शाम को संजय कंचन के साथ घूम रहा था।
“कैसा रहा तुम्हारा दिन?”
“तुम क्या सोचती हो?”
“ये डिफाल्टर बडे ही ढीठ किस्म के लोग होते हैं ।“
“अरे नहीं। बड़े ही सोफस्टिकेटेड लोग हैं । पिछली बार शायद समझ नहीं पाए। इस बार मैं गया और उनको इज्जत दे कर बात की तो वे मान गये। प्रतीक ने चैक दे दिया है। मनीष कल जमा करवा देगा।“
“क्या बात है गुरू! फिर तो तुम्हे मेरी जरूरत ही नहीं रहेगी।“
“ऐसा हुआ है कभी कि ज़िन्दगी को साँसों की जरुरत ना रहे“ संजय ने उसकी नज़रों में झांकते हुए कहा ।
“अच्छा, कल कहाँ का प्लान है?” कंचन ने बात बदलते हुए कहा।
“सोचता हूँ खण्डेलवाल ज्वैलर्स चला जाऊँ।“
“तुम्हे पता है उसका मालिक कौन है?”
“रूपेश खण्डेलवाल।“
”हाँ लेकिन आजकल उसका बेटा रवि सारा कारोबार देखता है। कुछ याद आया?”
“कुछ सुना सा तो लगता है।“
“तुम्हे याद है तुम्हारी माँ को स्कूल में एक लडके ने नकटी बोला था और तुमने...............”
“अरे ये वो ही रवि है क्या?”
“हाँ”
“फिर तो समझो हो गया।“
कंचन और संजय जोर से हँस पडे।
अगले दिन कंचन और संजय खण्डेलवाल ज्वैलर्स पहुँचे । कंचन ने सेल्समैन को कहा
“कुछ अच्छे हार दिखाइये, जड़ाऊ में।“
सेल्समैन ने कई हार लाकर आगे रख दिये।
“ये कितने का है?” कंचन ने एक हार को हाथ में उठाते हुए कहा।
“पांच लाख।“
“और ये?“ कंचन ने दूसरे हार की तरफ इशारा करते हुए कहा।
“वजन के हिसाब से, सात लाख के लगभग पडेगा।“
“कोई महंगे में दिखाइये ना” संजय ने कहा।
सेल्समैन ने उन हारों को हटाकर नई रेंज रख दी।
“ये वाला अलग रख दो” कंचन ने सबसे भारी हार को छाँट कर अलग रखवा दिया।
“अब इससे मैचिंग के झुमके और नाक का भी दिखवा दीजिए“ कंचन ने कहा।
सेल्समैन ने झुमके दिखाये कंचन ने एक भारी पीस चुन लिया।
“कंगन भी दिखाइये।“
सेल्समैन ने कंगन की भारी रेंज टेबल पर रख दी। कंचन ने एक भारी कंगन का सैट चुन लिया।
इन सबकों पैक कर दो।
सेल्समैन ने पैक कर बिल थमा दिया ।
“तीन करोड 28 लाख।“
“हमारे नाम लिख दो” संजय ने कहा।
“यहाँ उधार नहीं चलता" सेल्समैन ने जोर देकर कहा।
“तुम्हारा चलता है तो हमारा क्यों नहीं? तुम्हारे सेठ से कहो चरण फाईनेंस से आये है।“
सेल्समैन तेजी से मालिक के पास गया और रवि खण्डेलवाल के साथ वापस आया। रवि ने आते ही कहा
“अरे संजय, कंचन तुम! कब आये? इतने गहने! कोई बैंक लूट लिया क्या?”
“लूटा नहीं। लूट को बचाने का काम ले लिया है।“
“मुझे सब खबर मिल गई है। प्रतीक और मनीष का फोन आया था। कह रहे थे बहुत इज्जतदार आदमी बन गये हो। मैंने कहा मैं तो उसको बचपन से जानता हूँ। गहने रहने दो मैं कल बकाया जमा करवा दूँगा................ चाय लोगे?”
