सपना - 2 Shivani Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सपना - 2

पारुल ने उसे गले लगा लिया फिर बोली "सपना तुम्हारी शादी तो हो चुकी थी, तुम्हारे पति भी तुम्हें बहुत प्यार करते थे. ससुराल वाले भी बहुत अच्छे पढ़े लिखे और समझदार थे, फिर ऐसा क्या हो गया.....???."

"यही तो गम है पारुल कि इतना अच्छा घर-परिवार मिलने के बाद भी मैं उसमें शामिल नही हो पाई. मेरी खूबसूरती ही मेरी बर्बादी बन गयी." अपनी खूबसुरत पतली उंगली में चमक रही अँगूठी के नग को बेकदरी से देखते हुए बोली सपना.
"शुरू शुरू में तो सब अच्छा था.... मयंक मुझे बहुत चाहते थे, बहुत ध्यान रखते थे. घुमाना-फिराना मेरी हर इच्छाओं का ध्यान रखना जैसे उनकी आदत में शामिल था. मैं बहुत खुश थी ऐसा जीवन-साथी पाकर. कुलमिलाकर मैं अपनी किस्मत पर नाज़ करने लगी थी. पर धीरे-धीरे शायद मुझे मेरी ही नज़र लग गयी. पार्टी या किसी प्रोग्राम में जाने पर जब कोई दोस्त या कोई व्यक्ति मेरी खूबसूरती की तारीफ करता तो मयंक चिढ़ जाते......वो अपने रंगरूप को लेकर मुझसे दबा महसूस करते जबकि मैने उन्हें अपनी जान से भी ज्यादा चाहा था. धीरे-धीरे मयंक मुझ पर शक करने लगे...... मेरी खूबसूरती उसे काटने लगी. उसे लगता कि मैं उसे नहीं बल्कि किसी और को पसंद करती हूं.
मैं अगर छत पर कपड़े सुखाने जाती तो शक करता कि मैं सड़क पर नैन मटक्का कर रही हूं. उसको अपने रंग-रूप को लेकर हीन भावना सी हो गई, जिसके कारण वह मुझे परेशान करता रहता. अगर मैं अपने गुनगुना रही हूं तो उसे लगता कि मैं किसी और को इशारे कर रही हूं. उसकी शक की आदत ने मेरी जिंदगी नरक बना दिया था." सपना चल रही ठंडी हवाओं से अपने जले मन को ठंडा करने लगी.

इतना सब कुछ सुनने के बाद पारुल गुस्सा होते हुए बोली "पर उसने तो तुम्हें खुद पसंद किया था ....????? और कैसे तेरी पढ़ाई के ही बीच में शादी की जल्दी मचा दी थी.फिर शादी के बाद ऐसी हरकतें क्यों करने लगा. तेरे ससुराल वाले भी कुछ नहीं बोलते थे."

"मयंक ने मुझे एक रिश्तेदार की शादी में देखा था, तभी मुझसे शादी करने के लिए मेरे घर रिश्ता भेज दिया. पर मैं अभी पढ़ना चाहती थी लेकिन मेरे घरवालों को भी सब कुछ अच्छा लगा तो उन्होंने भी रिश्ते के लिए तुरंत हामी कर दी और दो ही महीने बाद हमारी शादी हो गई. शुरुआत के साल भर तो सब कुछ बहुत अच्छा रहा.... पर एक साल बाद पता नहीं क्यों मयंक मुझ पर शक करने लगे. अगर मैं घर में अपने देवर से भी बात करती तो वह शक करता. घरवालों ने उसे काफी समझाया पर उसकी शक की आदत और भी बढ़ गई. धीरे-धीरे उसकी ये आदत गाली-गलौज से लेकर मारपीट तक बढ़ गई. मेरा घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया. यहां तक कि मैं घर में भी कैमरे की नजर में रहने लगी फिर भी मैंने सब बर्दाश्त किया......कि शायद मयंक ठीक हो जाए.
एक दिन में ठंड में मैं सभी घरवालों के साथ छत पर थी. ठंड का मौसम था तो खाली समय में सभी धूप सेकने छत पर आ जाते थे. मम्मी जी के कहने पर मैं भी छत पर आ गयी और पड़ोस की छत पर एक ऑन्टी से बात करने लगी. तभी मयंक किसी काम से अपने शोरूम से घर आये और मुझे छत पर देखकर गुस्से से मेरा हाथ खीचते हुए मुझे नीचे सीढ़ियों पर ढकेल दिया.......मेरा पैर फिसला और मैं सीधी सीढ़ियों से लुढ़कती हुई नीचे आ गिरी." इतना कहकर सपना अपने पेट पर हाथ रखकर रोने लगी........ये सब सुनने के बाद पारुल ने उसको पानी पिलाया और उसका मन हल्का करने के लिए अपने कॉलेज टाइम की बातें करने लगी. पर सपना का मन तो अभी उसी दुनिया में था जहां से आना इतना आसान न था. थोड़ा शांत होकर आगे बोली........."पेट में भयंकर दर्द के साथ मैं बेहोश हो गई, जब मुझे होश आया तो मैं.... कहते हुए दोबारा रो पड़ी सपना. पारुल ने उसे गले से लगा लिया. "जब मुझे होश आया तो पता चला कि मेरा 4 महीने का बच्चा जो अभी इस दुनिया आने की तैयारी कर रहा अपने बाप के गुस्से का शिकार हो गया. मैं बहुत रोई थी अस्पताल में क्यों कि मुझे सिर्फ अपने बच्चे का ही एक सहारा था कि शायद उसके आने से मेरे और मयंक के बीच सब ठीक हो जाए. मुझे नही पता कि मयंक को कभी भी अपनी गलती का एहसास हुआ था या नहीं पर मेरी सासू मां ने मयंक को बहुत बुरा-भला कहा था. उस घर में वही थी जो मेरे दर्द को समझती थी. ससुराल के सभी लोग मयंक से बहुत नाराज़ थे.

