मंत्री जी पोजेटिव हो गए ( व्यंग्य )
आप का चौंकना स्वाभाविक ही है । ये अंग्रेजी भाषा का शब्द “ पोजेटिव “ अचानक महामारी के चलते कितना खतरनाक हो गया । जो लोग पहले अपने पोजेटिव होने का ढिंढोरा पीटते थे अब बिलकुल शांत हो कर घरों में इस डर से बैठे है कि कहीं वे पोजेटिव न हो जाए । चूंकि बात मंत्री जी की हो रही है तो आप को तो मालूम ही होगा कि मंत्री जी, मंत्री जी बने कैसे ? जाति का , क्षेत्र का समीकरण पूरा करना जब आवश्यक हो गया और कतार में आखरी खड़े हुए बन्दे पर जब निगाह गई तो वे हमारे मंत्री जी ही थे । बस जैसे चुनाव में टिकट मिला था वैसे ही वे मंत्री भी बन गए । वैसे राजनीति के लिए हमारे मंत्री जी बिलकुल फिट नहीं है । उनका अधिकांश समय सोने में ही बीतता है । वे बहुत ही भले से आदमी थे । कोई भला आदमी राजनीति में जाता है क्या परन्तु वे गए । जब वे कुछ नहीं थे तब लोगों के छोटे – मोटे काम वे स्वयम् करवा देते थे । लोगों में उन की छवि अच्छी थी । राजनीति में उन्हें जाति के आधार पर टिकट मिला और थोड़े से प्रयास से छवि के कारण चुनाव जीत भी गए । अब वे मंत्री हैं । मंत्री बन कर भी वे उतने अधिक सक्रिय नहीं हो पाए । अक्सर लोग समस्याऐं ले कर जाते वे आश्वासन तो देते परन्तु काम करवा नहीं पाते । इसका कारण कुछ भी क्यों न हो, लोगों को लगता कि उनकी पकड़ नहीं है । अब तक उनके मंत्री रहते शहर और जिले को भी कोई लाभ नहीं हुआ है । पुल, पुलिया और सड़कें जैसी पहले थी वैसी ही रहीं ।
मंत्री जी अक्सर उद्घाटन और भूमिपूजन जैसे कार्यक्रमों में देखे जाते । यह और बात है कि उनके द्वारा किए गए उद्घाटन और भूमिपूजन के बाद भी ये परियोजनाऐं कछुए की गति से ही चलती रहीं । कौशल की कमी के चलते उनके भाषणों के दौरान लोग उबासी लेने लगते । वो तो भला हो चमचों का जो समय – समय पर तालियां बजा कर लोगों को जगाते रहते । देखा जाए तो मंत्री जी केवल कुछ कार्यक्रमों में आतिथी बनने की योग्यता ही रखते थे और बस कहने भर को ही मंत्री थे ।
एक दिन खबर आई कि हमारे प्यारे मंत्री जी पोजेटिव हो गए । पूरे शहर में हल्ला था लो मंत्री जी भी पोजेटिव हो गए । विपक्ष के छोटे और बड़े नेता बयान जारी करने लगे । वे इसे सरकार की नाकामी बता रहे थे । जनता तो अपने मंत्री के पोजेटिव होने से आश्चर्यचकित थी । वे तो महामारी के इस दौर में अपनी नकारात्मकता की हद तक चले गए थे । उनके पी. ए. ने भी उन्हें एक माह से देखा नहीं था । देखा जाए तो इस महामारी में लोगों को चौदह दिन के लिए संगरोध ( कोरेंटीन ) किया जा रहा है , हमारे मंत्री जी पिछले एक माह से संगरोध में रह रहे थे ,फिर उनका पोजेटिव होना आश्चर्यजनक था ।
हम ठहरे पक्के खोजी हमें भी हमारे प्रिय मंत्री जी का पोजेटिव होना पच नहीं रहा था । बस हमने अपने सूत्रों को काम पर लगा दिया । सूत्र तो सूत्र होते है , बस गणित के किसी कठिन प्रश्न की ही तरह उन्होंने समस्या को हल करने का काम प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने पाया कि मंत्री जी किसी भी कोरोना केंद्र में नहीं हैं । फिर वो है कहाँ ? वो अपने निवास पर भी नहीं है । अब तो समस्या बिकट हो गई । वो अपने राजधानी स्थित निवास पर भी नहीं हैं । याने मंत्री जी उन समस्त ठिकानों पर नहीं है जहाँ उन्हें होना चाहिए था तो वे गए कहाँ ? सूत्र अपना काम कर रहे थे । सूत्रों को पता करना था कि मंत्री जी पोजेटिव है या नहीं लेकिन वे तो उनको खोजने में ही लगे थे ।
काफी खोज के बाद हमारे सूत्रों ने जो बताया उससे हम तो भौच्चके ही रह गए । मंत्री जी पड़ोस के जिले के रेस्टहाउस में देखे गए । आप तो बस गलत ही समझने लगते हो वे कोई गलत काम नहीं कर रहे थे । बस हमारे पोजेटिव मंत्री जी घूम रहे थे इस जिले से उस जिले । सूत्रों ने विस्तार से बताया तो मामला समझ में आया । सूत्रों ने बताया की अब हमारे मंत्री जी नकारात्मक न हो कर सकारात्मक हो गए है । भाई सहाब चुनाव हो रहे हो और नेता सकारत्मक याने पोजेटिव न हो ये कैसे हो सकता है ! पास के जिले में उपचुनाव है बस मंत्री जी भी पोजेटिव हो गए है । वैसे हमे यह जान कर अच्छा लगा कि चुनाव के कारण ही सही हमारे नेगेटिव मंत्री पोजेटिव तो हुए । काश वे हमेशा ही इतनें ही पोजेटिव बने रह पाते । अब वे जनता के बीच इस सकारात्मकता के साथ जाने वाले है , भगवान उन्हें पोजेटिव होने से बचाए ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"