दूसरा देवदास पीयूष पाठक द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दूसरा देवदास

मुद्दत बाद आज फिर मोबाइल स्क्रीन पर एक जाना पहचाना नंबर चमका और रिंगटोन बज उठा जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चाँद निकला। रिंगटोन लयबद्ध होकर बज रहा था और मैं स्तब्ध चट्टान की भाँति खड़ा था जैसे सारी संवेदनाएं मर चुकी हो।फोन आने से कटने के क्रम में पुरानी यादें बिल्कुल बिजली की तरह आँखों के सामने से गुजर गई।उस दस सेंकेंड में मैने सदियाँ जी ली।
उस दस सेंकेंड में मैने उन सारे पलों को फिर से जी लिया जो मोहतरमा के साथ बिताए थे।चाहे वो उस कलम देने के बहाने से हमारे प्यार की शुरुआत,या एक-दूसरे के सिर पर सिर टिकाए घंटो चाँद को निहारना हो या फिर वो मिट्टी के कप में साथ में पी हुई नुक्कड़ की चाय हो।हर पल को मैंने उन चंद सेंकेंड में जी लिया।विज्ञान और मुहब्बत का बड़ा गहरा रिश्ता है तभी तो विज्ञान उस मशीन के खोज में लगा है जिससे समय में पीछे जाकर जिया जा सकता है उस अवस्था को मैं अक्सर प्रेम में जी लिया करता हूँ।तभी दूसरी बार फोन की घंटी बजी मैं उठाया और हर बार की तरह इस बार भी बात शिकायतों से शुरू हुई।मोहतरमा ने शिकायती अंदाज में बोलना शुरू किया-कब सीखोगे एकबार में फोन उठाना?तुम बिल्कुल न बदलोगे।सोचा बोल दू आदत है तुम थोड़ी हो जो बदल जाएगा।ये भी बिल्कुल मेरी तरह जिद्दी हैं।मैं चुपचाप सुनता रहा।मोहतरमा का अगला सवाल-कोइ मिली?ओफ्फ पुरानी जख्मों को फिर कुरेद दिया आज।सोचा बोल दू खुद को बिना संभाले हुए जो भी लफ्ज़ जुबान पर आ रहे हैं रख दू उसके सामने।सोचा बता दूँ कि मिलने और खोने का सिलसिला तो तुमपर ही खत्म हो चुका हैं लेकिन फिर संभाला खुद को ये सोचकर कि जिसे परवाह नहीं उसके सामने अपने बेबसी क्या रोना।
मैंने जज्बातों को हँसी में समेटते हुए बोला- *हा मिली ना अनगिनत शायरी और हमारे और तुम्हारे प्रेम की अधूरी कहानी* और हर बार की तरह फिर इस बार मेरी बातों को नजरअंदाज करते हुए बात पलट दिया मोहतरमा ने। घंटों बात हुई मगर उधर से।बोलना मैं भी चाह रहा था पर *शब्द होंठो पर आकर वाक्य बनने से पहले दम तोड़ दे रहे थे।* मैं खामोश ही रहा।कहते हैं न कि *कभी-कभी खामोशियां शब्दों से ज्यादा चुभती है।* वो बोले जा रही थी मैं चुपचाप सुने जा रहा था।उसने बताया कि पता है आज मैं उसके साथ साथ घूमने गई थी इस बार मेरी खामोशी मुझे धोखा दे गई और मैं बोल पड़ा-घूमने गइ थी?उसने कहा हा रोज जाती हूँ मैंने पूछना शुरू किया- *क्या उसके सर पर भी अपना सर रख कर चांद को देखती हो क्या?क्या वह भी तुम्हारी बालों में अपने हाथों को फेरकर उस खुशबू को महसूस करता है क्या?क्या वह भी तुम्हारी सारे नखरे को हंसकर झेलता है क्या?* शायद ये बातें मोहतरमा को चुभ गइ और वो खामोश रही उस खामोशी से मुझे उसकी ना की चीख सुनाई दी।लेकिन इस बार बात बदलने की जिम्मेवारी मेरी थी और मैंने हंस कर बोला अच्छा-मैं ऑफिस के लिए देर हो रहा हूं बाद में बात करते हैं उधर से उसी पुराने अंदाज में हँसते हुए बोली-तुम और ऑफिस कितना बदल गए हो?