कंप्यूटर की स्क्रीन पर बाहर के मौसम का टेम्प्रेचर -40 डिग्री शो कर रहा था. प्लेन के कप्तान ने टेक ऑफ़ से ही फ्लाईट का नियंत्रण अपने हाथों में रखा था. जिसे अब फ्लाईट उड़ाते हुए साढ़े तीन घंटे गुजर चुके थे. इसलिए वह करीब दो बजे आराम फरमाने के इरादे से बाहर निकल गया. अब फ्लाईट का सञ्चालन बोनिन, जो फ्लाईट 447 के तीनो पाईलोटों में सब से कम अनुभवी था, उसके हाथों में आ गया. अब तक प्लेन के साथ कोई दिक्कत वाली बात नहीं थी.
अभी तो प्लेन कुछ ही किलोमीटर गहरे बादलों के बीच आगे बढ़ा होगा की प्लेन में अजीब सी आवाज़ गूंजने लगी. गहरे बादलों में रहा पानी -40 डिग्री जितने कम टेम्प्रेचर पर बर्फ में तब्दील हो चूका था. और ये बर्फ के गोले प्लेन के साथ जोरों से टकरा रहे थे, जिनकी यह आवाज़ थी. पर अब तक डरने की कोई वजह नहीं थी. क्यूंकि प्लेन का सञ्चालन ओटो पाईलोट के पास था. यह ओटो पाईलोट ऐसे ख़राब मौसम में भी प्लेन उड़ाने के लिए अच्छी तरह से प्रोग्राम किया गया होता है. ओटो पाईलोट ने बर्फ क गोले की वजह से प्लेन पर पड़ने वाले ट्रेस को कम करने के लिए प्लेन की गति को थोड़ा धीमा कर दिया. रात्री के दो बजकर आठ मिनिट पर प्लेन ज़रा बायीं और जुका. जिसे भी ओटो पाईलोट हेंडल कर रहा था. पर मूल समस्या तो अब शुरू होने वाली थी. प्लेन के बाहर रहे बर्फ के टुकड़ों ने सब पिटॉट ट्यूब्स; वे सारे सेन्सर्स, जो ओटो पाईलोट को बाहर हवा का वेग, प्लेन की उंचाई और स्थिति, गति इत्यादि की सुचना देते है, उस सब को फ्रीज़ करना शुरू कर दिया. जिनके द्वारा ओटो पाईलोट को बाहर की साड़ी सुचना प्राप्त होती है.
सबसे पहली समस्या रात को 2 : 10 बजकर 10 सेकेण्ड पर आई जब बर्फ की वजह से सब पिटॉट ट्यूब्स ब्लोक हो जाने की वजह से ओटो पाईलोट बंध होने लगा. जो अब तक इस तूफानी मौसम में प्लेन को सीधे से उड़ा रहा था. ओटो पाईलोट का नियंत्रण न रहने से प्लेन बायीं और जुकने लगा. ओटो पाईलोट के बंध हो जाने से अब प्लेन उड़ाने की सारी जिम्मेदारी तीसरे पाईलोट बोनिन के ऊपर आ गई थी. उसने प्लेन का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया. और प्लेन को सीधा करने के लिए साइड स्टिक को दायीं और मोड़ दिया. पर प्लेन अब सीधा उड़ने के बजाए कभी बायीं और तो कभी दायीं और मूड़ रहा था. वह प्लेन को सीधा रखने की लगातार कोशिश कर रहा था पर प्लेन उसके नियंत्रण में पूरी तरह से नहीं आ रहा था.
इसके कुछ सेकेण्ड बाद, रात 2 : 10 बजकर 23 सेकेण्ड पर एक और बड़ी समस्या सामने आ गई: "फ्लाईट कण्ट्रोल ओल्तर्नेट लो." जिस का मतलब होता है, प्लेन की वो कंप्यूटर सिस्टम, जो पाईलोट को असुरक्षित मूवमेंट से रोकता है, बंध हो गई. रात्री 2 : 10 बजकर 47 सेकेण्ड पर एक और बड़ी मुसीबत का एलार्म बज उठा. "ओटो थ्रस्त ऑफ़." प्लेन के इंजिन में फ्ल्युल के प्रवाह पर नियंत्रण कर प्लेन के वेग पर नियंत्रण रखने वाली कंप्यूटर सिस्टम फ़ैल हो गई थी. एक के बाद एक फ्लाईट 447 की सभी ओटोमैटेद सुरक्षा सिस्टम फ़ैल होती जा रही थी.