“क्यों नहीं? साथ बैठेंगे पुरानी यादें ताजा हो जायेगी।“
दोनों चाय पीकर वहाँ से रवाना हो गए।
सभी डिफ़ॉल्टर्स को पता लग गया था कि चरण फ़ाइनैन्स ने संजय को नया रिकवरी एजेंट नियुक्त कर लिया है। लोग अपने आप आकर पैसा जमा करवाने लगे। बैंक में पैसे जमा करवाने वालों की वालों की भीड़ लग गई ।
संजय ने अब छोटे डिफ़ॉल्टर से रिकवरी शुरू की। वह शहर के मुख्य बाज़ार में गया। वहाँ एक शोरूम था जिसके मालिक पर बहुत लोन बकाया था। संजय ने शोरूम के मालिक से कहा " नमस्कार जी"।
“नमस्कार संजय भाई।आपको दुबारा आने की जरुरत नहीं पड़ेगी। कल ज़रूर ज़रूर जमा करवा दूँगा।“ शोरूम मालिक ने हाथ जोड़ कर कहा।
संजय बाज़ार में और कई दुकानों पर गया।सब पैसे जमा करवाने को तैयार थे। इंडस्ट्रीयल एरिया वालों को भी पता चल गया था। उन्होंने स्वयं लोन रिकवरी मेला आयोजित कर संजय, कंचन और गुप्ता जी को बुलाया। आयोजक ने मंच से घोषणा की “मैं चरण फ़ाइनैन्स के मैनेजर गुप्ता जी को सभी इंडस्ट्रीयलिस्ट की ओर से विश्वास दिलाता हूँ कि लोन की किश्त जमा करवाने में हमारी ओर से भविष्य में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।”
“मैं भी हमारी फ़ाइनैन्स कम्पनी और सहयोगी संजय की ओर से आपको पूरे सहयोग का वादा करता हूँ। जितना जल्दी आप लोन चुकाओगे उतनी ही आपकी क्रेडिट बढ़ेगी और आगे भी लोन लेने में सुविधा रहेगी” गुप्ता जी ने कहा।
अगले दिन संजय और कंचन बैंक गए। बैंक में भीड़ लगी हुई थी। संजय ने गुप्ता जी से अभिवादन किया “गुड मोर्निंग सर, आपके यहाँ लोन लेने वालों की हमेशा ही भीड़ रहती है।”
“हा हा हा , लेने वालों की कहाँ! ये तो जमा करने वालों की भीड़ है।” गुप्ता जी ने चहक कर कहा। “तुमने तो कमाल की कर दिया संजय।”
तभी गुप्ता जी का फ़ोन बज उठा । बॉस का फ़ोन था
“गुप्ता जी आप ने तो कमाल कर दिया । रिकवरी का रेकोर्ड बना दिया ।”
“ये बस नए रिकवरी एजेंट संजय के कारण सम्भव हुआ सर।”
“ठीक है उसे अच्छा इन्सेंटिव दे देना।”
गुप्ता जी ने फ़ोन बंद कर संजय को गले लगा लिया। फिर एक चेक पकड़ाते हुए कहा “ये लो तुम्हारा इन्सेंटिव, तीन लाख रुपए।”
संजय चैक देखकर भाव विभोर हो गया। चैक लेकर संजय और कंचन बाहर आ गये। कंचन ने कहा “तुम तो मुझसे भी ज़्यादा कमाने लगे?”
