आजादी - 8 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आजादी - 8

विनोद और कल्पना शर्माजी के साथ घर पहुंचे । पुलीस चौकी में हवलदार के व्यवहार ने दोनों के दिमाग में तनाव बढ़ा दिया था । शर्माजी उन्हें छोड़कर अपने घर चले गए थे ।
विनोद ने घर पहुँच कर देखा उसके पिताजी बाहर बरामदे में बैठे उनका इंतजार कर रहे थे । साथ में उसकी माताजी भी थीं । उन्हें देखते ही कल्पना ने साडी का पल्लू अपने माथे पर रख लिया था और अपनी सास के कदमों में झुक गयी । विनोद ने भी आगे बढ़ कर पिताजी और माँ के चरण स्पर्श किये और घर का मुख्य दरवाजा खोलकर उन्हें घर में बिठाया ।

कल्पना उनके लिए चाय पानी का इंतजाम करने के लिए रसोई में चली गयी और विनोद उनके पास बैठकर हाल चाल पूछने लगा । पिताजी से मुखातिब होते हुए बोला ” बाबूजी ! आप कब आये थे ? ज्यादा देर तो नहीं हुयी ? ”
” नहीं ! ज्यादा देर तो नहीं हुयी । लेकिन ये बता ! तूने हमें क्यों नहीं बताया राहुल के गुम होने के बारे में ? अपने घर की खबर हमें कोई बाहरवाला बताएगा तो हमें अच्छा लगेगा क्या ? ” उसके पिताजी उससे खासे नाराज दिख रहे थे ।
अचानक हुए सवाल से विनोद सकपका गया था । झेंपते हुए उसने जवाब दिया ” बाबूजी ! दरअसल हम लोग आपको परेशान नहीं करना चाहते थे । इसीलिए आपको खबर नहीं की । ”
साफ साफ नजर आ रहा था बाबूजी विनोद के जवाब से संतुष्ट नहीं थे । बेहद तल्खी से बोले ” ठीक है ! ठीक है ! चल रहने दे । अब बता क्या हुआ ? कुछ पता चला मुन्ने का ? ”
” बाबूजी ! अपने जान पहचान में सभी जगह तलाश कर लिया । कहीं नहीं मिला । हारकर आखिर हम लोगों ने पुलीस थाने में उसके गुमशुदगी की रपट लीखा दी है । भगवान ने चाहा तो पुलीस शीघ्र ही राहुल को तलाश करने में कामयाब हो जायेगी । ” विनोद ने बाबूजी को पूरी वस्तुस्थिति समझाने की कोशिश की थी ।
” जरुर तूने ही कुछ गलत किया होगा । नहीं तो मेरा मुन्ना ऐसा नहीं है कि वह घर छोड़कर कहीं चला जाए । सब तेरी ही गलती है । ” बाबूजी ने एकतरफा अपनी राय बताते हुए विनोद को ही कसूरवार ठहरा दिया था । अब विनोद भला क्या जवाब देता ? और कुछ कहना उनकी बेअदबी ही मानी जाती सो उसने गर्दन झुका कर ख़ामोशी अख्तियार करने में ही अपनी भलाई समझी ।

तब तक कल्पना एक ट्रे में चाय और कुछ बिस्कुट लेकर आ गयी । सभी चाय पीने में व्यस्त हो गए ।
चाय पीते हुए विनोद सोच रहा था ‘ बाबूजी राहुल के लिए कितने फिक्रमंद हैं यह बात हमें तो समझ में आती है लेकिन वो यह समझने की बिलकुल भी कोशिश नहीं कर रहे हैं कि वह हमें भी उतना ही प्रिय है । आखिर हमारी इकलौती संतान हमारी आँखों का तारा है वो और हम उसके साथ ही कोई बुरा बर्ताव कैसे कर सकते हैं ? ‘

अभी चाय पीकर विनोद के पिताजी वहीँ सोफे पर ही अधलेटे से आराम फरमा रहे थे कि कुछ पडोसी राहुल का हाल जानने के लिए आ गए ।

थका हारा विनोद उन्हें भी सब कुछ बताता गया । इसी तरह दिन भर पड़ोसियों और जान पहचान वालों की आवाजाही लगी रही ।

विनोद सभी को विनम्रता से वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए अब तक किये गए प्रयासों के बारे में बताता वहीँ कल्पना उनके चाय नाश्ते की फ़िक्र में जुटी रहती । लोग आते अपनी संवेदनाएं दिखाते । कुछ समझाने का प्रयास करते हुए अपनी होशियारी दिखाते और फिर चाय पीकर चले जाते । कई तो उन्हें नायाब फार्मूले सुझाते तो कुछ अपने अनुभव सुनाने बैठ जाते । विनोद सबकी सुनते सुनते बेहद परेशान हो गया था । लेकिन उसकी मज़बूरी थी । अभद्रता करना वह चाहता ही नहीं था और न ही उसके संस्कार ऐसे थे ।
लोगों से जरा भी फुर्सत मीलते ही राहुल दोनों के दिलो दिमाग में छा जाता ।

