हारा हुआ आदमी (भाग9) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग9)

निशा का मोबाइल नंबर तो उसने लिया नही था।नंबर होता तो फोन कर देता।फिर क्या करे?उसने पत्र लिखने का फैसला किया।लेकिन उसने उसका पता भी नही लिया था।वह याद करने लगा,जो उसने बताया था।और उसे उसके साथ उस दिन हुई बाते याद आ गई।
और उसने निशा के बताय पते पर एक पत्र डालदिया।
नवंबर आधा बीत चुका था।दिन अभी भी गर्म थे, लेेकिन राते ठंडी होने लगी थी।देवेन शतााब्दी से आगरा पहुँचा था।
ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर रुकते ही लोोग चढ़ने उतरने लगे।देेेवेन ट्रेेेन से उतर कर स्टेेशन के बाहर आया था।वह टैक्सी की तरफ बढ़ रहा था तभी
"देेवेेेन
मधुुुर नारी स्वर उसके कान से टकराया था।उस आवाज को सुनकर देवेेन के कदम ठिठक गए।उसनेे मुुुडकर देखा
" निशा तुम?"निशा को देखकर देवेन का चेहरा ऐसे खिल उठा ,मानो लम्बे अर्से बाद राह चलते कोई अपना मिल गया हो।
"मुझे देखकर आश्चर्य क्यो हो रहा हैं?"निशा के होठों पर प्यारी सी मुस्कान थिरक रही थी।
"मैं समझता था।आप मुझे भूल गई होगी।"
"मेरी याददाश्त तेज है।भूलती नही हूँ,"दिलकश अंदाज़ में देवेन को देखते हुए वह बोली,"हमेशा एग्जाम मे अब्बल आती रही हूँ।"
"शक की कोई गुंजाइश नही।"देवेन ,निशा की प्रशंसा करते हुए बोला।
"याददाश्त आपकी भी तेज है।"
"वो कैसे?"
"आपने मेरा पता खूब याद रझा"।
"आपसे पहली मुलाकात कैसे भूल सकता हूँ।"
देवेन ने टैक्सी की थी।वह निशा के साथ होटल आ गया।
"मेरा पत्र आप को मिल गया था।"
"तभी तो आयी हूँ।"
"उस दिन की मुलाकात मे न जाने आपने क्या जादू कर डाला।मैं आपसे दूर रहकर भी आपको नही भुला।आपका संक्षिप्त परिचय याद रहा और उसी को याद करके पत्र डाला।"
कमरे में पहुँचकर अपने बैग में से एक पैकेट निकालकर निशा को देते हुए देवेन बोला,"आपके लिए।"
"मेरे लिए।इसमे क्या है?"निशा पैकेट को देखते हुए बोली।
"खोलकर देख लो।'
देवेन के कहने पर निशा ने पैकेट खोलकर देखा।उसमे पार्कर पेन का सेट था।
"यह काफी महंगा लगता है।इतने पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी?"
"आपसे ज्यादा नही।"देवेन बोला"आप बैठे।मैं तैयार हो लेता हूँ।"
निशा को बैठाकर देवेन बाथरूम मे चला गया था।निशा होटल के कमरे को निहारने लगी।
कमरा छोटा होने के बावजूद व्यवस्थित था।दरवाजे और खिड़की पर नीले रंग के पर्दे झूल रहे थे।दीवार पर सुंदर पेंटिंग्स लटक रही थी।
खिड़की के शीशे से आ रही धूप फर्श पर नीले रंग का तिकोन बना रही थी।खिड़की का शीशा नीला था।इसलिए तिकोन का रंग भी नीला था।रंग भले ही नीला हो लेकिन तिकोन परिवार नियोजन के तिकोन की याद दिला रहा था।
तैयार होकर देवेन निशा को हॉल में ले गया।दोनो ने ब्रेकफास्ट किया।फिर निशा कॉलेज चली गयी और देवेन अपने काम पर।
देवेन ने निशा से शाम को सदर मे मिलने का वादा किया था।वह छः बजे से पहले ही सदर चोराहे पर आ गया था।
वह कभी दांये,कभी बांये देख रहा था।तभी उसे वातावरण में अजीब गंध सी महसूस हुई।गंध काहे की है?वह सोच पाता उससे पहले ही उसे आवाज सुनाई पडू,"लो गुरु खींचो।"
देवेन ने आवाज की दिशा में पलटकर देखा।उसके पीछे रिक्शा स्टैंड था।केवल दो रिक्शे खड़े थे।जवान रिक्शेवाला अधेड़ रिक्शेवाले को चिलम पकड़ा रहा था।अधेड़ रिक्शेवाले ने चिलम मुँह से लगाई।जोर का कस खींचा।धुआं अंदर जाते ही वह बुरी तरह खांसने लगा।खांसते खांसते उसकी सांस फूल गई।वह चिलम लौटाते हुए बोला,"ले शंकर।"