“तुमसे ज़्यादा तो मैं कमा ही नहीं सकता। तुम्हारा तो तुम्हारा है ही मेरा भी तो तुम्हारा ही तो है।” संजय ने फिर चुटकी ली।
“चलो कहीं चलें।”
“नहीं पहली तनख़्वाह लेकर माँ के पास चलते हैं।” कंचन ने कहा।
दोनों सीधे माँ के पास गए। संजय ने ने माँ को चेक पकड़ाते हुए कहा “ये ले माँ मेरी पहली कमाई।”
“काग़ज़?,रुपए नहीं मिले।”
“ये काग़ज़ नहीं माँ चाइम है। तीन लाख रुपए हैं ।”
“बेटा इतने पैसे तो मैंने कभी देखे ही नहीं।लेकिन देख मैं हाथ तभी लगाऊँगी जब मेहनत का पैसा होगा। किसी को सता कर तो तू ने ये पैसा नहीं कमाया ना?”
“माँ, मैं क्यों किसी को सताऊँगा? तू हमेशा सताने वाली बात क्यों करती हो?”
“यूँ ही बेटा मुंह से निकल जाता है। आज बड़ा शुभ दिन है तुम दोनों घूम आओ।”
“ आप भी चलो?”
“मैं तुम्हारे साथ कौनसी अच्छी लगूँगी?”
“आप बहुत सुंदर लगती हैं” कंचन ने कहा।
“सुंदर! हा हा मैं तो नकटी ठहरी।” हरसी दुःख मिश्रित हँसी से बोली फिर थोड़ा सम्भलकर “तुम लोग जाओ। मैं भी मंदिर होकर आती हूँ। इक्कीस रुपए का प्रसाद चढ़ा कर आऊँगी।”
दोनों कुछ सोचते हुए बाहर चले गये।
*****
धीरे धीरे संजय की स्थिति ठीक हो गई। संजय ने एक नया मकान ख़रीद लिया। माँ को जब यह बताया तो माँ ख़ुश हो गई लेकिन थोड़ा सोचकर बोली “मामा को बताया या नहीं? इतने दिन उनके साथ रहे हैं।”
संजय मामा को माँ के पास ही बुला लाया। मामा को खुशखबरी दी “मामा मैंने नया घर ख़रीद लिया है। कल का गृह प्रवेश है। दावत रखी है। कल से हम सब वहीं शिफ़्ट होंगे।”
“घर की तो ख़ुशी है लेकिन तुम लोग चले जाओगे यही दुःख है।”
“महेश ये तुम लोग का क्या मतलब? तुम भी साथ चलोगे। तुमने मुझे इतने बरस रखा तो तुम नहीं रहोगे मेरे साथ? मैं नहीं जाऊँगी तुझे छोड़कर।” हरसी ने जोर देकर कहा।
“नहीं दीदी। मैं इस छोटे मकान में ठीक हूँ । आसपास बरसों का व्यवहार है। मैं आता रहूँगा ना।”
अगले दिन पार्टी हुई। पार्टी में गुप्ता जी, प्रतीक, मनीष, कंचन, हरसी और मामा सभी शामिल हुए।
पार्टी में गुप्ता जी ने कहा “संजय अपनी फ़ैमिली से तो मिलवाओ?”
