सपना - 3 Shivani Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सपना - 3

अभी मेरी परेशानी खत्म नहीं हुई थी....बल्कि और बढ़ने वाली थी. पेशी पर जब भी मयंक मिलता तो हमेशा मुझे यही धमकी देता की न तो वो मुझे तलाक देगा और ना ही वापस अपनाएगा. मेरे चरित्र को दागदार कर देगा. आए दिन मुझे फोन करके परेशान करने लगा..... यहां तक कि भाभी को भी फोन करके मेरे बारे में उल्टी-सीधी बातें करता......
क्या?????" और वो सब सुन लेती थी??

थोड़ा ठहरते हुए सपना फिर बोली "धीरे-धीरे भाभी मुझ पर ही शक करने लगी, अब बात-बात पर ताने देती कि जरूर मेरा किसी और के साथ चक्कर है, तभी इतना प्यार करने वाला पति कभी तलाक ना देता."
"तुम्हारी भाभी पागल है क्या" गुस्से से भरी पारुल बोली

"भाभी की जबान मम्मी-पापा के आगे भी न रुकती. मम्मी ने भाभी की बातों पर ध्यान न देने को कहा.....पर मैं क्या करती हूं कोई भी मेरे चरित्र पर उंगली उठाये जा रहा था आखिर कब तक मैं चुप रहती और फिर एक दिन भाभी से मेरी काफी बहस हो गई."
थोड़ी देर बाद फिर बोली सपना......"परसों मैं घर से यह बता कर निकली कि मैंने एक जगह नौकरी के लिए अप्लाई किया है उसी का इंटरव्यू देने जा रही हूं. मैं अपनी ज़िन्दगी से तंग आ गयी थी, अपने ही घर में मुझे दोषी माना जा रहा था. मुझे और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था तो मैं रेलवे स्टेशन आकर एक ट्रेन पर चढ़ गई मुझे नहीं पता कि वह किधर जा रही थी सोचा कि अपने शहर से दूर जाकर किसी ट्रेन के आगे आ जाऊंगी पर शायद यहां भी किस्मत खराब ही निकली......आसमान की ओर ताकते हुए बोली सपना "पता नहीं अभी कितने कष्ट है जो मुझे मिलने बाकी हैं" सीढ़ियों पर खड़ा सत्यम सपना की पूरी कहानी जान चुका था. अब उसे सपना पर गुस्सा नहीं बल्कि हमदर्दी सी हो गई थी. वो ये सोचकर हैरान था कि आखिर एक आदमी कैसे इतना गिर सकता है.....अपनी बीवी का यह हाल कर दिया और दूसरी तरफ उसकी भाभी जो सपना का दर्द ना समझ कर उल्टा उसे ही दोषी बना रही थी.
मुहल्ले पर चर्चा जोरों पर थी लोग आते-जाते पारुल के पापा को भी ताने मारते हुए कहते कि लड़की को कब तक घर पर रखोगे. पारुल के पापा भी अब सोचने लगे कि आखिर कब तक इस लड़की को यहाँ रखेंगे. जल्द से जल्द उसे उसके घर पहुँचाना पड़ेगा. यही सोच कर उन्होंने सपना से बात करने की सोची.... "सपना तुम्हारे यहां रहने में कोई बुराई नहीं है पर तुम्हारे घरवाले परेशान होंगे. यह समाज सही को सही कहे ऐसा भी नहीं है. मोहल्ले में सब तरफ तरह-तरह की बातें हो रही है और मैं चाहता हूं कि तुम्हें अपने घर जाना चाहिए. अपने घर का पता दो या फोन नंबर दो सत्यम उनसे बात कर लेगा और तुम्हें पहुंचा भी देगा. सत्यम वही तुम्हारे शहर में ही नौकरी करता है वह तुम्हें छोड़ देगा." कहकर पारुल के पापा अपने काम पर चले गए.
सपना की खामोशी ने सत्यम के दिल में जगह बना ली थी उसके मासूम उदास चेहरे के पीछे की सच्चाई जानकर सत्यम उसका हमदर्द बनना चाहता था. आते-जाते वो सपना को छिपी निगाहों से देख लेता. अभी तक सपना ने सत्यम से कोई बात नही की थी. उसी दिन सत्यम अपनी बहन पारुल के साथ सपना को उसके घर छोड़ने निकल पड़ा.
