Defeated Man (Part 15) books and stories free download online pdf in Hindi

हारा हुआ आदमी (भाग15)

"लो बेटा,"राम लाल बेटे को गोद मे उठा लेता।
माँ बाप की छत्र छाया में देवेन के दिन हंसी खुशी गुज़र रहे थे।राम लाल और लीला दोनो ही अपने बेटे को बहुत प्यार करते थे।लेकिन देवेन के नसीब में माँ बाप का प्यार नही लिखा था।
एक दिन लीला रोज की तरह देवेन को स्कूल बस मे बैठाने के लिए सड़क तक गई थी।उसे बस में बैठाने से पहले बोली,"स्कूल से लोटो, तब शीला आंटी से चाबी ले लेना।कपड़े बदलकर खाना खा लेना।"
"आप कही जा रही है?"देवेन ने अपनी मां से पूछा था।
"मैं और तेरे पापा गाज़ियाबाद जा रहे है।शाम को लौट आयेंगे।"
देवेन एके बजे स्कूल से घर आता था।उसने शीला आंटी से चाबी लेकर ताला खोला था।कपड़े बदलकर उसने खाना खाया था।फिर वह बच्चों के साथ खेलने लगा।
माँ शाम तक लौट आने को कहकर गयी थी।लेकिन शाम ढल गई और रात हो गई।रात होने पर भी देवेन के माँ बाप नही लौटे तो देवेन अधीर हो गया।वह बार बार शीला आंटी से पूछने लगा,"मम्मी पापा कब आएंगे?"
"बेटा आते ही होंगे।"
रात सरकने लगी लेकिन देवेन के मम्मी पापा नही आये तो वह रोने लगा।शीला उसे गोद मे लेकर चुप कराने लगी।काफी देर बाद एक आदमी ने शीला से आकर पूछा था,"राम लाल यही रहते है"।
"हां यही रहते है।लेकिन घर पर नही है।गाज़ियाबाद गये है"।शीला ने बताया था।
"कोई तो होगा उनके घर मे"।
"उनका यह बेटा"देवेन, शीला की गोद मे था।
"बच्चें को जरा अंदर छोड़कर आइये।"
देवेन के अंदर जाने पर उस आदमी ने जो बताया,उसे सुनकर शीला के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई।उस आदमी के जाने के बाद शीला आस पास के घरों मे गई थी।कुछ ही देर में मोहल्ले के मर्द औरते इकठे हो गए।सब लोग देवेन को अपने साथ ले गए थे।
सब लोग उसे लेकर अस्पताल पहुँचे थे।वंहा का दृश्य देखकर वह हक्का बक्का रह गया।अस्पताल में अलग अलग बेड पर उसके मम्मी पापा लेते थे।उनका सारा शरीर पट्टियों से बंधा था।जगह जगह नली लगी थी।देवेन अपने मम्मी पापा की हालत देखकर रोने लगा।लोगो ने उसे जैसे तैसे चुप कराया था।
देवेन के मम्मी पापा जिस बस से लौट रहे थे।उस बस का एक्सीडेंट हो गया था।दुर्घटना इतनी भयंकर थी कि कुछ लोग तो वही मारे गए थे।बाकी बुरी तरह जख्मी हुए थे।
डॉक्टरों ने लीला और राम लाल को बचाने का भरपूर प्रयास किया था।
लीला को तो मरने से पहले होश भी नही आया था।राम लाल ने जरूर कुछ देर के लिए आंखे खोली और बड़बड़ाये थे।उन टुटे फूटे शब्दो को जोड़कर शीला ने मोहन को फोन कर दिया था।
और मोहन कुछ ही घण्टो में दिल्ली आ पहुंचा था।राम लाल और लीला की मृत देह देखकर मोहन फफक फफक कर रोया था।उसे रोता देखकर लोगों ने समझाया था,"आप अपने पर काबू रखें।अब देवेन का आपके सिवाय कौन है"।
लोगो के समझाने पर मोहन को अपने कर्तव्य का भान हुआ।उसने देवेन को अपने सीने से लगा लिया।
राम लाल और लीला के सभी अंतिम संस्कार करने के बाद मोहन,देवेन को अपने साथ ले गया।
"बेटा मम्मी कहा है?"अपने घर पहुँचने पर मोहन ने अपने बेटे दीप से पूछा था।
"मम्मी खाना बना रही है।"
"दुर्गा।"मोहन ने आवाज लगाई थी।

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