मैं सोच रहा था *अब क्या बताएं आपको कितना बदल गया हूं मैं जो लड़का बेपरवाही से पूरे दिन गाड़ी पर बैठकर दोस्तों के साथ कॉलेज का चक्कर लगाया करता था वह आज पूरी जिम्मेवारी से 10:00 से 4:00 ऑफिस में ड्यूटी कर रहा है।जो लड़का शर्ट उपर के दो बटन खोलें बेतरतीब से कपड़ा पहने बेखौफ बना फिरता था आज बड़े सलीके से टाइ लगाकर ऑफिस जाया करता है जो लड़का बात बात पर गुस्सा करता था किसी से झगड़ जाता था वो लड़का आज बॉस की डांट को सर झुकाए चुपचाप सुन लिया करता है।अब क्या बताएं कितना बदल चुका है सिवाय इस आदत के जिसमें तुम्हें घंटों याद करता हूं।*


तभी जेल की घंटी बजी शायद कैदियों के खाने का समय हो चुका था मैं अपनी जगह से उठा और वह बोला साहब आज के लिए इतना ही आगे की कहानी कल बताऊंगा।मैं सेल से बाहर आया और उसकी कहानी में गुम जेल का चक्कर लगाने लगा।
हा तो अपने बारे में बता दूं कि मैं पिछले 12 सालों से इस जेल में जेलर की ड्यूटी कर रहा हूं और यह लड़का अभी कुछ दिन पहले ही उम्रकैद की सजा काटने इस जेल में आया हैं मर्डर का आरोप तय हो चुका है।


घर गया एक अजीब सी बेचैनी थी मेरे अंदर।मैं किसी से कुछ बात नहीं की आज एक अजीब से शून्य में मैं खोया रहा। रात करवटें बदलते हुए कटी।सुबह का इंतजार रहा जैसे ही सुबह हुआ तुरंत जेल पहुंचा और उस कोठरी में गया जहां वह देवदास बैठा था मुझे देखते ही सलाम किया और बोला अरे साहब आज इतनी सुबह?मैं हंसते हुए बोला- क्या करूं यार तुम्हारी कहानी कुछ ऐसी है।मुझे बीच में टोकते हुए बोला साहब मेरी कहानी कहकर आप हमारे प्यार को शर्मिंदा ना करें मैं तो आधा किरदार हूँ इस कहानी का *यह कहानी मुकम्मल तो उसके साथ थी।* मैं चौंक पड़ा थी!थी मतलब क्या?उसने बताना शुरू किया साहब उस दिन मैं थोड़ा लेट ऑफिस से आया मोहतरमा के तीन कॉल आ चुके थे।मैंने कॉल लगाया थोड़ी परेशान सी मालूम पड़ी पूछा क्या हुआ?बोली कि मिलना है तुमसे। *वह मुझसे अलग हो चुकी थी पर उसके हिस्से की जिंदगी मैं आज भी जी रहा था।* मैं उससे मिलने उसी पार्क में गया जहाँ कभी हम घंटो बिताया करते थे।पिछले तीन-चार दिनों से मिलने का सिलसिला जारी रहा।मैं कुछ समझ न पा रहा था जिंदगी किस ओर करवट ले रही हैं।आज उसने मिलने की वजह को बताना शुरू किया कि पड़ोस में रहने वाले एक लड़के से प्यार हो गया दूसरे जाति का है मम्मी पापा नहीं मान रहा है सोच रही हूं उसके साथ कहीं और चली जाऊं?मैं बिना कुछ हरकत सबकुछ सुने जा रहा था और सोच रहा था इतनी हिम्मत कहां से आई?सोचा कुछ तो है उस रकीब में जिसका हाथ थामते ही उसमें इतनी हिम्मत आ गई कि आज वो इतना बड़ा कदम उठाने के लिए तैयार है वरना यह मोहतरमा तो मुझे मिलने भी छुप छुप कर आया करती थी।मैं बोला-मैं कुछ करता हूं।