अस्पताल से घर आने पर मैंने मयंक से बात करनी बंद कर दी और कुछ दिनों के लिए अपने मायके आ गई. मेरे जो घाव थे वो तन से ज्यादा मन पर लगे थे. घर आकर भी मैने चुप्पी साध ली और किसी को भी मयंक की करतूतों की भनक न लगी. मम्मी-पापा, भैया-भाभी सभी मुझे समझाते रहते कि कोई बात नही भगवान ने चाहा तो जल्दी फिर मैं माँ बन जाऊंगी. लगभग एक महीने बाद मयंक मुझे बुलाने आए ना चाहते हुए भी मुझे मयंक के साथ जाना पड़ा. कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन फिर उसकी शक करने की आदत बढ़ने लगी.
सासू माँ, पापा जी के समझाने पर मयंक उनसे ही भिड़ जाता, बुरा-भला कहता. मेरे देवर जो भाई जैसा ध्यान रखते थे वो भी मयंक के डर से मुझसे बात न करते. एक दिन मेरी सासू मां मेरे पास आई और बोली "बेटा मुझे नहीं पता था कि तुम्हें इस घर में लाकर हम तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं. मयंक ऐसा क्यों कर रहा है मुझे नहीं पता पर वह ऐसा बिल्कुल नहीं था. तुम मयंक से तलाक ले लो.... अभी तुम्हारी पूरी जिंदगी पड़ी है. तुम फिर से अपना घर बसा लो."
उनकी बातों से मुझे झटका लगा की आखिर वो अपने ही बेटे से मुझे बचाने की सोच रही थी. फिर वो आगे बोली....
मैं तुम्हारे पापा-मम्मी से बात करती हूं, वो तुम्हें यहाँ से ले जाए. बात बहुत बिगड़ गई थी और आखिर एक दिन मेरी सास ने ही मेरे घरवालों को मयंक के हरकतों के बारे में बता दिया और अब मेरी हालत का मेरे घर वालों को भी पता चल चुका था क्योंकि मैंने कभी जाहिर ही नहीं होने दिया था.
मैंने भी इस फैसले का ज्यादा विरोध न किया, कुछ नहीं बोली शायद मेरी भी सहन-शक्ति खत्म हो रही थी. मम्मी-पापा मुझे अपने घर ले आए. शारीरिक रूप से तो टूट चुकी थी और मानसिक रूप से पागल हो गई थी. घर पर भी मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया था. भैया-भाभी, मम्मी-पापा ने मुझे बहुत समझाया लेकिन यह घाव ऐसा था जो भर नहीं पा रहा था. मयंक एक दो-बार आया लेकिन पापा और भैया ने भेजने से साफ मना कर दिया और मैंने भी तलाक के पेपर पर साइन कर दिए. अब मेरी और मयंक की मुलाकात कोर्ट में पेशी के वक्त की होती."

"तब फिर तूने आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाया जब बात तलाक तक तक पहुँच गयी थी." थोड़ा चौकते हुए पारुल बोली.

क्रमशः.....

शिवानी वर्मा