कितना खूबसूरत लफ्ज़ है ना...लेकिन मुस्कुराहट में कुछ आहट ऐसी होती है जो कि कुछ लोग नही समझ पाते तो कुछ बिन कहे महेसुस कर लेते है..!
मुस्कुराहट को हमने मुस्कुराते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने रोते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने खिलते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने मुरज़ाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने महकते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने चलते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने गिरते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने रूठते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने मनाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने लड़खड़ाते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने संभलते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने जीते हुए देखा है, मुस्कुराहट को हमने मरते हुए देखा है....
झील की बहाव का मधुर स्वर, कम से कम लोगो की हलचल, सूरज की सुनहरी रोशनी जैसे पूरे गाँव को एक अजीब सी चमक से चमका रही हो, खेतों में लहराती खूबसूरत फ़सल, बागों में ख़िलते हुए खूबसूरत फूलों का आग़ोश, मंदिर में बजती हुई झनकार, और एक हसीन माहौल...और इस माहौल में सूबेदार विमलराय का ज़ुल्मी कहेर...
इतना ज़ुल्मी था विमलराय कि कई लोगो ने उसके कहेर से बचने लिए गाँव छोड़ने की कोशिश की तो उन लोगो से उनकी जान तक छीन ली गई।
भवानपुर एक छोटा सा खूबसूरत गाँव है। लेकिन इसकी खूबसूरती उस सूबेदार के जुल्मों तले घूँट गई हैं। ऐसे माहौल में भी एक छोटी सी मुस्कुराहट, छोटी सी कुँवर अपने माँ और पिता के लिए सुकून है। कुँवर की मुस्कुराहट के लिए जी रहे है। कुँवर आपने माँ और पिता का जीने का सहारा है। पढ़ाई का शोख़ तो सर पर जुनून बनके सवार हुआ है। पर पिता भूपतदेव और माँ अमृतादेवी तीन वक़्त के खाने के लिए भी मज़दूरी करते है। ऐसे में कैसे वो कुँवर को पढ़ाते..? फिर भी लाड़ली कुँवर को पढ़ाने के लिए दिनरात मजदूरी करके कुँवर को स्कूल में दाख़िला करवाया। छोटी कुँवर मन लगा के पढ़ने लगी। बोहोत ही तकलीफ़ों में होने पर भी अपने माँ पिता को मुस्कुराता रखने लगी। पाँचवी कक्षा में भी हर साल की तरह पहेले नंबर से पास हुई। तब पिता ने उसे कहा, " बेटा कुँवर..! हमारे गाँव की स्कूल में सिर्फ सातवीं तक कि ही कक्षा है। तो तुम सातवीं तक पढ़ाई कर लो और उसके बाद घर को संभाल लेना। "
कुँवर कुछ ज़्यादा सोच नही पाई । पिता की ख़ुशी के लिए बोली, " ठीक है बापू। तब तक भी मैं मन लगाके पढूँगी। "
" बहोत अच्छे मेरा बच्चा..! " - कह के पिता ने बेटी को गले लगा लिया।
दो साल बाद कुँवर ने सातवीं कक्षा में भी फस्ट रेंक पाया। खुश हो कर आई घर पर और माँ और पिता को अपना रिजल्ट दिखाया। उसी साल गवर्मेन्ट ने सब स्कूलों में आठवीं तक कि कक्षा की सुविधा दी थी। जिसके बारे में कुँवर नहीं जानती थी। पर पिता को पता चला और उन्होंने अपनी प्यारी कुँवर को और खुश करने ये खुशखबरी दी, " कुँवर बेटा..! तू आठवीं में भी फस्ट आएगी तो में तेरे लिए अच्छा वाला बेग ला के दूँगा। "
ये सुनकर कुँवर बोली, " पर बापू, मैं आठवीं की पढ़ाई करने कहा जाऊँगी..? "
" तुजे कहीं जाने की जरूरत नही। गवरमेंट ने अपने गाँव की स्कूल में ही आठवीं कक्षा की सुविधा दी है। " - बोहोत ख़ुश हो कर पिता ने बताया।
ये खुशी कुँवर के लिए हज़ारों तोहफ़ों से क़ीमती लगी। और वो आगे की पढ़ाई की तैयारी करने लगी। देखते ही देखते ये साल भी गुज़र गया। और कुँवर फिर से पूरे क्लास में फस्ट आई। इस बार बड़ी महेनत से पिताने उसे बेग ला दिया। और आगे की पढ़ाई कैसे की जाए इसके तरीके खोजने लगी।
कुँवर अपनी पढ़ाई में ऐसे खो गई थी कि वो ये कभी नही जान पाई की उसके पिताजी किन मुशीबतों से जूंज के पैसे इक्कट्ठा करते है। उनकी मज़दूरी उस सूबेदार के यहाँ थी। जहा कभी एक पल आराम नही मिलता। सिर्फ जानवरों की तरह ग़ुलामी और मज़दूरी। इन परिस्थितियों से बेख़बर कुँवर को जैसे तैसे बाहर शहर में पढ़ने भेज दिया।
कुँवर कुछ सालों बाद अपनी सारी पढ़ाई ख़त्म करके मास्टरनी बन गई। और वो वापस अपने माँ पिता के पास गाँव आने के निकली। और गाँव पहोंच कर जो उसने देखा जिससे उसके होश उड़ गए।
उसने देखा उसके बापू अकेले ही गाँव के लिए कुँए की ख़ुदाई कर रहे थे। और आसपास कोई नही था।
" बापू..! माँ कहा है..? और आप यहां अकेले ये कुँआ क्यूँ खोद रहे है? दूसरे मजदूर आपकी सहायता के लिए नही रखे है क्या..?" बड़ी चिंता से कुँवर ने अपने पिता से पूछा।
पर भूपतदेव कुछ पल मौन ही रहे। उनकी आवाज़ जैसे थम सी गई हो। अपनी बेटी की इतने सालों बाद देख के सुकून की साँस तो ली पर वो कुछ बोल नही पाए। बस कुँवर को देखते रहे।
कुछ देर तक कुछ भी ना बोलने पर कुँवर ने फिर से कहा, " बापू...बापू...कुछ तो जवाब दीजिये...क्या हुआ है...? माँ कहाँ हौ ये तो कहिये।"
" अमृता मर गई...." रोते हुए पिता ने बताया।
( क्या हुआ अमृतादेवी के साथ? और क्या कुँवर ख़ुद को संभाल पाएगी..?)
.....क्रमशः