सपनों का राजकुमार - 6 shelley khatri द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सपनों का राजकुमार - 6

भाग 6

रत्ना का बहुत मन हो रहा था कि वह स्कूल में अपने दोस्तों को रंजन के बारे में बताए पर हर बार रंजन की बात याद आ जाती। वह मन मसोस कर रह जाती। उसे बहुत डर लग रहा था। बस वाले भइया को कह तो दिया कि आज उसे भाइ लेने आएग और वह बस से घर नहीं जाएगी पर अगर मम्मी या भइया को पता चल गया तो कितनी गड़बड़ हो जाएगी? और अगर वह आज समय पर घर ही नहीं पहुंची तो? लेकिन रंजन से मिलने का आकर्षण भी कम नहीं था। उसने उसे खींच कर स्कूल गेट से बाहर कर ही दिया। रंजन गेट के सामने ही खड़ा था। उसे देखते ही वह बाइप पर बैठ गया। रत्ना भी चुपचाप आकर पीछे बैठ गई।

थोड़ी ही दूर पर एक पार्क के समाने रंजन ने बाइक रोकी। यहां पर पार्क भी है मुझे तो आज ही पता चला। रत्ना ने कहा।

हां, छोटा सा चिल्ड्रेन पार्क टाइप का है। रूको टिकट ले आता हूं।

अंदर आकर दोनों एक बेंच पर बैठ गए। रंजन ने रत्ना का हाथ पकड़ लिया। उसके शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई पर उसने हाथ अलग नहीं किया।

तुम स्कूल नहीं गए, कॉलेज में हो क्या, रत्ना ने पूछा।

स्कूल- कॉलेज की बात अभी करना जरूरी है? अभी तो समय है हमें एक दूसरे को जानने समझने का प्यार करने का। अभी स्कूल में पढ़ाई करके निकली हो तब भी मन नहीं भरा।

रत्ना झेंप गई। ठीक है। तब क्या बात करें?

तुम्हारे बाल कितने सुंदर हैं। रंजन ने उसके बालों में ऊंगली फिराते हुए कहा।

बातों में टाइम का पता ही नहीं चला।

रत्ना ने पूछा हमलोग कितनी देर से बैठे हैं। देखे कहीं तीन न बज गया हो।

अभी होगा टाइम, कहते हुए रंजन ने मोबाइल की ओर देखा। बाप रे सवा तीन बज गए। अब तक तो मुझे कॉलोनी के गेट पर होना चाहिए था। रत्ना ने खडे होते हुए कहा।

तुरंत पहुंचा रहा हूं। दस मिनट से कम समय में तुम गेट पर होगी। जाने से पहले गले तो मिलो। कहकर उसने रत्ना को बाहों में भींच लिया।

सचमुच हवा की रफ्तार से रंजन ने उसे कॉलोनी तक पहुंचा दिया। गेट के पास उतर कर रत्ना बिना पीछे देखे तेजी से घर की ओर चली। मम्मी उसे घर के बाहर ही मिल गई। आज थोड़ी देर हो गई न, मम्मी ने कहा।

हां मम्मी वो चौक के पहले थो़ड़ा जाम था।

ठीक है चल जल्दी से खाना- खा ले, भूख लगी होगी। कहती हुई मम्मी घर के अंदर चली गईं।

रत्ना खाने बैठी तो बार- बार अपने आप मुस्कुरा रही थी। उसे पार्क में रंजन के साथ बिताए पल याद आ रहे थे। कभी मुस्कुराती कभी शरमाती।

मम्मी ने उसे मुस्कुराते हुए देख लिया। क्या हुआ? उन्होंने पूछा।

वो क्लास में रोजी टीचर के पढ़ाने का तरीका याद आ गया था। कभी कभी कार्टुन जैसा करती हैं। उसने जल्दी से कहा और तेजी से खाना खत्म करने लगी।

दिन तेजी से निकलने लगे। अगले सप्ताह ही स्कूल बंद हो गया। स्टूडेंट्स को घर में एक्जाम की तैयारी के लिए छुट्‌टी दे दी गई थी। रंजन से बात तो रोज होती, चैट भी होता पर मुलाकात नहीं हो पा रही थी। उसने वादा किया कि एक्जाम के बाद जरूर मिलेगी।

