ये कैसी राह - 12 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये कैसी राह - 12

भाग 12

मां पापा और परी के जाने के बाद अनमोल अपने कमरे में आया और फूट-फूट कर रोने लगा। पहली बार वो घर से बाहर निकल कर इतनी दूर आया था । कुछ देर रोने के पश्चात उसने खुद को संभाला और सोचा आखिर इतने सारे बच्चे हैं सब तो अपना अपना घर छोड़ कर हीं आए हैं। सब के साथ उनके घर वाले थोड़ी ना आए है, अगर मैं रोऊंगा तो घर पे भी सब दुखी होंगे।

इस तरह अपने दिल को तसल्ली देते हुए खुद समझाया। उठ कर मुंह धोया और अपने सामान को

बैग से निकाल कर आलमारी में सजाने लगा। कुछ ही

देर में सारा सामान सेट हो गया। अपने घर तो वो

कभी कुछ कर ही नहीं पाता था। मां और बहनें हीं

सब कुछ करती थी। इस वजह से इतना सब करने

में ही वो थक गया और पसीने से नहा गया।

अनमोल ने सोचा मै नहा लूं तो फ्रेश हो जाऊंगा ।

यही सोच कर नहाने के लिए बाथरूम में चला गया।

नहाने कर निकला तो उसे अच्छा महसूस हो रहा था।

अनमोल ने सोचा थोड़ा सा आराम कर लेता हूं और

करने लेट गया।

अभी कुछ ही देर हुआ था कि दरवाजे पर किसी ने

कुंडी खड़काई। वह उठ कर देखने गया।

दरवाजे सामने एक लड़के को खड़ा देखा। उस लड़के ने हाथ आगे बढ़ा कर बोला,

"हैलो, मैं तनय हूं। मैंने देखा तुम आज ही आए हो। आज तुम्हरा पहला दिन है। इसलिए मैं आया हूं चलो मेस का टाइम हो गया है। खाना खाने चलते हैं । रात में खाना नौ बजे तक ही मिलता है । चलो, जल्दी टाइम हो गया है।जेड

अनमोल ने भी अपना परिचय दिया और कहा बस

"एक मिनट।"

और अंदर जाकर टी शर्ट पहना, कमरे में ताला बंद कर तनय के साथ हो लिया।

तनय और अनमोल दोनों बेसमेंट में बने मेस में पहुंचे । वहां साथ बैठ कर दोनों ने खाना खाया ।

अनमोल को खाना बहुत पसंद आया और कुछ बातें कोचिंग और वहां के बारे तनय ने अनमोल को बताई । वहां कुछ और लड़कों से तनय ने अनमोल को मिलवाया। पर शांत स्वभाव का अनमोल बस हाय से ज्यादा कुछ नहीं बोल पाया। इसके बाद दोनों साथ में वापस आ गए। अपने अपने कमरे में जाने से पहले साथ में ही कोचिंग जाने की बात हो गई । तनय भी आईआईटी की ही कर रहा था, इसलिए दोनों की ही क्लास का समय एक हीं था। अनमोल को तनय एक अच्छा लड़का लगा।

वो भी कुछ कुछ उसके जैसा ही था। अगले दिन सुबह ही उठ अनमोल नहा धोकर तैयार हो गया। मेस में तनय के साथ जा कर नाश्ता किया।

सुबह आठ बजे से ही क्लास शुरू होनी थी। इस

कारण दोनों ने नाश्ते के बाद वही से कोचिंग सेंटर चले गए। जो कि लगभग सौ मीटर की दूरी पर था।

रास्ते में तनय ने बताया ' मैं एक साल और कोचिंग

कर चुका हूं।अच्छा काॅलेज नहीं मिल पाया था इसलिए,

पापा ने कहा 'एक बार और कोशिश कर लो '। अब

देखो मैं मेहनत तो कर रहा हूं क्या होता है भगवान

जाने।"

अब तक दोनों पहुंच गए कोचिंग और क्लास रूम में चले गए। समय हो गया था इस कारण तुरंतbही क्लास शुरू हो गई। पन्द्रह पन्द्रह मिनट के ब्रेक के बाद लगातार छह घंटे तक क्लासें चली। वापसी में अनमोल थक कर चूर हो गया था। पर अभी तो लंच के लिए भी जाना था । कमरे में पहुंच कर जल्दीbसे हाथ मुंह धोकर कोचिंग वाली ड्रेस उतारी। कपड़े बदल कर बाहर आया हीं था कि तनय भी आ गया दोनों साथ-साथ गए लंच किया और फिर कमरे में आ गए।

कमरे में पहुंचते ही पापा का फोन आ गया,

पापा ने हाल खबर जानने के लिए उसे एक मोबाइल

भी खरीद कर दे दिया था। पापा ने पढ़ाई के बारे में पूछा। जब अनमोल ने बताया कि सर ने बहुत ही अच्छी तरह आज की टाॅपिक को समझाया तोbपापा सन्तुष्ट हो गए कि उन्होंने भेज कर कोई गलती नहीं की। वो बात कर चुके तो मां को फोन दिया पर इस हिदायत के साथ कि रोना नहीं है। मां ने खाने के विषय में पूछा उसे वहां का खाना पसंद तो आ रहा है । जब अनमोल ने बताया कि हां मां अभी तक जो भी मिला है वो बहुत स्वादिष्ट था तो मां को भी तसल्ली हुई कि बेटा भले ही दूर पर खाने पीने की तकलीफ़ तो नहीं है । मां ने समझाया अच्छे से खाना खाना बेटा और अपना ख्याल रखना।

इस हिदायत के साथ मां ने कहा बेटा तुम थक गए

होगे। अनमोल ने कहा,

" हां ! मां अब मैं आराम कर लूं।"

कह कर फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया ।

अरविंद जी और सावित्री दोनों को इत्मिनान हो गया था कि बेटा आराम से है। दादी ने भी दोनों से ही पूछा उसके बारे में। पर अब वो गांव जाने की जिद कर रही

थी। मेरा अनमोल तुम लोगों ने मुझसे दूर भेज दिया ।

अब मैं यहां नहीं रहूंगी जब मेरा लल्ला आएगा तभी मैं आऊगी। उनके हठ के आगे अरविंद जी को झुकना पड़ा और वो एक दिन गए और मां को गांव पहुचा

आए। परी का एडमिशन अरविंद जी ने,पास के कॉलेज में करवा दिया था।

परी को पढ़ना और पढ़ना दोनों ही बहुत रुचिकर लगता था। उसने बी. ए.में एडमिशन लिया था।

इसके बाद उसका इरादा बी.एड.करके टीचर बनने

का था। हनी और मनी का मन पढ़ाई में ज्यादा नहीं लगता था इसलिए वो दोनों ही किसी तरह ग्रेजुएशन कर पाई थी । अब घर के काम काज में मां का हाथ बंटाती थी। अरविंद जी दोनों के लिए योग्य वर की तलाश में थे। शीघ्र ही हनी और मनी का विवाह करना चाहते थे। पर कोई भी रिश्ता उन्हें जंच नहीं रहा था।

अरविंद जी अच्छा रिश्ता चाहते थे, जिससे कि बेटियां

जीवन भर खुश रहे।

 

कैसी थी आगे अनमोल की कोटा की जिन्दगी जाने अगले भाग में।