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जहर

घर में मम्मी थीं नहीं इसलिए मोहित स्कूल बस से पापा की दुकान के पास ही उतर गया। मम्मी ने सुबह ही बता दिया था कि आज वे किट्‌टी के लिए जाएंगी तो दोपहर को घर में ताला होगा। पार्टी चार बजे खत्म हो जाएगी तो आते समय वे उसे पापा की दुकान से ही लेती आऐंगी। मोहित खुशी- खुशी मान गया। पापा की दुकान जाने का मौका भला कोई छोड़ सकता था। दुकान जाने के नाम से ही उसके मुंह में पानी आ जाता था। रंग बिरंगी और खुशबू से भरी मिठाईयों की दुकान थी उसके पापा की। इतना बड़ा सा काउंटर। मोहित ने एक बार गिना था- 25 तरह की मिठाइयां थी उस दिन काउंटर में। इसके अलावे समोसे, कचौरी, सुहाली थी ही। अलग- अलग कंपिनयों के मिक्सचर के पैकेट, चिप्स व दूसरे नमकीन भी थे। शाम चार बजे चाट भी शुरू हो जाता था। इस दीवाली से बेकरी भी शुरू होने वाली थी। मम्मी बता रही थी, उसके बाद हर प्रकार की केक पेस्ट्री भी दुकान में ही मिलेगी। ऊपर के फ्लोर में पूरा बेकरी आइटम रखा जाएगा। ओह् चॉकलेट केक तो रोज खाउंगा सोचते हुए उसके मुंह में पानी आ गया पर अगर पापा ने मना कर दिया तो…….। वह उदास हो आया। बस एक ही कमी थी। पापा हर मिठाई खाने को नहीं देते थे, जो उनका दिल करे वही मिलती थी खाने को। मिठाई के सपनों में खोया हुआ वह दुकान तक पहुंच गया था। पापा काउंटर पर नहीं थे। वह जाकर काउंटर के पीछे पापा की कुर्सी के बगल में रखे स्टूल पर बैठ गया। काउंटर के पास रघु और वीरेंन भैया थे, उन्होंने मोहित को नमस्ते किया। एक और नए भैया भी थे, पापा ने शायद नया- नया किसी को रखा हो।
‘पापा कहां गए भैया,’मोहित ने उनकी ओर देखकर पूछा।
‘ऊपर ही हैं, आ जाऐंगे’,रघु भैया ने बताया।
मोहित उठकर कांउटर के सामने गया और सारी मिठाईयों को देखने लगा। फिर वापस काउंटर की दूसरी ओर आ कर अपने स्टूल पर बैठ गया। स्टाफ की ओर मुड़ कर बोला, ‘भैया वो जो लाल- लाल दिल के सेप वाली मिठाई है न वो मुझे दो पीस दे दो और एक कचौरी भी। स्कूल से सीधे आ रहा हूं न तो जोरों की भूख लगी है’। रघु और वीरेंन ग्राहकों को मिठाईयां दे रहे थे। नए लड़के सुरेश ने मोहित के पसंद की मिठाई और कचौरी उसे पकड़ा दी। मोहित पहला कौर लेने ही वाला था कि उसके पापा ने उसके हाथ से मिठाई छिनकर प्लेट में डाल दिया और मोहित के हाथ से प्लेट छीन ली, ‘इसे ये किसने दिया है’, वे पूरे गुस्से से चीख ही पड़े। सारे ग्राहक उनकी ओर देखने लगे। मोहित सहम कर खड़ा हो गया और दीवार से सट गया।
‘जी, मैंने, सुरेश ने कहा’। पापा ने उसका हाथ पकड़ा और उसे खिंचते हुए अंदर की ओर मुड़े। मोहित भी पीछे- पीछे गया।
‘ये जहर दे रहा था मेरे बेटे को, तेरी हिम्मत कैसे हुई? जानता है न, इसका खोया असली नहीं है। साइक्रिन, सेंथेटिक कलर और प्रिजरवेटिव है सो अलग से। तुझे नौकरी दी तो मेरे बेटे को जहर देने निकल पड़ा’। उनका हाथ उसे मारने के लिए उठ चुका था।
‘पापा इसमें जहर है तो क्या इससे दूसरे लोग नहीं मरेंगे’? मोहित ने मासूमियत से पूछा।
पापा का उठा हाथ नीचे आ चुका था।

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