रास्ते में कुछ सोचते हुए सत्यम ने सपना से कहा "सपना मुझे तुमसे कुछ कहना है."सपना बोली तो कुछ नहीं पर सवाल भरी नजरों से उसे देखने लगी. "सपना मुझे नहीं पता कि तुम्हारी जिंदगी में क्या चल रहा है, पर तुम मुझे अपना दोस्त समझ सकती हो. अपने दिल की बात कह सकती हो तुम्हारी खामोशी मुझे परेशान करती है..... ऐसा क्या है जो तुम बता नहीं रही हो. सत्यम ने सपना को ये बिल्कुल भी जाहिर नहीं होने दिया कि वह उसके अतीत के बारे में सब जान चुका है, नहीं तो सपना को लगेगा उसकी दयनीय स्थिति पर तरस खाकर वह उससे दोस्ती कर रहा है, इसलिए सब जानकर भी वह अनजान बना रहा.
"ऐसी कोई बात नहीं है.....बस कुछ तकलीफ ऐसी होती है जिस की लड़ाई खुद से ही लड़नी पड़ती है. पहली बार सपना ने सत्यम से कुछ कहा. रास्ते भर सपना लगभग खामोश ही रही. सत्यम और पारुल उसे रास्ते भर हिम्मत ही देते रहे. सत्यम ने उसे अपने कम्यूटर इंस्टिट्यूट का कार्ड दिया और बताया कि वो उसके ही शहर में वह कंप्यूटर इंस्टिट्यूट चलाता है. अगर वह सीखना चाहे तो आ सकती है और साथ ही सत्यम ने सपना से एक वादा लिया कि अब वह दोबारा आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाएगी. हालात कैसे भी हो वह लड़ेगी पर डरेगी नहीं. तब तक उनका शहर भी आ गया. हां में सर हिलाते हुए सपना उन दोनों के साथ अपने घर की ओर निकल पड़ी. सत्यम से बात करके उसे अच्छा लगा. दोपहर के लगभग 1:00 बज रहे थे. कॉलोनी में लगभग सन्नाटा जैसा था. जैसे ही सपना ने दरवाजे की घंटी बजायी उसके बड़े भाई मोहित ने उसे वहीं सबके सामने दो तमाचे लगा दिए. "कहाँ थी तुम दो दिन से.... तुम्हारा फोन भी बंद आ रहा था. नौकरी का झूठा बहाना बनाकर, हम सबको परेशान करके अपने दोस्तो के साथ मस्ती करने गयी थी." सत्यम का कॉलर पकड़ते हुए गुस्से से मोहित बोला.
"देखा मैं सही कहती थी की ऐसे ही कोई भला आदमी तलाक थोड़े ही देगा....पर मेरी बातें तो सबको बुरी लगती है न. जरूर इन्ही महारानी के कुछ करतूत होंगे." कंचन सपना की भाभी हाथ नचा-नचा कर बोलने लगी. वो भी उसे कोसने का कोई भी मौका छोड़ना नही चाह रही थी.
सत्यम और पारुल ने सोचा भी नही था कि सपना के घरवाले उसके साथ ऐसा व्यवहार करेंगे..सपना उम्मीद भरी घर के अंदर देखने लगी कि शायद उसके माँ-पापा उसे संभाल ले.
पर शायद वो घर पर नही थे इसलिए मोहित और कंचन उसके साथ बुरा बरताव कर रहे थे.
जैसे ही सत्यम कुछ कहने चला उनलोगों ने उसे चुपचाप रहने का इशारा किया. पर पारुल चुप न रही और बोलती गयी.....
"कैसे भाई है आप...आप की बहन इतनी बड़ी मुसीबत में है ओर आप उसको ही गलत बता रहे है. आपने तो सीधे उसे मुजरिम ही बना दिया ये जाने बिना कि वो किस मुसीबत से बच कर आ रही है. जिस लड़के का कॉलर पकड़ कर आप उसे उल्टा सीधा कह रहे है न अगर वो न होता तो आप की इस बहन की लाश यहां पड़ी होती. मेरे ही भाई की बदौलत आज सपना आपके सामने ज़िंदा खड़ी है.

"ये क्या कह रही हो तुम" चौकते हुए मोहित पूछने लगा
तब पारुल ने मोहित को सपना के आत्महत्या करने की बात बताई. और साथ ही ये भी उसके अपने ही घर में उसके साथ कितना गलत व्यवहार हो रहा है. ये सब सुनकर मोहित सपना को आश्चर्यजनक निगाहों से देखने लगे. दोबारा सत्यम ने पूरी घटना बताई और साथ मे अपने घर का पता भी बता दिया कि अगर उनको इनसब बातों पर यकीन न हो तो वो सब पता कर सकते है. कहकर सत्यम और पारुल सपना छोड़कर चले गए.

"जीते जी तो बदनामी करे बैठी है, अब मरकर भी पीछा नही छोड़ेंगी" बड़बड़ाती हुई कंचन अपने कमरे में घुस गयी.

क्रमशः.....

शिवानी वर्मा