अचानक तेज रोशनी से उसकी आँखों पर प्रकाश पड़ता है, वो अपने आपको एक अंजान जगह पर पाती है। उसके चारों ओर दूर दूर तक कोई भी नहीं नजर नहीं आता हैं उस अपने पीछे ठंडी हवा के साथ पानी की लहरों की अवाज सुनाई देती है, वो पीछे मुड़कर देखती है सामने एक तालाब दिखाई देता है। वो समझ ही नहीं पाती है कि आखिर वो हैं कहाँ..वो मन ही मन थोड़ी घबराई हुई भी थी।
सुप्रिया थोड़ा आगे बढ़ती है, तभी उसे कुछ लोगों के कदमों की आहट सुनाई देती है, कदमों की आहट पास आते सुन कर वो एक पेड़ के पीछे छुप जाती है, तभी कुछ लोग कद के लम्बे, आँखे बड़ी बड़ी.. रंग गेहूआ और शरीर पर जानवर की खाल लपेटे और हाथी दाँत के गहने पहने हुए थे। उनको देखते ही सुप्रिया सब समझ गई।
उस अब सारी बात समझ आ जाती है, ये सब उस किताब के कारण हो रहा है, उसने जो भी पढ़ा था वो सब उसके आँखों के सामने था वो किताब पढ़ते पढ़ते ही उस काल में पहुंच गई थी। जिस काल की वो कहानी थी उसने देखा कुछ लोग हाथ में भला लेकर तेज कदम से चले जा रहे हैं और एक दूसरे से कह रहे थे कि आज उस कलू को नही छोड़ेगें हमारे कबिले की लड़की पर नजर रखता है आज उसे सरदार के पास लेकर जाना हैं, और पूरे कबिले के सामने फांसी पर लटका देगें। ताकि आगे कोई भी हमारे कबिले की लड़की की तरफ आँख उठा कर भी ना देखे।
सुप्रिया उन सब की बातें सुन रही थी और उनके पीछे पीछे छुपती छुपाती चल रही थी। तभी उन में से एक को अपने पीछे किसी के चलने की आवाज सुनाई देती है, वो अचानक रुक जाता हैं, उसे देख बाकी के लोग भी रुक जाते हैं, और पूछते हैं, क्या बात है... रुके क्यूँ हो। तब वो पहला आदमी कहता हैं... मुझे अपने पीछे किसी के चलने की आवाज सुनाई दी.... ऎसा लगा कोई हमारा पीछा कर रहा हो। तभी उन में से दूसरा आदमी बोला... हाँ,.. आवाज तो मुझे भी सुनाई दी.. लेकिन मुझे लगा..... कोई जानवर होगा।
बाकी लोग भी उस दूसरे आदमी की बात का समर्थन करते हैं और कहते हैं कि... तुम सही कह रहे हो... कोई जानवर ही होगा। और यह आयेगा भी कौन?
हम चार लोग ही तो निकले थे कबिले से... और दूसरा कबिला यंहा से बहुत दूर है।जल्दी जल्दी चलों पहुंचते पहुंचते रात हो जायेगी।
सुप्रिया एक पेड़ के पीछे छुप कर उनकी बातें सुन रही होती है, जैसे ही वो लोग चलने लगते हैं वो भी छूपते छुपाते उन के पीछे पीछे चलती है, काफी चलने के बाद अखिर वो लोग उस कबिले तक पहुंच ही जाते हैं। वहां पहुंच कर वो जोर जोर से आवाज लगाते हैं... कलूँ.. ओए.. कलूँ... कहाँ.. छुप कर बैठा है... चल बाहर निकल...
आवाज सुन कुछ लोग इखक़टे हो जाते हैं.. उन में से एक बुढा व्यक्ति बोलता है... क्या बात है... क्यू कलूँ को इस तरह पुकार रहे हो.... इस बार तो कोई भी तुम्हारे तालाब से पानी लेने नही आया। पिछली बार जो तय हुआ था हम सब उसका पालन कर रहे हैं।
तभी उन आए हुए चार लोगों में से सब से वृद्ध व्यक्ति बोला... आज हम पानी.. की बात के लिये नही आये हैं... तुम्हारे कबिले के लड़के.. कलूँ ने... हमारे कबिले की लड़की पर बुरी नजर डाली है... कहां है.. वो बुलाओ उसे.. वो वृद्ध गुस्से से बोलता है।
उसी समय एक वृद्ध महिला बोलती है... नही.. ऎसा नही हो सकता.... मेरा कलूँ.. कभी भी ऎसा नहीं कर सकता है।
उन में से दूसरा आदमी बोलता है..... वो सब पता चल जायेगा... पहले उसे बुलाओ तो सही.....कहां छुपाया है।
तभी एक भारी रौब दार आवाज सुनाई देती है... कौन पुकार रहा है मुझे..... सब उस आवाज की ओर देखते हैं......
..... कहानी जारी रहेगी