प्लेन के तूफ़ान में फंस जाना, बर्फ का प्लेन के साथ टकराना; सभी सेन्सर्स का फ़ैल हो जाना, एक के बाद एक सुरक्सा सिस्टम का बंध होते जाना और ओटो पाईलोट के बंध हो जाने से तीसरा पाईलोट अब काफी दर गया था. उसने सोचा, न जाने ये तूफानी बादल लेफ्ट और राईट में कहाँ तक फैले होंगे! इससे बेहतर है, इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए क्यूँ न प्लेन को ही बादलों के ऊपर ले लिया जाए! और उसने यहाँ एक बड़ी गलती कर दी. प्लेन को बादलों के ऊपर लेने के लिए उसने साइड स्टिक को पीछे की और कर दिया. और प्लेन का मुहाना ऊपर की और हो गया. उसकी उंचाई तीस डिग्री के एंगल पर बहुत तेजी से बढ़ने लगी. वास्तव में उस वक्त प्लेन की उंचाई बढ़ने की गति दो से तीन हजार फूट प्रति मिनिट होनी चाहिए थी लेकिन प्लेन अपनी उंचाई सात हजार फूट प्रति मिनिट की दर से बढ़ा रहा था.
सही वक्त पर दुसरे पाईलोट ने प्लेन का नियंत्रण अपने हाथो में ले लिया. उसने बोनिन की गलती को सुधारने के लिए और प्लेन के मुहाने को निचे करने के लिए अपनी और की साइड स्टिक को आगे खिंचा. पर प्लेन का मुहाना निचे न हुआ. इससे सह पाईलोट भी कन्फ्यूज़ हो गया. उसी वक्त मुख्य पाईलोट और कप्तान की कोक्पित में एंट्री हुई. उसने देखा: दोनों पाईलोट अपनी अपनी साइड स्टिक को विरुद्ध दिशा में खिंच रहे थे. सह पाईलोट प्लेन को सीधा करने के लिए अपनी साइड स्टिक को आगे खिंच रहा था. पर बोनिन ने अभी भी अपनी साइड स्टिक को पीछे की और खिंच के रखी थी. इससे प्लेन की कंप्यूटर सिस्टम कन्फ्यूज़ हो गई, किसके सुचन का पालन करें! सह पाईलोट के या बोनिन के सुचन को! आखिर कंप्यूटर सिस्टम ने सह पाईलोट के प्लेन के मुहाने को निचे करने के सही निर्णय को नकार दिया. क्यूंकि बोनिन ने सब से पहले उसे प्लेन के मुहाने को ऊपर करने का आदेश दिया था और वह अब तक उस आदेश को दोहरा रहा था. फ्लाईट 447 के कप्तान ने चिल्ला कर बोनिन को साइड स्टिक छोड़ने के लिए कहा. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
प्लेन का मुहाना ऊपर होने से और तूफानी हवाओं के टकराने के परिणाम स्वरूप प्लेन की गति लगातार कम होती गई. प्लेन के पंखो के निचे का हवा का दबाव बहुत कम हो जाने से प्लेन को लिफ्ट मिलना भी बंध हो गया. स्टोल एलार्म लगातार बजने लगा. जो खतरा सर पर आ जाने का संकेत कर रहा था. प्लेन अब ऐसी हालत में पहुंच गया था जहां प्लेन अब न तो आगे बढ़ रहा था न हवाओं पर तैर रहा था. फ्लाईट 447 को सिर्फ चार मिनिट और सोलह सेकेण्ड के छोटे समयकाल में चोबीस गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा था. आखिर में एटलान्टिक सागर में टूट पड़ने से पहले प्लेन का ग्राउंड प्रोक्सिमेटरी वोर्निंग बज उठा. जो फ्लाईट 447 के लिए मौत की आखरी घंटी साबित हुई. इस एलार्म का सन्देश यह था की प्लेन धरती की सतह के बहुत करीब आ गया है; इसे जल्दी ही ऊपर ले जाया जाये वर्ना यह धरती से टकरा जाएगा. पर पाईलोट क्या करते! उनके मुख से एक ही उदगार निकला: "हम मर रहे हैं! आखरी एलार्म के सिर्फ दो सेकेण्ड बाद एक जून 2009 की मध्य रात्रि 2: बजकर 14 मिनिट और 28 सेकेण्ड पर ऐर फ्रांस का यह फ्लाईट 447 टुकड़ों में बंटकर एटलान्टिक समुद्र के चार किलोमीटर गहरे पानी की आगोश में समा गया..!
समाप्त