अँधेरा हो चला था । कल्पना का दिल बिलकुल भी नहीं कर रहा था कि वह रसोई में जाये और भोजन की तैयारी करे । लेकिन अब वो दो ही नहीं थे उसके सास और ससुर भी आ गए थे । उनके लिए तो उसे भोजन का इंतजाम करना ही था । बेमन से ही सही कल्पना रसोई में घुस गयी थी रात के भोजन का इंतजाम करने के लिए ।
रात के लगभग बारह बज रहे थे । कहने को तो विनोद और कल्पना भोजन करके सोये हुए थे । जबकि वास्तव में उन दोनों से बिलकुल भी खाया नहीं गया था और अब सोने के नाम पर दोनों बेड पर लेटे तो थे लेकिन नींद उनकी आँखों से कोसों दूर थी ।

कमरे में घुप्प अँधेरा था लेकिन उन दोनों के मन की आँखें अपनी आँखों के तारे राहुल को ही तलाश कर रही थीं । उन्हें राहुल की फ़िक्र हो रही थी । उनकी सूनी आँखें अँधेरे में राहुल को ही देखने का असफल प्रयास कर रही थीं जबकि वह हकीकत में वहाँ से काफी दुर किसी अनजान शहर में ठिठुरती रात में सामने नजर आ रहे अलाव से आग तापते हुए लड़कों की तरफ बढ़ रहा था ।

नजदीक पहुंचते हुए अलाव की रोशनी में राहुल को उनके चेहरे अब साफ़ दिखाई पड़ने लगे थे । ये लडके वही थे जो कल रात उसे इसी जगह मिले थे । उसे अभी तक इनके नाम भी याद थे । विजय ‘ सोहन और रईस को देखकर उसे उनकी कल की बातें याद आ गयी थीं । उसके लिए अब वह मुश्किल घडी आ गयी थी जब उसे फैसला करना था । उसे फैसला करना था कि उसे इन चोरों का साथ देना है या फिर सोहन के मुताबिक उस जल्लाद भोजनालय के मालिक के आगे गिडगिडाना होगा और उसके जुल्मोसितम सहने होंगे ।
उसे अपने बीच पाकर विजय सोहन और रईस को ख़ुशी हुयी । उसकी आज की कहानी से अनजान उन तीनों ने यही समझा कि वह उनके साथ काम करने के लिए तैयार है और इस समय इसीलिए यहाँ आया है ।
आगे बढ़कर विजय ने उससे हाथ मिलाया और ठण्ड से ठिठुरते राहुल को उसने अलाव के किनारे बिठाया । ठण्ड से थोड़ी राहत मिलने के बाद विजय ने उससे पूछा ” तो क्या सोचा है तुमने ? क्या हमारे साथ काम करना पसंद करोगे ? ”

राहुल अभी असमंजस में था । उसे भोजनालय के मालिक का चेहरा याद आ गया । वह कहीं से भी उसे पसंद नहीं था लेकिन चोरी जैसा नीच कर्म करने की इजाजत भी उसे उसका जमीर नहीं दे रहा था ।
उसे खामोश देख विजय ने उससे दुबारा पुछा ” क्या हुआ ? कहाँ खो गए ? अगर हमारे साथ नहीं काम करना चाहते हो तो कोई बात नहीं । हम तो तुम्हारी मदद करने के लिए तुमसे पूछ रहे थे आगे तुम्हारी मर्जी । ”
तभी सोहन बीच में ही बोल पड़ा ” नहीं विजय भाई ! यह हमारे साथ ही काम करेगा और फिर जैसे ही इसके माँ बाप का पता चलेगा हम इसे किराया देकर इसे इसके घर पहुंचा देंगे । लेकिन उस कमीने होटलवाले के यहाँ इसे दुबारा मत जाने दो । यह अच्छा लड़का लगता है । वह जल्लाद इस पर बहुत जुल्म ढाएगा हमें इसे उससे बचाना ही होगा । ”

” कह तो तुम सही रहे हो सोहन ! लेकिन यह बोल क्यों नहीं रहा है ? ” विजय राहुल की चुप्पी से हैरान था कि तभी पुलीस की गाड़ी के तेज सायरन की आवाज उनके कानों में पड़ी और पलक झपकते ही तीनों वहाँ से उठकर सड़क के किनारे नीचे खड्डे में छिप गए थे । जाने से पहले तीनों राहुल को भी अपने साथ ले जाना नहीं भूले थे ।