नूर Priyanka Jangir द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नूर

किसी से अपने दिल की बात नहीं कहती ,पूरे दिन भर
गुमशुदा अपने ही ख्यालो में खोई सी रहती हैं | कुछ है अनकहा सा शायद जो कहना चाहती हैं, लेकिन न जाने हर बार वह बात ज़ुबान पर आने से पहले ही रूक जाती हैं |
किसी से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती ,न जाने क्याे इतना रिश्तो से डरती हैं | सबसे नाता तोड़ के चली हैं ये तो दुनिया को देखने, लगता हैं खुद को पहचानना चाहती हैं |




जिसके लिए मैने ये पंक्तियां लिखी है..... वह एक लड़की हैं ,
जिसका नाम नूर हैं | नूर एक छोटे से शहर में अपने माता-पिता के साथ रहती हैं |नूर बहुत ही खुबसुरत, नेकदिल व शांत स्वभाव की लड़की हैं जिसे स्वयं का कार्य स्वयं करना पसंद हैं | नूर यदि किसी कार्य को करने की ठान ले तो वह उस कार्य को पुरा करके ही मानेगी | नूर कठिनाइयों का सामना करने वालों में से है ना की उनके आगे हार मानने वालो में से| नूर में अपने सपनो को मेहनत से पूरा करने का एक जुनून हैं | नूर का बचपन से ही एक सपना था की वह भी अपने माता-पिता की तरह बड़ी होकर एक शिक्षक ही बनना चाहती हैं |नूर की माता का नाम पराजिता हैं और पिता का नाम आशुतोष हैं |नूर के माता-पिता दोनो ही एक विद्यालय में शिक्षक के तौर पर कार्यरत हैं | जहाँ एक तरफ नूर के माता-पिता उसके लिए उसकी दुनिया है तो वही दुसरी तरफ नूर में असके माता-पिता की जान बसती हैं | नूर कोई भी कार्य अपने माता-पिता की मर्जी के बिना नहीं करती हैं हर कार्य उनकी मर्जी से ही करती हैं | नूर अपने परिवार के साथ खुशी से रहती है | नूर के साथ उसके माता -पिता खुश हैं लेकिन उन्हें एक चिंता अंदर ही अंदर सता रही हैं, और वह चिंता का विषय थी नूर क्योंकि उसकी उम्र विवाह योग्य हो गई है ,और नूर उनकी इकलौती संतान हैं विवाह उपरान्त वह उन्हें छोड़ के चली जायेगी यही सोचकर नूर के माता-पिता परेशान थे |नूर के माता-पिता ने कभी भी उसे किसी वस्तु की कमी महसूस नहीं होने दी, वह बिलकुल एक राजकुमारी की तरह पली और बढ़ी हैं, नूर में ही उनको अपनी दुनिया नज़र आती हैं और अब उनकी वही
दुनिया खुद से दूर करने में उन्हें बहुत दुख हो रहा है, नूर ही उनका सबकुछ थी | उन्हें इस दुख में कुछ समझ नहीं आ रहा था |नूर के माता-पिता एक दिन इस विषय में चर्चा करते हैं तब आशुतोष ( नूर के पिताजी )अपनी पत्नी पराजिता (नूर की माता )से कहते हैं
"नूर हमारी जिंदगी में एक रोशनी बनकर आई थी जिसने हमारे अंधेरो को दुर कर जिंदगी में एक नया सवेरा ला दिया था, हमारे घर में नूर एक राजकुमारी की तरह लाड व प्यार के साथ पली बढ़ी हैं, नूर के साथ हमारी जिंदगी बहुत ही खुशी के साथ आसानी से गुज़र गई , हमारी जिंदगी में खुशीयो का कारण थी हमारी बेटी,और अब वह हमारे साथ कुछ दिन ओर रहेगी |" इतना कहकर आशुतोष रूक जाते हैं ,पराजिता कुछ कहने वाली ही थी, की तभी वहा अचानक नूर आ जाती हैं नूर के आने के बाद आशुतोष व पराजिता की आपसी बाते रूक जाती हैं,और वो अचानक अपनी बेटी को देखकर परेशान हो जाते हैं उन्हें ये डर था की नूर ने कही उनकी बाते सुन तो नहीं ली | उन्हें यू परेशान देख नूर उनसे पूछती हैं की आप दोनों परेशान क्यों हो? क्या हुआ? तब नूर के पिताजी उस बात को छुपाते हुए दुसरे ही मुद्दे पर बाते करने लग जाते हैं |
उसी दिन से नूर के माता-पिता उसके लिए एक योग्य लड़के की तलाश में लग जाते हैं जो की नूर को जिंदगी में हमेशा खुश रखे |और ऐसा सिर्फ नूर के माता-पिता ही नहीं सभी के माता-पिता सोचते हैं की हमारे बच्चों का जो भी हमसफ़र हो वो उनको हमेशा खुश रखे |बस इसी बात को लेकर आशुतोष व पराजिता चिंतित रहने लगे |एक दिन आशुतोष अपने घर के बागीचे में बाहर बैठे थे और अखबार पढ़ रहे थे, तभी आशुतोष के कुछ पुराने दोस्त अचानक उसके घर उससे मिलने आते हैं |पुराने दोस्तों को यू इतने दिनों बाद अपने घर में देखकर आशुतोष बहुत खुश थे |आशुतोष अपनी बेटी नूर को आवाज़ देकर अपने पास बुलाते हैं और अपने पुराने दोस्तों से रू-ब-रू करवाते हैं, नूर भी अपने पिता जी के पुराने दोस्तों से मिलकर बहुत खुश थी |नूर व पराजिता ने मिलकर उनकी खुब आवभगत की |सभी दोस्त नूर से मिलकर भी बहुत खुश थे |सभी दोस्तों ने नूर के साथ बहुत बाते की | नूर बहुत ही प्यारी लड़की हैं वह सब के साथ बहुत जल्दी घुल मील जाती हैं वह बड़ी हो गई हैं लेकिन उसका व्यवहार बिलकुल बच्चों के जैसा है |और यही कारण था की वह अपने पिता जी के दोस्तों से बहुत जल्दी ही घुल मील गई थी | नूर जब भी कोई मेहमान या व्यक्ति घर पर आता है तो वो सभी के साथ विनम्रता से बाते करती हैं और सभी को इज्ज़त देती हैं ,और इसी विनम्रता के कारण नूर सबका दिल जीत लेती थी |नूर की इन्हीं खुबियो ने मोहन राय(नूर के पिताजी का खास दोस्त) का दिल जीत लिया था |तभी मोहन राय, आशुतोष से कहते हैं कि यदि आपको कोई आपति ना हो तो मैं एक बात कहना चाहता हूँ ?तब आशुतोष कहते हैं मुझे क्या आपति हो सकती हैं आपको जो कहना हैं बिना किसी संकोच के कहो !तब मोहन राय कहते हैं की मेरा भी एक इकलौता बेटा हैं "रूहान"| जिसकी उम्र विवाह योग्य हैं, और आपकी बेटी नूर की भी उम्र विवाह योग्य हैं ,यदि आप की रजामंदी हो तो क्या नूर -रूहान का विवाह हम एक दूसरे से कर सकते हैं? क्या हमारी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल सकते हैं? इतना कहकर मोहन राय रूक जाते हैं | तब आशुतोष कहते हैं.........






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