ऋषि आज सोकर देर से उठा। बीती रात गहरी नींद नहीं सो पाया था वह ,रात भर जैसे दिमाग चलता हीं रहा नंगी आंखों से देखी गई 3 D फिल्म की तरह जिसमें कुछ भी स्पष्ट नहीं था। इसलिए सिर भी बोझिल लग रहा था। उसने उनींदी आंखों से कमरे में इधर उधर नजर दौड़ाई।सारा कमरा अस्त व्यस्त हालत में था।लगता था कि महीनों से उसकी साफ सफाई नहीं हुई। कमरे की हालत देख उसका मन तिक्त हो उठा जैसे किसी ने मुंह में ज़बरदस्ती कुनैन की पुड़िया ठूंस दी हो।वह मन हीं मन किसी निश्चय पर पहुंचा और बहुत हीं अनमने भाव से बिस्तर से उतरा और वाशरूम में घुस गया।
वाशरूम से आने के बाद अब वह अच्छा फील कर रहा था। कालेज जाने का प्रोग्राम कैंसल कर कमरे को ठीक करने में जुट गया।
ऋषि करीब डेढ़ दो महीने से एक अजीब सी बेचैनी का अनुभव कर रहा था अपने अन्दर। किसी काम में मन नहीं लग रहा था उसका।लगता था गले में कुछ फंसा फंसा सा है या कि अभी रो देगा। इसका कारण उसकी समझ के बाहर था। सब ठीक-ठाक हीं चल रहा था उसके जीवन में। इश्क-विश्क जैसा कोई लफड़ा भी नहीं था। उसको यही बात समझ नहीं आ रही थी फिर क्यों उसका मन इतना बोझिल और उदास है। ऐसा नहीं है कि उसके जीवन में कोई लड़की नहीं आई। बहुत सी लड़कियों के साथ उसकी दोस्ती थी। बातचीत घुमना- फिरना होता था लेकिन प्यार मुहब्बत वाली कोई बात ना थी। सिर्फ एक दोस्ती थी और एहसास भी दोस्ती का हीं था। इनमें से किसी ने उसके मन के सुकून में कोई खलल नहीं डाला। हां एक को छोड़कर।उसका नाम वीथिका था।एक सात आठ साल की सुन्दर मासूम लड़की। ऋषि भी लगभग उसी का हमउम्र रहा होगा जब वीथिका का स्कूल में दाखिला हुआ।
ऋषि पहले से हीं उस स्कूल का छात्र था और स्कूल के हास्टल में हीं रहता था।वह एक अति साधारण छात्र था किन्तु उसकी एक विशेषता भी थी कि वह स्कूल में दाखिला लेने वाला प्रथम छात्र था।जिसके कारण स्कूल के प्रिंसिपल का उसके प्रति एक साफ्टकार्नर
था।स्कूल को खुले मुश्किल से एक साल हुआ था और मात्र इस एक साल में स्कूल ने बहुत तरक्की की थी। विद्यार्थियों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी थी जिससे स्कूल की दीवारें छोटी पड़ने लगी थी और ऐसा सुनने में आया था कि प्रिंसिपल साहब कोई बड़ी जगह लेना चाह रहे थे।
वीथिका लगभग एक महीने से स्कूल आ रही थी लेकिन ऋषि केलिए वह अजनबी हीं थी।वह तो नाम भी नहीं जानता था उसका।उसके लिए तो वह अन्य विद्यार्थियों की तरह हीं थी। कोई विशेष आग्रह नहीं था उसके मन में वीथिका के प्रति।उस दिन क्लास वर्क दिखाने केलिए बच्चों की भीड़ जमा थी प्रिंसिपल सर के पास। ऋषि ने देखा कि बगल में वीथिका खड़ी है हाथ में कापी लिए तो उसने नाम पूछ लिया। वीथिका का जवाब आया 'तुमसे मतलब'
वीथिका का जवाब सुन ऋषि को जरा भी बुरा नहीं लगा। उसके लिए यह एक सामान्य बात थी।नाम के अनुरूप उसका स्वभाव भी था।कभी किसी ने उसे लड़ते झगड़ते नहीं देखा।ना हीं अत्यधिक खुशी और उत्साह में किसी ने उसे नाचते कूदते हीं देखा होगा।वह हमेशा सम अवस्था में रहता था।उसका अपने सहपाठियों के साथ ना हीं बहुत हेलमेल था और ना हीं किसी के साथ कोई बैर।वह सचमुच एक बाल ऋषि हीं था स्वयं में लीन।