लघुकथाएँ - 3 Abha Dave द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लघुकथाएँ - 3

लघुकथाएँ /आभा दवे

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1)खुशी
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दीपेश ने अपने पिताजी से फोन पर तुरंत शहर आने के लिए कहा ।आने का कोई कारण नहीं बताया और फोन रख दिया।

दीपेश के पिताजी दीपेश की बात टाल नहीं पाए और शहर के लिए निकल गए। दीपेश उनका इकलौता लड़का था । दीपेश की मां को दुनिया से गए दो साल हो गए थे । दीपेश शहर में एक छोटे से मकान में रह रहा था और शहर में ही नौकरी कर रहा था । इसलिए उसके पिताजी अक्सर गांव में अकेले ही रहते थे। ट्रेन में बैठते ही दीपेश के पिताजी के मन में बुरे- बुरे ख्याल आने शुरू हो गए।
ट्रेन का पूरा सफर उनका बुरे ख्यालों में ही बीता । जैसे ही उनका स्टेशन आया तो ट्रेन के रुकते ही सामने उन्होंने दीपेश को हंसते हुए पाया। दीपेश को हंसता हुआ देखकर उनकी सारी चिंताएं खत्म हो गई थी। दीपेश ने अपने पिताजी को कार में बैठने का इशारा किया ।
कार में बैठते ही दीपेश ने अपने पिताजी से हालचाल पूछने के अलावा रास्ते में और कोई बात नहीं की । आधे घंटे बाद कार जाकर एक बड़ी सी बिल्डिंग के सामने रुक गई। पिताजी ने बड़े आश्चर्य से दीपेश की ओर देखा। दीपेश ने पिताजी से कहा "चलिए पिता जी आप सही जगह ही आए हैं।"पांचवी मंजिल पर पहुंचते ही घर की चाबी निकाल कर देते हुए उसने पिताजी कहा" पिताजी घर का ताला खोलिए, यह घर आपका ही है आपको गांव में अब अकेले रहने की जरूरत नहीं है।" पिताजी ने जैसे ही घर का ताला खोला अंदर दीपेश के सारे दोस्तों ने ताली बजाकर पिता जी का गर्मजोशी से स्वागत किया । दीपेश के पिताजी के पास कहने को कोई शब्द नहीं थे आज उनका रोम -रोम पुलकित हो रहा था ।

आभा दवे

2)आत्मविश्वास
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डॉ. सुदीप को आज अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली है यह जानकर उसे बहुत खुशी हो रही थी । सभी मरीजों की देखभाल करते समय उसे भी कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया था । उसी के अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था । अब वह ठीक हो गया था । वह अपने ख्यालों में खोया हुआ था तभी नर्स ने उससे कहा-"आज आप को छुट्टी मिल रही है । आप के परिवार वाले भी आते ही होंगे । आप घर जाकर अब आराम करिएगा।"

डॉ सुदीप ने हँसते हुए कहा " मुझे कोरोना रोग का अनुभव हो गया है इस लिए मैं अपने मरीजों का इलाज और बेहतर ढंग से करुँगा । बस थोड़े ही दिनों में , मैं अपने काम पर लौट आऊँगा ।"

नर्स को डॉ सुदीप के चेहरे पर आत्मविश्वास की अद्भुत झलक दिखाई दी जिसने उसे भी मरीजों की सेवा और अच्छे से करने की शक्ति प्रदान की । उसने मुस्कुरा कर डॉ सुदीप को देखा और उनका सामान बैग में रखने लगी ।

3)तारे गिनना
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राधे लाल पंडित जी के घर से वापस आए तो अपने कमरे में आकर खामोश बैठ गए । उनकी पत्नी ने उनकी खामोशी का कारण पूछा तो कहने लगे " पंडित जी ने बताया है कि अपनी लड़की का अभी दो साल तक शादी का योग नहीं है और हमें उसे आगे की पढ़ाई करानी होगी। पंडित जी कह रहे थे -कि उसे एम. बी .ए. करा दो उसका आगे चलकर नौकरी में केरियर बहुत अच्छा है, वह बहुत नाम कमायगी ।" अभी हमारी बिटिया 21 वर्ष की तो है हमें उसकी शादी की चिंता नहीं करनी चाहिए । इतना कहकर राधेलाल चुप हो गए।

राधे लाल की पत्नी ने कहा "ठीक ही तो कह रहे थे आप ज्यादा परेशान मत होइए । जो पंडित जी ने कहा है हम वैसा ही करेंगे , रोज- रोज रात के तारे गिनने से अच्छा है कि हम उसे पढ़ाई में आगे बढ़ाएँ और अपने लड़की के भविष्य को उज्जवल बनाएँ " ऐसा कहकर राधेलाल की पत्नी ने राधेलाल के कंधे पर हाथ रखा । दोनों की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले।

आभा दवे
मुंबई