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तुम और मैं - 3

तुम और मैं
सुप्रिया....... नाम ही कुछ अलग सा था ना, मैंने तो पहली बार ही सुना था। शायद प्यार नहीं पर चाहत तो होने लगी थी। वो बिल्कुल पागल सी थी, मतलब जादा सोचती नहीं थी। ड्रॉइंग, पड़ाई, खेल - कूद सब में बेस्ट। बस चीड़ बहुत जल्दी जाती और मुंह फूला लेती। अब आगे की कहानी पर आते हैं।

तुम और मैं - अध्याय - 3 (दूरियाँ )
उसने बताया मुझे.. की यहां आने से पहले वो जयपुर में रहती थी और पापा की डेथ के बाद यहां शिफ्ट करना पाड़ा। अब मैं काफी कुछ उसके बारे में जान चुका था। हम धीरे - धीरे बहुत अच्छे दोस्त बन चुके थे, और रहते भी साथ ही थे। देखते ही देखते बहुत सी यादो के साथ में साल भी बीत गया। एक साथ हँसना और रोना सब हुआ। पेपर की टेंशन तो अब होने लगी थी, पेपर अब बस आने ही वाले थे। nov. से स्कूल जाना कम ही हो गया था और साथ ही बाते भी कम ही होती थी, दोनों को पेपर का टेंशन जो था। आज वैसे उसका जन्मदिन था यानी 22nd of dec. शुक्रवार का दिन। और मेरे हाथो में उसके लिए एक छोटा सा तोफा जो था srk की फोटो वाला कॉफी मग। उन्हें शाहरुख खान जी पसंद जो थे । बस सेलिब्रेशन के बाद मैं वापस घर आ गया .... अगली मुलाकात प्रैक्टिकल्स में ही होनी थी, अब मुझे ऐसा ही लग रहा था । उस बीच बस एक - दो बार मम्मी के फोन से ही हमारी आपस में बात हुई।
मैं पड़ने में एवरेज वाला बच्चा था, और उसके बारे में तो आप सब जानते ही हैं। कुछ दिन और बीते और प्रैक्टिकल के दिन आ गए। हमारी काफी बात हुई कभी पेपर से लेकर तो कभी छुट्टी में लगी उसकी हाथो में वो चोट, गोल - गप्पे वाले की वो चाट और अकेलेपन में बिताया हुआ वो समय। मायूसी और मासूमियत सी भरी उसकी बाते बहुत अच्छी लगती थी मुझे, पर मेरे पास इतना समय था कहां , प्रैक्टिकल हो गए अब सारे। पेपर भी शुरू हो गए, हम मिले और गुड लक विश किया एक दूसरे को और दे दिए पेपर।
अब इतनी आसानी से कहानी चले तो मजे ही क्या आयेंगे। यहां आया कहानी में ट्विस्ट, अच्छी-खासी चल रही ट्रेन पटरी से उतर गई। लॉकडाउन लग गया पूरे देश में, हमारा हिन्दी का पेपर रह गया। जो नहीं चाहिए था एक - एक कर के वही हो रहा था, उस से कुछ समय तक बात नहीं हो पायी, और उसने भी बिना कुछ बताए वापस जयपुर के स्कूल में एडमिशन करा लिया। मेरे घर वालों ने मुझे पालीटेक्निक का कोर्स करने के लिए बोला तो मैं भी उसकी तैयारी में लग गया, हम दोनों ना चाहते हुए भी एक - दूसरे से अलग हो गए। खैर अब कुछ हो नहीं सकता था, जब आखिरी बार बात हुई तो उसने कहा मैं जब भी यहा आऊंगी हम जरूर मिलेंगे। बस इसी चाह में मेरा इंतजार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, की कभी हम फिर उसी मोड़ पर मिलेगे जहां वो और मैं हमेशा साथ थे।


इसी के साथ ये किस्से से निकली हुए एक कहानी का अधूरा सा अंत हो गया है, क्योंकि जब रास्ते अलग हो जाए तो मिलना बहुत मुस्किल हो जाता है।
आशा करता हूँ आपको यह कहानी पसंद आयी होगी। अन्य कहानियों के लिए जुड़े रहे।

Poetpahadi 🥰 ✍️

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