋचा, समीर, गौरव और नितिशा सबका इंट्रो तारुश ने कराया । "मैं यास्मिन" सभी ने हैल्लो कहा और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया । यास्मिन को उनकी बातों से पता लगा कि वे सब वर्किंग है और अपने ऑफिस के काम से ब्रेक लेकर घूमने जा रहें हैं । मैं पेशे से एक गाइड हूँ पर कुछ निज़ी काम की वजह यह सफ़र कर रही हूँ । तभी ऋचा ने बोला कि उसे फ्रेश होना है मगर टॉयलेट बहुत गन्दा हो चुका है तो पुनीत ने साथ फैले जंगल में जाकर करने को कहा, "मुझे डर लगता है यार ! कोई जंगली जानवर या कोई भूत मुझे खा गए तो ??? इसलिए पुनीत तुम चलो मेरे साथ। "कौन खायेगा तुम्हें ??? किसे अपना हाज़मा ख़राब करना हैं, मैं नहीं जा रहा ।" पुनीत ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा । "मैं चलती हूँ" यास्मिन ने कुर्सी से उठते हुए कहा। "मैं गर्ल्स को अकेले नहीं जाने दे सकता" यह कहकर तारुश जाने के लिए खड़ा हो गया । "हाँ, आजकल तू वैसे भी लोगों को ज़्यादा ही कंपनी दे रहा हैं ।" गौरव ने मज़ाक उड़ाया और सब हँसने लगे । "जस्ट शट अप " तारुश ने ज़वाब दिया और तीनों जंगल की ओर जाने लगे ।

यास्मिन एक-एक पेड़ को गौर से देख रहीं थीं । हवा के चलने से पत्ते हिलते और वह डर जाती । "तारुश, तुम उस तरफ़ चल जाओं और हम इस तरफ होकर आते हैं। ऋचा ने दिशा दिखाते हुए कहा । तुम इसी पेड़ के पास मिलना, जिस पर यह घोंसला हैं । कहकर तारुश उस रास्ते चला गया । और ऋचा और यास्मिन थोड़ी आगे जाकर रुक गई। तभी ऋचा बोल पड़ी, "तुम गाइड हों, घूमती रहती होंगी पर मुझसे ज़्यादा डरपोक लग रही हों ।" "पता नहीं, आज मन कुछ अजीब सा हो रहा है और वैसे भी किसने कहा कि गाइड को डर नहीं लगता।" यास्मिन ने थोड़ा चिढ़कर कहा । "अरे ! यार! तुम बुरा मान रही हों , मेरा मतलब यह नहीं था, तुम इतना घूमती हूँ तो बोल्डनेस नेचुरल है।" दोनों उस पेड़ की तरफ़ आ रही थीं। "तुम सब पुराने दोस्त हों?" यास्मिन ने टॉपिक बदलने के लिए पूछा। "हाँ, काफ़ी पुराने दोस्त हैं , निकिता और गौरव एक दूसरे को डेट भी कर हैं और अब लगता है कि

शायद तारुश को भी कोई पसंद आ गयी है।" ऋचा ने यास्मिन को देखते हुए कहा तो वह झेंप गई । "पता नहीं, यह तारुश कहाँ रह गया? अब तो मोबाइल का टोर्च भी कम रोशनी दे रहा हैं ," तभी ऋचा के पास से कोई बड़ा सा परिंदा गुज़रा ही था कि वह ज़ोर से चिल्लाई और यास्मिन पर गिर गई । "तुम ठीक हों ?" यास्मिन ने उसे खड़ा किया। इसे पहले ऋचा कुछ कहती तभी जंगल की तरफ़ से ज़ोर-ज़ोर की चीखें आने लगी और ऋचा और यास्मिन ढाबे की तरफ़ भागी ।

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