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भरोसा -- अनोखी प्रेम कथा (भाग5 अंतिम)

"तो फिर तुम लोगो ने कोर्ट मैरिज कर ली?"नाज़िया की बात सुनकर रीना बोली।
"नही",मेहंदी लगाना भूलकर नाज़िया अपने अतीत मैं फिर खो गई,"अब्बा के मना करने पर मैं विवेक से कोर्ट मैरिज करने को तैयार हो गई थी।लेकिन विवेक तैयार नही हुआ।वह मेरे अब्बा की मर्ज़ी के बिना शादी करने के लिए तैयार नही था।।"
"फिर तुम लोगो की शादी कैसे हुई?"रीना की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
"मेरे तलाक के बाद- -
और नाज़िया के अतीत का एक और पन्ना चलचित्र की तरह उसकी आँखो के सामने साकार हो उठा।
बेटी के तलाक से रहीस को गहरा सदमा लगा था।इस सदमे से वह बीमार पड़ गया।और उसकी तबियत धीरे धीरे काफी खराब हो गई।और कुछ टेस्ट कराने के बाद पता चला कि उसे कैंसर हो गया है।कैंसर का पता चलने पर नाज़िया घबरा गई।वह अकेली क्या करती।नाते रिश्तेदारों ने मात्र ऑवचरिकत्ता दिखाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली।ऐसे में विवेक ने सच्चे दोस्त का फर्ज निभाया था।
उसने नाज़िया के अब्बा के इलाज के लिए रात दिन एक कर दिया।जिसने जहाँ बताया दिल्ली,मुम्बई विवेक वंहा लेकर उन्हें गया।वह नाज़िया का हौसला भी लगातार बढ़ाता रहा।हर तरह के बढ़िया से बढ़िया इलाज के बावजूद रहीस की तबियत दिन प्रतिदिन बिगड़ती गई।रहीस को भी अपनी मौत का एहसास हो गया था।एक दिन वह विवेक से बोला,"मेरा बेटा भी होता तो वह इतनी सेवा नही करता जितनी तुम कर रहे हो।"
"तो क्या आप मुझे अपना बेटा नही मानते"
"मैने तुम्हे जन्म नही दिया लेकिन तुम मेरे बेटे से भी बढ़कर हो",रहीस बोला,"मैने जरूर कोई अच्छे काम किये होंगे, जो उस रात खुदा ने फरिश्ता बनकर नाज़िया को बचाने के लिए तुम्हे भेज दिया।"
"अब्बा ऊपरवाला जो करता है अच्छा ही करता है।"
"बेटा जब तुमने नाज़िया से निकाह करने की बात मुझसे की,तो उस दिन मैने तुमसे मना कर दिया था।लेकिन मैं गलत था।चिराग लेकर पूरी दुनिया घूम लू,तब भी मुझे मेरी बेटी के लिए तुमसे अच्छा शौहर नही मिलेगा।"
"तो तुम्हारे अब्बा आखिर मान ही गए थे।"नाज़िया का अतीत जानकर रीना बोली थी।
"अब्बा तो मान गए,लेकिन जब अब्बा ने नाते रिश्तेदारों और जात बिरादरी के लोगों से मेरा निकाह विवेक से करने की बात की,तब सब लोगों ने हमारे निकाह का जबरदस्त विरोध किया था।सब गैर मुस्लिम लड़के से मेरे निकाह के खिलाफ थे।लेकिन अब्बा ने किसी की भी परवाह नही की।उन्होंने अपने इन्तकाल से पहले मुस्लिम और हिन्दू दोनो रीति रिवाजों से मेरी शादी विवेक से कर दी।"
"तुम्हारर पति हिन्दू है,इसलिए मुसलमान औरत होकर भी तुम करवाचौथ मनाती हो?"रीना ने उसकी प्रेम कहानी सुनकर पूछा था।
"पति पत्नी बनने के बाद भी हमने अपना धर्म नही बदला है।बल्कि दोनो धर्मो को मिलाकर हमने एक कर दिया हैं।"
"अच्छा।वो कैसे?"नाज़िया की बात सुनकर रीना आशचर्य से उसे देखने लगी।
"हम दोनों एक दूसरे के धर्म,परम्परा, रीति रिवाजों का पूरा सम्मान करते है।विवेक मेरे साथ नमाज पढ़ता है। कही बाहर जाते है,तो मेरे साथ मजिस्द मजार में जाता है।मैं उसके साथ पूजा करती हूँ।मंदिरों में जाती हूं।वह मेरे साथ रोजे रखता है।मैं उसके साथ व्रत उपवास रखती हूं।हम होली,दीवाली,ईद सब त्यौहार मिलकर मनाते है।विवेक मेरी आस्था विश्वास का ध्यान रखता है,मैं उसकी।"।
रीना नाज़िया की कहानी सुनकर सोचने लगी।काश ऐसा होने लगे तो?"

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