life of a student: an experimental view books and stories free download online pdf in Hindi

छात्रजीवन और प्रयोग

हमारे इसी समाज में एक लड़का रहता है मेरा मित्र ही है। एक छोटे से शहर का खुशमिजाज और थोड़ा बहुत समझदार लड़का जो 12विं पास करके ही बड़ा हो गया था शायद इसलिए अपनी आगे की पढ़ाई के लिए शिक्षा के क्षेत्र में, एक बड़े बहुचर्चित शहर में आया था जिसका नाम था "इलाहाबाद"उसके आने के लगभग एक ही साल बाद सरकार ने इस शहर नाम "प्रयागराज" कर दिया ,फिर भी उसको "प्रयागराज" बोलने में वो मज़ा नहीं आता जो "इलाहाबाद" बोलने में आता है। खैर जैसा कि,इस शहर का कॉलेज पूर्वांचल का ऑक्सफोर्ड माना जाता था तो उस लड़के ने भी कुछ वैसे ही चित्र मन में ही बना रखा था, लेकिन उसको बाद एहसास हुआ कि "ठीक ही है अपने शहर से तो बेहतर ही है!"हालांकि उसके इस नए अनुभव की शुरआत तब होती है जब वह शहर के ही एक तथाकथित अनुशासित कॉलेज में दाखिला ले लेता है ।ये दुनिया उसको लिए रंग - बिरंगी लग रही थी और उसको भी देख के अच्छा ही लगता था और कहीं ना कहीं खुद को भी इस रंग में रंगने की कोशिश में लग चुका था वह।,यहां "रंग" का मतलब है एक छोटा सा कमरा, नोट्स, दाल भात,और अपना कॉलेज और बहुत दिन हुए तो इकाक बार संगम घूम लिया बस! दूसरी तरफ "बिरंगी" जिसका मज़ा तो क्या ही बताएं! "बिरंग" शब्द की सीमा में सिविल लाइंस,कंपनी बाग,नया पूल ,केटीएम,बाबू - शोना,हुक्का - बार और कुछ प्रसिद्ध होटल भी आते थे। इन दोनों शब्दों को वह विच्छेदित करने में लगा था।एक तरफ था उसका रूम, पढ़ाई - लिखाई खाना,नहाना वाला "आत्मनिर्भर"जीवन और पैदल ही गानों के हिसाब से नाप दी जाने वाली दूरी,... और वहीं दूसरी तरफ था शहर का कोलाहल,फ़िज़ूल खर्च, ऐस आराम भरा जीवन जहां लोग जिम में साइकिल चलाने भी महंगी - महंगी गाड़ियों से जाते और ऐसे ही कई और उदाहरण। वो इन सब में धीरे - धीरे सामंजस्य बनाने लगा था जो उसके रहें सहन और उसके कपड़ों से समझा जा सकता है,... ये रंग - बिरंग से भरी दुनिया उसको जंच गई थी और वह बौद्ध जी द्वारा उपदेशित "मध्यम मार्ग" अपनाते हुए इन दोनों में सामंजस्य बैठान चाहता था,यहां यह कहना ही पड़ेगा कि वह कुछ हद तक सफल रहा। कॉलेज में हर तरह के लडके - लड़कियां आते अपनी - अपनी सुविधा के अनुसार, उसकी सुविधा भी अपने कुछ दोस्तों की टोली के साथ कॉलेज में इकठ्ठे ही प्रवेश करने में थी थी, यहां यह बात जान लीजिए कि ऐसे लड़के छात्र - नेता कहलाते हैं ,अब होतें भी हैं या नहीं ये बताना थोड़ा मुश्किल है क्यू कि थोड़ा बहुत संबंध सब से हो ही जाता है हालांकि उसकी छवि लड़को में ठीक - ठाक बन गई थी जो बहुत आवश्यक थी, उसी प्रकार कुछ अपनी पिता जी द्वारा गिफ्टेड बुलेट ,कुछ अपनी स्कूटी और कुछ साइकल से भी आते थे और इसी प्रकार लड़कियां भी। क्लास हो जाती दिन बीतता फिर पास की ही दुकान में सब चाय पर चर्चा और थोड़ी बहुत मौजमस्ती ,कुछ तो उस समय क्लास और नोट्स की भी बातें भी करते और इन्हे "पढ़ाकू" कहा जाता था (जो परीक्षा के दिनों में भगवान का रूप ले लेते हैं) खैर अब आता है मैन मुद्दा ,सब अपने - अपने निवास को चले जाते ,साथ ही ये महाशय भी अपने 12-15 के निवास पर जाते और जरूरी पढ़ाई ख़तम करके खाना वाना खाके घर पे मोबाइल से बात करते थे( अभी इतने भी बड़े नहीं हुए थे शायद,उनकी मां या पिता जी ,किसी ना किसी का फोन आ ही जाता था) और उसके बाद सोशिल मीडिया पे ऐक्टिव हो जाते ,ये भी "बिरंगी" दुनिया का ही एक हिस्सा था।