एक्जाम के बाद रत्ना ने मम्मी पापा से स्कूटी और मोबाइल की मांग की। कहा, रिजल्ट तक मुझसे इंतजार नहीं होगा। आजतक मेरे कम नंबर आए हैं कभी जो अब आएंगे, मुझे अभी ही दिला दो।

पढ़ाई के मामले में हमेशा रत्ना ने मम्मी- पापा का सिर ऊंचा ही किया था। उसकी प्रतिभा से किसी को इंकार नहीं था। दो दिन के बाद ही उसकी स्कूटी आ गई। फोन भी मिल गया। कॉलोनी की सुमन दीदी की स्कूटी को चला- चला कर रत्ना ने चलाना तो सीखा था पर कभी स्कूटी लेकर कॉलोनी के बाहर सड़क पर नहीं गई थी। इसलिए मम्मी उसे बाहर गाड़ी लेकर जाने से मना करने लगी।

उसने शलभ को पीछे बैठाया और सड़क की ओर निकल गई। शलभ की उम्मीद से ज्यादा अच्छे तरीके से उसने गाड़ी चलाई। घर आकर उसने मम्मी से कहा, अब आपको जब भी बाजार जाना या कहीं भी जाना हो मैं हूं न। देखो भइया को घूमा दिया तो आपको भी मजे से लेकर जाउंगी।

अगले दिन उसने घोषणा की आज मैं पायल से मिलने उसके घर जाउंगी। किसी ने एतराज नहीं किया। मम्मी ने कहा, अकेले जा रही है। धीरे- धीरे और सावधानी से जाना। वे दोनों उसी पार्क में मिले। दो घंटे से अधिक समय तक एक दूसरे के पहलू में बैठे बातें करते रहे। रंजन ने कहा अब मुझे तुमसे रोज मिलना है। मैं इंतजार नहीं कर सकता।

रत्ना बोली, कॉलेज में एडमिशन होगा तभी रोज मिल सकूंगी। लेकिन अभी वीक में एक दिन तो मिल ही सकती हूं। अब उनकी खूब मुलाकातें होने लगी। कभी पार्क, कभी रेस्टोरेंट, कभी रंजन के घर में ही। उसकी मम्मी स्कूल चली जाती, भाई कॉलेज और पापा दुकान में वह रत्ना को लेकर घर आ जाता।

रिजल्ट आ चुका था। रत्ना स्टेट में सेकेंड रैंक लाई थी। अखबारों में उसकी फोटो आई। कई संस्था की ओर से पुरस्कृत किया गया। स्कूल में भी उसे शानदार विदाई मिली। उसे भी अमन की तरह मैथ्स पसंद था वह पीएचडी करना चाहती थी। उसने विक्रमादित्य कॉलेज में एडमिशन ले लिया था। अब दोनों की मुलाकात लगभग रोज होती। पांच दस मिनट तो मिल ही लेते। सप्ताह में तीन दिन साथ में घंटे दो घंटे का समय बीताते।

एक दिन रंजन ने कहा, आज लंच साथ में करेंगे, बाहर का खाना खाएंगे। रत्ना बोली कॉलेज कैंटीन में खा लेते हैं।

रंजन तैयार नहीं हुआ। उसने ड्रीम प्वाइंट के बारे में सुन रखा था कैंडल लाइट की मध्यम रोशनी के बीच रत्ना के साथ होने का मोह उसे जकड़ चुका था। दोनों वहीं पहुंचे। खाना खाते- बातें करते उन्हें समय का ध्यान ही नहीं रहा। रत्ना ने घड़ी देखी तो चार बज चुके थे। रंजन हम एक बजे यहां आए थे। बिल मंगवाओं और जल्दी निकलो, आज तो बाकी की सारी क्लस मिस हो गई।

बाहर आकर वह अपनी स्कूटी में बैठी थी, तभी रंजन उसके पास आया, मेरा मन नहीं हो रहा तुम्हें जाने देने का। कहते हुए उसने उसके माथे पर किस कर दिया। रत्न मुस्कुराई। तभी रत्ना….. की तेज आवाज गूंजी दोनो डर गए। सामने शलभ खडा था।

कौन है बे। कैसे आया इसके पास उसने रंजन का कॉलर पकड़ना चाहा। रंजन अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ गया।

तु घर चल उसे तो मैं बाद में भी देख लूंगा, उसने रत्ना से कहा। रत्ना ने स्कूटी स्टार्ट की और घर की ओर चली। शलभ भी अपनी बाइक से पैरलल ही आ गया।