संजय ने सभी का अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए ताली बजायी और कहा
“आप सभी सुनिए, मैं आप सब को मेरी छोटी सी फ़ैमिली को इंट्रोड्यूस करवा दूँ …आप हैं मेरी माँ और आप मेरे मामा।” बारी बारी से हरसी और मामा की तरफ़ इशारा करते हुए उसने कहा। कंचन की नज़र अपेक्षा में झुक गई। हरसी ने देखा तो बोली
“और ये है हमारी कंचन।”
“चलो एक फ़ोटो हो जाये।” प्रतीक ने कहा
संजय ने मामा, मनीष, रवि, गुप्ता जी, हरसी, कंचन को अपने साथ खड़ा किया।
हरसी ने आधा चेहरा ढँक रखा था। फ़ोटोग्राफ़र बोला
“माता जी आप चेहरा पूरा दिखाइए।”
हरसी ने कहा “ऐसे ही ठीक है।”
कंचन ने कहा “ नहीं आंटी , चेहरे से ऊपर करिए चुनरी।” उसने चुनरी पकड़ कर चेहरे से हटा दी। सबने देखा हरसी के एक तरफ़ गाल पर लम्बे लम्बे खरोंच के पुराने निशान थे। कान कटी हुई थी। नाक भी जहाँ नथनी पहनी जाती है वहाँ से फटी हुई थी।
हरसी ने नज़रें नीची कर ली। फ़ोटो खिंच गई थी।
*****
एक दिन संजय गुप्ता जी के पास बैठ था । गुप्ता जी बोले “अब तो रिकवरी बड़े आराम से चल रही है। लेकिन एक आदमी की किश्तें अभी भी नहीं आ रही हैं। वह आदमी लोन देते वक़्त तो बड़ा भला लगा था लेकिन चेहरे से आजकल किसी का कुछ पता नहीं चलता। लोग कई चेहरे लगाए घूमते हैं।”
“ क्या नाम है उसका?” संजय ने पूछा।
“विनोद कुमार, हिम्मत नगर में रहता है।”
“तभी इतनी हिम्मत हो गई लगती है। कल देखिए घुटनों के बल चलता आएगा।”
अगले दिन संजय अपने साथियों के साथ विनोद कुमार के घर गया। विनोद कुमार अधेड़ उम्र के व्यक्ति थे। वे अपने घर के बाहर बैठे चाय पी रहे थे । संजय के साथियों ने मकान के बाहर मोटर साइकल खड़ी की और विनोद कुमार के पास जा कर खड़े हो गये।
संजय ने कहा “नमस्कार सर, मैं चरण फ़ाइनैन्स से संजय, नाम तो सुना होगा?”
“तुम्हारे नाम की बहुत चर्चा है आजकल। अब तुम नमस्कार करो या कुछ और, मुझे किश्त जमा करवाने में अभी छह महीने लगेंगे।”
“अच्छा है आप जितना लेट करोगे उतना ही हमें आपको नमस्कार करने का मौक़ा मिलेगा।”
“तुम जो कहना चाह रहे हो उसे मैं अच्छी तरह से समझ रहा हूँ। लेकिन क्या करूँ मेरी बेटी अभी बीमार चल रही है मैं मजबूर हूँ”
“ जवान होगी ” संजय के एक साथी ने कहा।
संजय ने उसे इशारे से रोका। तभी एक लड़की कमजोर क़दमों से धीमे धीमे उनकी तरफ़ आई। संजय उसे देखकर घबरा कर खड़ा हो गया। लड़की वही थी कॉलेज के पहले दिन जिसका नाम पूछने के लिए रैगिंग के दौरान सीनियर्स ने भेजा था।
संजय को देखकर साथ वाले लड़के भी खड़े हो गये। लड़की ने कहा “तुम वही हो ना जो मेरा नाम पूछने आए थे और तुम्हारी घिग्घी बंधी हुई थी ‘बहन जी, बुरा मत मानना....’”
संजय ने नज़रें नीची कर ली। लड़की ने फिर कहा “पापा कल ही मुझे बता रहे थे कि वे तुम्हारी माँ को जानते हैं। तुम इतने ही बड़े रिकवरी एजेंट बनते हो ना, तो जाओ पहले अपनी माँ की इज़्ज़त और उसके दुःख भरे दिनों की रिकवरी करो। उसकी फटी नाक और फटे कानों की रिकवरी करो। उसके गाल पर लगे खरोंचों की रिकवरी करो।उसके नाक की नथनी और कानों के झुमकों की रिकवरी करो ।”
संजय का एक साथी गुस्से में आगे बढ़ा। संजय ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया।
संजय की आँखें लाल हो गई थी। वह बिना कुछ कहे उठ कर चल दिया। आक्रोश में वह सीधे घर की ओर रवाना हो गया और माँ के पास गया और बोला
“माँ तुम्हारी नाक और कान कैसे फटे?”