सब को देखते कोई लेख लिखता ,कोई फोटोग्राफी करता, कोई मेम्स बनता। उनके फोन में इन सब का संतुलित मिश्रण देखने को मिल जाता है।इसी बीच स्क्रॉल करते - करते उनका दोस्त जो किसी बाबू का सोना भी है, उसकी फोटो भी दिख जाती साथ ही कुछ दोस्त अपने किसी खास के लिए विशेष प्रकार की स्टोरी या स्टेटस डालते।ये सब देख कर उसको मन उसको अंततः सोचने पर मजबूत करता की क्या ये भी जीवन का एक हिस्सा होना चाहिए? क्या इसका कोई औचित्य है मेरे जीवन में? क्या मै यहां भी सामंजस्य बैठा लुंगा?ये सब प्रश्न उसको धीरे - धीरे उसे अब परेशान करने लगे थे जब भी कॉलेज के बाद किसी जगह या शहर में घूमने जाता ऐसे ही जोड़े भी दिख जाते कुछ हवा - हवाई (केटीएम वाले) और कुछ जिम्मेदार( एक्टिवा वाले जो कथित तौर पर दोस्त के यहां गए होते हैं) इन सब को देख के अब उसको कष्ट होने लगा था तो फिर अंततः उसने निश्चय कर ही लिया कि उसकी इस नदी में गोते लगाने चाहिए और हो जाए तो पार करना चाहिए। ये प्रयास उसको नए - नए प्रयोगों पर लाकर के खड़ा कर देते हैं जिसके बाद वह भी अपने सोशल मीडिया स्टोरी या स्टेटस में चकाचौंध वाले पोस्ट और कुछ नया करने का प्रयास करने लगा और नई - नई अप्सराओं से बात भिड़ाने कि कोशिश करता। कॉलेज में भी अब उसने संपर्क और बढ़ाते हुए छात्राओं तक बना लिया और तमाम तरह के अनुभवों को प्राप्त करना प्रारंभ किया,कुछ ही दिनों में वह एक विशेष समूह से बातचीत (फ्लर्ट) करने में लगभग महारथ हासिल कर एक सफल सुझाव दाता भी बन गया ,यहां यह उल्लेखनीय है कि अभी तक उसकी "सोना"उसे नहीं मिली है, प्रतिदिन वह 3- 4 लोगों से प्रतिदिन ही बात कर लेता है उसके बाद ही उसको नींद आती है लेकिन उसकी यह चर्चा मैत्रीपूर्ण ही मानी जानी चाहिए।ऐसे ही संपर्कों में से एक अप्सरा एक दिन अचानक ही रात को 2,:30 बजे मेसेज करती हैं जिसके बाद वह लगभग एक से डेढ़ घंटे चली बात चित का हिस्सा बना और उसको ऐसा भी लगा की जैसे उसका काम हो गया हो या होने वाला हो ,उसका मीटर सही काम करने लगा था.. शायद....अब आज के लिए उसने यहीं तक बताया है और बोला की "अभी हम उनको ऊ... बोले नहीं और ऊ भी हमको कुछ नहीं बोली ,पता मांगे तो बोली कि अभी नहीं इंतज़ार करो, तो बस अभी हम कर रहे हैं इंतज़ार " जैसे ही कुछ आयेगा हम आपको बताएंगे।लेकिन आप हमारा नाम मत बताइएगा लिखते समय प्लीज़,और मैंने भी कहा था ठीक है।......................................... तो बस ये कहानी यहीं रोकता हूं,आगे बढ़ेंगे उसके इंतज़ार के पूरा होने के बाद । नमस्कार 🙏🏼
..रॉयल..

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