पार्ट - २
अब तक आपने पढ़ा की “द इगल “ मटर कचोरी और हलवे की खुशबु से महक रहा है और चौधरी दंपत्ति की ज़िन्दगी में ठहराव सा आ गया आगे पढ़िए क्या हुआ
श्रीमती चौधरी सुबह से लगी हुई थी पकवान बनाने में आखिर चौधरी साहब के बचपन के दोस्त आनंद जो आ रहे थे , ये दोस्त जब भी आते, खाते तो कम, पर तारीफों के पुल बाँध जाते “ भाभी जी आपके हाथ की मटर कचोरियों का क्या कहना मुह में लिया नहीं की घुली समझो आह ,आह वाह ! और हलवा, मिठाई में तो आपका कोई जवाब ही नहीं ..मैं तो इंदौर आता ही इसीलिए हूँ की सराफे में चाटोराई करूँ और आपके हाथों की कचोरियों का मज़ा लूं “ और ये सुनकर अपनी सीधी पल्ले वाली साडी के पल्लू को सर पर ठीक करते हुए ऐसे खुश होती जेसे किसी ने उनको राजवाडा गिफ्ट कर दिया हो और जवाब में बड़ी अदा से कहती “क्या भाई साहब आप भी न ! यूँ ही झूठी तारीफें करते हैं और अपने हाथ में पकड़ी प्लेट से एक गरमागरम कचोरी उनकी प्लेट में मनुहार करते हुए सरका देतीं ...
वैसे सीमा जी इन तारीफों से खुश भी बहुत होती थी और चाहती थी की चौधरी साहब भी उनकी तारीफ में दो बोल ,बोल ही दें पर चौधरी साहब खाने के तो पक्के थे लेकिन तारीफ के मामले में थोड़े कच्चे ही थे ...
खैर जेसा की तय था चौधरी जी के दोस्त आए और नहा धोकर नाश्ते की टेबल पर आ जमे मिसेज़ चौधरी ने कचोरियों से भरी प्लेट और धनिया पुदीना और इमली की खट्टी मीठी चटनी जब आगे रखी तो उनके चेहरे पर मुस्कराहट फेल गई .चौधरी जी एक दम अपनापे से बोले “ले भई आनंद तेरे पसंद की मटर कचोरी “ और खुद ही एक खाली प्लेट उठाई और उसमे कचोरी रखकर उसे बीच से फोड़कर उसमे हरी चटनी ,इमली की चटनी डाली और एक प्लेट में रखे मसाले चुटकी भर भर के उठाए और कचोरी पर ऐसे फ़ैलाने लगे जेसे शाम को सराफे की गलियों में मटर कचोरी की दूकान इन्ही की लगती हो.....पर आश्चर्य की बात ये रही की आज आनंद साहब थोड़े उखड़े उखड़े दिखाई दिए ,कचोरियाँ खाते हुए तारीफ उनने आज भी की पर आवाज़ में वो जोश नहीं दिखा न ही बातचीत में वो इन्दोरी बकेती दिखाई दी. सीमा जी ने कहा भी सही की “भैया आप तो कई ले ही नि रिया असो कई करो और तो लो” पर आनंद साहब ने न न करते हुए पिलेट पे हाथ धर दिया और चौधराइन जी की मनुहार की इच्छा मन की मन में ही रह गई ...
सीमा जी तारीफों के पुल को ढहते देखती हुई किचन की तरफ बढ़ गई ,पर उनका मन वह काम में लग नहीं रहा था वो वही से कान लगाकर काम के बीच में ही हॉल से आती बातें भी सुनने की कोशिश करने लगी इन्ही बातों से उन्हें पता चला आनंद जी की कम्पनी के किसी काम से इंदौर आए हैं और इसी बीच दिल्ली से उनकी बीवी का फ़ोन और आ गया की भोलू ज्यादा बीमार हो गया है सीमा किसी के बीमार होने की खबर सुनकर बाहर हाल में आई और पूछा “ कौन बीमार हो गया भाई साहब बच्चा ? आनंद जी ने मुह लटकाकर कहा नहीं भाभीजी हमारा प्यारा कुत्ता भोलू ...बस इसी लिए थोडा मन नहीं लग रहा आज”सीमा जी ने एक बार आनंद जी का लटका हुआ मुह देखा और न जाने क्या हुआ की साडी के पल्ले से अपने होंठों पर आई पर आई हंसी दबाती हुई वापस किचन में चली गई .हालांकि फिर उनने सोचा कि भोलू परिवार के सदस्य जैसा है तो दुखी होना लाज़मी है।
इधर आनंद जी और चौधरी जी थोडा फुसफुसाकर ऑफिस की कुछ बातें करने लगे और आनंद जी ने अपने पर्स से निकालकर कुछ कागज़ सा चौधरी जी को दिया. बातें सुनने की लाख कोशिश करने के बाद भी सीमा जी के पल्ले न तो ये पड़ा की बात क्या हो रही न ही ये समझ आया की कागज़ क्या दिया गया तो जेसा की आमतौर पर होता है की जब बात न ही समझ आए तो लोग बात से पल्ला झाड़ लेते हैं वैसे ही सीमा जी ने मुह बिचकाया और मन ही मन सोचा “ई लोग कई भी करें म्हारे कई ”...
पर जासूसी का असर उनपर ही हो गया समझिए की उनका मन किचन में काम करते हुए लग ही नहीं रहा था बस कैसे भी करके वो जान लेना चाहती थी की आखिर चल क्या रहा था .
ये था कहानी का दूसरा भाग अब आगे क्या होगा ?क्या भोलू ठीक होगा ? क्या सीमा जी पता लगा पाएंगी की दोनों दोस्त फुसफुसाकर क्या बातें कर रहे थे और क्या था उस कागज़ में जो आनंद जी ने चौधरी साहब को दिया ...