तुम्हारी वीथिका - भाग-2 रवि प्रकाश सिंह रमण द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

तुम्हारी वीथिका - भाग-2

एक दिन क्लास चल रहा था। प्रिंसिपल सर ने गणित के दस सवाल ब्लैकबोर्ड पर लिखे। उन्होंने सभी छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा "पूछे गए सवालों में चार सवाल ऐसे हैं जिन्हें कोई भी हल कर सकता है। छह सवाल हल करने वाला बुद्धिमान की श्रेणी में आयेगा। जिसने आठ सवाल हल कर दिए उन्हें मैं जीनियस समझूंगा और कोई दसो सवाल हल कर दे ऐसा सम्भव हीं नहीं है।अगर भूले से भी किसी ने दस के दस प्रश्न हल कर दिए तो मेरे पास उसकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा केलिए शब्द कम पड़ जायेंगे। लेकिन कोई भी विद्यार्थी अगर कम से कम आठ प्रश्नों के भी सही उतर दे देता है तो मैं उसे अपने साथ बाजार ले जाकर वह जो बोलेगा उसे खिलाऊंगा।"इस तरह प्रिंसिपल सर ने विद्यार्थियों में दिए गए प्रश्नों के प्रति जिज्ञासा और जोश की सृष्टि की और बच्चों को शांतिपूर्वक प्रश्न हल करने को कहकर वहां से चले गए। सभी बच्चे जी जान से प्रश्नों को हल करने में लग गए। आखिर जीनियस कहलाना किसे नहीं भाएगा?
ऋषि भी प्रश्नों में उलझा हुआ था।आज वह स्वयं को साबित करना चाहता था।उसे बुरी तरह से 3-4 महीने पहले की वो घटना याद आ रही थी जब सर ने पूरे क्लास के सामने उसे बहुत भला बुरा कहा था। उन्होंने यहां तक कह दिया कि तुम्हारे पिता ने अच्छी पोजीशन पर होते हुए भी शायद तुमको ढ़ंग का पौष्टिक आहार नहीं दिया जिसके कारण तुम्हारे दिमाग का समुचित विकास नहीं हो पाया। ऋषि को यह बात बहुत बुरी लगी थी।उसे खुद पर बहुत खीझ हुई और उसने उसी दिन निश्चय कर लिया था कि वह पुरा जी जान लगाकर पढ़ाई में बेहतर करने का प्रयास करेगा।
गणित के प्रश्नों से जूझते हुए ऋषि को मन हीं मन लग रहा था कि शायद यही वह मौका है स्वयं को बेहतर साबित करने का।उसके मस्तिष्क की सारी तंत्रिकाएं अपनी पुरी शक्ति से गणित के सूत्रों को हल करने में लगी थीं और वह स्वयं को साबित करने की धुन में।इन झंझावातों के बीच जब उसे होश आया तो उसने पाया कि वह दसवें और अन्तिम प्रश्न को हल कर चुका था।उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था।उसने क्लास में चारो तरफ नजर दौड़ाकर देखा सभी बच्चे प्रश्नों से अभी जूझ हीं रहे थे। इसलिए उसने सोचा कि क्यों न प्रश्नों की फिर एक बार जांच कर ली जाए। रिविजन के बाद उसने पाया कि उसके ज्ञान के हिसाब से सभी प्रश्नों के हल ठीक थे।तब तक सर भी आ गए। उन्होंने सभी को अपनी अपनी कापियां जमा करने को कहा। देखते हीं देखते सर के टेबुल पर कापियों के ढेर लग गए।वो बच्चों को अन्य कार्य देकर पूरे मनोयोग से कापियां जांचने में लग गए।
ऋषि भी दिए हुए कार्य को पूरा करने में लग गया।करीब एक घंटे बाद सर के संबोधन से उसका ध्यान भंग हुआ।तभी सर की कौतूहल मिश्रित आवाज आई - "वाह! ऋषि तुमने इतना बड़ा कारनामा कैसे कर दिया? तुम्हारे तो सभी उत्तर सही हैं।मुझे तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा है लेकिन तुमने किया है इसे नकारा भी तो नहीं जा सकता है।शायद मैं हीं तुमको समझने में भूल कर रहा था।तुम हीरा हो हीरा । तुमने तो उन दो प्रश्नों को भी सही हल किया है जो दसवीं कक्षा के स्तर के हैं और यहां किसी ने भी उन दो प्रश्नों को हल करने की कोशिश भी नहीं की है।" सभी बच्चे सर की बातों को अचंभित होकर सुन रहे थे और बीच बीच में ऋषि को ऐसे देख रहे थे जैसे वह दुनिया का आठवां अजूबा हो।
उस दिन के बाद ऋषि की स्कूल में विशेष स्थिति हो गयी थी। उसने स्वयं भी इस बात को महसूस किया था।साथ के बच्चे उससे दोस्ती करना चाह रहे थे।सर की नजर में भी अब उसकी अहमियत बढ़ गई थी।एक दिन क्लास में सर ने कोई पाठ समझाने केलिए सबको अपने पास बुलाया। सभी बच्चे सर के इर्द गिर्द इकट्ठे हो रहे थे। ऋषि भी वहां खड़ा था। तभी पीछे से किसी ने धीरे से कहा "वाह!ऋषि तुम तो जीनियस हो गए।ऋषि ने मुड़कर देखा पीछे वीथिका खड़ी मुस्कुरा रही थी।

क्रमशः---------------