“तू इतना परेशान क्यों है?” हरसी ने घबरा कर कहा।
“बात मत बदलो जो मैं पूछ रहा हूँ उसका जवाब दो”
“चुनरी से उलझ कर खिंचने से फट गये बेटा।”
“मैं अब छोटा बच्चा नहीं हूँ जो इस तरह बहला दोगी। तुझे बताना पड़ेगा।”
“मैं नहीं बताऊँगी। बड़ी मुश्किल से कुछ सुख के दिन देखने को मिले हैं। वे भी तू छीनना चाहता है।” कहकर हरसी ने मुंह फेर लिया।
“मत बता मैं मालूम कर लूँगा।”
संजय ने मोटर साइकल उठायी और सीधे मामा के पास गया और आवाज़ दी
“मामा बाहर आओ।”
“क्या बात है संजू। बड़े परेशान लग रहे हो अंदर तो आओ।”
“नहीं आप बाहर आओ। मेरे पास अभी समय नहीं है।”
मामा बाहर आ गये
“मामा मुझे हर बात झूठी लगने लगी है। मुझे लगता है तुम भी मेरे मामा नहीं हो ?”
“मैं सच में तुम्हारा मामा हूँ” मामा ने घबराते हुए कहा ।
“”खाओ क़सम कि मेरी माँ तुम्हारी बहन है।”
“कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो। मैं क़सम खाता हूँ तेरी माँ मेरी बहन है।”
“खाओ क़सम मेरी माँ और आपके पापा एक हैं।”
मामा इस बार झिझके
“तू कैसी पागलों जैसी बातें कर रहा है?”
“ हाँ मैं पागल हो गया हूँ। आप क़सम खाओ।”
“नहीं हमारे पिता एक नहीं हैं ।”
“फिर मेरी माँ के भाई कैसे?”
“भाई बहन बनने के लिये एक माँ बाप का होना ज़रूरी नहीं होता। मेरे तो कोई बहन नहीं थी । मुझे तो जैसे ईश्वर ने जैसे उपहार स्वरूप भेजी। एक दिन जोगी कानदास का फ़ोन मेरे पास फ़ोन आया। मैं उनको बहुत मानता हूँ।”
“महेश जी आपसे बहुत ज़रूरी काम है।”
“हुकुम करिए महाराज”
“मैं तुम्हारे पास एक महिला और बच्चे को भेज रहा हूँ। बहुत दुखियारी है। उसकी जान को ख़तरा है। तुम किसी को मत बताना वह कहाँ से आयी है।“
तुम्हारी माँ कानदास की भेजी में यहाँ आई थी। घायल अवस्था में थी, गर्भवती भी थी। चेहरे से खून बह रहा था। मैं उसको लेकर सीधे हॉस्पिटल गया। कुछ महीनों बाद तुम हुए। बहुत दिनों तक तुम्हें लेकर डरी डरी रहती थी लेकिन धीरे धीरे सहज हो गई।
“ मामा मुझे माफ़ करना मैंने कुछ ग़लत कह दिया हो तो।मुझे माँ की पूरी कहानी जाननी है।”
“कानदास ने मुझे कुछ भी बताने से मना किया हुआ है।”
“ये कानदास कहाँ रहते हैं?”
“झुँझुनू जिले में उदयपुरवाटी के पास देवीपुरा गाँव है। वहीं बाहर सड़क के पास उसका छोटा सी कुटिया है।”
“चलो वहीं चलते हैं”
“कानदास मुझपर नाराज़ होंगे। उन्हें मत बताना मैंने बताया है।”
“मुझे तो जाना ही है मामा।”
“जाओ लेकिन अपना ध्यान रखना संजू।”
महेश से विदा लेकर संजू देवीपुरा के लिए रवाना हुआ।
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