अगले दिन मैं गया और एक अपने नाम और एक मोहतरमा के नाम पर फर्स्ट क्लास में दो टिकट बुक कराया और रात को सारी जानकारी दी कि अगले सुबह 4:00 बजे की ट्रेन है पकड़ कर निकल जाइए आप दोनों हैदराबाद के लिए मेरा वहा एक दोस्त हैं रहने का सारा इंतजाम हो जाएगा।उस रात में कुछ अजीब सी चुभन थी काटे नहीं कट रही थी।सुबह हुई मैं निकला स्टेशन पर देखा कि रकीब का हाथ थामें माथे पर ओढ़नी का घुंघट किया खड़ी थी मोहतरमा। *वक्त की भी अजीब दास्तां है एक ही पल में कई अनुभव देता है मैं बिछड़न का अनुभव कर रहा था तो मोहतरमा उस रकीब के साथ अपने नए जीवन के मिलन का अनुभव कर रही थी।ट्रेन का ड्राइवर अपने गंतव्य तक पहुचने के लिए सफर की दुश्वारियों का अनुभव कर रहा था और ट्रेन प्लेटफार्म से बिछड़ने का अनुभव कर रही थी।* खैर गाड़ी ने सिटी बजाए और चल पड़ी मैं हाथ हिलाते हुए विदा किया और अपने घर आया।उस सुबह मैं बिल्कुल नहीं रोया। *रोने और उदास होने वाली संवेदनाएं तो उससे बिछड़ते समय ही मर चुकी थी।*
जिंदगी अपने पुराने ढर्रे पर गुजर रही थी पिछले कुछ दिनों से भूचाल आया था मगर फिर सब कुछ सामान्य हो गया।मैं वहीं ऑफिस का लड़का 10:00 से 4:00 वाला अपना जीवन गुजारने लगा।
वो बोले जा रहा था मैं बड़े धैर्य से अपनी पूरी ताकत समेटे सुने जा रहा था-*हां एक बात है साहब ना उसके पहले कोई पसंद आई थी ना उसके जाने के बाद कोई पसंद आई।* दिन गुजर रहे थे करीब 6 महीने बाद रात के 2:00 बज रहे थे फिर वही नंबर मोबाइल स्क्रीन पर चमका और फिर वही रिंगटोन बजा जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला लेकिन इस बार मैंने पहले कॉल में उसका फोन उठा लिया वो रो रही थी मेरा दिल धक से किया वो रोते-रोते बोल रही थी मुझे बचा लो। मैंने उसको हिम्मत बोला पूरी बात तो बताओ?बोलने लगी मैं फंस चुकी हूं यह लड़का एक नंबर का शराबी और जुआरी निकला 6 महीने में कई बार शराब पीकर आया और पिटा करता था जुए में सब कुछ हार चुका था और आज मुझे भी मुझे कैसे भी बचा लो ये लोग दरिंदों की तरह मुझे नोच रहे हैं कहते कहते अचानक आवाज आना बंद हो गया।मैं हेलो हेलो न जाने कितनी देर तक चिल्लाता रहा।आनन-फानन में रात के 2:00 बजे रूम से निकला तत्काल रिजर्वेशन बुक कराया और हैदराबाद पहुंचा उसके पते पर लेकिन शायद मेरे आने में देर हो चुकी थी वह बेसुध बिना जान के फर्श पर पड़ी थी मुझे काटो तो खून नहीं मैं उसका सर गोद में लेकर बड़ी देर तक रोता रहा और देखा उसके हाथ में मेरे नाम वाला टिकट पड़ा है शायद मेरी आखिरी निशानी के रूप में उसके पास यहीं था।तभी किसी ने पुलिस को सूचना कर दी थी पुलिस आई मुझे पकड़ कर ले गई हत्या के आरोप में मुझे उम्रकैद हुआ है और इस जेल में आपके सामने बैठा हूं।मैंने पूछा-यार तुमने आवाज नहीं उठाया कि मैं बेगुनाह हूँ?उसने गहरा साँस लिया और बोला- *साहब जुर्म भी तो अपने मोहब्बत के कत्ल का लगा है भला क्या आवाज उठाता मैं?*
मेरा रोम रोम सिहर उठा मैं अपने 18 साल के जेलर के ड्यूटी में आज तक ऐसा कैदी नहीं देखा और अचानक से मुंह से निकल पड़ा- *यार तुम सच में दूसरे देवदास हो!!!*